दुई मुक्तक
पहुरा |
६ कार्तिक २०७८, शनिबार

१.
मोर मुटु, छाटिम् टोहाँर नाउँ लिखल बा ।
घरक् कोरै बाटिम् टोहाँर नाउँ लिखल बा ।
आझ टुँ चाहे जट्रा डुर जाके रमाउ ‘रच्चु’,
खटियक् सिरै पाटिम् टोहाँर नाउँ लिखल बा ।
२.
टोहाँर बिना रहे नैसेकम रच्चु ।
छातीक बट्ठा सहे नैसेकम रच्चु ।
पुर्खनके पस्नक् मोल खोजटुँ मै,
अक्केली कुछ करे नैसेकम रच्चु ।
धनगढी, कैलाली
