ओली प्रवृत्तिके अन्त्य

सर्वोच्च अदालत प्रतिनिधिसभा विघटन करना सरकारके निर्णय बदर करल पाछे मंगरके डिनभर राजनीतिक सरगर्मी बह्रल । संसद् विघटनविरुद्ध सर्वोच्च अदालतमे १३ ठो रिट निवेदन परल रहे । पुस ५ गते केपी ओली अगुवाइके सरकार प्रतिनिधिसभा भंग कर्ले रहे । संसद पुनस्थापनले ओली गुटबाहेक सब जनहनके मुहारमे खुसियाली झलकल बा । इहे खुसिमे मंगरके सन्झा सबओर दीप प्रज्ल्वन कैगैल बा ।
प्रधानन्यायाधीश चोलेन्द्र शम्शेर जबरा नेतृत्वके ५ सदस्यीय संवैधानिक इजलाससे प्रतिनिधिसभा विघटन करना सरकारके निर्णय असंवैधानिक ठहर करटी बदर करना सर्वसम्मति निर्णय करल । जबकि मन्त्रिपरिषद्के सिफारिसमे राष्ट्रपति विद्यादेवी भण्डारी प्रतिनिधिसभा विघटन करके अइना वैशाख १७ ओ २७ गतेके लाग निर्वाचन समेट टोक सेक्ले रही ।
फैसलासंगे सर्वोच्च १३ डिन भिट्टर प्रतिनिधि सभाके बैठक बलैना फेन सरकारहे परमादेश डेले बा । फैसलाले ओली अगुवाइके सरकार अनेक चलखेल कैना डगर बन्ड हुइल बा । जबकि प्रदेश सरकारहे फेन सत्तापक्ष अपनेहे चले नैडेके प्रदेश सरकार फेन भंग कैना अंहकारी बोलि बोले लागल रहिट । स्थानीय सरकारके कुछ गाउँपालिका टे बिरोधी समुहहे राजिनामा बुझाइल कहटि जनप्रतिनिधिन हटाइ फेन लागल रहिट । कामचलाउ सरकार संवैधानिक नियुक्ति भटाभट डेहे लागल रहे ।
मेरमेरिक अड्कलबाजीबीच पुरे २ महिनासम संवैधानिक इजलासमे चलल् सुनुवाइ प्रक्रियापाछे प्रधानमन्त्रीके सनकमे संविधान उपर हुइल हमला खारेज हुइल बा । संसद बिघटनके लग संविधानके धाराके अपन अनुकुल व्याख्या करुइयनके मुहेम कारिख पोटगैल बा । सर्वोच्च संविधानमे प्रतिनिधि सभाके कार्यकाल पाँच बरस उल्लेख रहल सम्झैटि बिचेम विघटन कर्ना परिकल्पना संविधान नैकरल बाट फर्छेइले बा । यदि सरकार बन्ना विकल्प नैहुइलेसे किल प्रधानमन्त्री संसद विघटनके सिफारिस करे मिल्ना सर्वोच्चके फैसलाके मर्म बटिस । इहिसे कुछ मनैनके संविधानहे डस्टविनमे फँकैना योजना चकनाचुर हुइल बा ।
प्रधानमन्त्रीहे अब्बे टुरुन्ट राजिनामा डेके डोसर सरकारके लग डगर खोल्डना बाहेक डोसर उपाय नै हुइन् । हाँ, उ संसद फेस करे सेक्ठाँ । मने हुँकार अनेक टिकडमले सरकार चलाइक लग बहुमट पुगाइ सेक्ना अवस्ठा अब्बे नैहुइन ।
सर्वोच्चके फैसलाले विधिके सासन बा कना प्रस्ट हुइल बा । न्यायाधीश पहिले कोनो पार्टीके कोटामे गइलेसे फेन संसद विघटनके मुद्दामे केक्रो फरक राय नैअइलिन । सर्वोच्च अपन ओज्रार बौनि कायम करल ।
ओसिन टे प्रधानमन्त्री ओली सर्वोच्चके फैसला अपन अनुकुल नैअइलेसे फेन आपन राजनीति नै ओरैना अभिव्यक्ति फैसलाके एकडिन आघे डे सेक्ले बटाँ । सनकके भरमे संविधानके घेंघा डब्ना ओली प्रवृत्तिके अन्त्य हुइल बा । इहिले ओली किल नाहि आब बन्ना औरे सासकलोग अब्बेहेसे पाठ सिखक चाहि । बहुमत नैपुग्लेसे फेन ओली अक्केलि बल्गर नै रहिट । हुँकहिन गलत कामके लग फेन बल्गर बनैना परिस्थिति लनुइया हुँकारे दल भिट्टरके मनै फेन ओटरे जिम्मेवार बटाँ । जे संविधानके हाँठ गोरा बाँढे डँटल रहिट ।
कोभिड महामारीले नेपाली जनता ओस्टे कुल्मुलाइल बटाँ । अर्थतन्त्र गुल्गुलाइल बेला देश बोके नैसेक्ना चुनावी खर्चके बाध्यता आबक लग पुहल बा । ओस्टक पुस ५ गते पाछे सरकारसे कैगैल नियुक्ति स्वतः बदर हुइल बा । ओसिन नियुक्ति लेहुइयन फेन नैतिकताके आधारमे राजिनामा डेहक चाहि । इहिले अदालतके फैसलाके गरिमा किल नाहि ओइनके फेन गरिमा बह्रहिन । आब विधिके सासन, संविधानके मर्यादा ओ जनटनके सर्वोच्चताहे ख्याल कैटि पार्टीके अगुवन अपन उपर आइल जिम्मेवारीके सदुपयोग करे सेकिट । देशहे निकास डेहुइया न्यायमूर्तिन सलाम ।
