‘ कविता ’
अबहट्टाके बाट
पहुरा |
१५ फाल्गुन २०७७, शनिबार

शब्द–शब्दसे लिख रहलची थारु साहित्यके नाम रे
चौअनी अठअन्नी नै माँगैची हम कोनो दाम रे ।।
नजर गैहरयाके देख आँईखके पलक उघाईरके देख
माईटमे एक–एक अवाज तोहर अबहट्टाके बाट देख ।।
बटोहियाके बाट लिहारैत अबहट्टाके निसान रे
थारुके देश देखलक नालन्दा विश्वविद्यालयके पद्मसम्भा रे ।।
बाट–बाटमे अशोक नामके अबहट्टामे निसान झलकल
रस्ता पेरामे अबहट्टाके अबाजसे आईख फर्कल ।।
माईटके कण–कणमे लिखल अभहट्टाके नाम रे
आँईखसे लोर छलकल अवाज कर्ता थारुके निसान रे ।।
पूर्वसे पश्चिमतक उत्तरी पहाडसे दक्षिणतक
खाक खल्सादेख अबहट्टा घोसरल तलहटिकत ।।
विद्वानके ओठसे छलैक उठैत थारुके देश रे
अबहट्टाके रग–रगमे भरल अबहट्टाके भेष रे ।।
कञ्चनरुप नपा–११, बेङ्गरी, सप्तरी
