थारु राष्ट्रिय दैनिक
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सशस्त्र द्वन्द्व प्रभावितहे न्याय खोई ?

पहुरा | ६ आश्विन २०७८, बुधबार
सशस्त्र द्वन्द्व प्रभावितहे न्याय खोई ?

शान्ति निर्माण प्रक्रिया शुरु हुइल १६ वर्ष पुगे लग्लेसेफे शसस्त्र द्वन्द्वके समयमे हुइल गम्भीर मानव अधिकार उलंघनके सवाल विशेषतः महिलाउप्पर हुइल यौन अपराध जैसिन सवाल सम्बोधन हुई नइसेकल हो । अन्तर्राष्ट्रिय शान्ति दिवस २१ सेप्टेम्बर २०२१ मनैटी रहलबेला द्वन्द्व प्रभावितके लाग न्याय कहाँ बा ? कना प्रश्न चिन्हा खडा हुइल विल्गाइठ । एक दशक नम्मा सशस्त्र द्वन्द्वके परिणाम स्वरुप देशमे गम्भीर मानव अधिकार हननके घटना घटल बटै ।

२० वर्षमे देशके शासन प्रणाली तानाशाही एकात्मक राजतन्त्रात्मक शासन व्यवस्थासे लोकतान्त्रिक गणतन्त्रात्मक, संघीय, शासन व्यवस्थामे रूपान्तरित हुइल । राजनीतिक परिवर्तनहे संस्थागत कैना जननिर्वाचित संविधानसभासे जारी हुइल नेपालके संविधान लागू हुइल ६ वर्ष पूरा हुइल बा । विगतके द्वन्द्वके घाउहे न्यायोचित रूपमे सम्बोधन करके दण्डहीनता अन्त्य कैना, विधिके शासन कायम कैना, दिगो तथा लोकतान्त्रिक शान्ति स्थापना कैना ठोस प्रतिज्ञाके साथ द्वन्द्वके दुनु पक्षसे हस्ताक्षर करल बृहत् शान्ति सम्झौता हुइलफे अइना अगहनमे १६ वर्ष पुग्टी बा । मने दशकौंसे सत्य, न्याय ओ परिपूरणके अनवरत पर्खाइमे रहल द्वन्द्वपीडितहुकनके लाग नयाँ संविधान कार्यान्वयनके ६ वर्ष ओ शान्ति सम्झौताके १६ वर्ष सार्थक हुइ सेकल नइहो ।

सरकारसे अन्तराष्ट्रिय रुपमे करल प्रतिबद्धता, पहिल, दुसरा ओ टिसरा चो विश्वव्यापी आवधिक समीक्षाके (यूपीआर) समयमे द्वन्द्व प्रभावितसे राखल सत्य, न्याय ओ परिपूरणके मागके विषय बारबार उठल सवाल ओ सिफारिस, राष्ट्रसंघके विषयगत कार्यादेश प्राप्त विशेष समाधीक्षकहुक्रे निरन्तर रुपमे प्रदान करटी आइल सिफारिस, देशके संवैधानिक संस्था राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोगसे संक्रमणकालीन न्यायके सम्बन्धमे सरकारहे बारबार डेहल सिफारिसप्रति राज्य मौन बा । ओस्टे सरकारसे विगतके घटनाहे अनुसन्धान कैना ओ दोषीहे न्यायके कठघरामे नन्ना, विगतके ज्यादती फेरसे नइदोहरैना प्रतिबद्धता ओ द्वन्द्वके घाउँमे मलम लगैना ओ प्रभावितहे न्यायके आभाष डेहुवइना कार्यसे पन्छना कार्य करटी आइल बा । प्रभावितसे सत्य, न्याय ओ परिपूरणके लागि करल माग ओ राज्यसे पुरा करे पर्ना दायित्वहे पुरा कैना असक्षम हुइल बा । सत्य निरुपण ओ मेलमिलाप आयोग तथा बेपत्ता छानविन आयोगसेफे द्धन्द्ध प्रभावितके सवालमे काम कैना असक्षम हुइल बा ।

द्वन्द्व प्रभावितहुक्रे आजफे घरवारविहीन हुके बाँचे परल स्थिति बा । द्वन्द्व प्रभावके कारण समाजमे तिरस्कृत हुई परल, लान्छना खेप्टी, समाजसेफे विस्थापित हुई परल, बालबच्चाहुकनके भविश्यके अन्यौलता तथा चिन्ता, बालबालिकाहुक्रे पहिचान बिहिन रहल अवस्था ओ द्वन्द्वसे सिर्जना करल यी महामारीके जटिल परिस्थितसे आउर चर्काइल घाउ लेके बैठे परल स्थिती आजके द्वन्द्वके समयमे रहल हिंसा प्रभावितके जीवनके यथार्थता हो । नम्मा समयके पर्खाइपाछे देशसे दुई तिहाई बहुमतसहितके पूर्ण सरकार पाइल रहे मने मने द्धन्द्ध प्रभावितहुक्रे सरकार हुइल महसुस करे नइपैलै । संघियताके अभ्याससंगसंगे प्रदेश ओ स्थानीय सरकारसे स्वतन्त्र रुपमे कार्य करटी रहल अवस्था बा ।

प्रदेश तथा स्थानीय सरकारसे स्थान विशेषके आवश्यकता ओ माग अनुसार योजना, नीति ओ कार्यक्रम बनाई सेक्न अधिकार संविधानमे सुनिश्चित हुइल बा मने संक्रमणकालीन न्यायके व्याख्या महिलाके दृष्टिकोणसे अभिनसमफे हुइ नइसेकल हो । द्वन्द्वपीडित तथा प्रभावित विशेषतः यौनजन्य हिंसा ओ यातना भोग्न बाध्य महिलाके आवाजहे संक्रमणकालीन न्याय प्रक्रियामे राज्यसे मौन कराइल बा । द्वन्द्व पीडित तथा प्रभावित महिलाके आत्म सम्मानसहितके सत्य, न्याय ओ परिपूरणके लाग अविलम्ब व्यवस्था कैनाके साथे संक्रमणकालीन न्यायहे कानुनी व्याख्याके परिधीसे फराकिलो पारके स्वन्याय, पारीवारिक न्याय ओ सामाजिक न्यायके अनुभूति कैना संयन्त्र ओ वातावरण निर्माण कैना जरुरी बा ।

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