थारून्के मरुवा ओ पहिचानके खाेजी
सुरेश चौधरी
विषय प्रवेश
हर साल जेठ असार महिना सुरु हुइलागे टे हमार आजा घरक सक्कु लर्कन बाज ओ लसुन गु‘ठके घेंचामे माला घलाडेहे । महीन सम्झना बा, मै ६ कक्षा पह्रटसम (वि.स.२०५१ सालटक) मोरीक घेंचामे बाज ओ लसुनके माला परल रहे । उ समयमे थारू समुदायके छोटछोट लर्का सबजाने बाज ओ लसुनके माला घालिट । घाम महिना सुरु हुइटि किल गाउँभरिक मनै डराइ लागिट । गाउँभर हल्ला सुनजाए, सक्कु ओहोर खडेरी परना हस बा, पश्छिउ‘, डख्खिन ओरसे हैजा फैलटा । चौकीडरवा गाउँमे हॉक पारे– आपन आपन लर्कन घरेसे बाहर ना निकरेडेहो । मास मछरी ना खाइडेहो । लसुन प्याज ढेर ढेर खवायो, हैजा नै लागी ।
गाउँक मनै छलफल करिट । असौक पुजैया कै ढारी । ठान नै पाके गॉउक देउता रिसाइ सेक्ठा । केक्रोमे भूत, वोक्सीन ना लागिट, सुख्खा खडेरी लाग्के गाउँक मनैन भू‘खे पियासे ना बैठक परे । हैजा, महामारी ना–फैले । हमार गाउँमे भूइचाल, बाढी, पहिरो, आगलागीक घटना ना हुए । ऐसिन आपत विपत पर्नासे पहिलेहे कौन मेरिक पुजैया कैना हो ? यी साल फेन कै ढारी । मोरीक बुदु ककन्डरवा (बरघर) हुइलक ओरसे सक्कु घरक गरढुरिया, घर परट एक एक जाने पुजैया करक लग हमार घर जुटिट । छोट–छोट लर्कनहे घर घरसे चिंग्नी ओ अण्डा उठाइ पठाडिट । केउ सुरीक घेटरु केउ छेगरीक पठरु, केउ भेरीक पाठा खोजे जाइट । चार–पॉच जाने चह्रल, सिकहर, भट्ठा लेले जॉर मिलाइ जाइट । बुह्राइल–बुह्राइल मनै भर किच्ली माटि नानके ओबरामे बैठल माटिक घोरी पारिट ।
सन्झा ३÷४ बजे गाउँभरीक सक्कु गरढुरीयन मरुवम् जुटके पूजा करे बैठिट, गुरै पाटि करिट । छेगरी, पठरु, सुवर, मुर्घी काट–काट चह्राइट । घर–घरसे उठैलक जॉर डारु पिइट । पुजैयक मिलावन सिकार, डारु उहे मरुवाठन खा पिके ओरवाके आपन आपन घरेओर लागिट ।
जमाना कइ पुस्ता विट्सेकल । आधुनिक जमाना, सबजाने छोट परिवारमे बैठक मन पराइ लग्लाँ, बजार स्कुल, अस्पतालके सुविधा पाइलग्लाँ, आहर बाहर कमाइ जाइ लग्लाँ, ढिरे ढिरे मानसिक सोचाइमे परिवर्तन आइलागल । गाउँक मरुवा, घरक देउता पर रहल मूल्य मान्यता, विश्वास हेरैटि जाइलागल । गुरै पाटि कैना ओ करुवइना परम्परा अन्धविश्वास हो कहे लग्लाँ । गुरुवा बलाके झारफुक करवइना, पाटि बैठवइनक सट्टा बजारिया औषधी चले लागल । सामुहिक रुपमे मरुवम् जाके पूजा कैनाक मतलव हेराइ लागल । मरुवामे पूजा नैकैलेसे फेन थारू समाज सहज टरिकासे चले लागल । मरुवाठान रहलक ठाउँमे शिव पार्वती, गणेशके मन्दिर बने लागल । ठाउँ–ठाउँमे ध्यान कैना चर्च, जय गुरुदेवके घर, सीताराम, फु–मन्टरके आश्राम बने लागल । लौवा पुस्ता लड्डु बतासा, फुला माला लेके आपन आपन गुरुहे पुजे जाइ लग्ला । लेकिन मरुवा संरक्षण कैना केउ नै चासो डेखाइ लग्ला । कहु‘–कहँु टे आपन आर्थिक स्वार्थके लग मरुवामनिक देउता फेन चोरी करेलग्ला । आपन घरक कुल देउता ढकियामे उठाके कुलवा लडियामे पुहाडेहे लग्ला (चौधरी, २०६८) । जयगुरुदेव, फु–मन्टर क्रिश्चियन, ॐ शान्ति बनल घरक मनै टे यी मरुवक काम नै हो, हम्रे आप पुजैया नै करे जाब कैहके बहिष्कार करे लग्ला । टब्बो पर जियट जागट बुह्राइल बुह्राइल बुदु, बाबन् जुटके मरुवाठानमे पुजैया करटि बटाँ ।
पुर्खन्के पालमसे चल्टि अइलक पूजा पाठ कैना ओ मरुवाठान पर विश्वास हेरैटि गैलेसे फेन मरुवाठान (भूइह्यार) थारू समुदायके सामाजिक, सॉस्कृतिक जातीय पहिचान बनैना भूमिका खेल्ले बा ।
परिचय
मरुवाठान– थारू समुदायके मन्दिर÷थारून्के देउता हे बैठैना ठाउँ । गाउँभरिक मनै सामुहिक रुपमे पूजा करकलग गाउँक विच्चे मरुवाठान÷डेउठनवा (भूइह्यार) बनैले रठा । ओस्टके आपन कोल्काहा अर्थात् घरक मनै किल पूजा करकलग ओ घरक कुल देउता ढारक लग घरक भित्तर डेहुरार ओ अ‘ग्नामे छोटनक मरुवा बनैले रहठा । गोत्र हेरके केउ घरक उत्तर पुरुब कोन्वम् डेहुरार बनैले रहठा टे केउ दक्षिण पश्चिउक कोन्वम बनैले रहठा । ओस्टके गोत्र हेरक डेहुरारमे गुर्वावा, मैया, खेखरी, लागुवासु, चैटिक पट्ठ्या, सौंरा, बेंट, झो¥या, भेंरवा, घोरवा, डहरचण्डी, चबहवा गुनी, लटौ महाडेव, खेटरपाल, डख्नी भवानी, रिख्या सुच्चा, ढमरज्वा, मड्वा, जगन्नठ्या, ढनचोरवा देउता ढैले रहठा । मरुवाठान थरुहट क्षेत्रके दाङ, बॉके, बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुर जिल्लामे रहलक सक्कु थारू गाउँमे बनाइल रहठ । छोट्नक घरहस, डवार, टाँटि नैलगाइल, चारुओर खूल्ला छोरल, सरसफाइ नैपुगल, बिच्चेमे मनैन्के अंग्रीहस बनाइल कठवा गारल यी मरुवाठानमे प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रुपसे २२ मेरके देउता ढैल रहठा । बदरी, बयाल, पानी, बरखा, धर्ती, आकाश, बनुवा सृष्टि कैलक सृष्टिकर्ताके रुपमे गुर्वाबा ओ सक्कु चीज संरक्षण कैना सरंक्षणकर्ताक रुपमे डहरचण्डी (रजावर मरुवाक सबसे भारी देउता), झुठरु मसान, मुरहा मसान, बहिरा रक्सा, जगन्नठिया, भेंरवा, पॉचो पाण्डो, पूर्वी भवानी, दनुवा, बाघेश्वरी, गवरिया, कोटिया, करैयाकोट, बडेलवा, कुइया पानीक देउतांक नाउँसे पूजा–पाठ हुइठ (विस्तृत जानकारीके लग कृण्णराज सर्वहारीके थारू गु¥वा र मन्त्र ज्ञान २०६९ किताब हेरे सेक्बी) । पुरुब ओरिक थारू फेन मरुवाहे गोर–राजा कैहके पूजा–पाठ कैठा ।
थारु समुदाय, विश्वव्यापीकरण, आधुनिकीकरण, राज्यके नीति नियमसे सबसे ढेर पीडित बा । आपन समाजके संस्कार, साँस्कृतिक महत्व ओ वैज्ञानिकता बुझे नैसेक्के धार्मिक परिवर्तनमे लागल बटा ।
गाउँभरिक मनै सक्कु जाने मिल्के मरुवाठानमे जुटके पुजैया कैना चलन पुर्खनके पालामसे चल्टि आइल बा (विष्ट २००५) । लावा साल सुरु हुइटिकिल डिहवा, खेट्वा कोरेवेर, जोटेवेर चोट नालागी, हॉठ–गोर ना टुटि कैहके माघ महिनम लरैया पुजैया, खेट्वा लगैनासे पहिले बैशाख–जेठ महिनामे ढुरिया पुजैया, कीराकॉ‘टि नाकाटिट, खॉज खुञ्जली (महामारी) नालागी कैहके असार महिनाम रेन्झी पुजैया, डिहवा मनिक मकै ओ खेट्वा मनिक धानेम गान्धी कीरा नालागी, हरदम खेट्वा डिहवा हरेर (काइल) रहे कैहके भदौ महिनम हरेरी पुजैया, उब्जनी सालभर खाइ पुगे, चोरी–चाकारी नाहुए कैहके अघनमे लवांगी पुजैया करठा । ओस्टके भोजेमे, माघेमे डश्यम फेन आपन आपन गोत्र हेरके पूजा करठा ।
मरुवक धार्मिक महत्व हुइलक ओरसे एकर बनावतमे सुधार अइटि बा । पक्की घरेम देउतनके बास नैहुइठ कना थारू समुदायके विश्वास रहलेसे फेन मरुवामे टिन (जस्ता पाता) लगाइल डेख्जाइठ । मरुवा परिसरमे शिव मन्दिर फेन बनाके पुजे लग्ला । एक तल्ला मरुवाहे दुइ तल्ला बनाइ लग्ला (सर्वहारी, २०६९) । टब्बो पर बिडम्वना माने परठ, मरुवक सरसफाइ नैपुगल हो । हर सोमवार लिपपोत कैके दुध ढरकैना चलन हेराइटा ।
सामाजिक सम्वन्ध
इटालियन समाजशास्त्री÷मानवशास्त्री मार्टिनो निकोलटटि आपन किताव “Spirit Possession in the Nepal Himalayas˝ मे लिख्ठा “ कौनो फेन समाजके संस्कार, संस्कृति बनाइक लग ओइने मन्ना धर्म, ओइने कैना पूजापाठमे भर परठ“ (..निकोलटटि, २०६२) । संस्कार, स‘स्कृति अक्के मेर हुइठ टे एकठो समाज बनठ । प्रत्येक समाजके आपन आपन आत्मा, आस्था, विश्वास, रितीरवाज ओ संस्कार रहठ । थारू समाजके वास्तविकतकता यिहे हो । पुरुबसे पश्छिउ टक रहल ठारु समुदायके गोत्र फरक–फरक रहलेसे फेन आस्था, विश्वास, संस्कार, रितीरिवाज मिल्लक ओरसे सक्कु जाने थारू समुदाय हमार कैहके गर्व करठी । यिह क्रममे प्रो. म्याकडोनल्ड के कहाइ बटिन “ थारू समुदायके समाज विकास हुइबेर मरुवा ओ गुरुवक सबसे ढेर भूमिका रहिन । गॉउक मरुवम् गुरुवा मनै पुजैया कैके आपन वोली वचनसे बेरमहियन ठीक पार पारडिट । गॉउक सिमाना बॉधके खॉज खुन्जली रोके सेक्ना भूमिका खेलिट । आझुक प्रमाण हेरके भविष्यक वारेम सुझाव सल्लाह डेहठा । विटल समय, अझुक दिन ओ अइना दिनमे जियट मरटसम हर व्यक्ति ओ समाजके वीच रहलक विश्वास ओ अन्तर आत्माहे समायोजन कैके रोग ठीक पारडेहठा । ओस्टके दिन प्रिितदिन अन्तरआत्माहे व्यवस्थापन ओ नियमित बनाइक लग पूजा कैना मरुवा ओ पूजा करुवाडेहना गुरुवा हुइ परठ । हम्रे विश्वास कर्ठी “मनैन्के आत्मा कब्बो फेन मरके नैजाइठ”, आत्मा टे केवल जनम लेके मृत्यू हुइबेर एक जनहन मनसे डोसर जनहनमे पैठठ् । रगतके सम्वन्धसे भौतिक शरीर निर्माण हुइठ लेकिन आत्मा विगतके अनुभवसे सरठ । हम्रे आपन पुर्खन्के एकठो अंग हुइटि । पुर्खन्के देउता ओ ओइनके विश्वाससे हम्रे अरगराइल बटि । बाबन्के पुर्खन्से पैलक रगत ओ डाइनके पुर्खन्से पैलक दुध डुनु उट्ने ही महत्व ढैलेरहठ (म्याकडोनल्ड १९६६) ।
सामुहिक आत्मा, सामुहिक आस्था, भूत, प्रेत उपर कैना समुदायिक विश्वास, घर–परिवार, छर–छिमेकमे कैना स‘स्कार बनैना ठाउँ मरुवाठान बनल रहे । बाबा, बुदुनके पालामे पह्रल, लिखल मनै कम रहिट, डवाइ पानी कैडेहना अस्पताल बनल नै रहे, डगर, पुल बनल नै रहे । हर साल हैजा, निमोनिया, मलेरिया लागके ढेर जनहन अकालमे ज्यान गँवाइ परीन । चारुओर बाघ, भालु, हाँठी, घोडा जैसिन जंगली जनावर, सॉप, बिच्छी, गोजर, चिम्टा, गान्धीन्के डर रहीन । गाउँघरमे देउता भुसियइठा टे ऐसिन मेरके दुःख आइठ, ढेर पह्रलेसे मनै बौरा जैना, गुराइ पाटि कराके रोगी भोगी चोख्वइना विश्वास रहे । जेकर कारण हमार पुर्खा देउताहे मनाइकलग, खॉज, खुन्जली भगाइक लग, थारू समुदायके आत्मा बल्गर बनाइकलग एकजुट हुके गाउँमे मरुवा बनाके पूजा पाठ करे लग्ला । गुरुवाहे बलाके रोगीयाहे भारफुक कराडेना, जडीबुटि खवाडेना, मरुवामे सबजाने जुटके पुजैया कैबो टे आत्मा बलगर हुइठ कना चलन बनैला । जस्टे कि आजकल क्रिश्चियन बन्लक घरक मनै दाबी करठा– यशु मरल मनैन जिवा डेहठा । बेराम मनैन ठिकवा डेहठा । यशुक शरणमे पर्बो टे गरीब मनै फेन धनी हुजाइठ । यी फेन एकमेरिक आस्था हो, विश्वास हो । थारू समुदायके लग आब विचार करे पर्ना बा– हमार पुर्खन्के बनैलक बिश्वास, संस्कार, रितिरिवाज, परम्परा अन्धविश्वास रहे कि आजकल थारू गाउँमे जन्मलक लौवा लौवा धार्मिक समुह, ओइनके गुरुनके कहलक बात अन्धविश्वास हो । मरुवाठानमे पुजैया कैना चलन टे सामाजिक एकता, मेलमिलाप, भाइचाराके सम्वन्ध बनैना माध्यम बनल रहे । उहे मरुवा डराइल मन सपार डेहे, हेराइल विश्वास जगाडेहे, विग्रल नाता बनाडेहे ।
सामुहिक छलफल, समाजके लग नीतिनियम सक्कु चीज मरुवक पुजैया मनसे सुरु हुइठ । थरुहट तराइके थारू किल नै हिमालमे शेर्पा, पहाडमे गुरुङ, मगर, नेवार ओ लामाफेन अस्टके पूजा–पाठ कैठा । समाज, क्षेत्र अनुसार पूजापाठ करक लग तामाङ जातिनमे बोन्पो, गुरुङमे ख्यापरी, खाम मगरमे रम्वा÷रामा, लिम्वुनमे फेदाङवा, थारूनमे गुरुवा बनैले रहठा । यिहे पूजा पाठके माध्यमसे समाजमे एकता हुइल रहठ ।
आस्था ओ विश्वास जिहिहे कर्वो, उहे नै ओकर लग मरुवाठान (मन्दिर) हो । ओकर लग धर्म उहे हुइस । उहे धर्म मान्के उ आपन समाज, आपन मेरिक संस्कार, समाज चिन्हैना संस्कृति बनाइ सेकठ ।
निष्कर्ष
थारु समुदाय, विश्वव्यापीकरण, आधुनिकीकरण, राज्यके नीति नियमसे सबसे ढेर पीडित बा । आपन समाजके संस्कार, साँस्कृतिक महत्व ओ वैज्ञानिकता बुझे नैसेक्के धार्मिक परिवर्तनमे लागल बटा । केउ कहे नै सेकठ कि थारू समुदायके धर्म का हो ? लावा अनुहार, युवा पिढी, आपनहे हिन्दु धर्मावलम्वी मन्ठा । पूर्वैया थारू बौद्ध पहिचान झल्कैठा । लेखक, अनुसन्धानकर्ता, सामाजिक काइकर्ता ओ स्वयम थारू समुदायके फरक फरक विचार बटिन । थारू समाजके संस्कार, संस्कृति, रितिरिवाजहे विश्लेषण करेसेक्ना शिक्षित थारू युवा हम्रे प्रकृति पूजारी, प्राकृतिक धर्म मन्ठी कैहके दावी कर्ठा । हिन्दु धर्म, बौद्ध धर्म, प्रकृति धर्म मन्ना थारू कौन कौन जिल्लामे कत्रा बटा कौनो दस्तावेज नैहो । प्रत्येक १०÷१० बर्षमे प्रकाशित हूइना राष्ट्रिय जनगणनाके तथ्याङ्कमे थारू जाति हिन्दु धर्मावलम्वी हुइट कैहके तथ्यांक प्रस्तुत करठ । धार्मिक विचलन आके फरक फरक संस्कार, ओ संस्कृति अपनाइ लग्ला । हमे्र कौन कौन देवी देउताहे पूजा करठी, हमार संस्कृति, संस्कार, रितिरिवाज, ख्याला÷जुटौला कैना चलन कौन परिवेशमे सिर्जना हूइल ओ कैसिक लैजाइ पर्ना हो, आब ओकर काम बटिस कि नइ कैहके वास्तविक ज्ञान चेतनाके कारण थारू समाजके सामाजिक, सॉस्कृतिक, बिकास हुइ नै सेकठो । गाउँ–गाउँ, घर–घरमे मेर–मेरीक धर्म, मेरमेरीक संस्कार अपनैटि बटा । बर्का भारी भारी थारू गाउँमे छोट–छोट सामाजिक, धार्मिक, सॉस्कृतिक समुह गठन हुइटि बा । पूजा पाठ कैनक नाउँमे मरुवा, चर्च, मन्दिर, आश्रम, बाबाधाम भेटे जाइ लग्ला । झारफुक कराइक लग थारूनके गुरुवा, पहाडीनके पण्डित्वा, क्रिश्चियनके गुरु, मस्जिदके अल्लाह सबजनहज भेटे सिख रख्ला । मरुवाठान (भुइह्यार) के योगदान थारू समुदायके सामाजिक, सॉस्कृतिक विकास कैना कत्रा रहिस सबजाने बिसरा ढरला ।
अन्तमे, आस्था ओ विश्वास जिहिहे कर्वो, उहे नै ओकर लग मरुवाठान (मन्दिर) हो । ओकर लग धर्म उहे हुइस । उहे धर्म मान्के उ आपन समाज, आपन मेरिक स‘स्कार, समाज चिन्हैना स‘स्कृति बनाइ सेकठ । हम्रे थारू समुदाय आज आपन पहिचानके लग लरटि, थरुहट क्षेत्रमे आपन पहिचान खोजटि कलेसे मरुवाठानहे सॉक्षी ढरटि पुर्खनके पालामसे चल्टि अइलक सामाजिक परम्परा, संस्कार, स‘स्कृतिहे बचाव करटि थरुहटके पहिचान खोजब टे सोनेम फेन मग–मगैना बास आइ सेकठ । हम्रे रहब, हमार थारु समाज रहि, हमार थरुहट रहि । जय गुर्वाबा ! (स्रोतः बिहान बार्सिक)
लेखक युनिभर्सिटी अफ चाइनिज एकाडेमी अफ साइन्स, छेन्दु, चीनसे पिएचडि ओरवइटि बटाँ ।
- सन्दर्भ समाग्री
गुनरत्ने, अर्जुन, २०५५, आधुनिकीकरण, राज्य ओ थारून्के जातीय पहिचानके निर्माण, द जर्नल अफ एसियन स्टडीज, भोलुम ५७, एसोसियन फर एसियन स्टडीज, www.jotor.org.stable/2658740 - म्याकडोन, क्रिश्चयन, २०५६, सन १९८०–१९९३ को अवधीमा देखिएको पश्चिम नेपाल दाङ जिल्लाको थारू समुदायको सामाजिक, सॉस्कृतिक परिवर्तनका पक्षहरु, नेपालका थारू र यसका छिमेकीहरु, बिबिलियोथेका हिमालय, काठमाडौंः इएमआर प्रकाशन ।
- विष्ट, डोर बहादुर, २०६२, सबै जातको फुलवारी, ललितपुरः हिमाल बुक्स ।
- चौधरी, ऋषिराम, २०६८, दंगौरा थारू जातिमा गुरुवाको भूमिका ः दाङ जिल्लामा गरिएको एक अध्ययन, अप्रकाशित थेसिस, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, मानविकी तथा समाजिक, शास्त्र संकाय, समाजशास्त्र÷मानवशास्त्र विभाग, पाटन क्याम्पस, ललितपुर ।
- चौधरी, सुरेश, २०६८, नेपाल राज्यको आधुनिकीकरण र सिमान्तीकृत हु‘दै गैरहेको थारूहरुको पहिचान सम्वन्धी थारूवान प्रान्तमा गरिएको एक अध्ययन, अप्रकाशित अनुसन्धान, सामाजिक समावेशीकरण अनुसन्धान कोष, एसएनभी नेपाल, ललितपुर ।
- सर्वहारी, कृष्णराज, २०६९, थारू गु¥वा र मन्त्र ज्ञान, काठमाडांैः थारू पत्रकार संघ नेपाल । http://ecs.com.np/page-turner/shamanic-solitudes-ecstasy-madness-and-spirit-possession-in-the-nepal-himalayas, , खोज काइः २०७० भदौ २२ गते दिनके ५ बजे ।