थारु समुदायमे आज ‘अष्टिम्की’

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, २७ सावन । हिन्दू धर्मवलम्वीहुक्रे टमान मठ मन्दिरमे पूजापाठ करके भगवान श्रीकृष्णके जन्मदिन मनैटी रहल बेला पश्चिम नेपालके थारु समुदाय भर आजसे अष्टिम्की टिहुवार मनैटी रहल बाटै । सुर्खेतसे पश्चिम कञ्चनपुर जिल्लासम बासोबास करटी आइल थारु समुदाय अष्टिम्की टिहुवार मनाई लागल हुइट ।
मौलिक चालचलन तथा संस्कृति बोकल आदिवासी थारु समुदायमे आज (मंगर)के रोजसे काल बुधके रोजसम अष्टिम्की मनाजाइठ । टिहुवारमे खासकैके, जन्नी मनै आघेक् रात (सोम्मार) दर खा के मंगरके रोज दिनभर ब्रत बैठ्ना प्रचलन रहटी आइल बा ।
थारु बुद्धिजीवीहुकनके अनुसार ब्रतालु जन्नी मनै तथा लौन्डीहुक्रे साँझ्याके घरक् भिट्टामे बनाइल टमान मेरिक पौराणिक चित्रमे टिक्न अर्थात पूजा कर्ठै । टिक्न काम ओराइलपाछे लैगिल फलफूल आपसमे बाँटके खैना प्रचलन रहल थारु लोक संस्कृतिविद अशोक थारु बटैठै ।
उहाँके अनुसार अष्टिम्कीके उत्पत्ति ‘अष्टमीटिका’से हुइल हो । भगवान श्रीकृष्णहे थारु समुदायमे ‘कान्हा’ कहिजाइठ । ‘अष्टिम्की’के अर्थ भदौ महिनाके अष्टमी तिथिमे श्रीकृष्ण ‘कान्हा’ जन्मलओरसे उहाँके टीका लगैना हो । ‘कान्हा’के जन्मदिनहे थारु जातिके जन्नी मनै विशेष रुपमे मनैना हुइलओरसे यि दिनहे थारु समुदाममे अष्टिम्की कहना प्रलचन रहल संस्कृतविद थारुके कहाइ बा ।
अष्टिम्कीमे ‘कान्हा’ के जीवनीहे भिट्टामे चित्रके माध्यमसे उटार जाइठ । असिके बनाइल चित्रमे धुमधामसे टीका, फलफूल, जल अर्पण तथा डिया बारके पूजा करजाइठ ।
कसिक बनैना अष्टिम्की ?
ब्रतालु जन्नी मनै आज अष्टिम्कीके पहिल दिन बिहन्नी गाउँक् भलमन्सा वा बरघरके घरक् बहरी अर्थात बैठक कोठाके उत्तर पाँजरके भिट्टामे लिपपोट करके चुनसे रंगाके श्रीकृष्ण भगवानके चित्रहे विशेष रुपमे सजाजाइठ । श्रीकृष्णके दाहिन पाँजर सूर्य ओ बाउ पाँजर जोन्ह्या (चन्द्रमा) चित्र बनाजाइठ । कलेसे डोसर लाइनमे सात भाई कौरवहुकनके चित्र बनाजाइठ । ओस्टके, टेसर भागमे डुल्हा डुल्हनिया, डुलहनियाहे पठाई जाइबेरके अवस्थाके ‘डोली’, डुल्हाहे पठाई जारबेरके ‘डोला’, मच्छी, गेंङटा, बाघुवा, हाठी, मजोर, साप, बिच्छी, गैयालगायत टमान चिरै ओ जानवरन्के चित्र कोर्ने प्रचलन रहटी आइल बा ।
असिके श्रीकृष्ण भगवानके जीवनमे आधारित चित्र सजाइलपाछे गाउँभरिक् जन्नी तथा लौन्डीहुक्रे परम्परागत लेहंगा, बिलाउज, चोलियालगायत पहिरनमे सजके लाइनबद्ध होके अष्टिम्की टिके जैठै । जौन अवस्था बहुट रोचक ओ हेर्नलायक रहना बटाजाइठ । ओस्टके, रातभर ओहे पूजा कोठामे पृथ्वीके उत्पत्ति, श्रीकृष्ण जन्म ओ लिला समेटल गीत गैना समेत प्रचलन रहल बा ।
डोसर दिन बिहन्नी फेन ब्रतालु जन्नी मनै आघे दिनके जस्टे चित्रमे टिक्ठै । ओकरपाछे आघेक् ओ पाछेक् दिन टिक्न क्रममे लैगिल टमान पूजा सामग्री लग्गे रहल लडिया, खोल्ह्वा, डुन्ड्रामे अस्राई जैठै । ओहैसे लहाके घर फर्कठै ।
ओहोर घरमे ब्रतालु जन्नी मनैनके परिवारजन खरिया, फुलौरी, मच्छीक् सिद्रा, आचारलगायत टमान परिकार बनाके तयार पर्ले रहठै । जौन परिकारहे उ ब्रतालुहुक्रे ‘फरहार’ कर्ठै । टमान परिकारके आधा भाग खैनासे पहिले डोसर टपरी तथा डोनामे छुट्याके राख्नहे थारु समुदायमे फरहार कहिजाइठ । फरहार करलपाछे किल ब्रतालुहुक्रे खाना खैठै । असिके फरहारके क्रममे डोना ओ टपरीमे छुट्याके राखल परिकारहे आपन विवाहित चेलीबेटीहुकनहे अग्रासन (कोसेली) के रुपमे डेहे जैना प्रचलन रहल संस्कृति विद थारु बटैठै ।
असिके एकओहोर थारु समुदायमे अष्टिम्कीहे असत्य उप्पर सत्यके जीतके खुसयालीके रुपमे मनाजाइठ कलेसे डोसर ओहोर विवाहित चेलीहुकन अग्रासन डेहे जैना प्रचलनसे समाजमे भाइचाराके भावनाहे बलगर बनैना थारु बृद्धिजीवीहुकनके कहाइ बा ।
