थारू मानक भाषा बहसम उत्पन्न विवाद ओ समाधानके खोजी
१. विषय प्रवेश:
भाषा शब्दके शाब्दिक अर्थ बोल्ना, कहना (कना) हो । यकर प्रयोग मनैनके भाव विचार सञ्चारके लाग बहुत आवश्यक रहठ । मनैनके अवयब अङ्गसे आफन अनुभव, अनुभूति, भाव वा विचार व्यक्त कर ब्याला ज्या बोल्जाइठ ओह नै भाषा हो । भाव वा विचारके सञ्चार विविध तौरतरिकासे कर्लसेफे ऊ सक्कु भाषा निहो । जस्त कि कौनो सङ्केत, इसाराह भाषा कह निसेक्जाइठ । अर्थ भाषाके प्राण हो । ओहमार भाषा हुइक लाग त सार्थक ध्वनिके समूह हुइना बहुत जरुरी बा । पशुपंक्षी, जनावर और प्राणी विभिन्न सङ्केत कर्ना ओ आवाज निकर्ना कर्ठ लेकिन भाषा मनैन्हक सम्पत्ति हो ।
मनै सामाजिक जीवनके हरेक व्यवहार सञ्चालन करक लाग भाषाके प्रयोग कैजाइठ । समाजके भाषाम ओ भाषा समाजक उपर प्रभाव पारठ । भाषा बैज्ञानिक अध्ययन का कहठ कलसे भाषा ओ समाजके बिच रहल सम्बन्धके विश्लेषण करठ । ओहमार भाषा समाजके सक्कु पक्षक अध्ययन कर्टि सामाजिक सांस्कृतिक प्रकार्यके साझा हुइ पुगठ । समाज भाषा विज्ञानअनुसार सामाजिक वर्गके भाषिक अस्मिता, भाषाप्रति समाजके दृष्टिकोण एवम् अभिवृत्ति, भाषाके सामाजिक शैली, लवज वा रूप आदि पक्ष सिमोट्ल रहठ । भाषा सामाजिक वस्तु हो । यिहीह समाजसे अलग(दुर) कर निसेक्जाइठ । भाषा विनाके समाजके परिकल्पनाफे कर निसेक्जाइठ । यह भाषाके कारण आज हम्र मानुख विश्वम सर्वश्रेष्ठ प्राणीके रूपम चिन्हगिल बाटी ।
भाषाम मुलतः कथ्य ओ लेख्य कैख दुई रूप रहठ । भाषाके बोलीचालीक रुपह कथ्य भाषा ओ लिपिके माध्यमसे लिखल भाषाह लेख्य भाषा कैजाइठ । टमान विद्वान हुक्र हाल विश्वम करिब सात हजारसम भाषा रलक बात अङ्गुरैल बाट । हरेक आठ घण्टाम एकठो भाषा लोप हुइटी रलक अनुसन्धानमसे देखेल बाट । नेपालम वि.स.२०६८के तथ्याङ्गअनुसार १२३ भाषा जीवित बा । १२३ भाषामध्ये थारू भाषाफे एकठो बहुसङ्ख्यक मनै बोल्जिना भाषा हो । नेपालम बोल्जिना सबसे ध्यार पैल्हा नम्वरम नेपाली ४४.६ प्रतिशत, दुस्राम मैथिली भाषा ११.६७ प्रतिशत, तिस्राम भोजपुरी ५.९८ प्रतिशत चौठाम थारु भाषा ५.७७ प्रतिशत अर्थात १५,२९,८७५ बोल्ना संख्या बा । नेपालम अधिकांश भारोपेली ओ चिनीया तिब्बती भाषा परिवारक भाषा बहुत बोल्जाइठ । थारू भाषा भारोपेली भाषा परिवार अन्तर्गत परठ । हाल हरेक जातजाति समुदायम आफन पहिचानसे ज्वारल भाषा संस्कृतिह उजागर कर्ना ओहर उन्मुख हुइल बाट ।
थारू भाषा नेपालके तराई क्षेत्रम थारू जातिम बोल्जिना महत्वपूर्ण भाषा हो । थारू भाषाम पुरुब झापासे पश्चिउ कञ्चनपुरसमके क्षेत्रम विविध भाषिका, रूप बा । आबक समयम थारू मानक भाषाके निर्धारण कसिक करसेक्जाइ कना विषयम थारु बुद्धिजीवि, विद्यार्थी, विद्वान हुक्र जुर्मुराइल बाट । कोभिड–१९ (कोरोका)के महामारीके ब्यालाम फेन प्रविधिके उपयोग कर्टि व्यक्तिगत, संस्थागत रुपम बहसम उत्रल बाट । यी खुशीक बात हो । असिन बहस छलफल अम्हिन घनिभूत रूपम चलाइ पर्ना टड्कारो आवश्यकता फे हो ।
मानक भाषाके विषयम:
मानक भाषाह अङ्ग्रेजीम (कतबलमबचम बिलनगबनभ ) कठ । मानक भाषा कलक जुन सर्वमान्य रहठ । भाषाके उ रूपह सक्कुजन मन्ठ । भाषाविद एवम् विद्वान डा. भोलाराम तिवारीक कहाइअनुसार “मानक भाषा कलक कौनोफे भाषाके उ रूपह मान्जाइठ जुन उ भाषक पूरा क्षेत्र शुद्ध ओ प्रतिष्ठित मान्जाइठ । उ क्षेत्र वा प्रदेशके समाज, जनता सक्कु आफन आदर्श रुप मन्ठ । जुन सक्कु औपचारिक परिस्थितिम, लेखन, प्रशासन, शिक्षणके माध्यमके रुपम यथासम्भव ओकर प्रयोग कैजाइठ ।” अर्थात सर्व ग्राहयता हुइलक भाषा, सर्व स्वीकार्यता हुइलक सरल सम्प्रषेणयुक्त भाषा, आधिकारिक शब्दकोष व्याकरणसम्मत भाषा मानक भाषा हो ।
कौनो फे मानक भाषा बनाइ ब्याला ऐतिहासिकता हुइ परठ । उ भाषक श्रोत, इतिहास का हो ? उ भाषा कसिन रह । कसिख प्रयोगम आइल उ बात महत्वपूर्ण रहठ । जब भाषाम जीवन्तता निहो कलसे भाषा निष्प्राण सरह हुइठ अर्थात भाषाम प्राण हुइ परल । भाषामा सुन्दरता हुइ परल । आवश्यकताअनुसार लौव लौव शब्द बनाइ सेक्ना सामथ्र्यता चाहल । सँगसँग भाषिक स्वायतत्ता फे अनिवार्यता जरुरी रहठ । स्वायतत्ता कति कि स्वतन्त्रता बुझ्जाइठ । यद्यपि आधिकारिक शब्दकोश, व्याकरण सम्मत ढङले समाज, समुदाय, भाषाविज्ञ हुकनक आधार फे लेह परल ।
नेपाली भाषाके सन्दर्भम सरकार जुन रुपम कदम चालल । नेपालम उ अवस्था अन्य भाषाम हुइना सम्भव निहो । नेपाली भाषाके अस बाध्यकारी नीति हमारलाग अभिसाप बन स्याकट । ओहमार बहस, छलफलसे निकास निकर्ना जो विद्वान हुक्र लागल बात बहुत खुशीक बात हो । थारू भाषक बहसम रुप, लवज, शैलीके बात जुन चलल बा । यी सक्कु चिजमसे केन्द्रीयताम अइना आवश्यकता देख्जाइठ । काखर कलसे मानकता कलक त सर्वमान्य बात हो । सर्वग्राह्यताके बात फे हो । जब भाषाम बोधगम्यता निहो कलसे मानकताके औचित्य फे निरहठ ।
मानक भाषा बनाइ ब्याला सामाजिक स्वीकृतिबिना प्राय असम्भव रहठ । मानक भाषा बनाइ ब्याला सोच समझ्ख बनैना वैज्ञानिक आधारके फेन जरुरी रहठ । वर्ण निर्धारण प्रक्रिया, अक्षर निर्धाण प्रक्रिया, अर्थ निर्धाारण प्रक्रिया यावत पक्ष सिम्वाट निसेक्लसे वैज्ञानिकता पक्र निस्याकट । ओहमार मानक भाषाम वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपरिहार्य तत्व हो । भाषाह अनुशासित बनैना महत्वपूर्ण संयन्त्र कलक त व्याकरण हो । भाषा रगत हो कलसे व्याकरण रगत सञ्चालन कर्ना नस (नशा) हो । आफन भाषाम और भाषासे कसिक सापटी लेना ? कसिक ग्रहण कर्ना कना बात महत्वपूर्ण हो । भाषाम सबसे पैल्ह बोलीत दसो भाषा भाषा पाछ मानक भाषा ह्वाए जाइठ । असिन किसिमके परिपक्व अध्ययनह अवलम्वन कर्ना जरुरी बा । नेपाली भाषा व्याकरण ओ साहित्य एवम् लिपिगत प्रभावमसे छुट्यैटि मौलिक बनैना अभियानम विद्वान वर्ग हुक्र घनिभूत रुपम निसोच्लसे काल्हिक दिन धेर समस्या अइना हुइलक ओहर्से वर्ण, शब्द, वाक्य एवम् अर्थ निर्धारण कर्ना जरुरी बा । थारु मानक भाषाके बारेम उत्पन्न विवाद समस्या ओ सम्भावनाबारे मूल्याङ्कन कर्टि उचित चिरफार कर्ना काम झट्टहे कर्ललसे लेखाइ, पह्राइ एवम् सञ्चार माध्यमम एकरुपता अइने रह ।
भाषाके मानक बनैना प्रक्रिया:
१. छनोट: हर भाषाम भूगोल, परिबेश, पर्यावरणके कारण धेर लवज, रुप वा भाषिका रहठ । यी ध्रुव सत्य बात हो । जस्त कि थारु भाषाम दाङसे पश्चिउओहर डंगौरा, देउखुरिया, देशौरी, रझटिया, कठरिया कहसक पूरुबओहर फे सप्तरिया, मोरङ्गिया, राजबंशी मध्य तराईम नवलपुरिया चितवनिया यावत लवज ओ रुप बा । यी विविध रुपमध्ये एक्ठो रुपह छनोट कर्ना आवश्यक रहठ । भाषक कौन रुप बोल्ना बेल्सनाम सरल, बोधगम्य ओ धेर जनसंख्या हुइलक मनै प्रयोग कर्ल बात उ आधारफे लिह परठ ओ सबजहनके लाग लिरौसी ह्वाए । सबजन मन्ना सहजता आए । ओसिन भाषिक रुप छनौट कर्ना वैज्ञानिक मान्जाइठ ।
२.कोडीकरण: मानक भाषाके स्तर निर्धारण करव्याला एकठो रुपह छनौट कैसेक्लसे वाकर लोकप्रियताके लाग काम कैजाइठ । भाषाह नियम सङ्गत बनाइकलाग व्याकरण निर्माण, आधिकारिक शब्दकोश निर्माण, हिज्जे ह्रस्व दीर्घ निर्धारण लगायत लिपिके निर्धारण समेत कोडीकरण अन्तर्गत परठ । उ काम थारू मानक भाषाके विषयम हुइ निसेक्ल हो ।
३.विस्तार: विस्तार कति कि क्षेत्र विस्तार भाषाके कार्य विस्तार बुझ्जाइठ । बोलीचालिक भाषामसे स्तरीय लेख्य रुपम विकास करक लाग विस्तार कैजाइठ । पूरुबके थारु ओ पश्चिउके थारु भेटघाट हुइलसे ओह भाषम बट्वोइना बेल्सना , पत्रपत्रिका, शैक्षिक क्षेत्रम प्रयोग कर्ना काम यी चरणम कैजाइठ ।
४. स्वीकृति: मानक भाषाके यी अन्तिम चरण हो । सबजहनके लाग प्रचलनम लन्ना, सर्व स्वीकृति देना कैजाइठ । जवरजस्ती मानकीकरण कर खोज्लसे मानक बन निस्याकट । ओहमार सबजन मानकलाग मानक भाषाके विषयम अइलक विवाद, उत्पन्न समस्याह जुन जुन पक्षमसे सवाल उठल बा । यी मानकीकरणके चरण हो । असिन बहसके जरुरी रहठ । लर्ख झग्रा कैक समाधान निआइट । बेनसे एक्क टेबुलम बैठी कना विचार आइ परठ ।
थारू मानक भाषक विषयम उत्पन्न समस्या ओ विवाद:
थारू भाषा मुलतः देवनागरी लिपिम लिखजिना भारोपेली भाषा परिवार अन्तर्गतके भाषा हो । पुरुब झापासे पश्चिउ कञ्चनपुरसम बोल्जिना थारु भाषक रुप, लवज, शैली फरक फरक बा । मानव सभ्यतासे ज्वारल भाषा थारू हुक्र फे सदिऔठेसे समाज व्यवहारम बेल्सटि अइल । बहुत समयसम थारू भाषा कथ्यम अर्थात बोलचालम सीमित रहल । वि.स. २०२८ सालठेसे गोचाली पत्रिका प्रकाशन सुरु हुइल ओठेसे थारु भाषा फे लिखित रुपम आघ बह्रल । आझुक अवस्थासम आइबेर थारु लेख्य परम्परा झन्डै आधा शताब्दी पूरा करटा । हाल थारू भाषक विभिन्न पत्रपत्रिका दैनिकठेसे साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक वार्षिक रुपम प्रकाशित हुइटी बा । नेट इन्टरनेटम फे दैनिक अनलाइन खबर जम्टी बा । थारु भाषाके अध्येता हुक्र करल अनुसन्धान अनुसार थारु भाषाके उपभाषिका बहुत ध्यार बा । थारु मानक भाषाम देख्गिल कुछ समस्या ओ विवाद बुँदागत रुपम प्रस्तुत कैगिल बा:
१. विविध भाषिका:
थारू भाषक उपभाषिका अर्थात फरक फरक लवज, रुप बा । जस्त कि पूर्वीया थारु भाषा अन्तर्गत मोरङ्गिया, सप्तरिया,राजवंशी आदि । ओसहख मध्य तराई थारू भाषाम चितवनिया, नवलपुरिया, ओसहख पश्चिह्वा थारु भाषाम डंगौरा, देउखुरिया, देशौरी, रझटिया,कठरिया, विविधता हुइलक कारण मानक भाषा बनैना सहज निहो । एकठो बराभारी चुनौती खडा बा । यकर सँग सँग सम्भावना फे बा । जस्त कि पूर्वीया थारु भाषक बुद्धिजीवि, विद्वान हुक्र भाषा भित्तर रलक विविधताह स्वीकर्ति पूर्वीय थारू भाषा लेखन शैलीम जुन सहमत आइल बाट । ओसहख हरेक क्षेत्रम जुन जुन भाषिका बा, लवज बा रुप बा छलफल कैक निकास निकार सेक्जिना ओत्रह सभ्भावना फे बा । नेपाली भाषाम फेन विविध भाषिका बा, लवज बा । नेपाली भाषाके भाषाविद बालकृष्ण पोख्रेल नेपाली पत्रिकाम वि.स.२०३१ आठौँ संस्करणमा नेपाली भाषाके पूर्वेली, माझाली, ओरपश्चिमा, मझ पश्चिमा ओ परपश्चिमा भाषिका रलक अनुसन्धानम देखेल बाट । यी मेर मेरके भाषिका मध्ये एकठो भाषिका छान्ख मानक भाषा बनैल । आज नेपाली भाषाके स्तर हेरी कत्रा समृद्ध बा । ओसहख थारू भाषक विविध भाषिका मध्ये ठनिक सरल सम्प्रषेणीय, बहुसंख्यक जनता बोल्ना, बेल्सना मौलार एकठो भाषिकाह लेक ओम निपुगल निहुइल चिजह हर भाषिकामसे लेक आघ बर्हलसे समाधान डगर देख्जाइठ ।
२. वर्ण निर्धारणम समस्या:
वर्ण भाषाके न्युत्तम एकाइ हो । कौनोफे भाषाम स्वर वर्ण ओ व्यञ्जन वर्ण व्यवस्था रहठ । भाषाम वर्ण विज्ञानके बराभारी महत्व रहठ । भाषाम प्रयोग हुइल ध्वनि एकआपसम कठ्याक मिलठ कठ्याक नैमिलठ कैक फरक फरक परिबेशम हरेक वर्ण आखन फरक काम करठ । कसिन परिबेशम खास वर्ण काम करठ त कैक निक्र्यौल कर्ना वर्ण विज्ञानके काम हो । पहिल फ्यारा थारू साहित्यिक सम्मेलन (म्याला) थारु मानक भाषाके वर्ण निर्धारण कर्ना काम वि.स. २०७३ सालम दाङके घोराहीम कैगिल । आाबक बहस अनुसार देवनागरी लिपिम स्वर वर्ण १३ ठो व्यञ्जन ३६ ठो वर्णमध्ये भाषा ल्याब टेस्ट कैक स्वर वर्ण १२ ओ व्यञ्जन वर्ण २५ ठो केल निर्धारण हुइल कना जुन मान्यता आइल । एक धारके लेखक हुक्र यहअनुसार प्रयोग कर्ल । क,ख,ग,घ,ङ, च,छ,ज,झ,ट,ठ,ड,ढ,न, प,फ,ब,भ,म,य,र,ल,व,स,ह यी मेरके वर्ण निर्धारण कर्ल । दन्त्य व्यञ्जन वर्ण त,थ,द,ध, उच्चारणम निआइल ओहमार निबेल्सना जुन अभियान अनुसार गोरखा पत्र दैनिकके थारू भाषा पृष्ठ संयोजक डा. कृष्णराज सर्वहारी, लावा डग्गर त्रैमासिक पत्रिकाके प्रधान सम्पादक छविलाल कोपिला लगायत कुछ संघरेन जस्टह बोल्ठी ओस्टह लिख्ना अभ्यास कर्ल । और पक्षक वर्ण निर्धारणम दन्त्य त थ द ध निरसेफे यकर प्रयोग हुइ परल ओ आगन्तुक शब्द जस्तह प्रयोग बा ओस्टह बेल्सना । ओसहख श, ष, पञ्चम वर्ण ञ,ण, संयुक्त वर्ण क्ष त्र ज्ञ ,फे प्रयोगम आइठ कना मान्यताले थारू मानक भाषाम एक मेरिक गर्मागरम बहसले ठाउँ पाइल । यी वर्णके प्रयोग छोर्लसे त अर्थम बुझाइम समस्या आइसेकी कना हो । आबक बहसअनुसार थारू विद्वान हुक्र यी बातम कुछ लेना कुछ देना सहमतमा आइसेक्ना बटोइल बाट । आफन भाषाम निरहल और भाषासे सापट लिहबेर जस्टह बेल्सल बा , ओस्टह लेह सेक्जाइ कना बातम एक मेरिक बुझाइ बा ।
ओसिख त नेपाली भाषाम फेन वर्ण विज्ञान अनुसार कथ्य वर्ण जम्मा २९ ओ स्वर वर्ण ६ ठो किल निर्धारण कैगिल बा । प्रयोगम त सक्कु आइल बा । सक्कु वर्ण बेल्सटिकी मौलिकपन निघटी कना बुझाइले विवाद पर्ल बा । यकर समाधानके लाग फेनसे सक्कु सरोकारवाला विद्यार्थी, बुद्धिजीवि, भाषाविद बैठ्ख आघ बर्हलसे निकास कर सेक्जाइ ।
३. विविध मान्यता:
भाषा परिवर्तनशील रहठ । समयके मागअनुसार भाषा परिवर्तन हुइटी रना चिज हो । भाषा आजके काल्ह परिवर्तन निहुइठ । भाषा परिवर्तन हुइना शताव्दी लाग स्याकट । जस्त कि भानुभक्तकालीन नेपाली भाषक रुप ओ आबक नेपाली भाषक रूपके तुलना कर्लले धेर फरक पैबी । ओसहख मानक भाषाके बहसम विभिन्न मान्यताके जन्म हुइठ । हाल थारू मानक भाषाके बहसम फेन अस्तह मान्यताके जन्म हुइलबा ।
१. गोरखा पत्र दैनिक पत्रिकाके थारू पृष्ठ ओ लावा डग्गर त्रैमासिक पत्रिकाके थारू भाषक लिखाइ ओ महेश चौधरीक टिप्पणी,
२. दन्त्य त,थ,द,ध उच्चारण निआइठ जस्टह बोल्ठी ओस्टह लिख्ना पञ्चम वर्ण ञ,ण सटाहा न से काम चलैना संयुक्त वर्ण क्ष,त्र,ज्ञ के सटाहा छे, ट्र, ग्या उच्चारण अनुसार लिख्ना मान्यता ओ आगन्तुक शब्दह फे आफन उच्चारणअनुसार लिख्ना,
३. लौव पुस्ताम त, थ, द, ध, वर्णके उच्चारण फे आइठ । यिही फे बेल्सना कना मान्यता,
४. भाषा समृद्ध बनाइक लाग और भाषासे सापट आगन्तुक शब्द लिह ब्याला जस्तक प्रयोग हुइल बा ओसहख लेना ओ आफन मौलिक शब्द पहिचान कैक जस्टह बोल्ठी ओस्टहख बेल्सना मान्यता जन्मल बा ।
५. जे जहाँक लवज,रुप, शैली अर्थात भाषिका बा ओह अनुसार लिख्लसे थारू भाषा सुरक्षित रही कना मान्यता ।
आब फेनसे असिन मेर मेरिक मान्यताह कसिक एकरूपता लन्ना हो । बहसके निक्र्यौल ओहर जाइ परल । यी विविध मान्यतामध्ये कौन रुप ठिक बा त उहीह सहजताम लान परल । निपुगल चिजह ठपठाप पार परल । पश्चिह्वनके एक मेरिक उप्रक मान्यताम पूर्वक संघरेनके धारणा का बाटिन उ फे बुझ परल ।
४. बहस ओ अन्तरक्रियाके कमि:
वास्तवम मानक भाषा बनैना काम लिरौसी निहो । मानक भाषा बनल और और भाषक इतिहास पहर्बी कलसे धेर समय लग्लक भेटैबी । कथ्यम केल सिमित रहल हमार थारू भाषाके लेखाइ अभ्यास हुइलक धेर निहुइल हो कलसे बहस, छलफल, अन्तरक्रिया एकदम कम हुइल बा । यकर नेतृत्व के कर्ना । भाषा आयोग, प्रज्ञा प्रतिष्ठान, थारु आयोग असक निकायम थारूनके असिन समसामयिक विषयम बात बख्रा आघ बह्रैना लिडरके कमिके कारण मानक भाषाके लिक पक्र निस्याकठो । थारुनके छाता सङ्गठन थारू कल्याण कारिणी सभा भर्खर चासो देखाख बहसके थालनीले फे सकारात्मक मान सेक्जाइठ । आब विभिन्न पत्रपत्रिका, व्यक्तिगत युटुब मिडियामसे बहस ढिक्टी बा ऊ निरन्तर चल्ना चाहिँ ओ निचोडम पुग्ना जरुरी बा ।
५. आधिकारिक शब्दकोश ओ व्याकरणके अभाव:
मानक भाषाके लाग सबसे बल्गर पक्ष कलक व्याकरण ओ शब्दकोश हो । हमार थारू भाषाम शब्दकोश ओ व्याकरण निर्माण एकदम कम मात्रम लिख्गिल बा । थारू भाषा संस्कृतिके अध्येता डा. गोपाल दहित, संस्कृतिविद अशोक थारूके शब्दकोश ओसहख महेश चौधरीक लिखल व्याकरण, डा.दहित व्याकरण अत्यन्त न्युन संख्याम पोष्टा प्रकाशित हुइल बा । ओसहख पूर्वीया थारु भाषाम फे शब्दकोश ओ व्याकरणके अभाव बा । आब सरकारी निकाय या थारू छाता सङ्गठन थाकसके नेतृत्वम योजना बनाक विज्ञसहितके टोली गठन कैक आधिकारिक शब्दकोश एवम् व्याकरण निर्माणके टडकारो आवश्यकता बा ।
६. संस्थागत नेतृत्वके अभाव:
कोनौ फे काम करक लाग नेतृत्वके आवश्यकता परठ । हमार पूर्खाओ आफन समाजक विकासक लाग नेतृत्व करुइया गाउँ गाउँम बरघर्या, अघ्वा, ककन्डार छन्ल । हमार धर्म संस्कृतिके संरक्षण कर्ल । ओसहख आबक अवस्थाम थारूनके मानक भाषाके विषयह घनिभूत रूपम कार्यक्रम कर्ना, बहस कर्ना, छलफल चलैना आघ बह्रैना कामक नेतृत्व कर्ना संस्थागत नेतृत्वके अभाव खट्कल बा । छिटपुट रूपम व्यक्तिगत एवम् थारू साहित्यिक म्यालाके अभियन्ता डा. कृष्णराज सर्वहारी, शुशिल चौधरी, छविलाल कोपिला लगायतके कुछ अभियन्ता हुक्र मानकता विषयम जुन बहस चलैल यी स्वागत योग्य बा । यकर आलावा कौनो सरकारी निकाय और संस्थागत रूप बहस, छलफल निहुइ सेकल । ज्याकर कारण थारु मानक भाषा लिक पक्र निसेक्ल हो ।
समाधानके उपाय:
नेपालके संविधान २०७२ के भाग–१ के धारा ६ म नेपालमा बोलिने सबै भाषा राष्ट्र भाषा हुन् । धारा–७ के उपधारा १ म चाहि देवनागरी लिपिमा लेखिने भाषा नेपालको सरकारी भाषा हुनेछ । उपधारा–२ मा नेपाली भाषाका अतिरिक्त प्रदेशले आफ्नो प्रदेशभित्र बहुसङ्ख्यक जनताले बोल्ने एक वा एकभन्दा बढी अन्य राष्ट्र भाषालाई प्रदेश कानुनबमोजिम प्रदेशको कामकाजको भाषा निर्धारण गर्न सक्नेछ कना व्यवस्था कर्ल बा । यद्यपि भाषा लोप हुइटी जैना क्रम जारी बा । सरकार नेपाली भाषा बाहेक और भाषाह प्राथमिकता देह नैस्याकठो, चासो निदेलहो ।
भाषा विज्ञानके हिसाबसे हरेक भाषा दश÷दश कोशम फरक हुइटी जाइठ । हरेक भाषाम विविधा रहठ । विविधता भित्तर एकता खोज्ना नै हमार मानक भाषा बनैना उद्देश्य हो । भाषा बल्गर एकताके आधार हुइलक कारण हमहन पूरुबसे पश्चिउ जोर्ना कडी फे हो । जे जहाँ ब्वालटी उ रुपह मैया लग्ना स्वभाविक बात हो । आबक अवस्था कलक उहीसे उपर उठ्ख थारूनके एकठो डौरी (पघा)म आइ कना हो । भाषा विज्ञ हुक्र पूरुब झापासे पश्चिउ कञ्चनपुरसम एकठो मानक बनाइ कहट । तर कोइ पश्चिह्वा थारु भाषाम एकठो बनाइ, पूर्वी क्षेत्र सप्तरी झापासम एकठो ओ मध्य तराईम एकठो कना जुन बहस आइटा । यी भेगीय क्षेत्रीय धारणा हो । थारू भाषाके प्रयोग त हमार पूर्खा हुक्र जुग जुगसे समाज व्यवहार चलाइक लाग कर्टि आइल । थारू लोक साहित्य, बट्कोही, कहनी,गीतबास, मुखाग्र कहटी, सुनैटी अइल । नेपालम थारू भाषाके लिखित रूपम बेल्सलक फे भर्खर पाँच दशक पुगता । आझुक परिवर्तनशील समयम हम्र आफन भाषाम एकजुट होक मानकता बनाइ निसेक्लक कारण समस्या उत्पन्न हुइल बा ।
मानक भाषाके विषयम सहमति बनाइकलाग त,थ,द,ध वर्ण फे लिह परी काखर कलसे मानक बनाइ ब्याला लिखित इतिहास फे महत्व राखठ । हम्र जुन लेख्य अभ्यास कर्टी अइली । समाजम वाकर प्रयोग हुइल अवस्था बा । पूर्वीया थारूनके उच्चारण त थ द ध फे वर्ण प्रयोग हुइल अवस्थाम हम्र साक्किर मन निकराक चाक्कर मन बनैना जरुरी बा । हमहन जोर्ना माध्यम कलक त भाषा जो हो ओहमार भाषा त बोधगम्य हुइ परठ । भाषा कना विषय त जटिलमसे सरलता ओहर जाइठ । भाषाम आगन्तुक शब्द जस्तह प्रयोग करल बा ओसह लिह परी । काखर कि अर्थ भाषाके आत्मा हो । हम्र आफन उच्चारणम बदल्ना हो कलसे कह खोज्लक अर्थ प्रदान निहुइ सेकी कनाहस लागठ । बेनसे हमार ठेट थारू भाषा बेल्सना निमाङ्ग ,मौलिक शब्द जस्ट बोल्ठी ओस्टह प्रयोगम लानी । जस्त कि डेह्री, डोक्नी,कुठ्ली,गुर्टा,हरढावा असक ध्यानक शब्द पहिचान कैक अर्थीकरण, परिभाषिकरण करी । और भाषक ओ हमार थारू भाषक समानार्थी शब्द पहिचान करी । चाउर फटक्कख चाउरमसे धान अल्गाई । हमार आफन लिपि निहो । हम्र देवनागरी लिपिसे काम चलैल बाटी । ह्रस्व दीर्घके बातम छलफल कैक शब्दकोश, व्याकरण बनाई । व्याकरण बनाइ ब्याला और भाषक नमूना आधारफे लिह पर्ना जरुरी हुइठ ।
मानक बनैना हो कलसे एक्ठो बनैना सबसे मजा देख्जाइठ । तर उ सम्भव निहो कलसे तल्कालके लाग पूर्वीया थारू लेखन शैली के माध्यमसे पूर्वक संघरेन सहमतिम आसेक्ल बाट । रहल पश्चिह्वा थारूके विषय । यी विषयम फे हम्र मानकताके विषयम जुन विवाद, समस्या उत्पन्न हुराखल । ओम केन्द्रित होखन मध्य मार्ग बनाक जाइ । आबक अवस्थाम थारू विद्वान, बुद्धिजीवि, भाषाविद, सरोकारवाला हुक्र लागल बाट । थारू मानक भाषाके विषय लिक पक्रल बा । गर्मागरम बहस चलल बा । थाकसफे जुम भर्चुअल बहसफे निरन्तरता देल बा ।
जे लिखि टे जिटी कहसक लिख्टी कि जिट्नासे फे सरल, सहज, सम्प्रेष्य कसिक हुइटा । सबजन कुन मान्यताह स्वीकृति देहट । कसिक सर्वमान्य हुइटा । सबसे पैल्ह वर्ण निर्धारण करी , शब्दकोश निर्माण करी, शब्दकोश बनाइ ब्याला शब्दके वर्गीकरण करी । शब्दभण्डार अन्तर्गत श्रुतिसमभिन्नार्थी, अनेकार्थी, पारिभाषिक शब्द, पुलिङ्गी, स्त्रलिङ्गी, नाउ, सर्वनाम, विशेषण, क्रियापद, अव्यय पद आदि विविध भाषिक व्याकरणिक कोटिके कुन कुन शब्दह कसिक बेल्सना कैक व्याकरण निर्माण जुटी । आगन्तुक शब्दबिना भाषा समृद्ध हुइ निस्याकट । आगन्तुक शब्दह हमार थारु भाषाम बेल्सबेर कसिक प्रयोग करी कना बातम एक मत हुइ पर्ना जरुरी बा ।
जय गुर्बाबा !