कविता
पहुरा |
११ बैशाख २०७८, शनिबार

कविता मोरिक संगीत नै हो गीत हो
पेशा मोरिक रहर नै हो बाध्यता हो ।
फूला जैसिन जोवन तुहाँर चढल बा जवानी
चाहे मै जैसिन रहुँ तुहु हुइतो मोर मनके रानी
छोडके नेंगठो भुट्लाटे भौरा गुनगुनैठै–२
भरल तोहार जवानी देख्के साराजे तडपठैं ।
गोहर गुलाबी गाल तोहार काहे मुक्सुरैठो ?
धसाक धसाक जिउ धरकाक काहे दुर दुर भग्ठो ?
तुह मोर गीत हुइतो तुह मोर संगीत,
यदि तु हाँ कबो ते हमार हुइजाई हित
हमार हुइजाई हित ।
धनगढी, कैलाली
