नैरहली साहित्यकार वानीरा गिरी

काठमाडौं, १० जेठ । अपनहे मानवतावादी ओ प्रकृतिवादी कहिके चिन्हाइ रुचैना लेखक वानीरा गिरीके हृदयघातके कारण अँट्वारके रात निधन हुइल बा ।
झण्डे ३ वर्षयहोर अल्जाइमर्स रोगसे ग्रसित रहल घरमे आपत्कालीन स्वास्थ्य सेवा लेटीरहल वानीराहे ३ साताआघे कोरोना पोजिटिभसमेत देखाइल ओ अँट्वार रात हृदयघातके आशंकामे निजामती अस्पताल लैगिल रहे । गिरीमे कोरोना संक्रमणसमेत यथावते रहल ओरसे उहाँक अन्तिम संस्कारके जिम्मेवारी नेपाली सेना लेहल पारिवारिक स्रोत जानकारी डेले बा ।
७६ वर्षिया गिरी उपन्यास, कविता ओ निबन्ध लेखनमे फरक दृष्टिकोण तथा शैलीके कारण नेपाली साहित्यमे चिन्हल रही । उहाँक ‘कारागार’, ‘निर्बन्ध’ ओ ‘शब्दातित सान्तनु’ उपन्यास तथा ‘मेरो आविष्कार’, ‘जीवन ः थायमरु’, ‘एउटा एउटा जिउँदो जंगबहादुर’ कविता संग्रह प्रकाशित बा । उहाँ ‘शब्दातीत शान्तनु’ उपन्यासके लाग २०५६ सालके साझा पुरस्कार पैले रही । कवि गोपालप्रसाद रिमालके कविताउप्पर त्रिभुवन विश्वविद्यालयसे विद्यावारिधि करल गिरी लम्मा समय पद्मकन्या क्याम्पसमे प्राध्यापन करली । उहाँ नेपाली साहित्यमे विद्यावारिधि करना प्रथम महिला फेन हुइटी ।

भारतके खर्साङमे जन्मल–बह्रल वानीरा उच्च शिक्षा लेहे काठमाडौं आइल रही । अपनहे रमाइ जन्ना ओ हासमुख लेखकके रुपमे स्वमूल्यांकन करना वानीरा अपन जीवनमे बीपी कोइरालाके ‘तीन घुम्ती’ ओ लियो टोल्सटोयके ‘अन्ना करेनिना’ उपन्यासहे शैली ओ लेखन प्रेरणाके कृति मन्ना करल बटाइ ।
साहित्यकार ध्रुवचन्द्र गौतम ‘नेपाली साहित्यिक आकाशमे सशक्त ओ अनुकरणीय शब्दशिल्पी रहल स्रष्टा वानीराहे उहाँक सिर्जनासे एकडम बँचैना’ बटैले बाटैं ।
वानीराके श्रीमान (इन्जिनियर शंकर गिरी), एक छावा अपूर्ण ओ एक छाइ अपराजिता बाटैं ।

