छठ पर्व सुरु, पहिल दिन नहाय–खाय विधि
काठमाडौं, ३ अगहन । छठ पर्व सुरुवाटी संगे पहिल दिन ब्रतालु ‘नहाय–खाय’ विधि सम्पन्न करले बाटै ।
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी (चौथी) से सप्तमीसम चार दिन टमान विधिसाथ छठ पर्व सम्पन्न करजाइठ । सूर्यदेवके उपासना कैना यी पर्वमे पहिल दिन ब्रतालु हातगोडाके नोह काटके लहैटी चोखोनितो खाके व्रत संकल्प करठै । यिहीहे मिथिलामे ‘नहाय–खाय’ कहठै । मने ब्रतालु यी आघे एक दिन आघे ‘अरवाअरवाइन’ विधिअनुसार चाखोनितोके शुरु करसेकल बाटै ।
ओस्टेक करके दुसर दिन पञ्चमी तिथिके दिन दिनभर निराहार व्रत उपासना करके रात सक्खर दारके पकाइल अरवा चाउरके खिर केल इष्टदेवहे चढाके परिवारजनसहित प्रसादस्वरुप खैना करठै । दुसरा दिनके यी विधिहे मिथिलामे ‘खरना’ कहठै ।
पर्वके मुख्य दिन षष्ठी तिथिके दिन निराहार व्रत बैठकके साँझपख पवित्र जलाशयमे बनाइल घाटमे स्नान करटी सूर्यदेवहे अर्घ डेजाइठ । यी क्रममे ठकुवा, भुसुवा (कसार), और मिष्ठान्न परिकार, केरा, दहीसहितके सामग्री सूर्यहे डेखाजाइठ । यी विधिहे ‘सझुका अरख’ कहठै ।
षष्ठीके रात सूर्यदेव ओ षष्ठीमाता (सूर्यदेवके गोसिनीया) के आराधना करटी घाटमे रात बिटैना चलन बा । मने यी चो कोभिड–१९ संक्रमणके जोखिमसे ढेर जैसिन ब्रतालु घरआँगनमे व्रत विधि सम्पन्न कैना तयारी करले बाटै ।
पर्वके अन्तिम अर्थात् सप्तमी तिथिके दिन उठठी सूर्यहे अर्घ डेहलपाछे छठ पर्व विधिवत सम्पन्न करजाइठ । मिथिलामे अन्तिम दिनके विधिहे ‘भोरका अरख’ वा ‘पारन’ कहठै ।
पर्व सम्पन्न हुइलसंगे ब्रतालु घर लौटके (घाट जउइया) ब्राह्मण, गरिब, आशामुखीहे अन्नदान करके भोजन करठै । यी संगे छठपर्वके प्रसाद खैना खवैना क्रम शुरु हुइठ । मिथिलामे छठके प्रसाद इष्टमित्र, छोरीचेली ओ आफन्तकहाँ पुगैना क्रम १०÷१५ दिनसम चल्टी रहठ ।
छठके व्रत विधिपूर्वक सम्पन्न करलेसे मनोवाञ्छित फल पैना, सन्तान सुख हुइना ओ रोगव्याध नइलग्ना जनविश्वास बा । खासमे चर्मरोग सूर्यके उपासनासे ठिक हुइना विश्वास करजाइठ ।
पछिल्का कुछ दशकयहोर आपसी घुलमिलसे छठपर्व पहाडी मूलके हिन्दू केल नइहुके भाकलके रुपमे फरक धर्म संस्कृतिक जाति समुदायसेफे मनाई लागलपाछे यी पर्व मिथिलाके साझा पर्वके रुपमे विकास हुइटी बा । सक्कु जाति, धर्म, सम्प्रदाय ओ व्यक्ति–व्यक्ति परिचालित हुइना ओरसे छठपर्व लोकआस्थाके पर्व बनल मिथिला क्षेत्रके प्रसिद्ध साहित्यकार डा. राजेन्द्र विमल बटैठै ।
मिथिलामे वर्षके दुई चो छठपर्व मनैना परम्परा बा । कार्तिक शुक्ल चौथीसे सप्तमीसम मनैना छठहे शारदीय ओ चैत शुक्ल चौथीसे सप्तमीसम मनैना छठहे वासन्ती छठ कहठै । मने जनजनहे परिचालित कैना कना शारदीय छठ हो ।
मिथिलाके सक्कु भेगमे अब्बे छठके चहलपहल बहुट बह्रल बा । पर्वमे गुवोसहित गन्नाके लाँक्रा, ज्यामिर, अदुवाके बोट व्रत विधिमे डेखैना ओरसे यैसिन कृषि उपजसे मजा बजार पैले बा । टबमारे यी पर्वके मिष्ठान्न परिकार ठकुवा, भुसुवासहितके सामग्री ओ सामग्री रख्न माटी ओ बाँसके चोयासे बनाइल सामानके खरिदबिक्रीफे बह्रल बा ।