राष्ट्रिय युद्धमे थारुनके राष्ट्रवादी चरित्र
कारी महतो
हजारौं वर्षसे नेपालके तराई भूभागमे बसोबास करटी आइल थारु समुदाय टमान कालखण्डमे देशके लाग निरन्तर टमान योगदान करटी आइल बाटै । इतिहासमे यी बाट कतिपय अलिखित रहल कलेसे कतिपय बाट दस्तावेजके रुपमे प्रकाशनमे आइल बा । उ मध्ये एकीकरण पूर्व ओ एकीकरण पश्चात नेपालके सीमा बाहेरके दुश्मनसे आक्रमण करल समयमे थारु समुदायसे खेलल उल्लेखनीय भूमिका बारे चर्चा कैना सान्दर्भिक विल्गाइठ ।
प्राचीन काल ओ थारु समुदाय
यारी हे…ऊ… उत्तरल भादो चढली कुँवार
घर घर बेनी हजरारे बेगारी चलाय ।
कुटलीमा चिउरा, चाउर बान्हलीमा भाररे
सपरुरे भिरिहारे दोलखा नेपाल रे । सपरहुरे…
यारी हे…ऊ… बाङलीमा चिउरा चाउरक भार रे हो …
सपरह भरिहारे दोलखा नेपाल । सपरह …
एकओरि बाङलीमा नुन तेलक भार हो …
एकओरि बाङलीमा तिउनाक भार हो रे । एकओरि …
यी “दोलखा नेपाल” नामक बहुट ऐतिहासिक गीतिकथाके एक ठो छोट अंश हो । चितवन जिल्लाके थारु समुदायमे प्रचलित यी गीत अब्बेफे कुछ थारु महिला ओ पुरुषहुकनमे मुखाग्र बा । यी गीत रोपाइँमे गैना करजाइठ । गीतहे झुमरी नाचमे बहुट रोचकपूर्वक घण्टौंसम नाटकीय रुपमेफे प्रस्तुत करजाइठ । यी गीतिकथाके भाव संक्षेपमे यैसिन बा – ‘बाहिरी दुश्मनसंग युद्ध हुइटी रहल समयमे गाउँके हरेक घरेक पुरुष देशके सिपाहीहुकनके लाग टमान खाद्यपदार्थ पुगैना दोलखा जैठै । खाद्यान्न पुगाइक लाग गैल एक नवविवाहित युवकहे हतियार डेके षडयन्त्रपूर्वक लडाई करे पठाजाइठ । युद्धमे उहाँक मृत्यु हुइठ । युवकहे युद्धमे पठैना षडयन्त्रकारी घर लौटके युवकके नवविवाहिता गोसिनीयासे दुसरा भोजके प्रस्ताव रख्ठै । मने युवती अपन गोसियाक लाश हेरे चाहठ । युवकके लाश आइठ ओ अन्तमे युवती गोसियक संग सती जैठी ।’
प्राचीन समयसे यी घटनाहे गीत ओ नाचके माध्यमसे थारु समाजमे गइटी ओ नच्टी अइटी रहल पाजाइठ । यी गीतमे थारु समुदायसे युद्धरत सिपाहीहुकनके लाग चामल, चिउरा, दाल, तरकारी, नुन, तेल इत्यादि खाद्यान्नके भरुवा बोकके पैदल नेंगके दोलखा नेपालसमफे पुगल बुझजाइठ । सिपाहीहुकनके भरणपोषणके लाग दोलखासम पुगल थारु समुदाय अपने वरपर रहल और युद्धमे झन भारी भूमिका निर्वाह करल रहे ।
सेन–मुगल युद्ध ओ थारु समुदाय
नेपालके एकीकरण हुइना आघे तराईमे सेन राजाहुक्रे शासन करले रहिट । उ बेला भारतके मुगलहुक्रे बहुट दुःख दिट । उ बेला सेन ओ मुगल बीच बेलाबेलामे युद्ध चल्टी रहे । थारु भाषामे अब्बेफे “मोगल नहिया चिचुरिहर” कना थेगो प्रचलित बा । मकवानपुरके सेन राजाके राज्यकालमे भारतके मुगल शासकसंग लडाइँ हुके नौरंगिया प्रगन्नाके सीमानामा भूपाल राय थारु वीरगति प्राप्त करले रहिट । भूपाल राय वीरगति प्राप्त करलाछे उहाँक छावा दर्पनारायण राय पर्सा जिल्ला नौरंगिया प्रगन्नाके वलुवा मध्ये ढोली गाउँ मरवट विर्ता पैले रहिट । दुर्भाग्यवश ढेर समयके अन्तरालमे मरवट पाइल लालमोहर हेराइल । ओकरपाछे भूपाल रायके तीन पनाति अर्थात दर्पनारायण रायके नाति मोति राय, शिवनाथ राय ओ गरवार थारु राजा राजेन्द्रविक्रम शाह समक्ष निवेदन डेलै । उ निवेदनउप्पर राजा राजेन्द शाह अनुसन्धान करे लगैलै । ओ अन्तमे उ सत्य रहल निश्कर्ष निकारके मरवट विर्ता थामल बारे दुसर लालमोहर जारी करडेलै । जौन ऐतिहासिक पत्र नं. ३५ मे प्रकाशन हुइल बा । उ लालमोहरमे मोति राय, शिवनाथ राय ओ गरवार थारुके नाममे मरवट विर्ता थामल व्योहोरा बा । तराईके सेन तथा भारतके मुगल शासक बीच रहल लडाइँमे थारुहुक्रे सैनिकके भूमिकाफे निर्वाह करल विल्गाइठ । यी दस्तावेजसे थारुहुक्रे खेतीपाती केल नाही देशके लाग बलिदान करटी आइल जातिके रुपमे समेत प्रमाणित हुइल बा । तराईके सेन राजाके लाग भारतके मुगल शासकहुकनसंग लडाइँ करके शहादत्त प्राप्त करल थारुके सन्तानहुक्रे पाइल मरवट विर्ता एकिकरण पश्चात शाह राजाहुक्रे फेर थमौति करडेहल दस्तावेजसे प्रष्ट परले बा ।
नेपाल–अंग्रेज युद्ध ओ थारु समुदाय
वि.सं. १८७१ से १८७३ सम तदनुसार सन् १८१४ से १८१६ सम नेपाल–अंग्रेज बीच युद्ध चलल । उ युद्धमेफे तराईके थारुहुकनके भारी योगदान करल विषयवस्तु लिखित दस्तावेजके रुपमे प्रकाशन हुइल बा । युद्धमे थारु समुदायसे निर्वाह करल राष्ट्रवादी ओ देशभक्तिपूर्ण भूमिकाके कदर करटी गिर्वाणयुद्धविक्रम शाह तराईके थारुहुकनहे प्रदान करल लालमोहर साक्षी बा । थारुहुक्रे प्राप्त करल कतिपय लालमोहर टमान समयमे आगलागी, बाढी लगायत प्रकोपमे नष्ट हुइलेसेफे ऐतिहासिक पत्र नं. ३१ एक ठो प्रतिनिधि दस्तावेज हो । उ युद्धमे पर्सागढीमे हुइल लडाइँमे रंजित चौधरी उल्लेखनीय मेहनत करल रिझवापत पर्सा जिल्ला, सिधमास प्रगन्नामध्ये वसडिलवा ओ लोरिआड करके दुई गाउँमे वि.सं. १८७२ वैशाखसे जलकर, वनकर आदि दस्तुर उठाई सरकारहे बुझाई पर्ना जिम्मेवारी सुम्पल विषय उल्लेख बा । उ जग्गामे आवाद तथा गुल्जार करके उहीसे हुइना उत्पादन उपभोग कैना तथा सन्तानदरसन्तानसम वेषवुन्यादके काम करे पैना व्यवस्था करडेहल बाट यी दस्तावेजमे लिखल बा ।
विगतमे सिपाहीहुकनके भरणपोषणके लाग तराईके थारुहुक्रे खाद्यान्न उपलब्ध करैटी आइल बाट निरन्तर कायमे रहे । टमान समयमे हुइना युद्धके लाग खर्च जुटैना तराईके थारुहुक्रे समर्थ रहे कहिके कुर्त मेयर, जिसेल क्राउसकोफसेफे उल्लेख करले बाटै । नेपाल–अंग्रेज युद्धमे नेपाली फौजहे हराइक लाग अंग्रेजहुकनके सामरिक चाल अन्तर्गत अंग्रेजसे तराईके थारुहुकनहे खाद्यान्न उत्पादन कैना बन्देज करडेहल रहिट । खाद्यान्नके अभावमे नेपाली सेनाहे भोकमरीमे पारके कमजोर बनाइल कतिपय विश्लेषकहुक्रे उल्लेख कैना करल बाटै ।
सुगौली सन्धी ओ थारु समुदाय
नेपाली राजनीतिमे सुगौली सन्धीके बाट व्यापक स्मरण करजाइठ । नेपाल–अंग्रेजके युद्धके बीचमे हुइल यी सन्धिमेफे घुमाउरो तरिकासे थारु समुदायबारे बोलल बा । थारु कहिके किटान टे नइहो मने स्पष्ट बुझ्े सेक्जाई । सन् १८१५ डिसेम्बर १ मे लिखित सन्धिपत्र १८१६ मार्च ४ मे नेपाल सरकारहे प्राप्त हुइल हो । उ सन्धिपत्रके लाग राजाके सहमति ओ स्वीकृतिके लाग डिसेम्बर ८ मे इस्ट इन्डिया कम्पनीसे पुनः स्मरण पत्र पठाइल रहे । जिहीहे पुरक सन्धीफे कहिजाइठ । उ स्मरण पत्रमे राजाके मन जिटेक लाग नेपालके कुछ भूभाग फिर्ता डेहल व्योहोरा उल्लेख बा ।
स्मरण पत्रके धारा ७ मे यैसिन उल्लेख बा– “युद्धके अवधिताक बेलायत सरकारके पक्षहे समर्थन कैना तराईके कौनोफे बासिन्दाहुकनहे नेपालके श्री ५ महाराजधिराजके शासनमे लौटलपाछे अभियोग नइलगैना बाटमे मौसुफ सहमत हुइलै ओ जमिनमे खेती कैनासे बाहेक उ प्रजाहुकनमध्ये कुछ अपन भू–सम्पत्तिहुकनहे छोरना इच्छुक हुके कम्पनीमे इलाकामे बैठना हुइmेसे ओइनके कौनो बाधा नइपुगैही ।” उ समयमे तराईमे खेती थारुहक्रे रहे । यी धारा थारु समुदायके बारेमे जोनफे खोजल हुइलेसेफे थारु समुदायहे कौनो प्रभाव पारे नाइसेकल । जमिनमे खेती करे छोरके इस्ट इन्डिया कम्पनीके इलाकामे बैठे थारुहुक्रे नइगिलै । जहाँ बाटै उहे ठाउँमे रहटी रहना रुचैना थारु समुदायके यी वंशानुगत विशेषता हो ।
सन्धिके स्मरण पत्रके धारा २ से अंग्रेजसे थारु समुदायहे दुई टुक्रामे विभाजन करल फे प्रष्ट बा । उ धारामे नेपालके तत्कालीन राजाहे फकाइक लाग तराईके इलाका मध्ये तिरहुत ओ चम्पारन जिल्लाके विवादग्रस्त जमिन बाहेक कुछ भूभाग फिर्ता डेहल उल्लेख बा । चम्पारन जिल्ला चितवनसंग जोरल भूभाग हो कलेसे तिरहुत चाहि सिरहा, सप्तरीसंग जोरल भूभाग विल्गाइठ । अब्बेफे चितवनके थारु समुदायके अपने परिवार कुछ सीमापारी ओ कुछ वारी रहल बाटै । मनेफे अंग्रेजके सीमाभिटर रहल थारु परिवार स्थायी रुपमे नेपाल नइअइलै । नेपालके सीमाभिटर रहल थारुहुक्रेफे अंग्रेजके सीमाभिटर बसाइ सरे नइनइगैल । सुगौली सन्धी हुइल दुई सय वर्षसे ढेर हुइल बा । चितवनमे रहल कुछ थारुजन अब्बेफे चैतेदशैंके समयमे सीमापारी लग्ना एक ठो बहुट भारी मेला (डेवाढ मेला) घुमे जैना करठै ओ अपन पुरान आफन्तहुकनके घरेम पाहुना बनके मौेजमानी करके लौटल सुनैठै ।
उहोर तिरहुतकेफे ओस्टे अवस्था बा । सप्तरीमे अब्बेफे तिरहुत गाउँपालिका रहल बा । भारतमे तिरहुता नामक ठाउँ बा । गुगल म्यापमे सर्च करेबेर तिरहुत नामके स्कुल, कलेज, लगायत टमान संस्था भारतके बिहारमे बा । चम्पारन ओ तिरहुतके प्रमुख बासिन्दा थारु रहिट । सन् १६०५ मे तिब्बतके तारानाथसे लिखित “बुद्ध धर्मको इतिहास” मे चम्पारनहे थारुहुकनके व्यापक बसोबास करल क्षेत्रके रुपमे प्रस्तुत करल बाट डा. क्राउसकोफसे एक प्रसङ्गमे उल्लेख करले बाटै । दुसर प्रसङ्गमे मुसलमान विद्वान अल्बेरुनीसे १०३३ मे भारतके भौगोलिक प्रस्तुतिमे यैसिक लिखल उल्लेख करले बाटै । “कन्नोजसे पूर्वओर नेंगलपाछे वारी ओ ओकरपाछे बिहात कना ठाउँमे आइपुग्ठी । उहीसेफे आघे बह्रलपाछे दायाँओरके गाउँहे तिल्वट (तिरहुत अथवा मिथिला) कहठै, उहाँक बासिन्दाहे तरु (तारु) कहठै । (ओइने तुर्कहुकन जैसिन बहुट काला वर्णके बाटै ।) ओकरपाछे कम पहाडी क्षेत्रओर आजाइठ.। तिल्वटके विपरित दिशाओर बायाँओरके देश… नेपाल ।” यी दुनु प्रसङ्गसे प्रष्ट हुइठ कि चम्पारन ओ तिरहुतके मुख्य बासिन्दा थारु रहिट । मने सुगौली सन्धी थारुके एक्के परिवारहे फुटाके दुई देशके नागरिकके रुपमे विभाजन करडेहल । मने भूमिपुत्र थारुहुक्रे अपन भूमि नइछोरलै । अपने माटीहे स्याहार करटी रहल बाटै ।
निश्कर्ष
नेपालके नयाँ नक्सा सार्वजनिक हुइल बा । नक्सामे लिम्पियाधुरा, कालापानी ओ लिपुलेक समेटल बा । मने उ भारतके कब्जामे बा । उ बाहेक भारत योजनाबद्ध रुपमे कैयौं ठाउँमे सीमाना मिच्छी रहल बा । उ मिचल सक्कु भू–भाग हमार देशके अधिनमे आई परठ । मने नयाँ नक्सा सार्वजनिक हुइटी करेबेर कतिपय दलके नेताहुक्रे गोर ठरठराइल बा कलेसे कथित मधेसवादी दलके कुछ नेताहुक्रे घुमाउरो तरिकासे भारतके समर्थन करटी आइल बुझजाइठ । मने थारु, मधेसी, आदिवासीजनजाति, दलित, मुस्लिम लगायत सक्कु नेपाली जनताके भावना एक्के बा । सीमा सुरक्षाके लाग सक्कु जे एकढिक्का हुइ परल ।
यी बेला फेर थारु समुदायके छाता संगठन थारु कल्याणकारिणी सभा लगायत आन्दोलनरत थरुहट थारुवान राष्ट्रिय मोर्चा ओ थरुहट थारुवान संयुक्त संघर्ष समितिसे अलग अलग प्रेस विज्ञप्ति जारी करके समग्र थारु समुदायहे फेरसे राष्ट्रियताके पक्षमे उभ्याइल बा । मने थारु समुदायके माग ओ मुद्दाहुक्रे नेपालके संविधान अभिन अटाइल नइहो । थारुके आवाजहे राज्यसे अभिन सम्बोधन करे नइसेकल । कौनोफे दिन उ समुदायके सवाल संविधानमे समावेश करेक लाग संविधान संशोधन हुई । संशोधन करे परल । तीन करोड जनताहुकनहे एकसूत्रमे बाँधके राष्ट्रिय हित ओ सीमा सुरक्षामे परिचालन करे पर्ना अब्बेक आवश्यकता हो । देशके सीमा सुरक्षा करे पर्ना हम्रे सक्कु नेपालीहुकनके महत्वपूर्ण दायित्व हो । सीमारक्षाके लाग सक्कु जनताहे परिचालित करे परठ । नेपाल आर्मीके अधिनमे रहना करके सक्कुहुनहे सैन्य तालिम डेहे परल ओ निश्चित उमेर समूहके युवाहुकनहे कम्तिमे दुई वर्षके लाग अनिवार्य रुपमे सैनिक सेवा करे पर्ना बाध्यात्मक कानून बनाई परल ।
सन्दर्भ श्रोतः
- जिसेल क्राउसकोफ, जंगलदेखि जमिनसम्मः थारु इतिहासतिर एक दृष्टि
- तेजनारायण पंजियार, मेरा आफ्नै शब्दमा थारु जातिको विगतको खोजीमा
- कुर्त मेयर, नेपालका राजा र तराईका थारुहरु
- महेश चौधरी, नेपालका तराई तथा यसका भूमिपुत्र
- सीता चौधरी, दोलखा नेपाल, थारु गीतिकथा
- तुलसी तिरहुत थारु, तिरहुत माइझ थारु संक्षिप्त जीवनी र तिरहुत वंशावली एक परिचय
- विभिन्न मिडिया र पत्रपत्रिका