थारु राष्ट्रिय दैनिक
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[ थारु सम्बत १३ बैशाख २६४९, शनिच्चर ]
[ वि.सं १३ बैशाख २०८२, शनिबार ]
[ 26 Apr 2025, Saturday ]
‘ लघुकथा ’

घाँस खैना बघुवा

पहुरा | २९ माघ २०७८, शनिबार
घाँस खैना बघुवा

असार–सावनके महिना । बर्खामे फेन चटाकसे घाम लाग जैना, एक्केघरिम पानी बुन्डियाइ लग्ना । बर्खामे ना काम रहि ना खाइ पैबो । पन्सोठके टिना सब निम्झाइल रहठ । ओ, बर्खहिया सँपार ओस्टे । एकरोज बर्कान दिदी टिना खोजे बनुवाँ चलो कलिन् । हम्रेफेन संझलान बहुरिया, बर्कान बहुरिया, दिदी ओ मै चल्ली यिहे भुर्काभुर्की बनुवाँमे टिना खोजे । बनुवाँमे बेम्टी नैटे कोचियक् साग टे जरुर टुरके नानब कना सल्लाह हुइल ।

बनुवाँमे यहोंर डम्मरुवा, ओहोर डम्मरुवा खोब बेम्टी चिटाइ । टाकपर पानी झम्के लागल । टिना खोज्ना कहाँ पानीले बँच्ना कर्रा । बँचेक लाग एक पखुवाटिर सब कोइ कुह्रिया गिली । पानी कब टे निम्सी ओ घरे जाब अस्रामे रहि हम्रे । टब्बही ओहे पखुवक् एक पाँजर एकठो बघुवक् बच्चा पानीले ठक्ठक् लग्लगाइटेहे । हम्रिहिन डेख्के डराइ टेहे । हम्रे उहि । मने ओकर हालत डेख्के दया लागल अइसिन जारमे अक्केली बिन डाइक् रहे ।

जने कहाँसे भुलाइल, भुखाइल, जराइल ओ डराइल रहे । उहिन भुखासल डेख्के मै अपन लग्गेक घाँस काटके उहिन डार डेनु । उ खोब भुँखाइल रहे । उ घाँस खैटिरहे कि, बड्री टरांगसे ठरकल टब मै झसक्के जग्नु । उ बघुवा टे सपनामे घाँस खाइ टहे !

– कैलाली

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