थारु राष्ट्रिय दैनिक
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थारु समुदाय गुरही मनैलै

पहुरा | २९ श्रावण २०७८, शुक्रबार
थारु समुदाय गुरही मनैलै

टिहुवारहे स्थापित करेक गाउँ–गाउँमे गुरही कार्यक्रम आयोजना
पहुरा समाचारदाता
धनगढी, २९ सावन ।
पश्चिमा थारु समुदायहुक्रे शुकके रोज एकसंगे गुरही पर्व मनैले बटै । धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व बोकल गुरही टिहुवार दाडसे पश्चिम कञ्चपुरके थारु गाउँमे भव्यताके साथ मनागिल बा ।

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दाङसे लेके पश्चिम कञ्चनपुरसमके थारु समुदायसे मनैना यी पर्व विक्रम सम्वत अनुसार पहिल टिहुवार हो । धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व बोकल गुरही टिहुवारहे स्थापित करेक लाग प्रत्येक थारु गाउँमे आज काल्ह कार्यक्रमके आयोजना करके यी पर्व मनाइ लागल थारु कल्याणकारिणी सभाके केन्द्रीय सदस्य प्रभातकुमार चौधरी बटैलै । गुरही टिहुवार पुस्तान्तरण हुसेकल ओरसे और कला संस्कृतिहे जोगाइक लाग पुस्तान्तरण कैना जरुरी रहल उहाँ बटैलै ।

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धनगढीमे शखी संजाल ओ राष्ट्रिय थारु कलाकार मंच प्रदेश ७ के आयोजनामे मनागिल कलेसे प्रत्येक थारु गाउँ गाउँमे अलगे कार्यक्रम करके धुमधामके साथ मनागिल बा । नागपञ्चमीके दिन यी पर्व मनैना हुइल ओरसे यी टिहुवारहे थारु समुदाय देशैभरके थारु समुदाय धुमधामके साथ मनैना करठै ।

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थारु समुदायमे ‘गुरही’ मनैनाके अर्थ, नाग बाबा, गुरही किराहे पुजा करेबेर विखार साप, किरा काँटी, विच्छी, गोजर घरमे नाइ अइना, घरमे बाज नाइ मरना, आगलागी नाइ हुइना, दुःखके बज्रपात नाइ पर्ना, रोगव्याधी ओ महामारी घरमे प्रवेश नाइ कैना विश्वास करजाइठ् ।

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यिहीहे नागपञ्चमीके रुपमे फेन मनाजाइठ् । थारु समाजमे ‘गुरही, गुर्या’ कहिके मनाजैना यी पर्वहे नेपाली समाज नागपञ्चमी कहिके मनैठै । नागपञ्चमीमे विशेष कैके नेपालीहुक्रे नागबाबाके पूजा–आजा करठै । कलेसे थारु समाजमे ‘गुरही’ पूजा हुइठ् । थारु समाजमे फेन ठाउँअनुसार ‘गुरही’ पर्व फरक फरक ढंगसे मनैना करठै ।

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कैसिक मनाजाइठ् गुरही ?
थारु समाजमे यी टिहुवार ओ पूजाहे कुछ फरक मेरिक लेजाइठ् । परापूर्व कालसे मनैटि आइल थारु समाजके पहिला टिहुवारके रुपमे ‘गुरही’ हे लेजाइठ् । खेतीपाती उसारके सबजे घरम् फुर्सटसे बैठल बेला अइना यी टिहुवार सावन शुक्ल पञ्चमीमे पर्ना टिहुवार हुइलक ओरसे यिहिहे नागपञ्चमीके रुपमे फेन चिनजाइठ् । थारु समाजमे ‘गुरही, गुर्या’ कहिके मनैना ओ नेपाली भाषामे नागपञ्चमी कहिके मनैना दुनु टिहुवार अक्के हो । नागपञ्चमीमे विशेष कैके नेपाली हुक्रे नागबाबाके पूजा–आजा कर्थै कलसे हम्रे आपन समाजमे ‘गुरही’ पूजा करठि । मने ठाउँ अनुसार गुरही मनैना प्रचलनफे थारु समाजमे फरक फरक बा ।

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वरष दिनके खैना जुटाइक् लाग खेतीपातीमे पेलल थारु समाज जब हिलाकिंचासे निकरके अइठैं टब्बहीं अइना गुरही टिहुवार थारु समाजके पहिल (अगुवा) टिहुवारके रुपमे चिरपरिचित बा ।

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साँझके समयमे जब गोरु बछरु गयरवन आपन–आपन घारीमे करयइठैं टब गाउँक् अघरिया (चौकीदरवा, चिरकिया) के पहलमे गाउँक दादुभैया ओ डिडीवहिनिया हुक्रे लावा–लावा लुगरा लगाके टठियामे मेरमेराइक भुजा, डुब्बा घाँस, रंगी बिरंगी लुग्रक गुरही लेले गुरही–गुरहा ठटैना ठाउँमे गैल रठैं ।

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प्रायः कैके गाउँक् चौराहामे ठटैना गुरहीमे सक्कु गाउँभरिक युवा–युवती ओ बुह्राइल मनैफेन गुरहीक भुजा मागक लाग चौराहाओर जम्मा रठैं ।

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जब गाउँक् अघरिया एक संस्सु डुब्बा घाँसम् गाँठ पारट अथवा एकठो गुरही बनाइल चिरकुटमे गाँठ पारके गुरहीगुरहा ठटैैना ओदश डेहठ् टब उपस्थित हुइल सक्कु लौंरा लर्का आपन–आपन रंगीचंगी सोंटा ओ लम्मा–लम्मा भांगक, बेरसरमक् ओ और चिजसे बनल सोंटासे “घुघरी डेउ” “घुघरी डेउ” कटि ठटैना काम कर्ठैं । ऐसिक गुरही ठटैलसे पुरान गाउँमे रहल रोगव्याधी ओ आपन गाउँक् दायन भूत सब नास हुइठैं ओ गाउँहे रोगव्याधि ओ दुःखसे छुटकारा मिलठ् कना बाटके हमार थारुसमाजमे गहिंर जनविश्वास रहल बा ।

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मने रहस्यमय बाट का बा कलसे एक्ठो लुग्रक जन्नी–थारु मनैयक संकेत करके बनाइल गुरहीहे काकर ठटाजाईठ् टे ? गुरही ठटाके सेकके सक्कुजाने जम्मा हुइल चौराहामे डिडीवहिनिया हुक्रे गुरही ठटैना ठाउँमे भुजा छिटकर्ना ओ सक्कु जम्मा हुइल लर्कापर्का ओ बुरहाइल मनैनफे आपन टठिया मनिक् बोकके नानल मेरमेराइक भुजा जस्टे– मकैक भुजा, चना, केराउ, भरठर आदिके भुजा सक्कुहुन एक–एकचुटि प्रसादके रुपमे बँट्ना काम कर्ठैं ।

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जवसम टठियक भुजा नै ओरैैठिन टबसम लरकाहुक्रे “भुजा डेउ, भुजा डेउ” कर्टि पाछे–पाछे लागल रठैं । ऐसिक ठटाइल गुरही ओ रंगी विरंगी चिरकुट ठटाइल ठाउँसे उठाके आपन घरक डुवारीम् बन्धबो कलसे ओ गुरही ठटाके बचल डुब्बा ओ भुजागुडा आपन घरक छपरम लबडैलसे घरम रहल दुःख चिन्ता दूर हुइना ओ घरक भित्तर रहल साँप गोजर फेन घरसे बाहर निकरके भग्ठै ओ घरम शान्ति सुख हुइठ् कना हमार थारु समाजमे पुरान जनविश्वास कायम बा ।

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