माउ पार्टी रोज्नु, मै का बिरैनुः रेशम चौधरी

काठमाण्डौ, ३ भदौ । ‘माननीय रेशम चौधरीहे रिहाइ कर,’ ‘झुठ्ठा मुद्दा खारेज कर’ लगायतके नारा अब्बे माइतीघर मण्डलामे हुइटी रहल थरुहट थारुवान मोर्चाके धर्ना कार्यक्रममे लग्टी रहल बा कना मै समाचारसे पत्ता पैले बटु । मै थाहा पाइलअनुसार धर्नामे सहभागिता कम बा । मने, कैलाली–१, टीकापुर क्षेत्रसे ३४ हजारसे ढेर भोट डेके उहाँक मतदातासे महीहे जिटैले बटै । उ सक्कु मतदाताके साथ–समर्थन अभिन मोरसंग बा ।
मै तत्कालीन राजपासे छाता चुनाव चिन्ह लेके संघीय सांसदमो जिटल नेता हुँ । तत्कालीन राजपाके अध्यक्ष राजेन्द्र महतो ओ महन्थ ठाकुरके एक ठो गठबन्धनपाछे मै फे उहे समूह रोज्न निर्णय करल हुँ । माउ पार्टी रोज्नु टे मै का बिरैनु ।
निर्वाचन आयोगमे महन्थ ओ यादव समूहसे पार्टी आधिकारिकताके लाग समूह छुट्याईबेर मै तटस्थ बैठल हो । मने, समयक्रमसे सदा तटस्थ बैठना अवस्था नइरहल । एक न एक पक्षमे नइलग्लेसे मोर सांसद पद गुमट । जनतासे आड भरोसासहित साथ डेहल सांसद पद खेर जाई नइनइडेहे परल । टबमारे सांसद पद जोगैनाफे मै अपने माउ पार्टी रोज्नु ।
मै अब्बे डिल्लीबजार कारागारमे बटु । यहाँ उपेन्द्र यादव कबु भेटे नइअइलै । टेलिफोन वार्तामे महीहे दुलही बनाके अन्माई, अपनेक समूहमे अइम कहले रहु । मने, उहाँ महीहे छोटकी गोसिनीयाके दर्जामे फे नइधारके केवल चाकडी करैना सुसारेके भूमिका डेहे खोज्लै । गुलामी कैना मोर मन नइमानल ।
मै उपेन्द्रहे देउवा सरकारमे नइजैना आग्रह करल हुँ । मने, उहाँ अस्वीकार करलै । ओली सरकारमे महन्थ ठाकुर समूह जैना ओ देउवा सरकारमे उपेन्द्र यादव समूह जैनामे मै कौनो भिन्नता नइडेखनु । मोर रिहाइमे, टीकापुर घटनाके पीडितके आवाज जटरा राजेन्द्र उठैले बटै, ओटरा उपेन्द्रके आवाज नइहो । टबमारे मोर मनल माउ पार्टी रोज कहल ।
मै सुन्ले बटु । पहिले राजपासे चुनाव लर मोर क्षेत्रके सुदूरपश्चिम प्रदेश सांसद कृष्णबहादुर चौधरी, ओर दुर प्रदेश सांसद मालमति राना थारु उपेन्द्र समूहमे गैलै मने, महीहे विश्वास नइहो, ओइने राजेन्द्रहे छोरके कैसिक जाई सेक्ही । कम्तिमे महीसे एक वचन सल्लाह करही कनामे मै आशावादी बटु ।
सांसद पद रहलेसेफे नइरहलेसेफे मै सदा थारु समुदायके निमुखा वर्गके आवाज उठैटी आइल बटु । म कलाकार मनै, मै अपन गीत संगीत ओ फिल्ममेफे कमैया कमलहरीके आवाज उठैले बटु । २०५७ साउन २ मे कमैया मुक्तिके घोषणा हुइना आघे मै यी अभियानमे बटु ।
माइतीघर मण्डलाके धर्ना कार्यक्रममे पाटिर उपस्थिति हुइनाके कारण मुख्य दलमे आबद्ध हुइलपाछे अपने उठैटी आइल माग मुद्दा थारु नेताहुक्रे भुल्टी गैल तीत यथार्थ हो । अब्बे डा. गोपाल दहित, योगेन्द्र चौधरीहुक्रे नेपाली काँग्रेसमे आबद्ध हुइलपाछे थरुहट आन्दोलनके ‘थ’ फे उच्चारण नइकरठुइट ।
सक्कुहुनहे सर्वविदिटे बा । २०७२ साल भदौ ७ मे टीकापुरमे हुइल आन्दोलन थारुहुक्रे संविधानमा, राज्य पुर्नसंरचनाके सिमांकनके सवालमे, समग्र शासन प्रशासनमे असन्तुष्टि जनैना रहे । मने, ओम्ने घुसपैठ करके और जे खेल्न मौका पैलै जबकि घटनाके बेला मै उहाँ रहबे नइकरु । म निर्दोष बटु ।
अपन लक्ष्य उद्देश्यमे स्पष्ट हुइलेसे एकदिन अवश्य सत्यके जित हुइठ । जटरा दिन महीहे भारतलगायत प्रवासमे दुःख बिटैना लिखल रहे, बिटैनु । आत्मसमर्पणफे अपने खुशीसे करल हु । अब्बे कारागारमे बटु, एकदिन मै जरुर छुटम ओ टीकापुर घटनामे धुमिल पानीमे मच्छरी मरुइयाके अवश्य पर्दाफास करम ।
(डिल्लीबजार कारागारमे रहल जसपा (समाजवादी)के सांसद रेशम चौधरीसंग कृष्णराज सर्वहारीसे करल बाटचितमे आधारित)
