थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १४ बैशाख २६४८, शुक्कर ]
[ वि.सं १४ बैशाख २०८१, शुक्रबार ]
[ 26 Apr 2024, Friday ]

अनत्तर (अनन्त) ब्रत

पहुरा | १६ भाद्र २०७७, मंगलवार
अनत्तर (अनन्त) ब्रत

ढेर इतिहासकार ओ बिद्वानहुकनमे थारुबारे विबाद विल्गाइल बा । कतिपयसे थारुहुकनहे किराँत मानल बाटै कलेसे कोई द्रविड मूलके मन्ले बौ । कोई टे किराँत, कोई टे द्रविड कहलेसेफे ढेर इतिहासकार ओ विद्वानहुक्रे थारुहुकनहे अनार्य रहल बटैठै ।


डा. रामानन्द प्रसाद सिंह, तेजनारायण पंजियार, सुबोधकुमार सिंह, महेश चौधरी, गोपाल दहितसे थारुहुकनहे बौद्ध मन्ले बाटै । कलेसे थारु लोकगीत बर्किमारहे पुस्तकके रुप डेना दाङके अशोक चौधरी थारुहुकनहे हिन्दू रहल स्वीकरठै । युवा पुस्ताके कतिपय थारुहुक्रे, थारुहुकनके आदिपुरुष, ईश्वर । परमेश्वर गुर्बाबा हुइट ओ थारुहुकनके अपने धर्म बा कना तर्क करठै । थारु कल्याणकारिणी सभासे वि.स.ं २०६५ मे थारुहुुकनके अन्तर्राष्ट्रिय सम्मेलन करके थारुहुक्रे बौद्ध रहल घोषणा करले बा ।


एकओर थारुहुकनके हकअधिकारके लाग बोल्न संगठन थाकससे थारुहुक्रे बौद्ध रहल घोषणा करले बा कलेसे दुसर ओर थारुहुकनके पूजास्थल, ओइने मन्ना चाडपर्व, तरत्यौहार, ब्रतआदि हिन्दूसंग मेल खैना करल विल्गाइल बा । थारुहुकनके थनवामे अन्य मरी, काली, घोटैलीसे पाँच पाण्डव समेतके पूजा करजाइठ । ढेर समयसम संगसंगेक बसाई, हिन्दूहुकनसंग सम्पर्क, समन्वयसे वा राज्यसे हिन्दू धर्महे राज्यके धर्म स्वीकार करल कारणसे फे थारुहुक्रे प्रभावित हुइल हुई सेक्ठै । मिल्टीजुल्टी हुइलेसेफे अइनसे मन्ना, पुजा कैना तौरतरीका भर अपने मेरिक बा ।


बाट ज हुइलेसेफे, थारुहुक्रे बौद्ध हुइट या हिन्दू, आर्य हुइट या अनार्य, द्रबिड रहिट या किराँत, ओइने मन्ना भगवान–भगवती, देवीदेवता, चाडपर्व ढेर हिन्दूहुकनसंग मिल्टी जुल्टी विल्गाइठ । अस्टे मिल्टी जुल्टी चाडपर्व मन्से अनत्तर ब्रत (अनन्तब्रत) फे हो । यी ब्रत, कैलाली जिल्लाके पूर्वी क्षेत्रके थारुहुकनमे व्यापक स्थान पैले बा । जहाँ गाउँके ढेर महिला, पुरुष, लउण्डी, लउण्डा संगे बैठके हर्षोल्लासपूर्वक यी ब्रत मन्ना करठै । पहिले–पहिले गोसिया मनै केल बैठना यी ब्रतहे गोसिनीया, लउण्डीहुकनके सहभागितासे झन रमाइलो बना डेले बा ।

अनन्त ब्रतके सार
हिन्दू धर्मग्रन्थ–भविष्य पुराण, ब्रम्ह पुराण) अनुसार द्वापर युगमामहाराज युधिष्ठिरसे राजसूर्य यज्ञ करले रहिट । उ बेला यैसिन सुन्दर ओ मनोरम यज्ञ मण्डपके निर्माण करल रहे । कि उहाँ तलाउ ओ जमिन छुट्ट्यइना कर्रा रहे । उहे बिचमे एकदिन दुर्योधन कहुसे घुम्टी उहाँ पुग्लै ओ तलाउहे भुईया मानके नेंगेबेर गिरलै । उ बेला हाँस्टी द्रौपदी ‘अन्धरक छावा अन्धरा’ कहिके खिल्ली उरैली । दुर्योधनके मुटुमे उ बचनबाण बिझल । ओकरे बदला लेना दुर्योधन पाँच पाण्डवहुकनहे एक दिन हस्तिनापुरमे बोलैलै ओ छल, कल ओ बलसे जुवापासामे पराजित करलै । प्रतिज्ञाअनुसार पाण्डव १२ बर्ष बनवास बैठलै । बनबास बैठना क्रममे पाण्डवहुक्रे बहुट दुःख, कष्ट सहलै । बनबासके क्रममे श्रीकृष्ण पाण्डवहुकनहे भेट करे गिनै ओ भलाकुसारी करलै । युधिष्ठिरसे उ अवधिमे ढेर दुःख–कष्ट सहे परल खबर सुनैलै । उहाँक दुःख कैसिक कम करे सेक्जाई कहिके उपाय पुछलै । श्रीकृष्ण पाँचभाई पाण्डवहुकनहे अनन्त भगवानके ब्रत बैठना सल्लाह डेलै ओ कथा सुनैलै ।


‘सत्ययुगमे सुमन्तनामके एक मुनि रहिट । उहाँक गोपनियाके नाउ दीक्षा रहे । ओइनके एक छाई रहिन, छाईक नाउ सुशीला रहे । सुशिला जवान नइहुइटी दीक्षाके मृत्यु हुइल ओ मुनि कर्कशासंग दुसरा भोज करलै । भारी हुइलपाछे ऋषि छाइक भोज कौडिन्य ऋषिसंग करडेलै । बिदाईके बेलामे सुशीलाके सौतेनीया डाई कर्कशा कौडिन्यहे कुछ ईट्टा ओ ढुंगाके टुक्रा पोको पार डेली । ससुरालीसे डेहल दाइजो कहिके कौडिन्य ऋषिपत्नीसहित घर नेंग्लै । डगरेम एक लडिया रहे, उहाँ पुगेबेर ओइने थक्लै ओ बिश्राम करे लग्लै । सुशीला, लडियक दुसर छेउमे सिंगारपटार करके कुछ पुरुष, महिलाहुकनहे कौनो देवताके पूजा करटी रहल दृश्य डेख्ली ओ जिज्ञासा रख्ली । ओइने अनन्त भगवानके पूजा करटी रहल जानकारी करैलै ओ अनन्तब्रतके महत्व बटैलै । सुशीला ओइनसंगे अनन्त भगवानके पूजा करली ओ चौध ठो गाँठी रहल अनन्त धागा हातमे बाँधली । उ भदौ महिनाके शुक्लचतुर्दशी रहे । घर पुगेबेर उहाँहे डेहल ईट्टा ढुङगा हीरा–मोती हुइल । ऐशआरामके जिन्दगी बिटे लागल । कुछ दिनपाछे ऋषि कौडिन्य सुशीलाके बायाँ हातमे बाँधल हरडेयर रंगके धागा डेखलै । उहाँहे लागल, सुशीला अपनहे बशमे रख्न टुनामुना करल धागा बाँधले बा । उहाँ पुछडरलै, टै महीहे बशमे रख्न यी टुनामुना करले बटै कि का ? सुशीला पत्ता पाइल बाट बटैली । मने धनदौलतमे मस्त कौडिन्य, बशीकरण करेक लाग बाँधल डोरा कहिके टुरके आगीमे जराडेलै । यी भगवान अनन्त अपमानित हुइलै ओ कौडिन्य कुछ दिनमे गरिब हुइटी गैलै, कष्ट झेले लग्लै । कौडिन्य ऋषि, सुशीलासंग काहे अटरा ढेर दुःख कष्ट आई लागल कहिके बाट करलै । सुशीलासे अनन्तभगवानके अनन्त डोरी जराइल ओरसे यैसिन हुइल बटैली । ऋषि ओकरपाछे पश्चाताप करटी भगवान अनन्तसंग क्षमा मागेक लाग भगवानके खोजीमे जंगल पैठली । मने भगवानहे फेला पारे नाइसेक्ली । ढेर दिनपाछे उहाँ कमजोर हुइलै, एक दिनभुईयामे गिरनै । दर्शन नइपाइलपाछे उहाँ प्राण त्याग कैना निर्णय करलै । उहे बेला भगवानअनन्त प्रकट हुइलै ओ कहलै ‘ऋषि, टै जौन अनन्तधागााहे आगीमे जरैले, यी ओकरे फल हो, टै चौदह बर्ष यकर प्रायश्चित कर । कौडिन्य ओस्टे करलै ओ अन्तमे उहाँक अवस्थामे सुधार आइल । उहाँ फेरी सुखी जीवन जिए लग्लै । टबमारे हे पाण्डव हो, टोहरे अनन्तभगवानके अनन्तब्रत बैठो, यी टुहिनके दुःख नष्ट हुइठ कलेसे श्रीकृष्णसे पाण्डवहुकनहे सल्लाह डेलै । भगवान कृष्णके सल्लाह अनुसार पाँच पाण्डव, दौपदीसहित अनन्तभगवानके ब्रत बैठलै ओ कष्टसे मुक्ति पैलै । यैसिक अनन्तब्रतके शुरुवात हुइल हो ।


यी ब्रत नेपालके मधेशी समुदायमे बैठना करल बाट लेखक सीताराम अग्रहरी बटैठै । यहोर कैलालीके पूर्वी क्षेत्रमे यी ब्रतसे ब्यापक स्थान पैले बा । गाउँके बालबालिका, युवायुवती यम्ने आउर ढेर रमैना करल बाटै । सगोलमे जमघट हुइना ओ एक दुसरसंग सम्बाद करे पर्ना ब्रत हुइल ओरसे यकर प्रभाव आउर बढटी बा ।


ब्रतालुहुक्रे यी दिनमे बिहान काम करके दश, एघार बजेओर नुहाई धुवाई करके थालमे गोबर गणेश, चामल, हल्दी, कच्चीधागा या उज्जर पाटिर धागा, खिरा, फलफूल लेहे गाउँके कौनो एक घरमे जम्मा हुइठै । उहाँ कलशमे कुशके अनन्तभगवान स्थापित करल रहठ ओ लोटामे कुशके औंठी ओ आँमके छोट पटिया सहितके डहिका धारल रहठ । गोबरके कन्डाके आगी एक ठाउँमे बारल रहठ ओ धूपी सल्ला, घिउके मिसावटसहितके धूपतयार करके आगीमे धूप दारके, पानी चढाके पालिक पाला पूजा करजाइठ । ब्रतालुहुक्रे जैचा दिसा–पिसाबके लाग बाहेर जैठै ओटर चो ओइने हातमुखधोके, अग्यारा करठै । कच्चीधागााके चौध सूत धागाके रस्सी बनैठै ओ बिशेष प्रकारसे चौध ठो गाँठ पारके अनत्तर (अनन्त) धागा बनैठै ओ हरडीमे पानी दारके रंगैठै । सक्कु जे अपन अनन्तधागो (रक्षा सूत) ओ गोबर गणेशमे टीका टाला करके पालिक पाला सक्कुहुनके अनन्त धागाामे टीकाटाला करठै । ओकरपाछे पुरुष दायाँ हातमे ओ महिला बाँया हातके पखरामे अनत्तर (अनन्त) धागा बाँध्ठै ।


हवनके लाग आँमके सुखल काठीसे कुवा बनैठै ओ एक जाने सक्कुहुनके ओर हवनकुवामे हवन सामाग्री दरटी सक्कुहुनके दुःखदर्द नाश होए, सक्कुहुनके मनोकामना पुरा होए, चिताइल फल प्राप्त होए कहिके पुजा करठै । ओ पालिक पाला कलशमे धारल लोटाके पानी, हातमे कुशके औंठी लगाके चलैठै । जिहीहे समुद्र मन्ठन करल कहठै । लग्गे बैठुइया लोटाके पानी चलैना ब्यक्तिहे ‘का मागटे कहिके पुछठै ।’ उहाँ ‘अन, धन, बल, बुद्धि, पुत, परिवार, गौलक्ष्मी, बडे अनत्तर (अनन्त) के फल’ कहिके जवाफ डेठै । अथवा मनमे लागल बाट सक्कुहुन ठेन सुनाके मग्ठै । यी क्षण बडो रमाइलो रहठ । यी प्रक्रिया सेकलपाछे अपने भगवानके प्रसादके रुपमे लैगिल खिरा, फलफूल भगवान अनन्तहे चढैठै, प्रसादके रुपमे सक्कुहुनहे डेठै ओ अपनेफे ग्रहण करठै । अटरासम समुहमे बैठके सामुहिक रुपमे करठै ।


उहोर हरेकके घरमे पकुइया नुहाई धुवाई, सफासुग्घर हुके अन्दीधान (बिशेष प्रकारके धान) के चाउरके रोटी पकाइल रहठ । सूर्यास्त हुइना आघे उ तयार करल रोटी, ब्रतालुसे पूजा करके, अग्राशन निकारके अपने सेवन करठै । सूर्यास्त हुइलपाछे खैना मनाही रहठ । कोई कोइ पानीसम सेवन करठै । बिहान नुहाई, धुवाई करके पूजाआजा करके घरेम लिपपोत करल ठाउँमे बैठै । तयार हुइल खाना– पकवान एक अपन भाग ओ दुसर अनन्तभगवानके भाग अग्राशनके रुपमे आघे निकरठै । खाइक लाग तयार करल हरेक बाट ठोरठोर धूपसंगे आगीमे चढैठै, अग्राशनहे अनन्तभगवानहे चढैठै ओर चे दुर सरठै ओ तीनसे ५ गास खाइलपाछे हातधोके, हातमे बाँधल अनन्तसूत निकरठै ओ गैयाके दूधमे धुइठै ओ खाना खैठै । भगवानहे भोग लगासेकल अग्राशन, भोजबिहा हुइल चेली–बेटीके घरमे डेहे जैठै ।


यी ब्रतमे चौध सुत (लर) धागाके रस्सी तयार रहठ ओ रस्सीमे बिशेष प्रकारसे चौध ठो गाँठी तयार करजाइठ । यम्ने यी अनन्त सूत धागााके भारी महत्व रहठ, यिहीहे रक्षा सूतफे कहठै । कहठै, ब्रतालु यी ब्रत १४ बर्षसम बैठना अनिवार्य रहठ । ब्रत बैठेबेर भगवान मनमे चिटाइल फल, बरदान डेठै कना समुदायके मान्यता बा ।

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