परम्परागत घर ओ पहिचानके सवाल

जिन्गिमे एकठो घर सक्हुनके सपना रहठ । कमाइक लग कोइ देशमे पस्ना चुहाए या विदेशमे । सबके सपना रहठ एकठो घर । विदेश जउइयन ४ बरसके लग भिसा पैहि कलेसे २ बरसके कमाहिले घरेरि जोरहि, बाँकि २ बरसके कमाइले छोट बर घर ठह्रवइहि । डाइबाबन् फेन सोच्ठाँ, ‘हमार जुनि टे छप्रक घरेम बिट गैल । सब छावन्के एक एकठो पक्कि घर रहट टे । कट्रा मजा हुइने रहे ।’
असिक आधुनिक घरक सपनाले परम्परागत रुपमे बनल थारु लगायट टमान आदिवसीनके घर लोप हुइना अवस्ठा बा । इहे क्रममे आकर्षक डिजाइन माटीसे लिपपोट करल कठ्वासे बनल रानाथारु समुदायके एक मौलिक ओ साँस्कृतिक पहिचान रलक घर फेन ढिरे ढिरे लोप हुइना अवस्ठम पुगल बा । परम्परागत घर हटाके धमाधम पक्की घर बन्टी रहल ओर्से रानाथारु समुदायके परम्परागत घर लोप हुइना अवस्ठा अइलक हो ।
घरके बनावट फेन उ समुदायके पहिचान खोलठ । रानाथारु समुदायके परम्परागत घर लोप हुइटी गैलपाछे रानाथारु समुदायके पहिचानसमेत लोप हुइ लागल बा । हुइना टे काठके अभावके कारन परम्परागत घर लोप हुइटी गैल उ समुदायके कहाइ बा । डंगौरा, कठरिया या रानाथारु सक्कु थारु समुदायके परम्परागत घर जारेम डन्डुर रहना ओ गर्मीमे जुर रहठ् । चारुवरसे हावा खेल्ना यकर लग कौनो एसि नै चाहठ । मन्ने पक्कि घरेम पंखा झुरैहि पर्ना अवस्ठा बा ।
परम्परागत घरेम काठ, माटी, खर, टायल लगायत निर्माणके सामग्रीके प्रयोग हुइठ । डुरेसे इ रानाथारु बस्ति कना चिन्हजाइठ । मने पक्की घर बनैना होडबाजी चल्टी रहल समयमे रानाथारु समुदायके अइना पिढीसे परम्परागत घरके झल्को फेन नै पैना अवस्ठा रहल कारन राना थारु अग्वन चिन्टिट बाटै । आब चिन्टा कैके किल नइ हुइ । पहिचानके लग परम्परागत घर जोगैहि पर्ना डेखाइठ ।
आधुनिक इन्जिनियरहे पुराने परम्परागत डिजाइन अनुसार घरक् नक्सा बनाइ कलेसे घर पक्कि फेन रना, मने घरक भिटरि डेकोरेसन परम्परागत बनाके पहिचान जोगाइ सेक्ना अवस्ठा बा । भक्तपुरके रविन्द्र पुरी नेवार पहिचान जोगाइक लग पुरान घर मर्मट कैना अभियानमे बाटै । थारु समुदायक इन्जिनियर फेन पुरान परम्परागट घर डिजाइनमे ढ्यान डिट । मने घर कसिन बनैना, घरगोस्यक रोजाइ हो । आढुनिक घरेम डेहुरार जो लोप हुइना चिन्टाके बाट हो ।
