थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १४ बैशाख २६४८, शुक्कर ]
[ वि.सं १४ बैशाख २०८१, शुक्रबार ]
[ 26 Apr 2024, Friday ]
‘ कविता ’

सुईनले बोल हमर

पहुरा | ७ चैत्र २०७७, शनिबार
सुईनले बोल हमर

हुरी बतास आईगमे पोषल
सच बोलैके सहाँस राखैची
धर्तिके शेर सपुत रहल
अन्यायके बिरुद्ध हमला बोलैची
भरल अदालतमे दोषी ठहराईत
लाल कलम बिकल देखनी
न्यायके कण्ठ निमोठने रहल
देशके शासके मति देखनी ।।।

बस्ती–बस्ती टोल–टोलमे
याब गितमे धुन भरब
स्वरमे सुरके ताल मिल्याके
कुछ हमला और चोट करब
डेग–डेगसे डेग मिल्याके
क्रान्तिके ज्वाला बिकुल फुकब
पथ भ्रष्टके वै आँगमे
हल्ला और स्वर करब ।।।
कविके तु कूल नै पुछ
जनताके बहुत मजबुरी छै
शहिदके खुन बुन्द–बुन्द बोलैत
सत्य बोलैले बहुत जरुरी छै
सपना टुटल जितेजी मरल
क्रान्तिके कहानी अधुरी छै
देशमे दुशासन जब जिबित रहल
तब महाभारत अधुरी छै ।।।

भिष्म पितासे आशा नै राख
नै राख दोनाचार्य से
चल बैरहके अधिकार माङ्
नै भेटैत बिना बलिदानीसे
अन्हर बैहर कानुन भेल
देख भेरी सबके बथानोमे
कंश रावण जब जिवित रहल
मरैले परत देशके स्वाभिमानोमे
अन्याई अतियाचार कपट्टीसे भरल
सूत्र रहल शकुनी मामा
विदर नीति मौन रहल
गाबेपरत कृष्णके युद्धभूमि गाथा
किया झुक्याब शिर यत
सुन विर भूमिके काथा
घर–घर मरघट बन्नल रहल
बैह रहल सोनीके गंगा

दिन दुखयारीके मित्र चि
दमित शोषित असाहयके अवाज
बोलिमे बारुद बैन बिस्फोट करैचि
रहल सदियोके कविके पहिचान
अन्हार बस्तीमे रोशनीके किरण छिटैची
रहल शासक दुष्ट परिसान
मुर्दाके देख फेर–फेर जगावैचि
भ्रष्ट व्यवस्थामे करैचि प्रहार ।।।

कञ्चनरुप–११, बेङ्गरी, सप्तरी

जनाअवजको टिप्पणीहरू