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आदिवासी जनजातिके अधिकार सुनिश्चित कैना सरकार विफलः एम्नेस्टी

पहुरा | २५ श्रावण २०७८, सोमबार
आदिवासी जनजातिके अधिकार सुनिश्चित कैना सरकार विफलः एम्नेस्टी

काठमाडौं, २५ सावन । एम्नेस्टी इन्टरनेसनल ओ सामुदायिक आत्मनिर्भर सेवा केन्द्र (सीएसआरसी) से प्रकाशित करल नया प्रतिवेदनमे दुव्र्यवहारपूर्ण संरक्षण नीतिके परिणामस्वरुप नेपालके आदिवासी जनता विगत पाँच दशकसे श्रृखलाबद्ध मानवअधिकार उल्लंघनसे पीडित हुई परल उल्लेख करल बा ।

संरक्षणके नाममे मानवअधिकार उल्लंघन नामक उ प्रतिवेदनसे राष्ट्रिय निकुञ्ज ओ और ‘संरक्षित क्षेत्रके स्थापनासे कैसिक लाखौँ आदिवासी जनताहे जबर्जस्ती अपन पुख्र्यौली भूमिसे निष्कासन करके अपन जीविकोपार्जनके लाग निर्भर रहल क्षेत्रमे ओइनहे पहुँच प्रदान कैना अस्वीकार करल बा, कलेसे घटनाके दस्तावेजीकरण करले बा । चितवन ओ बर्दिया राष्ट्रिय निकुञ्जके उदाहरणमे केन्द्रित रहटी यी प्रतिवेदनसे यी नीतिके कार्यान्वयनके कारण कैसिक बारम्बार स्वेच्छाचारी गिरफ्तारी, यातना, गैरकानूनी हत्या ओ अनौपचारिक बस्तीसे जबर्जस्ती निष्कासनके घटना हुइल बटै कना बारेमे प्रकाश परले बा ।

‘संरक्षण सफलताके क्षेत्रमे नेपालहे प्राय उदाहरणीय रूपमे लेना करजाइठ मने, दुर्भाग्यवस पुस्तौँसे उ क्षेत्रमे बसोबास करके उ भूभागमे निर्भर रहटी आइल आदिवासी जनजातिहुक्रे उ सफलताके उच्च मूल्य चुकाई परल बा,’ एम्नेस्टी इन्टरनेसनलके दक्षिण एसिया क्षेत्रीय उपनिर्देशक दिनुशिका दिसानायका कहली ।

सन् १९७० के दशकसे नेपालके सरकारसे चालल संरक्षणके कदमसे आदिवासी जनजातिहुकनहे अपन पुख्र्यौली भूमिसे जबर्जस्ती बेदखल कैनाके साथे ओइनके परम्परागत खाना, औषधिजन्य जडिबुटी ओ और स्रोत उप्परके पहुँचहे सीमित बनाइल ओ नीतिके दमनकारी कार्यान्वयनसे यातना, दुव्र्यवहार ओ गैरकानूनी हत्याके असंख्य घटना हुइल उहाँक कहाई बा ।

जबर्जस्ती निष्कासन

राष्ट्रिय निकुञ्ज तथा अन्य ‘संरक्षित क्षेत्र’से नेपालके झन्डै एक चौथाई भूभाग ओगटल कहटी प्रतिवेदनमे ढेर जैसिन भूभाग उ आदिवासी जनजातिहुकनके पुख्र्यौली भूमिमे अवस्थित रहल जनाइल बा । निकुञ्ज ओ संरक्षित क्षेत्र स्थापना हुइल दशकौँपाछेफे निष्कासित कैयौँ आदिवासी जनजाति भूमिहीन बटै ओ ओइन हाल बसोवास करटी रहल अनौपचारिक बस्तीसे जबर्जस्ती रूपमे निष्कासित कैना जोखिममे रहल फे प्रतिवेदनमे औंल्याइल बा ।

हाल एम्नेस्टी इन्टरनेसनल ओ सीएसआरसीसे चितवन ओ बर्दियालगायतके राष्ट्रिय निकुञ्जके अधिकारीसे आदिवासी जनजातिहुकनहे जबर्जस्ती निष्कासित करल तथा जबर्जस्ती निष्कासनके प्रयास हुइल टमान घटनाके दस्तावेजीकरण करल जनाइल बा । २०७७ साउन ३ गते (१८ जुलाई २०२०) चितवन राष्ट्रिय निकुञ्जके अधिकारी बाढ तथा पहिरोके कारण विस्थापित हुके मध्यवर्ती क्षेत्र (स्थानीयहे वनके स्रोतमे पहुँच पुगैना छुट्याइल निकुञ्जके सीमा बाहेरके क्षेत्र) मे बसोबास करटी आइल चेपाङ समुदायके दश परिवारहे जबर्जस्ती निष्कासन करलफे प्रतिवेदनमे उल्लेख बा ।

उ परिवारहे निष्कासन कैना एक हप्ता आघे केल मौखिक सूचना डेहल रहे कना जानकारी एम्नेस्टी इन्टरनेसनल ओ सीएसआरसीसे प्राप्त करल तथा यी अन्तर्राष्ट्रिय मापदण्ड ओ नेपालके नयाँ आवासके अधिकारसम्बन्धी ऐन, २०७५ के विपरीत रहल ओर फे प्रतिवेदनमे ध्यानाकर्षण कराइल बा । घटना घटल अन्तिम महिनाओर वन तथा वातावरण मन्त्रालयसे एक ठो आधिकारिक अनुसन्धान सुरू करलेसेफे एम्नेस्टी इन्टरनेसनल ओ सीएसआरसीसे बारम्बार अनुरोध करलेसेफे उ अनुसन्धानके परिणामबारे जानकारी पाई नइसेकल जनाइल बा ।

बाढके कारण निकुञ्जके हिस्सा कहिके ममनल अपने जमिनमे दशकौसे कौनो पहुँच नइरहलेसेफे बर्दियामे कुछ आदिवासी जनता मालपोत भर तिरटी आइल प्रतिवेदनमे उल्लेख बा । प्रतिवेदनके अनुसार कौनो समयमे फेर अपन जमिन उपभोग करे मिली कना आशामे ओ बालीनालीके क्षतिके क्षतिपूर्तिके लागफे मालपोत तिरल रसिद आवश्यक पर्ना ओरसे ओइने मालपोत तिरना करल एम्नेस्टी इन्टरनेसनल ओ सीएसआरसीहे बटैलै ।

खाद्य ओ स्रोतमे पहुँच

राष्ट्रिय निकुञ्ज तथा वन्यजन्तु संरक्षण ऐन, २०२९ ‘संरक्षित क्षेत्र’हे सञ्चालन कैना मुख्य कानूनके रूपमे बा । उ कानून शिकार तथा चरन कैना, रुख काट्न, जमिनमे खेती कैना वा वन प्रयोगके साथे राष्ट्रिय निकुञ्ज वा वन्यजन्तु आरक्ष क्षेत्रमे कौनोफे भवन बनैना प्रतिबन्ध लगाइल बा ।

जिहीसे आदिवासी जनजातिके जीवन शैलीमे गम्भीर प्रभाव पर्नाके साथे भारी परिवर्तन नानडेहल एम्नेस्टीके कहाई बा ।

मध्यवर्ती क्षेत्रके वनमे पहुँच रहल उ क्षेत्रमे बसोवास कैना बाहेक और आदिवासी जनजातिहुकनहे राष्ट्रिय निकुञ्ज प्रवेशमे रोक लगाइल ओरसे पहिले वञ्चितीकरणमे परल व्यक्ति अपन आधारभूत आवश्यकता पुरा कैना अपनमे भर परे परल ओरफे प्रतिवेदनसे ध्यानाकर्षण कराइल बा ।

प्रतिवेदनमे कहल बा, ‘उदाहरणके लाग खरके छानाके सट्टा टिनके छाना वा जडिबुटीके सट्टा चलनचल्तीके औषधि आदिके लाग चर्को मूल्य तिर्ना ओइने बाध्य हुइल बटै ओ परिणामस्वरुप खाद्य असुरक्षा तथा स्वास्थ्य ओ आवासके समस्या पैदा हुइना सम्भावना रहल बा ।’

वैकल्पिक जीविकोपार्जनके अभाव, आर्थिक कठिनाइ ओ घर खर्च पूर्ति करे नैसेकल कारण अपन भूमिसे निष्कासित करल टमान आदिवासी जनजातिहुक्रे औरेक जमिनमे खेतीपाती करके पचास प्रतिशतकिल उब्जनी अपने लेना करल बटैयादार बन्न बाध्य हुइल प्रतिवेदनमे उल्लेख बा ।

‘कानूनीसे फेन सामाजिक मान्यतासे सञ्चालित यी बटैया प्रणालीके गम्भीर मानवअधिकार परिणाम रहल बा,’ एम्नेस्टी कले बा, ‘बाँके ओ बर्दिया जिल्लामे लेहल अन्तर्वार्तामे स्थानीयहुक्रे जग्गाधनीहुक्रे अपनहे बिना पारिश्रमिक घरेलु श्रममे लगैना, घाँस दाउरा लेहे पठैना लगायतके काममे लगाके बारम्बार शोषण करल बाट बटैलैं ।’

स्वेच्छाचारी गिरफ्तारी ओ हिरासत, यातना

राष्ट्रिय निकुञ्ज तथा आरक्षमे प्रवेश करल कारण आदिवासी जनजातिहुकनहे बारम्बार पक्रन तथा हिरासतमे लेहल प्रतिवेदनमे उल्लेख बा । ‘पक्राउ परलमध्ये धेरजे निकुञ्जमे खटल सेनासे दुव्र्यवहारके साथे कबुकाल यातनासमेत भोगे परल बा,’ एम्नेस्टी कले बा, ‘कुछके यातनाके कारण मृत्यु समेत हुइल बा, जस्टे २०७७ सावन (जुलाई २०२०) मे सेनाके कुटपिट पश्चात चितवनके २६ वर्षीय राजकुमार चेपाङके मृत्यु हुइल रहे ।’

एम्नेस्टीके अनुसार राष्ट्रिय निकुञ्ज तथा ‘संरक्षित क्षेत्र’मे पक्राउ करके हिरासतमे लेना तथा घातक बल प्रयोग करना सम्बन्धमे नेपाली सेनाके अधिकारहे स्पष्ट रूपमे नेपालके कानुन परिभाषित करे सेकले नैहो । चितवनके मध्यवर्ती क्षेत्रमे हाले करल एक अध्ययनसे संरक्षणमे नेपाली सेनाके भूमिका बह्रटि गैल ओ राष्ट्रिय निकुञ्जमे सैनिकीकरण बह्रटि रहल जनाइल फेन प्रतिवेदनमे उल्लेख बा ।

संवैधानिक रूपमे आदिवासी जनजातिहुकनके अधिकार संरक्षण करना दायित्व रहल सरकार झन्डे आधा शताब्दीसे नेपालके आदिवासी जनजातिहुकनहे अधिकार सुनिश्चित करना नैमजासे विफल हुइल एम्नेस्टीके ठहर बा । ‘निष्कासित हुइलहुकनहे वैकल्पिक आवास ओ जग्गाके व्यवस्था करनाके साथे पुख्र्यौली भूमिमे उहाँहुकनहे निर्वाध पहुँच सुनिश्चित करके उहाँहुक्रे भोगल क्षतिके परिपूर्ति करना कार्य सुरू हुइपरल,’ सीएसआरसीके कार्यकारी निर्देशक जगत बस्नेत कलैं ।

यकर साथे संरक्षण क्षेत्रके व्यवस्थापनमे आदिवासी जनजातिहुकनके पूर्ण सहभागिता सुनिश्चित हुइना मेरिक कानुनमे संशोधनके साथे नेपालके अधिकारीहुकनसे हुइल हानिमे उचित क्षतिपूर्ति उपलब्ध करैना बाटमे सहमतिके लाग एक समावेशी प्रक्रिया अपनाइपरनामे उहाँ जोड डेलैं ।

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