थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १४ बैशाख २६४८, शुक्कर ]
[ वि.सं १४ बैशाख २०८१, शुक्रबार ]
[ 26 Apr 2024, Friday ]

प्रथागत कानूनसे संरक्षित डारु ओ यिहिसे थारू समाजमे पारल प्रभाव

पहुरा | २१ पुष २०७७, मंगलवार
प्रथागत कानूनसे संरक्षित डारु ओ यिहिसे थारू समाजमे पारल प्रभाव

पृष्ठभूमि

डारुहे हिन्दु संस्कृतिमे सोमरस कहल पाजाइठ । हिन्दुहुकनके महान ग्रन्थ रामायण ओ महाभारतमे वैदिक कालमे मनोरञ्जनके लाग देवीदेवता समेत सोमरस सेवन करल बाट उल्लेख करल पाजाइठ । नेपालमे प्राचीन कालसे किराँत, लिच्छवी ओ मल्ल राजाहुक्रे तिव्वत चीन ओ भारतसँग व्यपारिक सम्बन्ध स्थापना करल ओरसे, ओहेबेलासे नेपालमे यकर प्रयोग भित्रल बाट कुछ इतिहासकारहुक्रे उल्लेख करलेसे फेन, नेपालमे सयौं आदिवासी आदि जनजातिहुक्रे बसोवास करटी आइल ओ सदियौंसे यकर प्रयोग करटी आइल ओरसे नेपालमे के, कहियासे डारुक प्रयोग करल कना बाट प्रस्ट नैहो । काठमाडौं उपत्यकाके लेलेमे पाइल, शिवदेव प्रथम ओ अंशुवर्माके पालाके सन् ५२६ मे अभिलेखित शिलालेखमे मदिराहे पनियागोस्थी कहिके उल्लेख करल बा । अस्टेक, पशुपतिनाथके मन्दिर लग्गे मिलल सन् ४१३ के जयलम्भासे अभिलेखित शिलालेखमे कर्ण पूजामे सोमरस अनिवार्य रूपमे चह्राइ परना बाट उल्लेख करल बा । क्रिस्चियन पादरी इप्पोलिटो डेसिडेरी सन् १७२० मे नेपाल भर्मण करेबेर कोदोके डारु चिखल बाट उल्लेख करले बाटैं । उहाँ उबेला नेपालमे चाउर ओ गोहुँक डारु पिना चलन रहल बाट फेन उल्लेख करले बाटैं ।

नेपालके आधुनिक इतिहासके सँगे राजा सुरेन्द्रविक्रम शाहके पालामे आइल मुलुकी ऐन १९५४ नेपालके बासिन्दाहुकनहे ५ श्रेणीमे बाट्ल पाजाइठ । टागाधारी डारु सेवन नैकरना ओ बाँकी चार श्रेणीके मनै भर मदिरा सेवन करना कहिके उल्लेख करल बा । हालके संविधान ओ ऐन कानून भर ओइसिन डारु सेवन करना वा नैकरना जात कहिके कौनो विभेद करले नैहो ।

नेपालमे डारु सेवन करनाहे गैर कानूनी मानल नैहो । यहाँक् जातीय ओ सांस्कृतिक विविधता हुके डारुक् प्रयोग फेन ओहे अन्सार हुँइटी आइल बा । तथापि मदिरा सेवन नैकरुइयनहे तागाधारी ओ डारु सेवन करुइयनहे मतवाली कना प्रचलन बा । तागाधारी बाहुन ओ क्षेत्रीहुक्रे डारु पिए नैमिल्ना हुइलेसे फेन कर्णालीके मतवाली क्षेत्रीहे डारु पिना छुट रहे । मतवालीहुक्रे अपन परम्परा ओ सीप अन्सार अप्नही डारु उत्पादन करना ओ यकर प्रयोग करटी आइल बाटैं । मतवालीहुक्रे जस्टे थारू, राई, गुरुङ, तामाङ ओ नेवार आदिहुक्रे व्यापक डारु प्रयोग करटी आइल डेखाइठ ।

थारूहुकनके प्रथागत कानून भित्तरके संस्कृति

थारू समुदायमे बच्चा जन्मटी साइट सुडेनीसे नवजात शिशुके ढोँह्री (नाभी) काटके कोरे डारु ढोँह्रीमे लगा डेना ओ सौंरीमे रहल डाइ (सुत्केरी)हे प्रत्येक साँझ डारु पिए डेना ओ एकहप्ता से १५ दिनसम मालिस करैना तथा सोह्रिनिया (सुडेनी)हे हरेक दिन डारु ओ जाँरले स्वागत करना प्रचलन बा । सुत्केरीहे नियमित डारु ओ जाँर पिवैलेसे आराम हुइना ओ पाठेघर सफा करठ कना प्रचलन रहल बा । अस्टेक बच्चा बाह्रके व्रतबन्ध नैकरटसम रठ्लौसर्ना चलन बा ओ उकेला धारमर्ना ओ गु¥वा तथा अतिथि स्वागतके लाग डारु ओ जाँर अनिवार्य चाहठ ।

अस्टेक व्रतवन्ध करेबेर अर्थात् जेठ पूजा करेबेर छोग्रा, सुँवर, मुर्गीक बली संगसंगे कूल देवताहे अनिवार्य डारुक धार डारजाइठ ओ पर्सादके रूपमे सक्कु इष्टमित्र ओ अतिथिहे स्वागत करना प्रचलन रहल बा । थारूमे नामाकरणके लाग निश्चित सामाजिक विधि विधान नैहुइलेसे फेन बुढापाकासे बच्चाके नामाकरण करना प्रचलन बा । उबेला नामाकरण करना बुढापाकाहे डारु ओ जाँर अतिथि सत्कार करना करजाइठ ।

थारू समाजमे टमान मेरिक भोज करना चलन परापूर्व कालसे चल्टी आइल बा । जस्टे सट्टापट्टा, दमाहा, उर्ही, भोरुवा, तिनखुट्या आदि भोज परठ मने आजकल मागी भोज वा प्रेम भोजकिल ढेर प्रचलनमे डेखाइठ । भोज जस्टे होए मने भोजमे डारुक अनिवार्य ओ व्यापक प्रयोग हुइठ । भोजके हरेक विधि विधानमे कुलदेवताहे डारुके धार डरना चलन बा । ओस्टेक गाउँके भूह्याँर थानमे फेन डारुक धार डरना चलन अनिवार्य रहल बा । ओकर साथे अतिथि सत्कारके मुख्य चिज जाँर डारु हो । अभिन फेन थारूहुक्रे भोजके लाग एकवर्ष आघेसे वा उहिसे फेन पहिले से जाँर डारुक सामा करना चलन रहल बा । अस्टेक थारूहुकनके मृत्यु संस्कारमे फेन डारु अनिवार्य चाहठ । गुराई करेबेर, पिण्ड डेहेबेर ओ पाटा बैठेबेर अनिवार्य डारु चह्राइ परठ कना सुद्धावारीमे अतिथि सत्कारके लाग अनिवार्य रूपमे डारुक प्रयोग हुइना करल बा । थारू जाति महिना पिच्छे टमान मेरिक चाडपर्वमे डारु पूजा प्रयोजनके लाग ओ अतिथि सत्कारके लाग अनिवार्य मानजाइठ ।

डस्या थारूहुकनके बर्का टिहुवार हो । यी टिहुवारमे कूल देवताहे चह्रैना विशेष मेरिक कुरी ओ सोन्जाई डारके डारु बनाजाइठ ओ पिण्डसंगे डारु चह्रैना चलन बा जिहिनहे पित्रन्हक डारु कना चलन बा । अइसिक कुलदेवताहे पूजाकरके डारु ओ पिण्डसंगे चह्राइल डारुहे विशेष महत्वसाथ प्रसाद मानके पिना चलन बा । अत्रा किल नाही डस्यामे वर्त बैठुइया पूजारी औरे कुछ चाज नैखैलेसे फेन डारु पिलेसे चोखा मन्ना चलन बा । अस्टेक डस्यामे आवश्यक धुप लेहे जाइबेर अपन घरगुर्वाके पहुरा (कोसेली) स्वरूप डारु अनिवार्य लैजिना चलन बा ।

माघ थारूहुकनके सबसे भारी टिहुवारके रूपमे मनाजाइठ । वास्तवमे माघमे कुलदेवताके पूजापाठ नैहुइलेसे फेन यिहिनहे नयाँ वर्षके रूपमे हर्सोल्लासके साथ मनैना प्रचलन रहल बा । यी टिहुवारके प्रमुख महत्व कलेक गाउँके वार्षिक योजनाके मूल्यांकन ओ आगामी वर्षके लाग सामूहिक रूपमे योजना तर्जुमा करनाके साथे गाउँके मूली मटावा, चौकीदार, अगुवा ओ गुर्वाहुकनके समेत मूल्यांकन करके फेरबदल हुइना प्रचलन हो ।

यी टिहुवारमे मच्छी, सिकार, तरुल, ढिक्री जैसिन प्रमुख परिकारके साथे घरघरमे जार डारुसे स्वागत सत्कार करना चलन बा । अस्टेक माघके प्रमुख जमघट जिहिनहे बखेरी कहिजाइठ । टब्बही प्रत्येक घरेक किसनुवा एक÷एक करै (करुवा) डारु लेके भल्मन्सक घरे जम्मा हुइठैं ओ सक्कु डारु एक्के भारामे ढरके मिलाके संगेबैठके पिना चलन रहल बा । यकर अतिरिक्त प्रत्येक घर, घरमे जाके शुभकामना आदानप्रदान करना जार डारु पिना चलन बा । थारूहुक्रे डेवारीहे छोट डस्याके जस्टे पूजापाठ करठैं ओ पिण्ड डेंठैं डस्यामे जस्टे डारुक धार डरना ओ पिना चलन बा । अस्टेक जन्माष्टमीमे थारू महिलाहुक्रे व्रत बैठ्ना ओ कृष्णके पुजा करनाके साथे व्रत बैठल बिहान मच्छी, सिकार ओ डारु अपन दादाभैयाहे स्वागत करना चलन रहल बा । ओहे हप्तामे थारू पुरुषहुक्रे अट्वारके दिन अट्वारी व्रत बैठ्ठैं । यी पर्वमे भिमके पूजापाठ हुइठ मने व्रतके बिहान अपन चेलीबेटीहे खैनाचिज पठैना चलन बा । यिहिहे अग्रासन डेहे जैना दादा भैयाहे दिदीबहिनीसे मच्छी, सिकारसहित जार डारु पिवाके सत्कार करठैं ।

धान खेतीसंग सम्बन्धित किल फेन थारूहुक्रे टमान उत्सव मनैठैं जोनमध्ये हर्धावा, औली ओ पेण्ड्या प्रमुख हो । धान लगा सेकलपाछे थारू समुदाय हर्धावा मनैठैं । ओहेबेला खास करके चेलिबेटी ओ ईष्टमित्रहे न्यौटा करजाइठ ओ मच्छी, सिकार ओ जार डारु आत्म सन्तुष्टि हुइना मेरिक पिना चलन बा । औसटेक धान काटके सेकके धान खोन्हुवासम पुगासेकलपाछे औली कना उत्सव मनाजाइठ । यम्ने फेन तृप्त हुइना करके मच्छी, सिकार ओ डारु सेवन करजाइठ । अन्तमे धानबाली घरमे भित्रल कलेसे पेण्ड्या कना मनाजाइठ । उबेला नयाँ चाउर देवताहे चह्रैनाके साथे नयाँ चाउरके भात मच्छी, सिकार ओ जार डारु पिना चलन बा ।

अस्टेक थारू समुदायके सार्वजनिक पूजा जोन गावेपिच्छे हुइठ, उहिहे भूह्याँर पूजा कहिजाइठ । यी पूजा वर्षमे दुईचो करजाइठ । वर्षे खेति करना पहिले करना पूजाहे ढुर्या गुरै ओ खेतिपाती ओराइलपाछे करना पूजाहे हर्या गुरै कना चलन बा । जोन पूजामे डारुके धार अनिवार्य मानजाइठ । खासकरके यी पर्वमे सुँवर, मुर्गी, अण्डाके बली ओ जल, दूध सँगे डारु चह्राजाइठ ।

कविला समाजके मूल्य मान्यतामे बह्रटी आइल थारू समाजमे अभिन फेन सामुहिक रूपमे घर बनैना चलन रहल बा ओ सबके घर छाँ सेकलपाछे घर्राइ कना मनैना चलन बा । जोन टिहुवारमे अपन चेलिबेटी ओ ईष्टमित्रहे आमन्त्रण करके संगे भोज खाके रमाइलो करजाइठ ओ यी पर्वमे मूलरूपमे मच्छी, सिकार संगे पटौरी (मसरिक परिकार) जार डारु खैना चलन बा । अस्टेक अन्नबाली खोन्हुवा नानलपाछे ओकर तान्त्रिक विधिसे सुरक्षा प्रदान करना ग्रौह्री वेहर्ना उत्सव मनैना चलन बा । ओहेबेला गुरवा तान्त्रिक विधि विधान अन्सार खोन्हुवामे मुर्गीक बली डेना ओ डारुक धार डेना चलन बा । उपाछे गाउँभरके घरगोसिया जम्मा हुके जारडारु पिके नाचगान ओ रमाईलो करना चलन बा ।

यकर अतिरिक्त थारू समुदायमे बेलाबखतमे हुइना भाकल ओ पूजा आरधनामे डारु अनिवार्य रूपमे चह्रैना चलन रहल बा । कौनो घरमे कोइ बिरामी हुइ कलेसे गुरवा आछत हेरठैं ओ भूतप्रेत मनैठैं, जोनबेला डारु अनिवार्य चाहठ । ओस्टेक विरामीहे देवता वा भूतप्रेतसे दुःख डेहल कलेसे मनवाइक लाग पाटी बैठना चलन फेन बा उबेला फेन टोक्टा करना मनैना ओ गुरवा सत्कारके लाग जार डारु अनिवार्य चाहठ । कौनो उमेर पुगल लवण्डी वा महिलाके मासिक धर्म अनियमित हुइल वा समस्या अइलमे गुरवासे फुला बनैना तन्त्रमन्त्र करठैं ओ ओहेबेला डारु अनिवार्य चाहठ । यदि गाउँमे लगातार कौनो क्षति हुइल वा महामारी हुइल कलेसे भूतप्रेत प्रवेश करल विश्वास करजाइठ ओ निकासी पूजा करके मनैना चलन बा उहिनहे निकासी पूजा कठैं ओ उ कार्यके लाग रक्सी अनिवार्य चाहठ । खासकरके वर्षदिन भर घर बाहेर प्रदेश जाइबेर कौनो अनिष्ठ नाहोए कहिके कूलदेवताहे हर्चाली नामक पूजा करना चलन बा । उहेबेला सुवर मुर्गीक बली सँगे जल, दुध ओ डारुके धार अनिवार्य चह्राइ परठ । साथे अतिथि स्वागतके लाग फेन उ बाटके प्रयोग अनिवार्य मानजाइठ ।

अस्टेक थारूहुक्रे बगार पूजा ओ गोठी पूजामे फेन अनिवार्य डारुक धार चह्रैना ओ बली डेहल सिकार संग डारु पिना चलन बा । अस्टेक कुछ उत्सव जस्टे कौनो फेन काम समापन हुइलपाछे चुकी, नाचगान, फेन मनैना उत्सव नस्नौरी, ख्यारा सार्वजनिक कार्य सम्पादन पाछे मनैना झराली, सार्वजनिक श्रमदान वेगारी जैसिन बेलामे अनिवार्य रूपमे डारु ओ जाँडके प्रयोग करके रमाइलो करना चलन रहल बा । थारूहुकनके सबसे भारी टिहुवार माघ हो । यी टिहुवार थारू समुदायमे तीन से पाँच दिनसम धुमधामसँग मनाजाइठ ओ जार, डारु, मच्छी ओ सिकारके ब्यापक सेवन करजाइठ ।

गुरवा, डारु ओ आस्था

थारूहुकनमे गुरवाके स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण मानजाइठ । गुरवाहुक्रे अपन प्रतापसे थारू समुदायहे बचैटी आइल ओरसे उहाँहुकनके प्रताव एवम् कौशल कथाके रूप धारण करल । टबेमारे थारूहुकनमे गुरवा सम्बन्धी ढेर लोककथा पाजाइठ । थारू लोक साहित्यमे गुरवाके महत्वके प्रतिबिम्ब डेखे मिलठ । “गुर्बावक जर्मौटी” (थारू लोक ब्रह्माण्ड पुराण) ‘फुलवार’ (थारू लोकशिव पार्वती पुराण) ‘राम बिहग्रा’ (थारू लोक रामायण) ‘बर्कीमार’ (थारू लोक महाभारत) ‘अष्टिम्की सख्या, पैया’ (थारू लोक भागवत पुराण) ‘हिउटी’ साँची, कहरा, जोगिन्या, माधो (सुन्दरी) आदि थारू समुदायके जनजनमे झुलल बा । थारू मन्टरहे जिवन्तता ढरेक लाग थारू देशबन्ध्या गुरवाहुक्रे प्रकृति रक्षाके लाग यिहे लोकसाहित्य गैठैं । आम थारू समुदायमे फूलवार लगायत काव्य नैगैलेसे फेन देशबन्ध्या गुरवाहुक्रे टमान पूजा पाठमे यकर श्लोक पह्रठैं । जस्टे कि हरेरीके अवसरमे मरुवामे हरेहर खेटौटी, बाँझ कोख जगैना छुट्की फूलबार, केक्रो पिढी ओरैलेसे नयाँ देउटा जन्मैना जल्मौटी, घरविहिन हुइलेसे गुर्बावक जमौटी, भारी गाउँके सामूहिक पूजा पाठ करे परलमे बर्का फूलवार, ढकेहरसे गैठै ।

बर्कीमारके एक प्रसँगमे किचक दिन प्रति दिन बिरामीहुके ओकर स्वास्थ्य परिक्षणके लाग घनपट गुरवाहे बोलाके नानल प्रसंग बा । घनपट गुरवा मद (डारु) ओ मन्त्रशक्तिसे किचकके स्वास्थ्य परिक्षण करेबेर शारीरिक नैहुके मानसिक रोग हुइल बयान करठैं । किचक द्रौपतीके प्रेममे एकतर्फि आकर्षि हुके बिरामी हुइल रठैं । बर्किमारमे शमी वृक्षमे लुकाके ढारल अस्त्र अर्जुन आछट ओ डारु छिटके पवित्र पारल तथा ओकर पूजा करके, मै जहाँ पठाउ, ओहे जा कना प्रसंग उल्लेख बा । हालसम फेन थारू समुदायमे दुलहा बराट जैनाआघे उहाँक लुग्रा, डोला गु¥वा मन्टर पह्रके आछट छिटके ओ डारुक छाँकी बुँदी डके पवित्र पारजाइठ । यी यावत प्रसंगसे थारू समुदायमे गु¥वा ओ डारुक महत्व महाभारतकालिन समयसे रहल डेखाइठ ।

कुल पूजामे ओ सार्वजनिक पूजामे डारुक प्रयोग

डेहुरारमे गुर्बाबा, मैया, खेखरी, लागुबासु, चैटीक पट्ठ्या, सौँरा, बेँट, झोर्या, भेँरवा, घोरवा, डहरचण्ड, चबह्वा गुनी, लटौ महादेव, खेटरपाल, उख्नी भवानी, रिख्या, सुच्चा, ढमरज्वा, मड्वा, जगनठ्या, ढनचोर्वा आदि देउता रठैं । तथापि यि सब देउता सबके डेहुरारमे भर नैरठैं । थर ओ गोत्र अन्सार फरक फरक देउता स्थापित रठैं । अपवादमे कुछ थप बाहेक प्रत्येकजे कुल देवताके पूजामे डारुक धार डेना प्रचलन बा ।

लरैया छेउ पूजा माघमे करजाइठ । खेटुवाबारी जोटखोड करेबेर कौनो चोटपटक नालागे कना प्रयोजनके लाग यी पूजा करजाइठ । दुरिया पूजा बैशाख, जेठमे करजाइठ । खेतीपातीके शुरुवात करना आघे दक्षिणओरक देवता पट्नह्याहे पठैना हेतुसे यी पूजा करजाइठ । रेन्झी पूजा असारमे करजाइठ । टबेमारे यिहिहे असारी पूजा फेन कहिजाइठ । मस (लामखुट्टे) लगायत कौनो अन्य किरा नाकाटिट् कहिके रेन्झ खेन्झ (महामारी ) नासारिट कना हेतुसे यी उत्तरके पट्नही देवता पठैनाहे पूजा करजाइठ । हरेरी पूजा खेतीपाती हरियर रहे । गान्धी लगायत अन्य किरा धानमे लागके नोक्सान नाकरिट, कला पानी मजासे लागे कना अभिप्रायसे हरेरी पूजा करजाइठ । लवांगी पूजा उब्जल बालीनाली सर्वप्रथम प्रकृतिहे चह्रैना तथा सुग्गा लगायत पंक्षीसे ढेर नाखाइट कहिके यी पूजा अगहनमे करजाइठ । चमरबह्रै पूजा माघ लगत्ते गैयाभैँसके दीघार्युके लाग ५/५ वर्षके अन्तरालमे यी पूजा करजाइठ । ढुर्रा बनैना गुरवा सामाजिक से व्यक्तिगत पूजा एकडम कम करना करल बाटैं । व्यक्तिगत पूजा अन्तर्गत ढुर्रा बनैना पूजा प्रायः करठैं । आधिकारिक गुरवा बनाइलपाछे वर्षमे दुई चो खासकरके कात्तिक ओ चैत्रमे ढुर्रा बनाइ परना रहठ । मरुवाके बाइस देउताहे छाँकी डेटी पश्चिममे सब थारू गाउँमे मरुवा (सामुहिक देउथान) स्थापित हुइठ । उ मरुवामे प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष २२ देउता स्थापित हुइठैं । यहाँ ओइनके सामान्य चर्चा करजाइठ । डहरचण्डी सबसे भारी देवी हुइट । डहरचण्डी ओ द्रौपती दुई दिदीबहिनी हुइट कना विश्वास करजाइठ । पूजाके शुरुवात यिहे देवीके आघे पहिले धुपवत्ति सल्काके करजाइठ । झुठरु मसानहे मनाइ नैसेकलेसे यिहे देउता बिगार करना भूत रठैं कहिके यिकान पुजा हुइठ । झुठरु मसान भूत जस्टे लागलेसे फेन यी प्रगन्ना क्षेत्रके रक्षा करना देउता हुइट । मुरहा मसानके प्रतीकके रूपमे कठुवक मुग्रा आकारके पत्ती गारल मुरहा मसान कहल हो । यकर काम जत्रा भूतप्रेत बाटैं सबहे अपन शीरासनमे ढरल हो । बहिरा रक्सा मरुवाके पश्चिमओर कोनुवामे स्थापित रहठ । बहिरा रक्साके प्रतीकके रूपमे चुच्चा आकारके ढुंगा गारल रहठ । मनै हेराइलमे वनमे चरे गिल गाइवस्तु हेराइलमे यकर पूजा करके घर आइठैं । जगन्नठीया यिहिनहे मरुवाके दक्षिणमे स्थान डेहल रहठ । यकरकाम दाङ उपत्यकामे हुइल ५ ठो प्रगन्ना अर्थात् ४४ कोश क्षेत्रके रक्षा करना हो । भेंरवा भेंरवा देवताहे ढुरी खम्बा (ढुरी खामा) फेन कहिजाइठ । सब देवताहे मिलाके अप्ने सबके बीचमे आसन जमाइल ओरसे ढुरखम्बा कहल हो । टबे यिहिनहे देवताहुकनके संयोजक फेन कहिजाइठ । पाँचो पाण्डो महाभारतके पाँच पाण्डव पाँचो पाण्डो हुइट । मरुवाके पूर्वओर पाँचठो अशिद्धा वनपस्पतिके कीलाके प्रतीकके रूपमे अइने स्थान पैले रहठैं । पूर्व भवानी मरुवाके उत्तर पूर्वके कोनुवमे स्थापित रठी । यिकान कौनो प्रतीक नैरहठ । पूर्व दिशासे कौनो रोग, हैजा जैसिन महामारी अइलमे रोकठ कना विश्वास करजाइठ । यि फेन पाँच पाण्डवजस्टे रगत, डारु नैखैठैं । दनुवा मरुवाके पश्चिम उत्तर कोनुवामे रठैं यिकान काम अप्ने मन्द्रा ठठाके डहरचण्डीहे नचैना हो । टबे यिहिनहे हरेरी पूजामे कठुवक मन्द्रा ओ चप्पल बनाके चह्राजाइठ । बाघेश्रीके काम पशु रक्षा करना हो । जंगली जनावरके चंगुलसे घरेलु जनावरहे रक्षा करना यिकान भूमिका रहठ । बाघेश्रीके कौनो प्रतिक नैरहठ मने यिकान स्थानमे माटिक बाघ ओ एक ठो अण्डा गारजाइठ । गवरिया मरुवा से बाहेर खेटुवामे रहठैं । यिकान नामसे मरुवामे खोल्टा पारके पुजजाइठ । यिकान प्रतीक खेतके डुम्ना (ढेंग ढिस्का) मे काठमे पट्टी रहठ । कीरासे बालीनालीके रक्षा, हैजा, महामारी रोकेक लाग यि भूमिका खेल्ना विश्वास करजाइठ । कोटिया मरुवासे बाहेर गाउँके दक्षिण दिशामे रहठैं । यिकान काम दक्षिण भेगसे अइना रोगव्याधिसे गाउँलेहे रक्षा करना हो । करैचाकोट भावार्थ घना जंगल रहठ । यिहिनहे जंगलमे नैपूजीके मरुवाके पश्चिमओर खोल्टा बनाके स्थान डेहल रहठ । बडेलवो भोजमे आगीपानीके ख्याल करठ । साथे तेल रोटी अन्य खाना पकाइबेर खैनाके स्थास्थ्यमे हानी नाकरे कहिके पूजा करजाइठ । कुइया पानी गाउँके कुवा, नदीघाटमे रठैं । टबे यिहिनहे कुइया पानीसँगे घटुरिया (नदिघटुवा नंघना) फेन कहिजाइठ । यि पिनापानी शुद्ध रख्ठैं ओ बिरामी परे नैडेठैं कना कहाई बा ।

डारुसे थारू समाजमे पारल प्रभाव

थारू समाजमे डारु सांस्कृतिक रूपमे अपरिहार्य तत्वके रूपमे रहल ओरसे, यिहिनहे थारू समाजसे अलग्यइना एकडम कठिन बा । डारुक अनियन्त्रित सेवनसे थारूहुक्रे मदिराजन्य रोगसे दीर्घकालिन शिकार हुइनाके साथसाथे, सामाजिक रूपमे अपमानित हुइना ओ अपन घरजग्गा गुमैटी गिल बाटैं ।

वि.स. २०२१ साल से पहिले दाङ लगायत तराईके जिल्लामे करिब एकछत्र रूपमे राज करके बैठल थारूहुक्रे तराईमे औलो उन्मुलन, पूर्वपश्चिम राजमार्गसे तराईमे सबके पहुँच हुइना ओ भूमि सुधार कार्यक्रम लागु हुइलपाछे, तत्कालीन ७५ ठो जिल्लाके मनै तराईमे बसाई सरल हुइट ।

मुख्य पेशा कृषि रहल ओ सांस्कृतिक मान्यता तथा मनोरञ्जनके प्रमुख साधन डारु रहल थारूहुकनसे आगन्तुक गैर थारूहुक्रे सहजिले जग्गा अपन स्वामित्वमे करैलैं । थारूहुकनमे लेखपढ करना प्रचलन नैरहे, सब अनपढ रहैं, शिक्षाप्रति नकारात्मक धारणा रहे । तत्कालीन समयमे थारू समुदायमे ‘पढो गुणो कौने काम, हर जोतो धाने धान’ कना उक्ति अत्यन्ते लोकप्रिय रहे । तसर्थ पहिल बाट ओइने अपने कारणसे फेन हरेक क्षेत्रमे पाछे परटी गिलैं, कलेसे बाहेरसे आइल गैरथारूहुक्रे ओइनके कमजोरीके फाइदा उठाके सहजिले ओइनके थाँतथलो उप्पर कब्जा जमैलैं ओ जमिनके मालिक थारूहुक्रे, औयनके जमिनमे भूदासके रूपमे रूपान्तरित हुइलैं । अब्बे थारूहुक्रे ओ नेपालके गरिब समुदाय पर्यायवाची शब्द जस्टे हुइल बा ।

उपरोक्त सवालहे थारूहुकनके सबसे पुरान ओ एक ठो किल छाता संगठन थारू कल्याणकारिणी सभा, यकर स्थापना काल वि.सं. २००५ सालसे निरन्तर रूपमे थारू जातिमे डारु सेवन निषेध अभियान संचालन करटी आइल बा । टबे यि सवालमे टमान संघसंस्था ओ राजनैतिक पार्टीहुक्रे फेन सचेतता अभियान चलैलेसे समेत खासे सकारात्मक परिणाम आइ सेकल नैडेखाइड ।

उपसंहार

उप्पर उल्लेख हुइल जस्टे थारू संस्कृतिके हरेक विधि ओ विधानमे डारुक प्रयोग व्यापक करल बाट ढेरहे पता बा । उहिनहे हटाइ परठ कहिके अभियान फेन संचालन हुइल बा तथापि दशकौंके अभियानपाछे फेन सकारात्मक परिणाम आइ सेकल नैहो । अभियानसे कौनो सकारात्मक परिणाम नैआइलपाछे आजित हुके थारू अभियन्ताहुक्रे थारू धर्म परिवर्तन करके अन्य धर्ममे पलायन हुइल टमान उदारहण डेखना ओ सुन्नामे आइल बा । यदि यी सवालहे साँच्चके वैज्ञानिक रूपमे संवोधन नैहुइ कलेसे थारू धर्म ओ संस्कृति अन्य धर्ममे पलायन हुके लोप हुइना बाटमे कौनो शंका नैहो । यी समस्याहे निराकरण करेक लाग थारू संस्कृतिभित्तरके प्रथाजन्य कानूनके अध्ययन करके कौनो प्रथाजनित काननूसे डारु सेवनहे अनिवार्य बनाइल बा, ओकर पहिचान करना ओ ओकर संशोधन वा खारेजीके संभावना खोजी करना आजके आवश्यकता हो । यकर लाग थारू संस्कृतिमे डारुके प्रयोग बारे वैज्ञानिक अध्ययनके खाँचो बा ।

सन्दर्भग्रन्थ

  • रेग्मी महेशचन्द्र, नेपालको आर्थिक इतिहास एक अध्ययन (न्युदिल्ली मञ्जुश्री पव्लिकेशन् हाउस, इ.स.१९६६)
  • रेग्मी जगदिशचन्द्र, नेपालको र्धािर्मक इतिहास र प्राचिनकाल (रत्न पुस्तक भण्डार काठमाडौं, वि.स. २०३९)
  • गौतम टेकनाथ, थारू जातिको इतिहास तथा संस्कृति (दाङ सुशिल गौतम, वि.स.२०४४) दहित गोपाल, थारू संस्कृतिको संक्षिप्त परिचय (जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रष्ठिान, सानेपा ललितपुर वि.स.२०६२)
  • चौधरी महेश, नेपालको तराई र यसका मूमिपुत्रहरू (शान्ति चौधरी, वि.स. २०६४) चौधरी श्रीराम, थारूहरूको संक्षिप्त अर्थ राजनिति (समाजमा वातावरणीय शिक्षाको विकास, वि.स.२०६४)

जनाअवजको टिप्पणीहरू