थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत ३० बैशाख २६४९, मंगर ]
[ वि.सं ३० बैशाख २०८२, मंगलवार ]
[ 13 May 2025, Tuesday ]

थारु भासाके तीन धार

पहुरा | ३ चैत्र २०७७, मंगलवार
थारु भासाके तीन धार

नेपाल भासिक आर जातिय विविधता के देस छेकी । नेपालके संविधान २०७२ मे १२३ टा जातके पहिचान करल छी । महज अखनतक आरना छुटल जातके पहिचन हावेके क्रम जरी रहल छी । भसा आयोगके खोजके अधारमे थप ८ रा जात फेनसे पता लगलकिस जकर चल्ते येतेकर भसाके संख्यामे बढोतरी हेथै ज्या रहल छी । उना जातके बाहुल्यतता के अधारमे थारुके जनसंख्या चौथा स्थानमे रहल छी ।

थारु भसा पुरु मेचीसे ल्याके पछिम महाकाली तक तराइके बहुत जिल्लामे बोल्थै आविरहल छी । महज एक जघके थारुसव दोसर जघके थारुसङे बातचित करछी जन त सम्पर्क भसा नेपालीके सहयोग लेछी । यिटा दुखके बात छेकी आपने जातसङे दोसर भसाके परयोग करनाइ ? वेह्यासे थारु भसाके विकास आर एकताके खातिर थारु कल्यान कारिनी सभा आर थारु निमाङ मेडिया मानक भसा बनावेमे आ–आपन तरिकासे पहल करिरहल छी । यिटाके खातिर बहुत जुम मिटिङ भी करी चुकलकिस । महज वोकरसियाके पहलमे जे काम हाविरहल छी उनाके विहयाके देखलासे थारु भसाके तिन धार देखा परछी ।

क.पुरातनवादी सोच

खास करिके पहेनकर सरजक आर परम्परावादी सोचमे अधारित रहल विचारवादीसवके धारना कुन छी की थारु भसा नेपाली भसाके अधार ल्याके निखेके चाही । नेपाली वरनमलामे जतन्याँ वरन रहल छी उनाके मान्याता देवेके चाही । जकर चल्ते अखनकर पुस्तासव जे एकटा लैया सोच ल्याके आगु बढलिस उना विचारसे फरक किसिमके धारना राखी रहल छी । थारु भसामे एकोटा बरन नै छुटेके चाही । तकरवाद तत्सम आर आगन्तुक सवदके हकमे भी वेह्या किसिमके मान्याता राखी रहल छी । यि किसिमके पुरातनवादी सोच आर बार्निक चस्मा लग्याके थारु भसाके मानक बनावे लगिन कतन्याँ सहज हेती या नै हेती आवे वला समय मे थाह लागती ? दोसर बात कुन छिकी थारु बाहेक आरना जातसव भी आपन भसा पहिचानके क्रममे आगु बढी रहल छी ओहोना के अध्ययन करना जरुरी छी कि नै ? ओकराका आपन मौलिकताके अधार बन्याँ के उच्चारनके अधारमे आपने वरनमलामे सिमित रहल छी । वोकराका नेपालीके सवटा वरन क्यामनी सुकारे साकल्की ? हमराका आपन मौलिकता आर उच्चारनके अधारमे कुछ वरनसव छोरिुके थारु भसा निखे साकवी कि नै ?

ख.मध्य–पुर्विया सोच

मध्य–पुर्विया चिन्तनवादीसव फरक धारसे आगु बढी रहल छी । थारु भसाके वरन निर्धारन करे लगिन त्रिभुवन विश्व विद्यालयके नेतृत्वमे बरसो बरसोतक झापासे ल्याके बारा पर्सातक खोज अनुसन्धान, भासिक सर्वेक्छन, ल्याव टेस्ट, कथा रेकर्डिङ लगायत बहुत जिम्मेवारी बहन करल छी । वरन पहिचानसे ल्याके वरन निर्धारन, लेखन सैली, व्याकरन, सवदकोस निकाली चुकलकिस । थारु भसाके प्रचार प्रसार आर जग बरिय बनावेके खातिर बहुत जिल्लामे तालिम, लेखन अभ्यासके खातिर पतरिका परकासन आर अनौपचारिक सिछाके सुरवात लगातार अभ्यासके रुपमे करिरहल छी ।

मध्य–पुर्वियासवके सोच कुन छी की थारु भसामे अनावस्यक रुपमे नेपालीके सवटा वरन ढेरियाके भसाके बोझ नै बनावम । भसा सरल आर व्यवस्थित बनावम । हरेक भसाके आपने सिद्धान्त आर नियम रहछी । भसा विग्यानके अधार ल्याके आगु बढेके चल्ते आपन छेतर व्यापक रुपमे विस्तार करिलेल छी । जकर चल्ते झापासे ल्याके बारा पर्सातकके लेखनमे एक रुपता आने लतिन सफल भेल छी ।

ग.पैछमा सोच

खास करिके पछिम महर रहल थारुसवके सोच दुइ धारमे देखा परछी । राना थारु आर डंगौरा थारु ।

अख्ने राना थारुसव हमराका थारु नै छेखिन कहिके थारुसे छुटिके जनजातिमे सुचिकृत भ्या गेल छी । यिटासे थारुसवके बहुत घटा भ्या रहल छी । क्यामकी राना थारुसे छुटलाकेवाद थारुके जनसंख्या घटिरहल छी । तकरवाद छुटै जातमे सुचिकृत भेलासे वोखरुका अल्पमतमे परिये जेती । यिना बात वोखरुका मनन करिके पाछु फेनसे थारु जातिमे येवे करती यिटामे दुइ मत नै छी । अख्ने राना थारुसव भसा आयोगके नेतृत्वमे थारु व्याकरन निखेमे जुटी गेल छी ।

डंगौरा थारुसव भी वरन पहिचान करि लेलकिस । वोकरसियाके वरनमे त, थ, द, ध नै भेटलिस जन त आरना चिज मध्य–पुर्वियासङे मेल ख्या रहल छी । ह्रस्व, दिर्धके सवलमे खाली ह्रस्व निखेके अभ्यास करिरहल छी । अखनतक पछिम महर बहुत साहित्यिक सिर्जना भ्या गेल छी आर कुछ दिन सर्वाहारी जी गोरखा पत्रके थारु भसाके पृस्ठमे यिटा सैलीके अभ्यास करी चुकलकिस ।

थारु भसाके मानक बनावे लगना तिनोरो धारके एकेटा जधमे आनना जरुरी छी । वेह्यासे तिनटा धारसे जे फरक फरक विचार आवी रहल छी सव्हैके भासिक चस्मा लग्याके देखना जरुरी छी । तकरवादे बुझे साकती थारु भसा किरङके निखेके चाही । जव भसा फरक छी जन त वरन फरक होना स्वभाविक छी । अख्ने जे किसिमके संवाद आर पहल हावी रहल छी सवका आपने अरुानमे रहती जन त थारु भसाके मानक बनावे नै साकती । पुरातनवादीसवके आपन सोचमे परिवर्तन करना जरुरी छी । हरेक भसाके आपने सिद्धान्त आर नियम रहछी । जेरङ कोइ फुटबल खेलारुी खेलमे अभ्यस्त भ्या गेलाकेवाद जव भलिवल खेले जेती त वे ट्याङ ल्याके मारे खोझती त कुन हेती ? वोहिरङे नेपाली निखाइमे अभ्यस्त हावेके कारनसे आर थारुके वरन निर्धारन प्रकियामे योगदान आर तालिम नै देवेके वजसे यि किसिमके दिगभ्रममे फसल छी ।

आव बात रहली मध्य–पुर्विया आर पैछमामे । यिना दुनोराके सोचमे बहुत समानता पेल जेछी क्यामकी थारु भसाके विकासके खातिर एकटा निखेके सैली तयार करल छी । थारु भसा आपन मौलिक उच्चारनके अधारमे निखेके चाही । उच्चारन आर वास्तविक लवज छोरिुदेलासे थारु भसा कुन महर जेती पता नै छी । वेह्यासे सवका आपन अरुन छोरिके लैया सिरासे जानइ जरुरी छी । थारु भसाके मानक बनावे लगिन एकटा साझा लेखन सैलीके विकास करना जरुरी छी । लेखन सैलीके अधार मानिके निखलासे निखाइमे एकरुपता येती । तकरवाद सावदिक भिन्नताके बात रहती उना पर्यायवाची के रुपमे आपन स्थान ग्रहन करती । यि किसिमसे सुरुवात करलासे थारु मानक भसा बनावे लगिन सहज हेती ।

साभारः गोरखापत्र दैनिकसे
email:bholaram.chy@gmail.com|
(बुढीगंगा–२ बौराह, मोरङ निवासी लेखक थारु आयोगके सदस्य हुइट ।)

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