डाइ ! मैं बुक्कि लेके आगइलुँ

फुलमटिया ५ बरसके हुइल् । उ गाउँक स्कुलिम पर्हठ् । आझ फेन ओकर स्कुल जैना जुन हुगइलिस् । स्कुल जैना जुन ओकर डाइ, सुग्घरके सँप्रा डेठिस् । आझ फेन मुँरि चोंचके झुल्वा, फराक फेन घलाडेलिस् । उ जोगनियाँ हस बिल्गाइ लागल् । ओसिक टे फुलमटिया अस्टक नन्हें रोज डिन सुग्घुर रहना मन पराइठ ओ ओकर डाइ फेन अस्टके सँप्रा डेठिस् ओ घोट्टइलके लह्वाडेठिस् । आझ उहिहे डोसर मेर लाग्टिस् । ओकर कपुन्डामे लगाइले टेल मगमग–मगमग मँह्काटिस् ।
यिहिसे पहिले ओकर कपुन्डम असिन मँह्कना टेल कब्बो नै लगाइल रहिस् । उहेसे फेन उहिहे कसिन कसिन लागटहिस् । उ आपन डाइसे पुँछल् । – ‘डाइ मोर कपारिक का मँह्कटा ?’
डाइ कलिस् – ‘बुक्कि बास हो फुलु ।’ ओकर डाइ मैयाँ कैले फुलमटियैहे फुलु कैह्के फेन बोल्कर्ठिस् ।
–‘बुक्कि कसिक मोर कपुन्डक आइल ?’ उ जानक चाहल् ।
–‘यि टेलमे मिलाके लगैबो टे मँह्कठ् । आझ मैं टोहार कपुन्डक उहे टेल लगाडेले बटुँ ।’
– ‘डाइ ! बुक्कि, टेलमे कसिक आइल् ?’
– ‘कुछ डिन टेलेमे बुक्कि बिलोर्बाे टे बुक्किक बास टेलेम आइठ् फुलु ।’ डाइ मँह्कना टेल बनैना सिखैठिस् ।
– ‘टब डाइ ! यि कहाँ मिलठ् ?’
– ‘उ डम्मर्वामे मिलठ् ।’ लग्गेक डम्मर्वा डेखैटि ।
– ‘टब टे मैं आझ टुरे जइम ना डाइ !’
– ‘छोट लर्का ओट्रा डुर नै जइठाँ ।’
– ‘का करे डाइ !’
– ‘उ डम्मर्वा महा ठार्ह बा, वहाँ बाघ, भाल बैठ्ठाँ, जोंक लग्ठाँ, काँटा गरठ् उहेसे नै जैना हो ।’ डाइ सम्झैटि कठिस् ।
– ‘नाइ मैं टे बुक्कि टुरे चल्जइम् !’
– ‘बघवा काटि ! नै जइठाँ फुलु ।’ डाइ डुर्वइठिस् ।
फुलमटियक डाइ डुर्वइलेसे फेन ओकर बुक्कि टुरे जैना सौक नै हेरइठिस् । उ जसिक फेन बुक्कि टुरके नन्नाँ सोँचठ् ।
एक डुइ डिन परसे शनिच्चर आइठ् । फुलमटियक स्कुलिम छुट्टि हुइठिस् । ओकर मनमे बुक्कि फुला टुरे जैना अभिन मन टुटल नै रहिस् । उ अन्गुट्टि कुहिहे बिना जनाइल घरसे निक्रठ् ।
उ डम्मर्वा हेरल् । महा ठार्ह । टब्बो हिम्मट नै हारल् । उ मनैनके नेंग्लक डगरक सर्ने सर्ने डम्मर्वा पुगल् । महा उँचइया डेखके उ एक बेर उँप्पर हेरल् ओ उँचियक खोजल् ।
गोर बिछुलके घिर–घिर, घिर–घिर टले पुग्गइल् । गोरक ठेहुन खुलुक गैलिस् । रकट निक्रे लग्लिस् । गोरम लागल ढुर झराइल् ओ ठुक लगाइल् । अभिन रकट नै ठँम्ह्लिस् । उ भुइयाँ मनिक ढुर झोंकल निक्टलकमे ओ फेन उठल ओ उँचियइ लागल् । डम्मर्वापर चौर्हल टे पट्निपटानके घर डेखल् । कट्रा सुग्घुर । टम्हें घुस्मुर्लक चोट फेन बिस्रा डारल ।
मनो, डम्मर्वा सुनकाल रहे । कहुँ–कहुँ चिरै बोलिँट । का, का जाट हुँइट भुइयाँमे खर्फराँइट । ओकर मन जुन उहे बुक्किक फुलामे किल रहिस् । आपन टारमे नेंगटा । टब्बेहें उ बैरिक झम्रामे बाझठ् । बैरिक काँटा जहोंर टहोंर बकोट डेठिस् । काँटा सर्टि उ फेनसे परगा नमाइठ् ।
कुछ डुर पुगल टे गिडार बोलट सुनठ् । ओकर मन ढसाकसे डरैठिस् । मनो बुक्कि टुरके जसिक फेन नानम् कैह्के उ अभिन हिम्मट नै हारठ् । ठोरिक्के नेंगठ टे बघवा गुँजरठ् । ओकर जिउ फेन ढसाकसे कैठिस् । उ पौलि रोकके गुँजलक ओर हेरठ् । डोसर डम्मर्वाक पार्ह हो कैह्के फेन परगा नापल ।
एक घचिक परसे गोर खुज्याइ हस लग्ठिस् । उ आपन गोर हेरठ् । जोक्वा चप्ट्याइल रठिस् । उ डरके मारे ओट्ठहें घिघियइटि ढर्रामे गोर घिसोरे लागठ् । आपन गोर हेरठ् । जोक्वा छुट रख्ले रहठ् । रकट भर बहटिरठिस् । उ हटर पटर उठठ् ओ फेन उँचियाइठ् ।
एक घचिकमे भुरेभइल् बुक्कि फुलल् डेखठ् । उ बुक्कि डेख्के डौरट् पुगठ् । पुग्टिकिल मगमग–मगमग मँह्के लग्ठिस् । उ यिहे हो बुक्कि कैह्के फेन जानठ् ।
उ मनभरके फुला टुरठ् ओ फोहैटि घरेओर लागठ् । घुमेबेर गिडार बोल्लक, बघवा गुजर्लक, जोंक्वा लग्गक फेन बिस्रा डारठ् । उ फोहैटि डौरठ् ।
यहोंर छाइ कहाँ चल्गइल कैह्के फुलमटियक डाइ खोब खोज्ठिस् । रानपरोप, साँढि–कोना सक्कुओर खोजके फेन नै भेटैठिस् । यहोंर पुछ्ठिस्, ओहोंर पुछ्ठिस् टब्बो नै भेटैठिस् ओ खोजट्–खोजट् जब डम्मर्वाओर जाइठ् टे फुलमटियाहे आइट डेखठ् । फुलमटिया फेन डाइहे डेखठ् ।
फोहैटि – ‘डाइ ! यिह् मैं बुक्कि लेके आगइलुँ ।’
कोनम् लेटि – ‘बाघ, भालनसे चोँठ्वा पैना हस् कहाँ जैठो मोर छाइ ! आब असिके अक्केलि जिन जाइहो न ।’
फुलमटिया आपन नानल् बुक्किक मुट्ठा डेटि – ‘डाइ ! यि फुला ।’
डाइ बुक्किक फुला पकर्टि– ‘चोलो आब घरे जाइ ।’
डुनु जाने घरेओर लग्ठाँ । फुलमटिया आघे–आघे कुड्गटि आइठ्, डाइ पाछे–पाछे नेंग्टि अइठिस् ।
साभार: लावा डग्गर त्रैमासिक (अंक ४२ बैसाख–असार–२०७७)
