थारु राष्ट्रिय दैनिक
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[ 28 Apr 2025, Monday ]

थारु समुदाय आज गुरही मनैटी

पहुरा | २९ श्रावण २०७८, शुक्रबार
थारु समुदाय आज गुरही मनैटी

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, २९ सावन ।
पश्चिमा थारु समुदायहुक्रे आज एकसंगे गुरही मनाइ लागल बटै । धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व बोकल गुरही टिहुवार आज थारु गाउँमे भव्यताके साथ मनैठै ।

दाङसे लेके पश्चिम कञ्चनपुरसमके थारु समुदायकसे मनैना विक्रम सम्वत अनुसार यी गुरही पहिल टिहुवार हो ।

फाइल फाेटु

थारु समुदायके चाडके शुरुवातके रुपमे गुरहीपर्वहे लेना करजाइठ् । नागपञ्चमीके दिन यी पर्व मनैना हुइल ओरसे यी टिहुवारहे थारु समुदाय देशैभरके थारु समुदाय धुमधामके साथ मनैना करठै ।

थारु समुदायमे ‘गुरही’ मनैनाके अर्थ, नाग बाबाहे पुजा करेबर विखार साप घरमे नाइ अइना, घरमे बाज नाइ मर्र्ना, आगलागी नाइ हुइना, दुःखके बज्रपात नाइ पर्ना, रोगव्याधी ओ महामारी घरमे प्रवेश नाइ कैना विश्वास करजाइठ् । नागबाबाहे घरके दुवारमे टाँसके पूजा कैनाके आशय दुःख, कष्ट ओ रोगव्याधीहे नागबाबासे घरमे प्रवेशसे रोकिट कना हो ।

फाइल फाेटु

यिहीहे नागपञ्चमीके रुपमे फेन मनाजाइठ् । थारु समाजमे ‘गुरही, गुर्या’ कहिके मनाजैना यी पर्नहे नेपाली समाज नागपञ्चमी कहिके मनैठै । नागपञ्चमीमे विशेष कैके नेपालीहुक्रे नागबाबाके पूजा–आजा करठै । कलेसे थारु समाजमे ‘गुरही’ पूजा हुइठ् । थारु समाजमे फेन ठाउँअनुसार ‘गुरही’ पर्व फरक फरक ढंगसे मनैना करठै ।

फाइल फाेटु

कैसिक मनाजाइठ् गुरही ?

थारु समाजमे यी टिहुवार ओ पूजाहे कुछ फरक मेरिक लेजाइठ् । परापूर्व कालसे मनैटि आइल थारु समाजके पहिला टिहुवारके रुपमे ‘गुरही’ हे लेजाइठ् । खेतीपाती उसारके सबजे घरम् फुर्सटसे बैठल बेला अइना यी टिहुवार साउन शुक्ल पञ्चमीमे पर्ना टिहुवार हुइलक ओरसे यिहिहे नागपञ्चमीके रुपमे फेन चिनजाइठ् । थारु समाजमे ‘गुरही, गुर्या’ कहिके मनैना ओ नेपाली भाषामे नागपञ्चमी कहिके मनैना दुनु टिहुवार अक्के हो । नागपञ्चमीमे विशेष कैके नेपाली हुक्रे नागबाबाके पूजा–आजा कर्थै कलसे हम्रे आपन समाजमे ‘गुरही’ पूजा करठि । मने ठाउँ अनुसार गुरही मनैना प्रचलनफे थारु समाजमे फरक फरक बा । यी गुरही पूजा कैसिक थारु समाजमे मनाजाइठ् टे यकर बारेम छोटमोट चर्चा हेरी ।

फाइल फाेटु

वरष दिनके खैना जुटाइक् लाग खेतीपातीमे पेलल थारु समाज जब हिलाकिंचासे निकरके अइठैं टब्बहीं अइना गुरही टिहुवार थारु समाजके पहिल (अगुवा) टिहुवारके रुपमे चिरपरिचित बा । साँझके समयमे जब गोरु बछरु गयरवन आपन–आपन घारीमे करयइठैं टब गाउँक् अघरिया (चौकीदरवा, चिरकिया) के पहलमे गाउँक दादुभैया ओ डिडीवहिनिया हुक्रे लावा–लावा लुगरा लगाके टठियामे मेरमेराइक भुजा, डुब्बा घाँस, रंगी बिरंगी लुग्रक गुरही लेले गुरही–गुरहा ठटैना ठाउँमे गैल रठैं । प्रायः कैके गाउँक् चौराहामे ठटैना गुरहीमे सक्कु गाउँभरिक युवा–युवती ओ बुह्राइल मनैफेन गुरहीक भुजा मागक लाग चौराहाओर जम्मा रठैं । जब गाउँक् अघरिया एक संस्सु डुब्बा घाँसम् गाँठ पारट अथवा एकठो गुरही बनाइल चिरकुटमे गाँठ पारके गुरहीगुरहा ठटैैना ओदश डेहठ् टब उपस्थित हुइल सक्कु लौंरा लर्का आपन–आपन रंगीचंगी सोंटा ओ लम्मा–लम्मा भांगक, बेरसरमक् ओ और चिजसे बनल सोंटासे “घुघरी डेउ” “घुघरी डेउ” कटि ठटैना काम कर्ठैं । ऐसिक गुरही ठटैलसे पुरान गाउँमे रहल रोगव्याधी ओ आपन गाउँक् दायन भूत सब नास हुइठैं ओ गाउँहे रोगव्याधि ओ दुःखसे छुटकारा मिलठ् कना बाटके हमार थारुसमाजमे गहिंर जनविश्वास रहल बा । मने रहस्यमय बाट का बा कलसे एक्ठो लुग्रक जन्नी–थारु मनैयक संकेत करके बनाइल गुरहीहे काकर ठटाजाईठ् टे ?

फाइल फाेटु

गुरही ठटाके सेकके सक्कुजाने जम्मा हुइल चौराहामे डिडीवहिनिया हुक्रे गुरही ठटैना ठाउँमे भुजा छिटकर्ना ओ सक्कु जम्मा हुइल लर्कापर्का ओ बुरहाइल मनैनफे आपन टठिया मनिक् बोकके नानल मेरमेराइक भुजा जस्टे– मकैक भुजा, चना, केराउ, भरठर आदिके भुजा सक्कुहुन एक–एकचुटि प्रसादके रुपमे बँट्ना काम कर्ठैं । जवसम टठियक भुजा नै ओरैैठिन टबसम लरकाहुक्रे “भुजा डेउ, भुजा डेउ” कर्टि पाछे–पाछे लागल रठैं । ऐसिक ठटाइल गुरही ओ रंगी विरंगी चिरकुट ठटाइल ठाउँसे उठाके आपन घरक डुवारीम् बन्धबो कलसे ओ गुरही ठटाके बचल डुब्बा ओ भुजागुडा आपन घरक छपरम लबडैलसे घरम रहल दुःख चिन्ता दूर हुइना ओ घरक भित्तर रहल साँप गोजर फेन घरसे बाहर निकरके भग्ठै ओ घरम शान्ति सुख हुइठ् कना हमार थारु समाजमे पुरान जनविश्वास कायम बा ।

गुरही–गुरहाहे ठटाके लडियम, डुन्डरम अस्राजाइठ् । यकर मतलब ओइनहे मारके दाह संस्कार कैजाइठ् कना आभाष हुइठ् । समाजके दुश्मनके रुपमे रहल दायन बोक्सिन ओ ठेंगाहाहे गाउँक् चौराहामे मारपिट करके दाहसंस्कारके लाग लदिया डुन्डरामे जाके अस्रैना ओ फेन गाउँमे दुःख देहे कबु लौटके ना आए कना मनसायसे ओइनहे सामुहिक रुपमे अस्राजाइठ् ।

फाइल फाेटु

गुरही पूजा भगवान नागसे जुरल बा । नागपञ्चमीहे हम्रे गुरही टिहुवार मन्ठी । गुरही ठटैलसे सक्कु उप्पर निकरल अथवा खुलारुपमे, छाडारुपमे चरहे निकरल साँप गोजर विच्छी गुरही ठटाइल दिनसे आपन–आपन घरम दोन्डरमे नुकके बैठना ओ दोण्डरके भित्तर लोप हुइठैं ओ साँप, गोजर हुक्रनके यकरपाछे डर नैरना बातके फेन हमार समाजमे ओत्रै मजासे चर्चा चलठ्् । नाग अथवा साँप कना भगवानके बहुट प्यारा चिज हुइलक कारणसे होकि नागपञ्चमी मनागिल हो कहिके फेन विश्वास कैजाइठ् घर–घरमे साँपनके मूर्ति बनाके दुवारीमे चप्टैना ओ अगरबत्ती धुप बारके भगवान नागके पूजा कर्ना चलन हमार नेपालीनके बा । मने हमार थारु समाजमे नागके पूजा नै कैके उहिनहे गुरही ठटाके मन्ना काम कर्ठि । गुरही मन्नाके सारतत्व प्रमाणित नैहुइलसेफे पुर्खासे चलनचल्टीमे रहल यी टिहुवारके बारेमे थप खोज अनुसन्धानके आवश्यकता बा । रंगीविरंगी चिरकुटसे गुरही–गुराहा बनैना, उहीहे सोंटासे ठटैना, ओकर खुशीयालीमे भुजा लुटैनाके रहस्य बरवार बा । यकर रहस्यहे भित्तर झाँकके हेर्लसे कुछ खराव चिजके अन्त्येष्टि करके खुशीयाली मनाइल संकेट हुइठ् यद्यपि यी कर्नाके औचित्य का ? खोजके विषय हुइसेकी । दिनदिने लोप हुइटि गैल यी टिहुवारके बारेमे थारु समाजके आँखी उघ्रना जरुरी बा । थारु समाज भित्तर अन्य तिहुवारके तुलनामे यी तिहुवार कम मनागिलसेफे कमजोर आँकलन कर्ना भर संस्कृतिके उपेक्षा करल सावित हुइसेकी ।

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