थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत २७ भादौ २६४८, बिफे ]
[ वि.सं २७ भाद्र २०८१, बिहीबार ]
[ 12 Sep 2024, Thursday ]

भाषिक मानकताक बखेरीक बौछार

पहुरा | १७ आश्विन २०७७, शनिबार
भाषिक मानकताक बखेरीक बौछार

भाषा मानव समुदायक कथ्य ओ लेख्य अभिव्यक्तिक प्रतिमूर्ति हो । भाषा बोली वा वाणी हो, बोलीक् लाग आवाज, स्वर चाहठ कलसे, लिखक् लाग अर्थात लेख्य अभ्यासकलाग लिपि, ओ वर्ण चाहठ । लिपिक साहराले वर्ण बनठ, वर्णक साहराले शब्द (हिज्जे) बनठ । हिज्जेके छुटीमुटी रुप वाक्यांश सिर्जठ, ज्याकर स्वरुप कुछ अर्थ बटाइठ । कौनो पुरा वाक्याँश सरल ओ सरस अर्थ ब्वाकठ । कथ्य ओ लेख्य भाषिक हरचाली करसेक्ना हुइलक मार, मनै और प्राणीसे अलग व विकसित ठहर्ल । वाणी बेल्सनिसेक्लसे मनै फे और प्राणी सरह जियपर्ना परिवेश बनठ । उहमार भाषा मानव सभ्यताके सबसे ठुम्रार सैडान मानगिल बा । भाषाशास्त्रीन्के भाषा सर्वेक्षण अन्सार, संसारम हालसम ७ हजार भाषा अस्तित्वम रहल जनागैल बा । हरदिन भाषा लोप हुइना चरणम रहलम भाषाविद्हुक्र चिन्ता फे कर्ठ । एउटा भाषा हेरइना । बिल्लैना कलक उ भाषाम घसमोर्क रलक ज्ञान ओ स्वाद ओ संस्कृति फे बिल्लैना हो । एकठो भाषाम रलक मानवीय भाव ओ सम्पदा और कौनोफे भाषाम हुबहु मिल्ना असम्भव बा, कैक कठ, भाषाविद्हुक्र । आजके राष्ट्रिय राज्यके अभ्यास रलक राजनीतिक संरचनागत परिवेशम भाषा कौनो फे राज्यके बरवार पहिचान मानजाइठ । उहमार, कौनो कौनो देश भाषाक कारण जर्मल देखपरठ, जस्टकी, बंगलादेश । दोस्रा विश्वयुद्ध (१९३९–१९४५) पाछ विश्वशान्ति, विकास ओ मानवअधिकारके उद्देश्यक लाग जर्मल संयुक्त राष्ट्रसंघम फे अंग्रेजी लगायत ६ भाषा (अंग्रेजी, चाइनिज, अरेविक, फ्रेन्च, रसियन ओ स्पेनिस) आधिकारिक कामकाजी भाषा रहल बा । भारत हिंन्दी भाषाहन फे संयुक्त राष्ट्रसंघीय कामकाजके भाषा बनाइपर्ना दाबी कर्टिआइल बा, अन्तर्राष्ट्रिय मञ्चम, महाघटगरक । यिहमसे फे पटा मिलठ कि भाषाके महत्व कट्रा बा, कैक ।

भाषामसे लेख्य लोकसाहित्य हो समकालीन साहित्य सिर्जठ । उह समकालीन साहित्यके अध्ययनसे जुग—जुगके अवस्था ओ परिवेश जानबुझ मिलठ । नेपाल राष्ट्र बन्ना क्रमम भाषाक बरवार भूमिका रहल बा । नेपाल भौगोलिक विविधताक संगसंग, भाषिक ओ साँस्कृतिक विविधतायुक्त देश हो कना तथ्य त घाम जस्ट फटिक ओ फछ्र्वार बा । उहमार नेपाल राज्यके न्यायोचित बनैनाम भाषिक मुद्दा खनगर बा । २०६८ सालक जनगणना अन्सार, नेपालम १२५ जात जाति ओ १२३ भाषा रलक तथ्यांक रहल बा । भाषा आयोगके लौव सर्वेक्षण अन्सार रानाथारु भाषा सहित ६ ठो भाषा पहिचान कैगिल बा । कैयौ भाषाविद्हुक्र नेपालम १ सय ४० से ढेउरनक भाषा अभ्यासम रलक दावी कर्ठ । नेपालम लेख्य अभ्यास रलक भाषा बहुत कम बा । नेपाली, मैथिली, भोजपुरी, अवधि, नेपाल भाषा, राई, लिम्बु, थारु लगायत भाषा लेख्य अभ्यास रलक भाषा हो । हुइना ट २०६२÷०६३ क ऐतिहासिक जनआन्दोलनपाछ, सरकारी दैनिक पत्रिका गोरखापत्र म समावेशी पृष्ठ ३० से ढेउरनक भाषाम पृष्ठ प्रकाशन हुइटी बा । पहिल लोकसाहित्यको पोष्टा छिटपुट रुपम निक्रलसेफे थारु भाषाके साहित्य विकास २०२८ सालसे गोचाली पत्रिका छापगिल पाछ थारु भाषाके लेख्य अभ्यास सुरु हुइलक मानगिल बा । गोचाली पत्रिका अप्नहेम थारु मानक भाषाके प्रारुप मान सेक्जाइ । थारु संस्कृति २०३३ थारु भाषाके फुलरिया जसिन रह । पुरुव झापा से कञ्चनपुरसमके भाषिका समेट्गिल बा ।

थारु भाषाके मानकताके बहस तब—तब जाइल बा, जब थारु भाषाम सरकारी समाचार ब्वाल परठ, पाठ्यक्रम बनाइ परठ । २०५० सालम नेपाली बाहेक राष्ट्रिय भाषाम फे समाचार डेना नीति रेडियो नेपाल लानल ट विवाद सतहम आइल, पश्चिउहाँ लेना कि पुर्विया लेना । बेलाबेलाम डंगौरा दिउखरिया, डंगाहा देसाउरी, चितवनीय, नवलपुरिया, मध्यपुर्विया ओ पुर्विया अस्तट अस्ट सुसुप्त अन्तरसंघर्ष चल्टिआइल डेखपरठ । मोर जानकारी अन्सार जहाँसम् थारु भाषाके मानकताके औपचारिक बहस २०७३ बैशाख ३ से ५ गतेसम दाङके घोराही ओ राजपुरम हुइलक पहिला राष्ट्रिय थारु साहित्यिक म्याला हुइल । जौन म्यालक आयोजन लावा डगर, लौव अग्रासन साप्ताहिक, लगायतके आधा दर्जनसे ढउरनक संस्थाहुक्र संयुक्त रुपम कैगिल रह कलसे मुख्य प्रायोजन जिल्ला विकास समति, दांग कर्ल रह । मै ओ कृष्ण सर्वहारी, उ म्यालक अवधारणा बनैना ओ राष्ट्रिय रुपम संयोजन कर्ना काम फे कर्ल रलही । नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान मातृभाषा विभागके तरफसे श्रवण मुकारुङ फे कार्यक्रमम परगा डबैल रलह । लावा डगरके प्रधानसम्पादक छवि कोपिला, लौव अग्रासनके प्रधानसम्पादक केवि चौधरी, प्रकाशक सन्तोष दहित लगायतके टोली स्थानीय संयोजन कर्ल रलह । उ म्यालाम मै ‘थारु भाषाके मानकताके प्रश्न’कना शीर्षक कार्यपत्र सुनाइल रनहुँ । कार्यपत्र उप्पर बहस छलफल हुइल ।

कार्यपत्रम थारु भाषक विकासके लाग मनगर सोचकेसाथ लेखन शैलीकलाग कैगिल प्रस्ताव असिन कैगिल रह ।

शैलीगत प्रस्तावः

  • थारु भाषाके लिपि आजसम निपागिल ओ पुर्खाओं थारु भाषा लिखव्याला देवनागरी लिपि बेल्सलक ओेर्से ओ थारु भाषाहन भाषाविद्हुक्रफे भारोपेली भाषा परिवार भिट्र ढर्लक ओ भारोपेली भाषा परिवारम रलक, संस्कृत, नेपाली, हिन्दी, मैथिली, भेजपुरी, अवधि, बज्जिका, जसिन रानपरोसके भाषा फे देवनागरी लिपिम थारु भाषा लिख्ना ओ बेल्सना ।
  • देवनागरी लिपिके स्वर वर्ण (१३ ठो) अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं अः ओ व्यञ्जन वर्णम (३६ ठो) क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष,स ह, क्ष, त्र, ज्ञ) बेल्सना ।
  • निमाङ थारु शब्द लिखबेला स्वर वर्णके ऋ, व्यञ्जन वर्णके ञ, ण, त, थ, द, ध, श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ निलिख्ना । मुले, लेल्हारा (आगन्तुक) शब्दके लाग सक्कु स्वर वर्ण ओ व्यञ्जन वर्ण आवश्यकता अन्सार बेल्सना ।
  • आगन्तुक शब्दहन जस्टक मुल भाषाम लिखजाइठ ओस्टहक लिख्ना, मुले उच्चारण थारु निमाङ ध्वनिम कर्ना । जस्टकी थकाली, किताब, विदा, तराजु, धनी, अदालत, निवेदन, अनुमोदन, राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, वनमन्त्री, प्रतिनिधिसभा, राष्ट्रियसभा, सभामुख, उप—सभामुख, नगरप्रमुख, प्रधानसेनापति, फिरादपत्र, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, आयुक्त, राजदुत, लगायत, तयारी, अस्टहक ।
  • थारु निमाङ शब्द जस्टक बोल्कारजाइठ (उच्चारण कैजाइठ) ओस्टक लिख्ना । जस्टकी भोठ्लार, गोठ्लार, खोंट्लार, डोक्नार, ठुम्रार, जंग्रार, टेक्वा, टोक्टा, टिट्ठा, ट्वार टेवार, ठेक्वा, ठेट्कार, डरगर, ड्वाँडर, ढनामन, ढ्याँग, ढ्वाल, ढिलढिल, झट्कार, झोंट्कर, बट्कहर, मन्ख्वार, अन्ख्वार, कनख्वार, टिना, खिडा, सिढा, । आगन्तुक शब्द जस्टक टस्ट लिख्ना कना प्रस्ताव रह । जस्ट ः अदालत, वगावत, प्रधानमन्त्री, सभापति, अस्टहक लिख्ना ।
  • नेपाली शब्दके ‘र’ ओ हिन्दीके ‘और’ के लाग ‘ओ’ लिख्ना । जस्टः थारु ओ मधेशी तराईके बासी हुइट । नेपाली भाषाके ‘तर’ हिन्दीके ‘लेकिन’ शब्दके लाग ‘मुले’ लिख्ना । जस्टः सुकैया आपन मनरख्नीक लाग मंजिरा किनक चाहठ, मुले वाकरठे फुटल कौडी निहुइस् । नेपाली ओ हिन्दीम रलक वा, अथवा, अर्थात हन वा ओ की बेल्सना । जस्ट– यी कि उ, राम कि हरि । करिया वा उज्जर ।
  • शब्द, बाक्यांश ओ बाक्य ब्वाल ओ लिखबेला हुइना उतारचढाव अन्सार ढर पर्ना १३ मेरिक चिन्हा सक्कु नेपाली भाषाम बेल्सअसक बेल्सना । ( , ; ।, ?, !, ः—, —, ९ ०, ९ु ‘‘ु० ९ ू‘‘।।ू०, र, । ूू, ँ ओ ँ )
  • आपन निमाङ थारु भाषक शब्द रहटी रहटी आगन्तुक शब्द निबेल्सना । जस्टः चहकारःचहकिलो, ठुम्रारःगहकिलो, सुग्घरःसुन्दर, टेङ्नारःकडा, दरो, गल्मारः गफाडी । आँखःनैना, ढ्याबरःओठ, पुठ्ठाःकम्मर, चुम्माःम्वाइ, अलारी मनैःबालि उमरिया, चुरियाःचुडी, डारु, मढःरक्सी, लर्काओःकेटाओ, लउर्याओःकेटीन्, झौटीःबार, सावाढानीःतयारी, सपटा सिंगार कैकःसिंगारक, विदासःलतपत, लटापटीःसम्भोग, अस्ट अस्ट ।
  • थारु भाषा लेखन ओ सम्पादन करब्याला आपनठे रहल शब्दकोश बेलस्के भाषिक एकरुपता बनइना प्रयास कर्ना । शैली पोस्टा बनैना ।
  • थारु भाषाके जनबोलीम रलक निख्रल बाट, कहकुट, रहान, बाक्यांश के ढेउरसे ढेउर बेल्सना । जस्टकीः ‘जात जात हो, लोहा घुन खा’ कठ जे, लौलपुरान छोट्का बम्निन्ह्या जन्नी लानक कहाँ खाइ सयाकल ट, मजाक । बाब से पुट ज्ञानी, फाँडाले बझा पानी । बाम भगाक पुस्टा सँवर्ना । गोरेक डेखाइल मच्छी, अहिरक डेखाइल घाँस । मन मन गितटवार कौन, सुट्ल सुट्ल जगवार कौन । पह्रो लिखो कौन काम, हर जोटो धान धान ।
  • प्रकाशन घर अर्थात संस्था ओ लेखक, सम्पादकहुक्र आपन शैली पोस्टा बनैना । उह शैली पोस्टा छपाक प्रचारप्रसार कर्ना ।
  • थारु भाषाम बोल्ना व सडिमान लिख्ना बान बैठैना ।
  • अनुवाद करब्याला निमाङ थारु शब्द ढर्ना ।
  • आपन ठाउँम छापगिल पत्रिका, किताव, जर्नल, पर्चा ओ आउर अध्ययन सामग्री स्याकटसम् सक्कुओर छिट्कैना । थारु भाषक किताब, पत्रपत्रिका, गीत, भिजुअल, सलिमाके व्यवस्थित पुस्तकालय बनैना ।
  • ढेरनक साहित्य लिखगिल ओ लेख्य अभ्यास हुइलक भाषिक समूहम बेलसगैलक सझिया शब्द, वाक्य, अनुच्छेद ओ आख्यानहन आधार बनैना ।
  • लिरौसी जनबोलीओ भाषाहन मानकताके आधार बनैना । अस्टक शिष्ट भाव ओ अर्थ डेना शब्द बेल्सना भाषाहन मान्यता डेना । सक्कु थारु भाषिकाम रलक मौलार ओ चम्पन शब्द स्याकटसम् बेल्सना ।
  • मेर मेरिक भाषिक समूह सामाजिक सम्बन्ध बह्राक एकआपसके भाषिक अभ्यास सिख्ना ओ सिखैना कामहन अभियानके रुपम लैजैना । फरक भाषिक समूहके भाषी ओ कवि, लेखक, साहित्यकारहुकहन्की वीच सुसम्बन्ध ओ सम्मानके संस्कृतिके विकास कर्ना ।

पहिला थारु राट्रिय साहित्यिक मेलाके प्रभावके मार थारुभाषी लेखकहुक्र लिख्ना ओ पोस्टा प्रकाशन कर्ना क्रम ल्वाभलगिटक संख्याम बह्रल । २०७३ साउन १ ओ ३ गते घोराहीम नेपाल आदिवासी जनजाति उत्थान प्रतिष्ठानके सहयोगम कृष्ण सरर्वहरी, अशोक थारु, छवि कोपिला लगायत कुछ स्रष्टाहुक्र डंगौरा भाषाके वर्ण निर्धारण कर्ना बखेरी कैक लेखनके लौव प्रस्ताव कर्ल । जौन प्रस्तावके खास घोषणा बा कि, थारु भाषाम तालव्य वर्ण ट, ठ, ड, ढ बेल्सना, दन्त्य वर्ण त थ द ध निबेल्सना, श, ष के ठाउँम स केल बेल्सना, सक्कु शब्द ह्रस्वकेल लिख्ना आगन्तुक सक्कु शब्द तालव्य वर्ण अनुसार अपभ्रम्श कैक लिख्ना प्रस्ताव फे गोष्ठी कर्लक देखपरठ । उह अन्सार, गोरखापत्र समवेशी थारुपृष्ठ संयोजक ओ लेखक कृष्ण सर्वहारी आपन पोस्टा लिखभिर्ल । गोरखापत्र थारु पृष्ठमफे उह शैली अंगवोर्ल । लावा डगरके प्रधान सम्पादक छविलाल कोपिला फे आपन पत्रिकाम उह शैलीम लिख ओ सम्पादन कर भिर्ल ।

दोस्रा साहित्यक मेला, कैलालीक पटेला गाउँम हुइल । उ मेलाम दर्जनसे ढेउरनक थारु पोस्टा घुघट उघारल । भाषा विज्ञ पदम राई, मेलाम थारु भाषाके मानकताके विषयम आपन प्रस्तुति ढर्ल । बहसम खास निष्कर्ष निनिक्रलसेफे थारु भाषाम मानकताके प्रश्न गम्हिर सवाल हो कना महसुस हुइल । २०७५ साल बैशाख १ गते गोचाली दिवसक अवसरम बर्दियाके भौराम हुइलक साहित्यक बखेरीम भाषिक मानकता विषयम ४ बुँदे प्रस्ताव पारित हुइल । २०७४ सालम बर्दियाक बढैयातालम तेस्रा राष्ट्रिय थारु साहित्यक मेलाम भाषिक मानकता विषम बहस निहुइल थारु लोक साहित्य, सरकारी कामकाजके भाषाक रुपम थारुभाषा, संचारमाध्यम ओ थारु भाषा, महिला नेतृत्व अस्ट विषयम बहस बखेरी हुइल रह । चौठा साहित्यक सम्मेलन, रुपन्देहीक सेनामैनाक उचडिहवाम हुइल । उहाँ फे थारु मानकताके सवालम बहस हुइल । विद्धान अनुसन्धाता ओ लेखक महेश चौधरी, डा. कृष्ण पौडेल, रामबहादुर चौधरी प्यानलिष्ट रलह कलसे थारु लेखक संघके संयोजक कृष्ण सर्वहारी सहजीकरण कर्ल रलह । बहसम दन्त्य ओ तालव्य डुनु वर्ण बेल्सपर्ना आम निष्कर्ष निक्रल । डंगौरा थारु भाषाम तालव्य वर्ण समूहके अधिक बेलसजैना यथार्थहन फे मानगिल ।

पुरुवओर फे मध्यपुर्वी थारु भाषा, पुर्वेली थारु भाषाके व्याकरण ओ पाठ्यक्रम बनैनाम बहस चलल देखपरठ । लेखक महेश चौधरीक, हमार पहुँराम भाषिक शुद्धताको प्रश्न शीर्षकम लेख छापगिल पाछ, मानकताके बहस सुरुहुइल देखमिलल । यि विचम हमार पहुँरा, पहुरा, थरुहटडटकम म लेखके श्रृंखला आइल, अइटी बा । जंग्रार साहित्यिक बखेरीक संयोजक सोम डेमनडौरा निमाङ मिडिया सेन्टर युटुव च्यानलम थारु मानकताक बहस दर्जनसे ढेउरनक मनिन से चलैल । थारु कल्याणकारिणी सभा फे तीन ठो भर्चुअल बखेरी कैस्याकल । महामारी रोग कोरोना भाइरस
(कोभिड–१९) विश्वव्यापी रुपम निंद हराम कर्लक ६ महिना होस्याकल । यिह लकबन्दीक बीचम थारु भाषाके मानकताके ऐतिहासिक बहस चलल बा । न्युजपोर्टल, फेसबुक, च्याटबक्स सक्कुओर मानकताके बहस ठाउँ अगोर्ल बा । आब्बसम कसिन निष्कर्ष निक्रल ट ? म्वार छुटमुट अध्ययन, चिन्तन ओ मनन् बखेरीक बौछारहन सढलाई चाहटुँ ।

चिक्टार बाटः

  • आब्ब चल्टिरलक भाषिक मानकताक महान् ओ ऐतिहासिक बहस एक्क दिनम सुरु हुइलक निहो । गइल पाँच छ बरस चल्लक सघन साहित्यक बखेरी, सभा, सम्मेलन, गोष्ठी, लेखन ओ प्रकाशनके पृष्ठभूमिम अर्गराक हुइलक हो । यहीम एकजनकेल योगदान निहो, पहिल थारु राष्ट्रिय म्याला, दाम गठन हुइलक थारु लेखक संघ, जंग्रार साहित्यिक बखेरी, बाँके, ठुम्रार साहित्यिक बखेरी, काठमाडौं, बसघरा साहित्यिक श्रृंखला, छिट्कल बगाल, कैलाली, हिरगर साहित्यिक बगाल, जिउगर बगाल, नेतृत्वदायी भूमिका बाटिन् । स्थानीय स्वयंसेवी समूहके योगदान झन गुडगर बा । महेश चौधरी, गोपाल दहित, कृष्ण सर्वहारी, छवि कोपिला, कुछतनारायण चौधरी, खोपिराम चौधरी,(बाँकी ३ पेजमे) पुरुव ओरके भाषासेवीहुक्र फे यि कामम बरवार योगदान डेलबाट ।
  • थारु भाषाके मानकताके आश्यकता ओ महत्व सबजन मजक बुझ्लक जसिन लागल । राष्ट्रव्यापी तरंग पैदाहुइल आधारम यि बाट बुझ सेक्जाइठ ।
  • थारु भाषाके मानकताके बहस नेपालभरके थारुन्के पहिचानम रलक समानता ओ विविधता विषयम सोच्ना, लिख्ना, बटोइना बरवार अबसरयुक्त बखेरी बनल ।
  • लेखक अध्यताहुक्र कलम उठाक कुछना कुछ लिख भिरल बाट । उहमार भाषिक, साहित्यक ओ साँस्कृतिक उद्बोधन हुइल बा ।
  • एक्काइशौं शताब्दीम उपहारके रुपम पागिलक सूचना प्रविधि (सामाजिक संजाल, युटुव‘) क समुचित सदुपयोग हुइलागल बा ।
  • कोभिड–१९ के संक्रमणके डरले भौतिक रुपम भेटघाट हुइनिपइलसेफे जुम एप्सम चट्कार ओ खर्खर बहस करसेक्गिल बा ।
  • भाषा का हो ? भाषिक मानकता काकर चाहठ ? भाषिक मानकता कसिक करसेक्जाइठ कना विषयम मजा सचेतना हुइल बा ।
  • थारु भाषाके मानकता विषयम मनिनम रलक विचार ओ विश्वास लिखित ओ भिजुअलमा प्रकाशित हुइना क्रम जारी बा ।
  • महाधिवेशन कैक सुटल थाकस यिह बहानम हुइलसेफे आपन राष्ट्रिय भूमिकाकलाग जुर्मुराइल अस लागटा ।
  • लेखक ओ अध्यता महेश चौधरी, अनुसन्धाता ओ थारु शब्दकोशकार ओ व्याकरणकार डा. गोपाल दहित, शब्दकोशकार खोपिराम चौधरी, भाषासेवी भुलाई चौधरी, व्याकरणकार भोलाराम चौधरी, साहित्यकार ओ पत्रकार डा. कृष्णराज सर्वहारी, मातृभाषाके पाठ्यक्रमके क्षेत्रम क्रियाशील कुछतनारायण चौधरी, थारु सम्बत्के प्रवर्तक कनैलाल चौधरी, गोरखापत्रके उपसम्पादक ओ लेखक लक्की चौधरी, लेखक तथा संस्कृतिकर्मी सुशील चौधरी, उपप्रध्यापक केवि चौधरी, पत्रकार तथा साहित्यकार छवि कोपिला, सोनाहा भाषाका अध्यता सुनिलदत्त चौधरी, जनकवि बमबहादुर चौधरी, अधिकारकर्मी दिलबहादुर चौधरी, पहुरा दैनिकक सम्पादक प्रेम दहित लगायतके दर्जनसे ढेउरनक स्रष्टा अध्यताहुक्र अपान आपन अनुभव ओ अध्ययनके सार सुनाइ पैल । यि आधारम थारु मानक भाषाके बहस महान् बहस हो कैक कह परी ।
  • थारु भाषक मानकताकलाग भाषाविद् हुकहन्के समिति बनाक काम करपर्ना सुझाव आइल बा ।

खस्रार बाट

  • भाषा मानक बनैना प्रक्रिया ओ योजना सेफे बहुत समय दन्त्य ओ तालब्य लिख्ना निलिख्ना कना विषयम खर्च कैगिल बा । जौन भाषिक मानकताके प्रक्रिया सेफे अमुक भाषिकाम सीमितिता हुइना हो की कनाअस बिल्गाइटा ।
  • नेपालके थारु भाषाके एक्कठो मानक भाषा बनैना बहस चलाइ पर्नाम आपन बनल ब्याल बराबर कना प्रवृति डेखपरटा ।
  • संचार माध्यमम महेश चौधरी, कृष्ण सर्वहारीक लेख्य अभ्यास उप्पर आपन तर्क कर्टी हमार पहुराम भाषिक शुद्धताके बहस सुरु कर्लकम डुनु विद्धान लेखकद्वय व्यक्तिगत गल्ती कमजोरी अग्रैना ओर लागल जसिन देखपरठ ।
  • डंगौरा थारु भाषाके वर्ण पहिचान कैक उह अन्सार लिख भिर्ल ट का बिग्रल, उ लेख्य शैली जो अकाट्य मानक शैली बनठ कना का ग्यारन्टी बा ? आपन प्रस्ताव लान्क स्थापित कर्नाओर मेहनत कर्लसे मजा हुइना हो । जे लिखी टे जिटी ।
  • थारु भाषिक मानकताके दुश्मनहन मिलक मारक छोर्क, शिकार मर्ल निहो, बठा ओ जसकेलाग काजे छिनाझप्टी कर्ना खतरा फे डेखपरटा । भाषिक मानकता, दसककौ लग्ना काम हो । उहमार जागरण अभियानम जुट पलरल । ठोका ठोक नाही । फुटाइकलाग चारा डरुइयनके का कमी बा यहाँ ? सुरु फे होस्याकल बा, खोइ हम्र संवेदनशील हुइलक । म्वाछके लराई कहिया सम् ?
  • मानक भाषा बनाइकलाग भाषिका छनोट, कोडिङ, दस्तावेजीकरण ओ स्वीकार्यताके चरण पार करक छोर्क वर्ण ओ हिज्जेम अंटकना ट निहुइल जे ?

आब का कर्ना ट ?

  • थारु कल्याणकारिणी सभा, गोचाली परिवार, थारु लेखक संघ, थारु पत्रकार संघ लगायतके संघसंस्थाहुक्र थारु भाषासेवीहुकहन्के दवाव समूह बनाक नेपाल सरकार, प्रज्ञा प्रतिष्ठान, थारु आयोग, भाषा आयोग, त्रिवि भाषा विभाग, युनेस्को लगायतक संस्थान् भाषिक मानकताक लाग कार्यक्रम माग कर्ना ।
  • थारु शब्दकोश, व्याकरण, भाषिक तुलनात्मक अध्ययन, साहित्य समीक्षाकरक लाग भाषाशेवीन्के समूह बनाक कामक जिम्मेवारी डेना ।
  • आपन/आपन शैलीम निरन्तर लिख्ना कामहन प्रोत्साहित कर्ना ।
  • नियमित भाषा साहित्य विमर्श कर्ना ।
  • पुरुब, पश्चिम ओ मध्ये क्षेत्रके भाषा ओ साहित्य सिर्जनाम सहकार्य कर्ना । सझिया पोस्टा फे निकर्ना ।
  • स्थानीय तहम भाषा साहित्यक विकासक लाग नीति ओ बजेट माग कर्ना ।
  • जिल्ला, प्रदेश ओ राष्ट्रिय भाषा सम्मेलन कर्ना ।

निष्कर्ष

भाषिक मानकताके प्रश्न एकठो बरवार बहसके विषय हो । याकरलाग भाषाशस्त्री, शैक्षिक अभियानकर्ता, भाषासेवी, भाषा बेल्सना मनै ओ अनुसन्धानकर्ताओन्के बखेरी बैठटी निष्कर्ष निकर्टी जाइपर्ना बाट हो । भाषा सामाजिक सम्पत्ति हुइलकमार सामाजिक ओ सझिया जाँगरले केल असिन खनगर काम करसेक्जिना बाट हो । हमार पुर्खाओन्के मैगर सैडान हो थारु भाषा उहमार यही फरगर ओ डरगर बनाइकलाग सक्कुजन हाँठम हाँठ मिलाई । भाषा कौनो अमुक भाषी ओ जातीय समुदायकेकेल सरोकारके विषय निहो । यि ट देशके सम्पदा ओ सम्पती हो । उहमार राज्यके स्पष्ट नीति, कार्यक्रम ओ पहल हुइना जरुरत बा । याकरलाग सक्कु सरकारी, गैरसरकारी, नागरिक समाज, भाषासेवी ओ वक्ताहुक्र हाँठजोरी लागमिल कैक फाँर पर्ना ढन्ढा हो । हो, हमार मातृभाषा थारु भाषाके विज्ञहम्र जो हुइटी, हम्र जो मानकताकेलाग सबसे ढेरनक योगदान ओ बलिदान डिहसेक्बी, डिहपर्ना फे बा । मुले, भाषिक मानकता एकठो प्राज्ञिक ओ प्राविधिक कामफे हुइलकमार, भाषाविज्ञ्के विज्ञताफे लिहपर्ना रहठ । यि पक्षहन फे फेकडारक सोंच परि । पुर्खन्हक डिहल सैडानहन पौह्रैना, फुलैना ओ फरैना जिम्मा सक्कुजन्हक हो । मन मन गिटवार कौन ? सुट्ल सुट्ल जगवार कोन ? कना थारु आहान जो बा । जागी, उठी, नेगी, भाषिक विकासक मठ्वाम पुग्नेबाटी एकदिन ।

जय गुर्बाबा !

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