भाषिक मृत्युसंगे पहिचानके सवाल

एक जाने कले रहैं, महिन हेरके कोइ मै थारु हो कहे सेकी ? मोर पहिरन हेरलेसे आधुनिक समय अन्सारके कोट पाइन्ट लगैठु । आब अप्नही कहि महिनहे चिन्हा ओ चिन्हैना डगर का रहल टे ?
अप्नही प्रतिजवाफ डेलैं, महिन चिन्हा चिन्हैना एकठो किल डगर बा, उ हो ‘भाषा’ । भाषा मोर पहिचान करैले बा । मै के हुँ कना बाट डेखैले बा । यी कहाइ हो वरिष्ठ संस्कृतविद् अशोक थारुके ।
अशोक थारुके नजरसे हेरलेसे भाषाके महत्वबारे ओस्टे फेननि छर्लङ पारडेहठ । वरिष्ठ पत्रकार/साहित्यकार डा. कृष्णराज सर्वहारी इन्डिजिनियस टेलिभिजनमे मुख्य करके भाषाके संरक्षण करना कहिके थारु भाषाके कार्यक्रम ‘चली गोचाली’ सञ्चालन करलैं । ओ, यकर बागडोर अब्बे महिन सुम्पले बाटैं । जोन काम हम्रे निरन्तर करटी बाटी ।
पहिचानके लडाईमे लरटीरहल थारुलगायत अन्य आदिवासी जनजातिहुक्रे पहिचान ओ भाषा कैसिक जोरल बा कनाबाट प्रष्ट बुझेपरना अवस्था बा । यकर महत्व ओ अन्तर्राष्ट्रिय सम्झौता तथा नेपाली नीति बुझ्ना ओत्रे आवश्यक बा ।
भाषा कलेक मनमे रहल अपन बाट सहज रुपमे औरे व्यक्तिहुकनहे बुझैना प्रयोग हुइना एक महत्वपूर्ण साधन वा कहि माध्यम हो । सरल तरिकासे हम्रे अइसिक बुझे सेक्ठी भाषाके परिभाषाहे ।
पहिचानके कडीसंगे जोरल भाषा संरक्षणके लाग अन्तर्राष्ट्रिय स्तरमे सन् २०१९ हे संयुक्त राष्ट्रसंघ ‘दिगो विकास, शान्ति ओ मेलमिलापके लाग भाषा’ कना नारासहित अन्तर्राष्ट्रिय आदिवासी भाषा वर्ष घोषणा करके वर्षभर उत्सवके रुपमे मनैना घोषण करले रहे ।
एक दिनसे किल नैहुइठ कहिके संयुक्त राष्ट्र संघ ओ युनेस्को आदिवासी जनजातिके भाषा संरक्षणके लाग सन् २०२० से २०३० सम अन्तर्राष्ट्रिय आदिवासी भाषा दशक घोषणा करना तयारी समेत करले रहे ।
विश्वके टमान नब्बे देशमे करिव पचास करोड आदिवासीहुक्रे बसोबास करठैं । विश्वमे बोल्ना ७ हजार भाषामध्ये करिव ९५ प्रतिशत भाषा आदिवासीहुकनके मातृभाषा अन्तर्गत परठ । टबफेन ९५ प्रतिशतहे ५ प्रतिशतसे कैसिक निलसेक्ले बा कना बाट हम्रे छर्लङ डेखे सेक्ठी ।
मने सरोकारवालाहुकनके क्रियाकलाप हेरलेसे भाषा वर्षसे किहुनहे छसवल नैडेखाइठ । नेपालके संवैधानिक रुपमे गठन हुइल भाषा आयोग रहे या त्रिभुवन विश्वविद्यालयके केन्द्रिय भाषा विभाग रहे मौनजस्टे डेखैठैं । भाषा वर्ष घोषणा हुइलपाछे नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान ओ आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानके एक गोष्ठी बाहेक औरे काम कुट हुइल नैहो ।
विश्व तथ्यांकहे हेरलेसे एक सय से ढेर भाषा बोल्ना देशमे नेपाल २० औँ स्थानमे परठ । नेपालके सन्दर्भमे आदिवासी जनजातिहुकनके बाट करना हो कलेसे नेपालमे बोल्ना एक सय तेइस भाषामध्ये एकसय सत्र ठो भाषा आदिवासीके बा । ११७ ठो आदिवासी जनजातिके भाषाके कारणसे विश्वमे स्थान बनैना सफल हुइल नेपाल ओहे भाषा संरक्षण करेपरठ कना नीतिगत तरिकासे आखिर काहे लागे सेकल नैहो कना प्रश्न फेन टेह्कल बा ।
यी तथ्याङसे का प्रष्ट करठ कलेसे छ ठो भाषासे एक सय सत्र आदिवासी भाषाहे कैसिक ओझेलमे परले बा कना बाट प्रष्ट डेखाइठ । उहिनसे फेन मुस्किलसे १३/१४ ठो भाषाके किल वर्ण पहिचान, शब्द संकलन तथा व्याकरण निर्माण हुइल डेखाइठ ।
सबसे डरलग्ना बाट का बा कलेसे भाषा आयोगके तथ्याङ्कअन्सार आदिवासीके ३७ से ढेर भाषा मृत वा प्रायः लोपोन्मुख अवस्थामे बा । करिव एक दर्जन भाषा मरसेकल फेन बा । टबफेन नेपालमे कत्रा मातृभाषा व्यवहारिक तवरमे अभ्यासमे बा वा ओइनके अवस्था कैसिन बा कनाबारे वैज्ञानिक अध्ययन हुइल भर नैपाजाइठ । विश्वभरके आदिवासीहुक्रे बोल्नो भाषामध्ये करिव ४० प्रतिशत अर्थात् दुई हजार छ सय असी ठो भाषा लोपोन्मुख अवस्थामे बा ।
यी वर्ष फागुन ९ गते अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस फेन नेपालमे सम्पन्न हुइल बा । मने प्रश्न यहाँ आइठ कि एक दिन दिवस मनाके का मातृभाषा संरक्षण हुइ टे ? वास्तवमे भाषा अप्नही नैमरठ, भाषा मर्न वातावरण राज्य संयन्त्रसे तयार करठ । कौन भाषा फैलैना, कौन भाषा हेरैना बाट राज्यके भाषा नीतिमे निर्भर हुइठ ।
आदिवासी जनजातिके भाषा सरकारी कामकाजके भाषा बने नैसेकलेसे फेन भाषासम्बन्धी कुछ काम भर सुचारु हुइटी आइल बा । यद्यपि अधिकांश भाषा राज्यके एकल भाषा नीतिके प्रभावस्वरुप दैनिक जनजीविकासंगे अभ्यासमे आइ सेक्ना अवस्था गुमा सेकले बाटैं । उहिनसे नयाँ पिढीमे भाषा हस्तान्तरण करना, भाषाहे अभ्यासमे नन्ना सम्भावना कमे डेखाइठ । भाषा संरक्षण कार्य फेन चुनौतीपूर्ण रहल भाषा विज्ञहुकनके विश्लेषण बा ।
अन्तर्राष्ट्रिय श्रम संगठनके महासन्धि नं. १६९ ओ आदिवासीके अधिकारसम्बन्धी संयुक्त राष्ट्रसंघीय घोषणापत्र २००७ हे नेपाल सरकार अनुमोदन करसेकले बा । घोषणापत्रके धारा १३ से आदिवासीहे अपन इतिहास, भाषा, मौखिक परम्परा, दर्शन, लेखन प्रणाली तथा साहित्य पुनर्जीवित करना, प्रयोग करना तथा भावी पुस्ताहे हस्तान्तरण करना अधिकार स्थापित करले बा । ओ, धारा १४ मे आदिवासी जनजातिहुकनहे अपन मातृभाषामे शिक्षा प्राप्त करना अधिकार डेना व्यवस्था समेत रहल बा ।
अन्तर्राष्ट्रिय सम्झौतापत्रमे हस्ताक्षर करलेसे फेन उ व्यवहारमे भर लागु हुइल फाट फुट अंग्रिमे गने सेक्ना बा । मातृभाषा शिक्षा प्रणाली लागु करेपरठ टे कहठ राज्य संयन्त्र मने उ नीति कडाईके साथ लागु नैकरना ओ पालना करना कन्जुस्याइ करना फेन एक मुख्य कारण हो भाषा हेरैनामे । यी सम्बन्धमे राज्यके गम्भिरताके साथ ध्यान जाइपरना डेखाइठ ।
भाषा लोप हुइना कलेक हमार आदिवासीके अन्तर्निहित ज्ञान, संस्कार, संस्कृति, दर्शन, पहिचान लोप हुइना हो । कौनो फेन जातिके भाषा लोप हुइना कलेक उ जातिके किल नैहुके सिंगा राष्ट्रके क्षति हो । मने, भाषा मरे वा बचे राज्यके लाग उ चासोके विषय नैडेखाइठ । तसर्थ हमार पहिचान, संस्कार संस्कृति बचाके ढरना दायित्व हमारे हो ।
आदिवासी जनजातिके पहिचानके मुख्य कडी भाषा हो । जोन भाषा राज्यके निकायमे प्रयोग हुइठ वा राज्यके सरोकारभित्तर परठ कलेसे ओइसिन किल बचठ । यी बाट राज्य व्यवस्थासे डेखाइल बाट हो ।
भाषाविज्ञानमे, भाषा मृत्यु (लोप, भाषिक विलुप्ति वा विरले फेन ग्लोटोफेगी) एक अइसिन प्रक्रिया हो, जिहिनसे बोली समुदायहे प्रभाव पारठ, जहाँ भाषिक क्षमताके स्तर, जोन कम भाषाके स्वामित्वमे रहल भाषिक क्षमताके स्तर घटाजाइठ । अन्ततः परिणामस्वरुप कौनो परिणाम प्राप्त नैहुइठ । भाषाके मृत्यु कौनो फेन भाषाके उखान, कथा, मिथक, गीत लगायत लोकसाहित्य हेराइठ ।
भाषाके मृत्युहे भाषा अटे«सन (भाषा नोक्सान फेन कहिजाइठ) के साथ भ्रमित नैकरे परठ, जिहिनसे व्यक्तिगत स्तरमे भाषामे दक्षता गुमैना बाट फेन वर्णन करठ । भाषाहे हेर्ना नजरमे संयुक्त राष्ट्र संघसे १९४८ मे शारीरिक नरसंहार वा मानवता विरुद्धके गम्भीर अपराध जस्टे भाषिक ओ सांकृतिक नरसंहारके बाट फेन महत्वपूर्ण मुद्दाके रुपमे छलफलसमेत हुइल रहे । अइसिक सर्सर्ती हेरलेसे आदिवासी जनजातिहुकनके भाषाके आत्महत्या हुइल फेन माने सेकजाइ । आत्महत्या करना विवस करैना सम्बन्धित देशके सरकार हो ।
भाषाके मृत्यु तब हुइठ, जब भाषा अपन अन्तिम मूल वक्ता गुमाइठ । भाषा तब विलुप्त हुइठ, जब भाषा ज्ञात नैरहठ । भाषा संचारके एक मुख्य अंश किल नाइहो, यी पहिचानके महत्वपूर्ण पक्ष फेन हो ।
भाषा ओ आदिवासीहुकनके समावेश वा बहिष्कार
भाषाके खतरा उपनिवेशवाद ओ औपनिवेशिक अभ्यासके प्रत्यक्ष परिणाम हो, जेकर परिणामस्वरुप आदिवासीहुकनके संस्कृति ओ भाषाके नाश हुइल । समायोजन, भूमिके विस्थापन, भेदभावपूर्ण कानुन ओ कार्यके नीति मार्फत सब क्षेत्रके आदिवासी भाषा विलुप्त हुइना खतराके सामना करटी बा ।
भाषिक साम्राज्यवादके फेन व्यावहारिक लाभ रहे । ढेर साम्राज्य बच्चाहुकनहे शाही भाषा सिखैना थप प्रयास करलैं । ओ, यी आधिकारिक भाषा बनैलैं, जेम्ने सब शिक्षा हुइल रहे । शाही भाषा बोलुइयनसँग शक्ति रहे, जबकि केवल मातृभाषा बोलुइयन सीमान्तकृत रहैं । यी एक क्षत्रीय राज्य प्रणालीके परिणाम से सायद फरक नैपरी ।
युरोपेली उपनिवेशवादहे यी नीतिसे आादिवासी भाषा सांस्कृतिक विनाशमे सहजिल बनाइल । यिहे बाट नेपाली राज्य संयन्त्रहे फेन जैना करठैं । उपनिवेशवादके समयमे, अन्य भाषा फेन मनैन्के टमान समुहके अन्तरक्रियाके रुपमे सिर्जना करल रहे । उदाहरणके लाग पिजिन ओ क्रियोल, जसमध्ये कुछहे अब्बे हाईटियन क्रियोल जैसिन भाषा कहिके फेन चिज्हजाइठ ।
नेपालमे फेन एकल भाषाके बर्चस्व ओ पहुँचसे अन्य आदिवासी भाषाहे सहजिले ढरकैना सफल हुइल बा । उपनिवेशवादसे एकडमके लाग विश्वके राजनीतिक भूगोल परिवर्तन करले बा ओ यी सबसे डेखैना क्षेत्रमध्ये एक भाषा फेन हो ।
अइसिक हेरलेसे यहाँ भाषाके किल मृत्यु नैहुइठ । भाषासंग जोरल उसमुदायके परम्परा, रितिरिवाज, चालचलन ओ सबसे भारी बाट पहिचानके मृत्यु हुइठ । आदिवासीहुकनके पहिचान ओ संस्कृति संरक्षणके संवाहक भाषा हो । कोक्रे लोप हुइ कलेसे आदिवासीके पहिचानके बाट कहाँ जाइ कना बाट एक डरलग्ना विषय फेन हो ।
(लेखिका नेपाल आदिवासी जनजाति साहित्यकार महासंघके केन्द्रिय अर्थ संयोजक बटि ।)
