साहित्यके ‘डेसाहुर’मे शेखर

शेखर भाइक ‘गयर्वा बुडु’ पहिल खिस्सा संग्रह पह्रके लागल रहे, भाइक मरमसाला ओरा गैल हुइहिन । आब हुँकार लेखन अट्रे हुइहिन । काजेकि पहिल खिस्सा संग्रह निकारके उ बिर्कुल सम्पर्कबिहिन हो गैल रहिट । मने सोचलसे ठिक उल्टा हुइल । थारु खिस्सा लेखनमे उ अट्रा हालि क्रान्ति लन्हि, इ मोर सोंचसे बाहेर रहे । सन्तराम धारकटवाके बाड थारु खिस्साके बिंरा के ठाम्हि कहेबेर सोझे कहे सेक्ना बा, शेखर दहित ।
इ खिस्सा संग्रह छापके अइनासे पहिले यकर भिट्टरके मै जम्मा डुइएठो खिस्सा पह्रले रहुँ । जंग्रार साहित्यिक बखेरीक् १०औ बार्षिकोत्सवमे पहिला हुइल खिस्सा ‘कर्या अच्छर’ ओ जुममे हुइल बटकुहि विसेस कार्यक्रममे सुनागैल ‘रौना’ खिस्सा । कौनो फलफुल चिखक लग पुरा किम्होरे नै परठ । इ डुनु खिस्सा चिखेबेर खिस्सा गोडामिल लागल । खिस्साके सिर्सक जो हेरके इ भिट्टरके पहुरा अग्र्यानिक बा कना मोर ठहर रहे । छप्के आइल टे एकसस्सुँ पह्रलुँ । शेखरके इ खिस्सा संग्रह छपाइके क्वालिटिसे लेके लिखाइके बनोट सम ‘ए वन’ बा ।
शेखरके लेखनके मिठासके बारेम बहुट ठाउँमे ‘पन्चायट’ करे पर्ना अवस्ठा बिल्गाइटा । अस्रा करि, आब थारु आख्यानसे हुँकार कबु ‘छुटापाटि’ नै हुइहिन । आब हम्रहिन उ ‘झुक्का’हस झुक्याइ नै पैने हुइट । भाइनसे संगट कैके महि कौनो ‘पस्टो’ नैहो । उ हमार पुर्खनके ‘कर्या अच्छर’के पोक्रि खोलल् करिट । महि लागठ, शेखर भाइके लेखनले थारु आख्यानमे ‘करोट’ फेर्ले बा । उ साहित्यके ‘डेसाहुर’ जिन्गिभर करिट, कबु ‘खटोलपाट’ लेना मन ना बनाइट । यडि खटोलपाट लिहि कलेसे ‘रौना’ बनके डुरवाइ ना परे ।

