अन्नबाली ढर्ना ‘डेहरी’ लोप हुइटी

कञ्चनपुर, २८ अगहन । खेट्वासे भित्र्याइल अन्नबाली ढर्ना परम्परागत रुपमे प्रयोग हुइटी आइल कञ्चनपुरके थारु समुदायके डेहरी लोप हुइटी गैल बा ।
एकचो बनाइलपाछे वर्षौंसम प्रयोगमे लाने सेकजैना डेहरी थारु समुदायके पाछेक पुस्ता आधुनिकताहे आत्मसात् करे लागलपाछे हेरैटी गैल हो । पुरान पुस्ता सिकैना रुचि नाइ रख्ना ओ लावा पुस्ता सिखे नाइ चाहके परम्परागतकालसे प्रयोग हुइटी आइल डेहरी बनैना कार्य ओझेलमे परे लागल हो ।
डेंहरी बनाइक लाग प्रयोग हुइना चिम्टाइलो माटी तालतलैया ओ वन क्षेत्रसे लन्टी आइलमे वन संरक्षणके कारण माटी लाने नाइ डेना करलमे समेत बनैना काममे अवरोधसमेत हुइटी आइल थारु समुदायके कहाइ रहल बा ।
‘परम्परागत घरमे डेहरीसे नै कोठा छुट्टयाइना मेरके ढारल रहे,’ बेलडाँडीके कालीप्रसाद चौधरी कहलै, ‘परम्परागत घरके सट्टा आधुनिक पक्की घर बनाइ लागलपाछे रख्ना ठाउँके अभावमे थारु समुदायके रहनसहनके अभिन्न अंगके रुपमे रहल डेहरी बनैना छोरल गैल हुइट ।’
चिक्टार माटी, धानक बुसी ओ गोहुँक बुसीक प्रयोग कैके बनाजैना परम्परागत डेहरी हेरैटी गैलमे चिन्ता व्यक्त करटी उहाँ यिहीहे बचाइक लाग युवा पुस्ताहे यी बारे पुरान पुस्ताले सीप हस्तान्तरण करे पर्ना बटैलै ।
‘टिन, बाँस ओ प्लाष्टिकके डेहरी सहजे बजारमे किने पाइ लागलपाछे समेत डेहरी बनैना काममे यकर प्रभाव परल बा,’ उहाँ कहलै, ‘सहजरुपमे बजारमे धान रख्ना भाँडा खरिद करे पाइ लागलपाछे माटीक जोहो काहे कैना कना भावनासे समेत थारु संस्कृतिसँग जोरल डेहरीहे बिसरैटी गैल हुइट ।’
डेहरी थारु समुदायके संस्कृतिसँग किल नाइहोके धार्मिक भावनासमेत जोरल उहाँके कहाइ बा । ‘यकर अपने धार्मिक महत्व बा यी बात लावा पिँढीहे बुझैना आवश्यक बा,’ उहाँ कहलै । डेहरी खास कैके महिला बनैना करठै । परम्परागत यी मेरके भाँडा गोहुँँ, धान, मकै, लाही, केराउलगायतके अन्न रख्ना करजाइठ् ।
‘यम्ने ढारल अन्न वर्षौंसम रख्लेसे फेन रोग किरा नाइ लग्ना ओ बिग्रना डर नाइ रहठ्,’ धनबहादुर कुश्मी कहलै, ‘ढेँकीमे कुटल चाउर ढिउर बरससम यम्ने रखलेसे फेन नाइ बिग्रठ् ।’
ओहकान अनुसार हाल ग्रामीण क्षेत्रके अधिकांश घरमे बूढापाका महिलास बनाइल राखल माटीक डेहरी कुछ घरमे लाइनसे राखल आभिन फेन हेरे सेकजाइठ् । ढिउर थारु समुदायके घरमे अइसीन डेहरी रख्ना क्रम हेरैटी समेत गैल बा । डेहरी ढिउर मेरके रहठ् । जेम्ने डंहरी, पटाहा डेहरी, जवरा, चारकुने, गोल ओ कुठली रहल बावै ।
पटाहा डेहरी देउता रख्ना कोठाके पश्चिममे राखजैना करल बा । यिहीसे भान्छा ओ डिहुरार (देउथान) छुट्टयाइठ् । अन्य डेहरीके तुलनामे यी बरवार रहठ् । यी डेहरीहे कबु फेन खाली नाइ राखे पर्ना ओ राखलमे अशुभ हुइना विश्वास थारु समुदायमे रहल बा ।
पटाहा डेहरी फुटलमे, भस्कलमे यम्ने ढारल अन्न चेलीबेटीहे डेना चलन रहल बा । पटाहा डेहरीमे पाँचठो हाठक छाप ओ एकठो फलामके किला गाडल रहठ् । उ किलामे झोर्या (झोली) राखके ओम्ने गुरुवा मन्त्रसहित डेहल अक्षता ओ धुप राखल रहठ् । डेहरी विशेष कैके लम्मा ओ चार कुने टमान आकार ओ उचाइके बनैना करजाइठ् । कुठली औरे डेहरीके तुलनामे छोट रहठे । यिहीहे पटाहा डेहरीके लग्गे रहठ् ।
अन्यहे आवश्यकताअनुसार घरक टमान ठाउँमे रख्ना करजाइठ् । यम्ने विशेष कैके दैनिक आवश्यक पर्ना नुन, दाल, चाउरसंगे अन्नके बीउलगायत राख्न करजाइठ् । डेहरी अन्न भण्डारके थारु समुदायके प्रमुख वस्तुमध्येके मानजाइठ् । जवरामे धानक बुसी राखजाइठ् । ‘डेहरी राखल बा कलेसे दुरेसे थारु समुदायके घर हो कना जाने सेकजाइठ्,’ लहानु चौधरीले कहलै, ‘बनाइ जनुइया कम रहल ओरसे कम घरमे किल आब डेहरी राखल डेखजाइठ् ।’
