थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
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[ वि.सं २४ भाद्र २०८१, सोमबार ]
[ 09 Sep 2024, Monday ]
‘ जितिया कथा ’

जीतवाहन

पहुरा | ३ आश्विन २०७७, शनिबार
जीतवाहन

‘लो री पवनहरीह काथा सुने बैठह, यापन दुधपुत लेले ।’ — धनुबाण डेखैटी, कुछ कटी तीन पटकचो जग्गेके फन्का लगैलै गाउँक् सम्हनीया (कटुवाल) । अनेक अनेक सामग्रीले सजल रहे जग्गे । पीप्परक कन्टाहे गाडके पीप्परक रुखवक् परिकल्पना करल रहे । बाँसके चोक्लासे बनाइल चिरैक ठाँठहस डेखैना चिज पीप्परक डहियाके झुलाइल रहे । उहे ठाँठ्मे चिल्हरियक परिकल्पना कैके बनाइल माटिक ढेल्का फेन ढारल रहे । स्याल्निके प्रतिक माटिक ढेल्काहे भर उहे पीप्परक जरमे ढारल रहे । हम्रे सक्कु व्रतालु उहे जग्गे वरपर कथा सुनब कहिके डमाडम बैठल रही ।

कुछबेरमे जिम्दारबा आके आमुन्ने सामुन्ने हुइनामेरिक बैठ्लै । ओ सुरु हुइल हुँकान मुखारबिन्दसे जितीयाके कथा । “एक परिकल्पनामे उचरिङवा दानो ओ मुसरीया दानो गाउँ बठाइट टहैं । अपन घर बनाइक लाग घरसाङ्हा नानेक लाग उ वनुजाओर जाइटहिट । उचरिङवा दानोहे खोल्वा नांघके वनुवा जैटी उहे खोल्हवामे नुहैना टयारी करटी रहल मुसरिया दानो देखल ओ बोलाके कहल—

‘कल्की से उचरिङवा दानो कहवाँ जादै हो ?’ खोल्हवा नँघ्टीरहल उचरिङवा दानो टक्कसे रुकल ओ कहल— ‘कल्की से मुसरिया दानो मोई वनुवा जाइटु, घरसाङ्हा नाने ।’

— ‘मोर लाग दतियोन नान डेहो न ।’

— ‘अपन घरेक लाग खाम्हा, बेलसी, खर, पाट नन्टीनन्टी धरमर हुजाइ, कैसिक टोर लाग दतियोन नानु मै ?’

— ‘नैनन्बेटे अट्रा बाट बुझ । टोर घरसाङ्हा काटके दतियोन बनाइम मै ।’ बेवास्ता करटी उचरिङवा दानो खोल्हवा नाघल । वनुवा पुगके अपन घर बनैना चाहनाजत्रा सामग्री बोकके लौटल । खोल्हवा किनारमे मुसरिया दानो अस्रा लागके बैठल रहे । नकटिक दतियोन नै नन्लेरहे उ । दुनुबीच कहिककहा हुइल । आक्रोशित हुके दुनु जे पट्की भिरलैं । उचरिङवा दानो मुसरीयादानोहे मार गिराइल । मुसरिया दानोके छाला काढके अपन गाउँक् क्षेत्रफल विस्तार करल ओ शहरमे परिणत फेन । उहे शहरके राजमे दरल रहिट हर्दत कुँवर । हरदत कुंवरके छावा शिवदत कुंवरके भोज हुइना प्रसंग से कथा मूल रुप लेहल । राजा अपन लग्गेक सक्कु प्रजाहे डारु बनाइक लाग चाउरके खुडी पठैले रठै मने अप्ने लग्गेक छिमेकी मस्वासी बुह्रियाहे फंचका अर्थात् खुडी पठाइक भुलल रहठ । जस्टे काल्ह भोज, आज किल उ बुह्रियाहे पंmचका पठाइठ । उ पंmचका, सुखाके पकाइल पश्चात् किल डारु बनाइक लाग योग्य हुइठ । मने दुर्भाग्य, मस्वासी बुह्रिया फंचका सुखैना बेलामे पानी आइ लागल । टबसम गाँउक् सबजे दरवारमे डारु पठा सेकल रहिट । पानी आके मस्वासी बुह्रिया डारु बनैना असम्भव डेखल । मस्वासीहे जैसिक हुइ डारु बनैना रहे । फंचका सुखाइक लाग किल हुइलेसे फेन ओकर अंग्नामे घाम चाहल रहिस । टबे त सूर्य भगवानसंग सेज भाकल करना बाध्य हुइल । सूर्य भगवानसे बुह्रियक अनुनयके कदर हुइल टब किल फंचका सुखैना सफल हुइल । जस्टे असम्भव सम्भवमे परिणत हुइल  । फलस्वरुप दरवारमे डारु पठाइल । मने अप्ने सूर्य भगवानहे सेज भाकल करलमे भित्रेभित्रे डराइटहि । भाकल करल अनुरुप अपन सुट्ना ठाँऊ, घरअंग्ना लिपपोत कैके चोख्याइ परना हुइल । काहेकि स्वयं भगवान त्यहाँ प्रकटहुके ओकरसंग एकरात विटैही । ओक्रेहे बन्दोवस्तके लाग अपन सुत्ना खटियाँमे दरी बिछइली उ उप्परसूर्ती, तमाखु, पान, सुपारी आदि ढरली । भगवान आइना डगरमे भुवा छिट्ली । डरसे अप्ने छिमेकीके घरमे बास बैठे गैली । यहाँ भगवान मध्यरातमे मस्वासी बुह्रियक अंगनम प्रकट हुइलै । घरेक भित्तर प्रवेश करलै । मने मस्वासी बुह्रियाहे नैडेख्लै । उपाछे खटिया उप्प्र ढारल पान, तमाखु, सुपारी खाके भगवान बाहेगिलै । सोच्लै– ‘मस्वासी बुह्रिया रहटटे मनोकांक्षा पुरा हुइनामेरिक कुछ बरदान डेटु मने ठीके बा कुछ न कुछ डेके जाइपरल ।’ उपाछे ओहे बुह्रियक घरेक पाछे मुत्र बिसर्जन करलै ओ बिलिन हुइलै ।

विहन्ने मस्वासी बुह्रिया अपन घरे आइल । देख्ली, अपन छिटल भुवामे खराउके चिन्हा परल । जिहिसे भगवान आइल प्रमाणित हुइल । भगवान आइल मने अपन घरेम नैरहल ओरसे उ बुह्रिया मनमने दुःखी हुइली । पछ्टैटी, बिहानके खाना बनैना तयारीमे जुट्लिी । मने तिना नैपैली । छिमेकमे तिनाक लाग भनसुन करली । कुछ नैपैली । कनि का हुइलिस ! घरेक पाछे गइल । डेख्ली हरियर लहलहइटी करल लट्टेके साँग । अकस्मात् उ साँग डेख्के बुह्रिया छक्क परल । टुरली ओ पनाके पकाके भात संगे खाइल ।”

“दिन बिट्टी गिल । मस्वासी बुह्रिक पेट बह्रे लग्लीस । गाँउलियन सुईघुई करे लग्लै । बुह्रिया बिचलित हुइलागल । कौनो अनिष्ट कदम उठाइ कि कहिके भगवानहे फेन सुर्ता हुइल । बुह्रियक सपनामे आइल– ‘घरेक पाछेक जामल साग टोर लाग बरदान रहे । टोर पेटके सन्तान ओक्रेहे उपज हो । टबे सम्हारके ढार, टोर लाग एकदिन गाछि हस संघरिया ओ हाठिक् लाठी बनी ।’ कहिके आकाशबाणीके साथ बुह्रिया जागल ओ उहे करल । फलस्वरुप एक बालकके डाइ बनल । जोन बालक समयके रफ्तार से हली बह्रटी गिल । बालक अत्यन्ते चमत्कारी, तेजश्वी, प्रतापी ओ वीर रहल खुलासा हुइटीगिल ।”

“एकदिन गयरवन गैया चराइ जाइबेर धनुवाँण मरना होडवाजी रहटहै । अपन अपन धनुसे एक चिन्हमे बाण मारटहिट । मने केक्रे फेन उ चिन्हमे बाण प्रहार करे नैसेकलै । जोन डुरेसे मस्वासी बुह्रियक छावा डेखटेहे । उ बालक बाण प्रहार करटी रहल लवण्डनके लग्गे जाके कहल– ‘मर्केफेनी एक मौका दे न रे । मोईफेन प्रयास कैके हेरम ।’

अत्रा सुनलपाछे सवजे हासके खिल्ली उरैटी कलै– ‘हम्रे टे सेकट नैहुइटी । तोई कौन मर्दके बेटा हुइस् रे ! हमारसंग मुकाबिला करे खोजठ ?’

‘कथिक मर्दको बेटा रे ! ए, इय त बिना बापक नणेठ (फ्याकल) पो टे ! तोई जाबो नाथे छुसी, पउलासे का सेक्बे रे ! ठोरचे ओहोर ।”– कटि औरे घच्याइल । औरे गोठ्ला लवण्डन हाँसे लग्लै ।
‘दे न दे रे एकचो हेरु । इय कपुत धनुबाण सही निसानामे प्रहार करे सेकठ कि नैसेकठ ! हम्रे फेन हेरि न रे ।’– कटि उ हुलके एक नाईके लवण्डा नाकेक् पोर्रा फुलैटी अपन धनुबाण डैडेहल ।

जब उ लवण्डासे बाण प्रहार हुइल । यहाँक सक्कु गोठाला चकित हुइलै । निसाना ठिक ठाउँमे लागल रेहे । उपाछे टे और का खोज्ठे काना, आँखी हुगिल ! सक्कु गोठालाहुक्रे ऊ उप्पर उटरलै ।

‘ए पउला, (कपुत) ! तोर इय हिम्मत ! तोरसे यी कैसिक सम्भव हुइल हँ रे ?’

ओमेक नाईके लवण्डा ओकर घेच्चार पकरटी कहल– ‘हम्रे करे नैसेक्ना काम टै कैसिक करे सेकले
रे ? तोई कुने हुइ ? तोर का पहिचान बा रे ? कौन लडभङ्गाके छिर्का हुइस् ? लो कह् ! टुहिहे था नैहो
कलेसे जा तोर महतारीहे पुछ । तोर बाप के हो ?”

***

सच्मे कटुसत्य ! के हुइ मोर बाबा ? अभिन सम खोई मै डेख्लु ! बाबाक् मायाँ कैसिन रहठ ? खै मै
भोगलु ? मोरपहिचान का हो ? गम्भीर सोचमे डुबट उ लवण्डा अप्नही अप्नही धनुबाणरुपी प्रश्न चिन्ह बनल । घरे पुगलपाछे गोठालामे हुइल बृतान्त रुइटी सुनाइल । गोठ्लनके सक्कु प्रश्नके बाण मस्वासी बुह्रियक छातीमे बर्सल । आखिर उ बुह्रियक मुटु छियाछिया हुगिल । रगतके छिटाके माध्यमसे सत्य तथ्य छरपष्ट हुइल– ‘तोर बाप ओहे ओ जो बरटी उठ्ठै ओ बरटी डुब्ठै ।’ आकाश ओर डेखैटी– ‘उह् हो हुइट् तोर बाप । सूर्य भगवान् ।”

बालक हैरान हुइटी बोलल– ‘मई भेटे चहठु । मोर सक्कु प्रश्नके जबाफ उहिनेसे सुन्न चाहटु ।’ हठ करलै बालक । मस्वासी बुह्रिया छावाहे जत्रा सम्झैलेसे फेन धरे नैपैली । आखिर पठैना बाध्य हुइली ।

बिहान सक्करही, डगर किनार जामल साग ओ कुडिक बनल मिझ्निक पोका बोकके मस्वासी बुह्रियक छावा घरसे बाहरिइल । लम्मा डगर पार करटी करटी उ बालक, बालक नैरहे लौंरामे परिणत हुइल ओ लौंरासे वयस्क युवकमे फेन । यिहे बिच डगरमे उ युवक, अनेक समस्यामे पिसल नरनारी, जीव जन्तु, वनस्पति आदि संग जम्काभेट हुइटी, ओइनके बिलौना सुन्टी टमान सन्देश बोकके अपन पिता सूर्य भगवानसंग भेट करना सफल हुइल । अपन पिता सूर्य भगवानके दाहिन जाँघमे बैठ्टी स्वयं अपन नाम ओ पहिचान मागल । डगरमे मिलल टमान समस्याके निराकरण ओ ओइनके लाग उपयोगी सन्देश माग करल । सूर्य भगवान अपन छावक् नामाकरण करटी जगत उपयोगी सन्देश डलै ओ छावाहे बिदा कैलै । पितासे अपन नाम ओ पहिचान प्राप्त हुइलपाछे उ युवक फुककटी घरेओरके डगर पक्रल । लौटेबेर डगरमे मिलल सक्कु नरनारी, जीव जन्तु, वनस्पतीके समस्याके समाधान बटैटी ओ अपन पिताके सन्देश सुनैटी– ‘अपन नाम जीतवाहन रहल ओ जीतीया पर्वके दिनमे यिहे नामसे आस्था ओ विश्वास पूर्वक ब्रत बैठ्लेसे वर्तालुहुकनके मनोकांक्षा पुरा हुइना वटाइल । ओ घरे लौटल ।’

“आखिरीमे मस्वासी बुह्रियक छावाहे ओकर अपन आँट, साहास ओ दृढ अठोटसे पराक्रमी, तेजश्वी ओन विजयी बनाइल । ओहे तेजश्वी युवकके पराक्रमके गाँथा ओ सूर्य भगवानसे पठाइल सन्देश बमोजिम सक्कु राज्यबासी जनमानससे जीतीया पर्व मनाइटै हालसम फेन । जीतवाहनके नाममे सक्कु नारीहुक्रे जीतीया पर्वके व्रत बैठटै जैसिक टुहरे व्रत बैठल बाटो । यी परम्परा सदियौ से चल्टी आइल हो । टबे अपन रितीरिवाज, संस्कृति जोगाइक परठ, नैछोरेपरठ ।”— कटी हम्रिहिन सबओर हेरलै जिम्दारबा । हम्रे सबजे मासके दालरुपी अक्षेता जग्गेओर छिट्ली । जिम्दारबा लोटासे पानी पिटी पुनः कथाहे आघे बह्रैलै ।

यिहे जीतवाहनके नाममे राजा हरदत कुँवरके राज्यमे रहल सक्कु नारीहुक्रे जस्टे लग्गेक जंगलकिनारे बैठल पोथी चिल्हार ओ स्याल्नि फेन जीतीया व्रत बैठल रठै । यी दुनु जंगल किनारे खोल्हवा लग्गेक दुधाशंख पीप्परक कन्टी ओ जरमे अपन बासास्थान बनैले रठै । सक्कु नारी जस्टे यी दुनु फेन उपासके अघिक्ला दिन नुहाईधुवाई कैके चोखो खाना खैले रठै ।

उपासके दिन, बिहन्ने हरदत कुँवरके चोला बदलल । गाँउ शोक मग्न बनल । टबफेन गाँउक् नारीहुक्रे उपबासमे रहिट । चिल्हरिया ओ स्याल्नी फेन कुछ नैखाके आस्था पुर्वक उपस्लै । दिनभर दुनुजे लुकके गाँउगाँउ जाके जीतीया पर्वके झम्टा, बदहागीतके रमाईलोमे समय ब्यतित करलै ।

साँझ परलपाछे बदहा ओ जितीयाके गीत गुनगुन करटी अपन अपन बासास्थानमे लौटलै ।
ओहोर उहे लग्गेक खोल्हवामे हरदत कुँवरके लास जरटेहे । स्याल्नीके डोंडरमे लासके मगमग गन्ध आइटहिस । व्रत बैठल स्याल्नी आब भुखाइ लागल ।

— “अरी चिलोदिदी रात कस्के काटके री ? बरु भुखवा बिस्रावके, बदहा गाओ न !”

— “बन्तई शीरीनीया बहिनी गाओ न तौ !”

“जब स्वामी जईबे पुरुवे रे वनिजिया हरे

ओतहिसे यानी रे दिहे टिकुली रे सनेसवा २

जाहुँ जुग जियबो रि धनि पलटी घर रे आई

हरि ओतहि से यानि रे देबो टिकुलि रे सनेसवा २

जाहुँ स्वामी जईबे रे पछिए रे बनिजिया

हरे ओतहुसे यानि रे दिहे कजरा सनेसवा २

जाहँु जुग जियबो रे धनि पलटी घर आई

हरि ओतहिसे यानि रे देबो कजरा रे सनेसवा २

जब स्वामी जईबो रे उतरे बनिजिया

हरे ओतहिसे यानि रे दिहे चुरिया रे सनेसवा २

जाहँु जुग जियबो रि धनि पलटी घर रि आई

हरि ओतहि से यानि रे देबो चुरिया सनेसवा २

जब स्वामी जईबे दखिने बनिजिया

हरे ओतहिसे यानि रे दिहे सिनुर रे सनेसवा २

जाहँु जुग जियबो रि धनि पलटी घर रि आई

हरि ओतहि से यानि रे देबो सिनुर रे सनेसवा २”

उ दुनु दिदीबहिनिया रातमे एक–आपसमे अपनअपन स्थानसे जीतीयाके बदहा गीत गैटी रात गुजारके बैठल रहिट । घरिघरी गप्पीसप्पी फेन मारिट । मध्यरात हुइल । रात छिप्प गिल रहे जरटी रहल लास छोरके गाँवलयन गाँउ लौटनै । यहोर स्याल्नी भुखले चुरचुर हुइल रहठ ।

रुखुवाउप्पर ठाँठ्मे कैठल चिल्हरिया दिदी जागल बाटी कि निडाइल बाटी कहिके स्याल्नी ‘चिलो दिदी ! चिलो दिदी !’ कहिके पुकारल । ठाँठ्के चिल्हरिया जागल रलेसे फेन नैसुनल हस करली । उहिहे अपन बहिनिया स्याल्नीके चर्तीकला हेर्ना रहे । चिल्हरिया नैबोललपाछे स्याल्नीहे दिदी निदागिल आभाष हुइल । सुटुक्से डोंडरमनसे बाहरिइल । खोल्वकामे छभ्लेङसे कुडल । जिउ भिजाइल । ओ जरटी रहल लासउप्पर जिउ झट्कारल । आगी बुटल । ओ लासहे डोंडरमे नान्के पेटभर खाइल । उप्पर चिल्हरिया सक्कु पटा पाइटी रहे ।

कुछ काल पश्चात् उ दुनु दिदीबहिनियक चोला बदलल । उहे देशमे, राजाके पोखरीमे उ दुनु फुला बनके जमलैं । चिल्हरिया लाल गुलाव हुके फक्रल कलेसे स्याल्नी उज्जर कर्चि फुला । एकदिन राजा ओ मन्त्री पोखरीमे स्नान करटी रहल बेला उ फुलहे डेख्लै । राजा लाल गुलावहे ओ मन्त्री उज्जर कर्चिहे अपनअपन कोठामे सजैलैं ।

जब राजा ओ मन्त्री रातके निदाइट । उ दुनु दिदीबहिनिया सुन्दर कन्यारुप धारण कैके अपन–अपन राजा, मन्त्रीके सेवामे जुटिट । एक रात दुनु राजा ओ मन्त्री सुटुक्से चाल पैलैं । फुलासे सुन्दर बाला धारण कैके राजा ओ मन्त्रीके सेवामे जुटल पश्चात् एकडम जस्टे दरवारके सरसफाई, चुल्हाचौकाके व्यवस्था करटी रहल अवस्थामे राजा ओ मन्त्री अपन–अपन फुलाहे बल्टी रहल बेला पानसमे झोसके नष्ट करलै । उ बालाहुक्रे पुनः अपन रुपमे परिणत हुइ नैसेक्लैं ओ दुनुजाने राजा ओ मन्त्रीके अर्धा·ीनि हुके बैठ्लै । चिल्हरिया ‘रानी’ बनल कलेसे स्याल्नी ‘मन्त्राणी’ । दिन विट्टी गिल । रानीक् सातजाने राजकुमार जन्मलै सकुसल ओ हृष्टपुष्ट हुके हुकेलै मने मन्त्राणीके सन्तान जन्मटी करटी करलै । रानीके सात राजकुमार सकुसल मने अपन साटुजाने नैरहल ओरसे मन्त्राणीहे सहे नैसेक्नना हुइल । अपन दिदी रानी संग निहु खोजे लागल । ‘हुई न हुई टहि मोर सन्तान खैले ।’ कहिके आरोप लगाइ लागल । रानी बहिनियाहे धेर सम्झाई बुझाई करलेसे फेन नैमानलपाछे अपन राजकुमार बहिनिया मन्त्राणीहे सुम्पे चाहल । टबफेन मन्त्राणी निहु खोज्टी रहल । रानी अपनहुकनके पूर्व जन्ममे हुइल घटना सम्झाइ खोजल । टब फेन नैबुझल । आखिर उपाय नैलागल । रानी गाउँक् सक्कु गाउँलेहे भेला कराइल । कोरेक लाग फरुवा ओ दुईजाने रुख चह्रे सेक्ना माहिरके व्यवस्था करल । राजपरिवार ओ सक्कु मास जंगलओर लागल । खोल्हवा नाघलपाछे जंगल सुरु हुइटीकिल दुधाशंख पीप्परक जरमे पुग्लै । जहाँ उ दुनहुनके बासास्थान रहे, पूर्व जन्ममे । उहे पीप्परकउप्पर दुईजाने रुखहरहे चह्रे लगैली जहाँ चिल्हरियक ठाँठ् रहे । ओ दुईजहनहे पीप्परक फेद कोरे लगाइल जहाँ स्याल्नीके डोंडर रहे । दुनु काम एकसाथ हुइल । पीप्परक उप्परसे चिल्हरियक ठाँठ् सकुसल टरे नानगिल । उहाँ मासके दाल हरियर हुके मौलाइल रहे कलेसे डोंडर खोरके हड्डी हड्डी किल किलल । रानी अपन बहिनिया मन्त्राणीहे उ सक्कु अंग्रैइटी उ पूर्व जन्ममे करल करतुतहे चित्रपटमे देखाइहस छर्ल· पारल । मन्त्राणीहे, अप्ने रीतिरीवाज ओ धर्मपालना कैके विधिवत व्रत नैबैठल ओरसे यी हविगत भोगेपरल हो कना प्रष्ट हुइल । जिहिसे उहिहे घोर आत्मग्लानी बनाइल । जोन सहनकरे नैसेकल, मन्त्राणीके छाती फाटके देहावसन हुइल ।

अन्त्यमे जिम्दारबा सक्कु वर्तालुहे कुकर्म करलेसे कुभलो हुइना ओ असल कर्म करलेसे भला हुइना सन्देश डेहल ओ समापन करटी कहलै— ‘सुनलहरा–सुनलहरीके सोनक माला, हुकलहराके हुकाक माला, कहलहराके काठक माला, बोल भैया राम राम ।’ कटुवाल बा उठके पीप्परक कन्टीमनसे धनुबाण निकरलैं । ओ धनुमे बाणके ताँदो डारके चारुओर डघैटी जग्गेहे तीन फेरा घुम्के बोल्लै— ‘लोरी पवनहरीह यापन यापन दुधपुत लेले उठह ।’

(चितवन निवासी मनोज अज्ञात टुकी उपन्यासके लेखक हुइट ।)

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