थारू समुदायमे जितिया पर्वके रौनक

पहुरा समाचारदाता
काठमाडौं, १२ कुँवार । तराइके आदिवासी थारू समुदायमे जितिया पर्वके रौनक छाइल बा । थारू समुदायके महिलाहुक्रनके जितिया आजसे सुरु हुइलसंगे पर्वके गाउँघरमे रौनक छाइल हो । कुँवार कृष्णपक्षके सप्तमी तिथि मंगरसे परल थारु महिलाहुक्रे लग्गेक लडिया, जलाशय ओ इनारमे जाके लहाखोरके व्रत प्रारम्भ करल थारु संस्कृति विद भुलाइ चौधरी बटैलै ।
ओहकान अनुसार इ बेर मंगरसे सतमी (सप्तमी) तिथिमे लहाके (लहैना) अर्थात दर खैना, बुधके उपास अर्थात व्रत बैठ्ना ओ बिफेक रोज पारन (बिसर्जन) कैना करठै । थारु महिलाहुक्रे इ बेला आपन लहेर आइल बाटै । लहेर आइ नैसेकल महिलाहुक्रे ससरारमे हुइलेसे फेन व्रत प्रारम्भ करले बाटै ।
वर्तके पहिल दिन मंगरके वर्तालु महिला स्थानीय जलासयमे जाके स्नान कैके जलासयके किनारमे घिरौँलाके पटियामे लाही, तेल, सिन्दुर चह्राके पूजा करले बाटै । साथे जलासय वा कुवासे घुमेबर आपन कूल देवताके ठाउँहे लिपपोत कैके पूजाआजा करले बाटै ।
आपन सन्तान तथा परिवारके सुस्वास्थ्य र सुरक्षाके कामना कैटी महिलाहुक्रे उपास बैठ्ना करठै । थारु महिला इ बेर भर तिथि अनुसार ३८ घण्टा उपास बैठे पर्ना डेखल बा ।
थारु सस्कृति विद् भुलाइ चौधरीके अनुसार इ बेर अष्ठमी तिथि दिनके सुरु हुइल ओरसे व्रत हाली बैठे पर्ना ओ उपास÷उपवासके समय लम्बल बटैलै । उहाँ कहलै, ‘इ बेर जितियाके तिथि÷मिति दिनके प्रारम्भ हुइल ओरसे व्रतालुहुक्रनहे व्रतके समय ढिउर बैठे पर्ना डेखगैल बा । काहे कि व्रत रातके समयमे बिसर्जन डेखल बा । मने सूर्य सकारे उदैना हुइल ओरसे सूर्यके पूजा नैकैके व्रत कैसिक टुर्ना प्रश्न आइठ् । जितिया सूर्यके छावा जितमहान भगवानके पूजाअर्चना कैना चलन रहल बा ।’
उक्त दिन महिलाहुक्रे गाउँके एक ठाउँमे जम्मा होके भगवान जितबहानके कथा श्रवण कैना तथा गीत भजन गैना चलन रहल बा । जितिया तराइके पश्चिम नवलपरासीसे पूरुब झापासमके थारु महिलाके साथे गैरथारु महिलाहुक्रे) पर्वके अवसरमे ठाउँ–ठाउँमे भव्य जितिया मेलाके समेत आयोजना करले बाटै ।
काठमाडौंमे भर थारु महिलाहुक्रे दुई ठाउँमे जितिया महोत्सवके आयोजना करले बाटै । थारु महिला समाजसे ललितपुरके टीकाथलीस्थित मोटेश्वर सामुदायिक भवनमे जितिया कार्यक्रमके आयोजना करले बावै कलेसे थारू महिला सभा काठमाडौँ उपत्यका समितिसे कोरोनाके कारण डेखैटी भर्चुअल माध्यमसे जितियाके आयोजना करे लागल हो ।
पर्वके अन्तिम दिन अर्थात नवमी तिथिके दिन वर्तालु महिलाहुक्रे पुनः लडिया, पोखरी तथा जलासयमे स्नान कैके घरमे आके चौका लगाइ उ पवित्र चौकामे चिउरा, दही तथा सखरके प्रसाद बनाके अघ्र्य डेके पर्वके समापन कैना करठै ।
