नेलशन मण्डेला ओ रेशम चौधरी

महिला पत्रकार स्टिना डाब्रोस्की सन् १९९४ मे राष्ट्रपति भवनमे जाके नेलशन मण्डेलाहे अइसिन प्रश्न पुछ्ले रहिटः ‘काल्हके दिन जेलमे रही टबे अप्नेहे छुटम कना का बाटसे आशावादी बनैले रहे ?’
मण्डेला जवाफमे अइसिन कले रहिटः ‘महिन आशावादी बनैना चिज कलेक मोर संघरियन, सहकर्मी ओ मोर पार्टी रहे ।’
मण्डेला एक्केली व्यक्ति जेलमे बैठल नैरहिट । उहाँ अपन लाखौँ शुभचिन्तक संघरिया ओ पार्टीके विचार रहे । अर्थात उहाँ व्यक्ति नैरहिट एक संस्था रहिट । उहाँ जेलभित्तर बैठ्लेसे फेन बाहेर शुभचिन्तक ओ पार्टी समर्पित भावनासे संगठित ओ संघर्ष करटी रहिट । मण्डेला जेल गिलेसे फेन उहाँक् जनता तितरबितर नैहुइलैं, हात नैउठैलैं, आत्मसमर्पण नैकरलैं । अन्ततः मण्डेलाके राजनीतिक मिसन सफल हुइल ।
यहोर हमार रेशम चौधरी जेलमे बाटैं । उहाँ जेलसे छुटेक लाग किहिनसंग भरोसा रहना ? आफन्त ? पार्टी ? अदालत ? कोइ नैहो ।
रेशम चौधरी कौन पार्टीके नेतृत्व करके आन्दोलन करले रहिट ? उ पार्टी कहाँ बा ? उ पार्टीके आईडियोलोजी का रहे ? रेशम चौधरीसंग काल्ह आन्दोलन करुइया सहकर्मी अब्ब केहोर का करटैं ? अन्तिम अवस्थामे आके उहाँ लागल पार्टी (तेसर भारी दल) उहाँहे छुटैना प्रयत्न काहे करट नैहो ?
हो, रेशमके आफन्त हम्रे सामाजिक भीडकिल हुइ, राजनीतिक भिड नैहुइ । हमार सामाजिक अवस्था कविला युगके बा, अभिन राष्ट्र हुइल नैहो । चेतनासे हम्रे नागरिक हुइल नैहुइटी, अभिन दास ओ रैतीके हैसियतमे बाटी । रेशमके आफन्त हम्रे अभिन आधुनिक कमलरी हुके बैठल बाटी । काँग्रेस–कम्युनिष्टके हली–गोठाला हुके बैठल बाटी । शिक्षा चेतना ग्रहण करनासे घोँगी, मच्छी, गेंगटा सबटोरनामे किल अलमलमे बाटी ।
अत्रा किल नाइहो, दमनकारी पीडकहुकनके माठ ठठाइपरनामे ढोल, झ्याम्टा, डमरू, डम्फु, मन्द्रा किल ठठैटी बैठल बाटी । धराने सुव्वर ओ जारके पोषसे भट्टीक् साहुनीसंग खेलुवार करटी बिटैले बाटी । लाईब्रेरीमे नाइ, लैबरीमे उमेर कटैटी बाटी । रेशम चौधरीके हम्रे आफन्त अपन संस्कृतिहे राजनीतिक पुँजी बनाइ सेकले नैहुइ ।
