थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १६ अगहन २६४८, अत्वार ]
[ वि.सं १६ मंसिर २०८१, आईतवार ]
[ 01 Dec 2024, Sunday ]

थारु भासा विकासके यात्रा

पहुरा | ३० भाद्र २०७७, मंगलवार
थारु भासा विकासके यात्रा

थारु भाषा मे कलम चलावे वलाना के जतन्या कमी छै वकर से बेसी छपावे वलाना (प्रकाशक) के कमी छै । लेख रचना, कथा कविता, गीत गोदहन, समाजिक संस्कार, रितिरिवाज, आलोचना, समालोचना, विचार विमर्श, बाल कथा, साहित्य, हाँस्यव्यग्य (हसनीखिजनी), उखाम, नाटक, शव्दकोष, व्याकरण के विद्या मे भरपुर लेखन हे छपाई जातक नय हेतै ता तक थारु भाषा साहित्य के विकास रफतार पछुवले रहतै ।

पुरविया थारु भषा मे थारु लोक गीत (२०२५), बऊ (गुदी (सचित्र थारु कखरा) (२०२७), हौली (२०४२) हे डलयेती (२०४७) (साहित्यिक प्रकाशन, थारु कल्याणकारिणी सभा १३ औं महासम्मेलन स्मारिका मोरङ (२०४७), थारु कल्याणकारिणी सभा १४ औं महासम्मेलन स्मारिका, सुनसरी (२०४९), अनमोल बेहाल थारु (कविता संग्रह (२०४९), हमर पोथी २०५० (कक्षा–१ के लगिन पाठ्य पुस्तक), रेडियो नेपाल से थारु भाषा मे समाचार प्रशारण (२०५१), थारु व्याकरण (२०५९), थारु लोक संस्कृति र चांडवाड (२०६९), मध्य पुर्वीय थारु भाषाको लेखन शैली (२०७१), मध्य पुर्वीय थारु (नेपाली शव्दकोष (२०७३), परिमार्जित रुपमे मध्य (पुरविया थारु भसा निखेके सैलीमे आधारित थारु ब्याकरण (२०७४), टिहकारी सप्ताहिक (२०७६), फुरगनी, बहलनमान, आर बहुते रास अप्रकाशित कृतिना छै ।

हरीनाम किर्तन, चोरखेली नाच, बडका एकादशी, ठाडी बरद, गौबधी उध्दार, मृत्यु संस्कार निर्गुण गीत, धुमडा नाच, सोरठी–बृजभान नाच, बारहमासा, चांचर–बिरहेन, धामी गीत, सोहर, मंगल, बिबाह गीत, बालगीत, पालनगित लगायत बहुते थारु साहित्य मौखिक रुपमे जीवित छै । मतर पुरना पिढी के अन्त संङे यहोना ओरते ज्यारहलैस । यीना मौखिक थारु सहित्य के मोडा खाली हवेके अवस्थामे छै । गीतना के शब्दना के अर्थ अखनकर पिढी सुनछै मतर बुझवेनी करछै । सहि सहि तरिकासे उचारण तक करे नय यछै । जव सहि उचारण या बोले नय यलासे सहि सहि तरिका से निखो लगना कठिन होना स्वभाविक हेछे । जखने निखे लगिन कठिन हेलास लेखकना के लेखन शैली मे फरक परना सामान्य बात हेछै ।

थारु घरायसी पठनपाठन मे कखरा बर्ण माला के सबना बर्ण के निखाई हे पठन पाठन करेक। घर ब्यबहार चलावे लगिन कखरा बरतनी (बर्ण के ज्ञान, मन्तरा के ज्ञान) हे हर हिसाब करे लगिन १ से १०० तक के गन्ती, खांत, पहाडा, गराहांङ, जोड–घटाउ, गुना–भाग, हे कुछ सुत्र के ज्ञान पेलासे पुगिजैक। औपचारिक शिक्षा के लगिन स्कुल नय रहेक । २०१०–१२ सालके बाद स्कुल खुले लागलै तव छापल किताव पढेके मौका पेलकै । मोरङ मे २०२०–२१ साल दिसर से अभिभावकना मे बालबच्चाके पढावे परतै कहिके चेतना त यलि मतर ब्यबहारमे कोइकोइ स्कुल पठावे लागलै । बालबच्चाना पढिके कुन बनतै या कुन करतै सामान्य चेतना तक अभिभावकना के नय रहेक । ओकर बच्चा स्कुल जेछी हमरु बच्चा लाटेलाटे पढतै कम से कम आँख फुटल त रहतै । यहाँ मधेमे जे अवल रहलै आगु बाढलै ।

तखनकर पीढी (२०३२–३४ मेट्रिक पास) सरस झन शिक्षक बनेके मौका पेलकै । नगन्य रुप मे सरकारी सेवा मे प्रवेश करलकै । २०३० के बाद औपचारिक शिक्षा मे चेतना बाढलै हे २०४०–४२ साल एसएलसी पासके पिढी घरसे बहार ज्याके काम करेके बातावरण बनेलागलै कहम शिक्षा मे बाढ यल ढवक लागैक । नयाँ जोस होस के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषा हे पहिचान के बारेमे चेतना यलि हे समाजमे विभिन्न माधयमसे जनचेतना बढावे लागलै । २०५२–५४ के एसएलसी करल पीढी शैक्षिक बेरोजगार, पहुंचके अभाव, आर्थीक कमजोरी, परिवारिक जिमेवारीके चाप बाढलै तव बैदेशिक रोजगारी दिसर ज्याला गलै । २०६२–६४ के पिढी मे सरकारके थारु समाज प्रति के ब्यबहार, पञ्चायत समयके उतपिडन हे बहुदलके खुल्लापन से अधिकारके चेतना बाढली हे थारुवान, थरुहट, थरुवट, कोचिला प्रदेशके लगिन आन्दोलित हेलै । यथैन आन्दोलनके नेतृत्व करेवला अगुवाना कुसल संगठन करे नय साकलकी तथा थारु समाजके जाग्रित करे नय सकलकी । समाजिक नेतृत्वके पंक्तिमे रहल समाजिक आभियन्ता हे राजनितिक अगुवा नेतामे तालमेल मिले नय साकलकै । राजनितिमे रहल नेताना पार्टीके स्वार्थ हे आपन हितमे केन्द्रित रहली जनत समाजिक अभियन्ताना नेतानाके आशामे सरकारके दिसर मुख देखेलागलै । यहाँ अन्तर द्वन्द्वके चलते थरुहट आन्दोलन फुस हेलै ।

थारु भाषा विकाश करे लगिन पहिनकर पिढीमे थारु संस्कृति के प्रकाशन मे रामान्दप्रसाद सिंह, डा. बृजनारायण चौधरी, महेश चौधरी, तेजनारायण पंजियार, शान्ति चौधरी, शान्ति करियामघरीया लगायत बहुतो झनके योगदान छै ।

दोसर पिढिमे ब्यक्तिगत हे सामुहिक प्रयास मे भुलाई चौधरी, नन्दलाल चौधरी, फनिलाल चौधरी, रामसागर चौधरी डा. गोपाल दहित, डा. कृष्णराज सर्वहारी, हृदयनारायण चौधरी, बमबहादुर चौधरी, भोलाराम चौधरी लगायत बहुतोझन छै ।

अखने तेसर पिढीमे दङौरा थारु भाषा विकाशमे उमाड यलछै । डंगौरा थारु भाषा मे युवा पुस्ताके आगमन, निरंतर प्रयासमे जुटल छवीलाल कोपिला, सुशिल चौधरी, दिलबहादुर चौधरी, रामबहादुर चौधरी, कनैलाल चौधरी, प्रेम दहित, अनिल चौधरी, सोम देमनदौरा, लगायत बहुतो लेखक सर्जकना के योगदान छै । यकर अगुवाई हे समन्वय मे डा. कृष्णराज सर्वहारी के बिशिष्ट देन छै । थारु पत्रकार संघ, थारु लेखक संघ मार्फत थारु भाषा विकाशमे लया पिढी आगु बढेके तरखरमे छै । पुरु झापा से ल्याके पछिम कञ्चनपुर तक एकटा थारु भाषा बनाना लोहाके चुडा चिवाना बराबर छै ।

मध्यमे कारी महतो, बमबहादुर चौधरी, हृदयनारायण चौधरी लागल छै मतर लया पिढी तयार हवे लगिन बांकी छै । आपन प्रयाससे बखरुका भाषाके विकाशके लगिन सतप्रयास छै । काठमाडौंमे ‘बसघरा’ मार्फत रामस्वागत चौधरी, भुलाई चौधरी, भुद्धसेन चौधरी, सियाराम चौधरी, सहदेव चौधरी, नन्दलाल चौधरी लगायत थारु भाषाके संस्थागत विकाशमे प्रयासरत छै । सप्तरी के थारू भाषा के थारु इतरबर्ग मैथली भाषा छेकी कहिके दावी करछै जनत थारुभाषा विदना वकरा थारु बोल्छे कहिके उपरापाट चलिरहलैस ।

कोसीसे पुरुव मोरङके थारु भाषा विकासके अवस्था धिमागतिसे चलिरहलैस। लयापिढि थारूभाषा विकासमे खासे तयार हेल नय देखा परलैस। तयो कुछ नकुछ घेसरीपिछरीके चलीरहलैस। लेखक भरतलाल चौधरी आजकाल देखा नै परछै। रामलक्ष्मण चौधरी, प्रकाशनारायण चौधरी, कालुराम थन्दार टिहकारी मे आगमन हेलिस। वहिने रामसागर चौधरी हे भोलाराम चौधरीके निरंतरता छै। रामसागर चौधरीके लेख रचना गोरखापत्र नयाँ पाना लगायत बहुतो पत्रपत्रिकामे प्रकासित छै।

थारु पत्रकार संघ मोरंङ, सुनसरी के थारु भाषा विकासमे खास पहल करल नय देखलगेलैस। वहिने भाषाके विकाशमे अग्रज संस्था लेखक, सरजकनाके गोलबन्द करे नय साकलकैस।

नेपाल मे थारुना के बहुते लवज बोली छै। अखने गोटे थारु समाजके लगिन एकटा सम्पर्क थारु भाषा होना चाहि कहिके बहस छलफल चलिरहलैस। भाषिक समस्या त छेवे करे, एक बनावेके लगिन आपन आपन बिचार सुझाव द्यारहलैस। डा. कृष्ण सर्वहारी के बिचारसे एकटा मानक थारु भाषा बने नय साकछै जनत बहुतो झनके प्रयास आजु नि कालु एक बनिके रहतै आशामे छै। यकर लगिन थारु कल्याणकारिणी सभा, प्रज्ञाप्रतिष्ठान, भाषा आयोग, थारु आयोग, जनजाति आदिवासी प्रतिष्ठान लगायत त्रिवि भाषा विभाग के इमानदारीके साथ लागे परलै।

यकर से वेसी नेपाल सरकारके साथ साहयोग हे समर्थन जरुरी छै । भाषिक अभियन्ताना आपन जिद छोडीके सहकार्य समझदारी करिके आगु बढना चाही 

(यी लेख पुरविया थारु भासामे लिखल बा ।)

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