थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १४ बैशाख २६४९, अत्वार ]
[ वि.सं १४ बैशाख २०८२, आईतवार ]
[ 27 Apr 2025, Sunday ]
‘ कविता ’

बेगारी

पहुरा | १६ श्रावण २०७८, शनिबार
बेगारी

“रे, गाउँक मनै…
काल तिनमोहनम बेगारि
कर जैनाबा…”
काल सन्झ्यै,
चौकि दर्वा हाक पारल
बुद्धा, तकेहुवा ओ रसकुमार
क्यु भेलोरिक,
क्यु केराके झक्ख्रा
क्यु बाँसक मुन्ना काटक,
तरखरम रहै बेगारि जाय

काल अङ्गत्ति जईम
बेगारि कहुईया,
आँखि मिस्ति निक्रल मनराखु
आपन बौनि
बर छोट देख्क,
तुतल बेटके,
तुतल दाँतके,
फरूवा लेक डउरति चलल्
मनराखु बेगारि ।।

तिनमोहनके बन्ध्वा बर जोरसे
बर्का धिकुवा फोरके
फुटल बन्ध्वाफे बाहानक
आधा निमज सेकल रह
मनराखु हस्याङ्फस्याङ् कर्ति
टुतल बेट पकर्क
भरि ऊ किसन्वनके बगालम
मिलगैल ओ कह लागल्
अहाई…
यी भदौमफे घाँम कत्रा चित्कल
पस्नै छुतादेहल्
यिह बेलाफे यी बन्ध्वा फुट पर्ना
खेतिपाति नि हेर्कफे नि हुईत

ओस्तहम ठगलाल,
सात, आठथो मुन्ना
बर ध्यार भेलोरिक झक्ख्रा
लेक आईल्
औरजे कुछ कनासे पैह
मनराखु बरबराई लागल
यिह हो अ‍ैना दिन,
काम त सक्कु निमज गिल,
नि अ‍ैलसे हो जिथा
डार त जैसिकफे तिर परि ।।
गुम्राहा किसन्वन् के आघ
ऊ ठगलालके कुछ आँट नि अ‍ैलिस्
विचारा ठगलाल,
अस्तक बर्षाैबर्षाैसे,
सक्कुनसे
ठगती आईल बा मार
चोरि, सत्ता, दमन,
दासत्व ओ सहअस्तित्वके
लराईम सद्द पाछ पर्ति बा

ध्यार दिन पाछ,
आजफे,
चौकिदर्वा हाँक पारता
“रे गाउँक मनै काल तिनमोहनम
बेगारि कर जैना बा ।”

बर्दिया, भुरिगाउँ

जनाअवजको टिप्पणीहरू