थारु राष्ट्रिय दैनिक
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‘ सम्पादकीय ’

द्वन्द्वपीडितके आवाज के सुनी ?

पहुरा | ८ श्रावण २०८०, सोमबार
द्वन्द्वपीडितके आवाज के सुनी ?

संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषदसे सन् २००० के अक्टोबर ३१ मे पारित प्रस्ताव नं. १३२५ से द्वन्द्वके रोकथाम तथा निवारण ओ शान्ति प्रक्रयामे महिलाके महत्वपूर्ण भूमिका हुइना तथ्य दृष्टिगत करके शान्ति प्रकृयामे लैगिक दृष्टिकोण मूलप्रवावाहीकरण, समान तथा पूर्ण सहभागिता, निर्णय प्रक्रियामा भूमिका अभिवृद्धि ओ महिला तथा बालिकाके सुरक्षा एवं सहभागिता प्रत्याभूतिके लाग प्रभावकारी संयन्त्रके व्यवस्था लगायतके विषयहे समेटटी सन् २००८ के जुन १९ मे पारित प्रस्ताव नं. १८२० से द्वन्द ओ संक्रमणकालीन अवस्थामे महिला तथा बालिकाउप्पर हुइना लैङिक तथा यौनजन्य हिंसाके घटनाबाट प्रभावित बालिकाहुकनके सुरक्षा, पीडितके आवश्यकताके सम्बोधन, यौन जन्य हिंसामे शून्य सहनशिलता ओ यौनजन्य हिंसाके रोकथाम जैसिन विषयमे डेहल बा ।

द्वन्द्वपीडितहुक्रे तत्काल पीडितहुकनके पहिचान करके परिचयपत्रके व्यवस्था सहिट आधिक राहत, औषधोडपचार, सीपमूलक कार्यक्रम, पीडित महिला ओ बालबच्चाहे समेत उच्च शिक्षासम निःशुल्क शिक्षाके व्यवस्था हुई विल्गाइल बा द्वन्द्वपीडित महिला, छावाछाईके लाग छात्रवृत्ति, क्षमता विकास तालिम ओ समाज तथा परिवारमे पुनः स्थापना लगायतके कार्यक्रम प्रभावकारी रूपमे संचालन करे पर्ना डेखल बा । द्वन्द्वके कारण मृत्युवरण करल व्यक्ति, घाहिल एवं अपांगता हुइल व्यक्ति, एकल महिला ओ पूर्व लडाकुहे लक्षित करके नियमित वा एकमुष्ट राहत तथा क्षतिपूर्तिके कार्यक्रम प्रभावकारी रूपमे कार्यान्वयन हुई पर्ना विल्गाइठ । द्वन्दके कारण यौनजन्य हिंसामे परल महिलाके अलग्गे तथ्यांक संकलन करके विशिष्ट आवश्यकताके सम्बोधन करे पर्ना, यौनजन्य हिंसामे परल पीडित महिलाहुकनके विशिष्ट आवश्यकता अनुसार पाठेघरके गम्भीर मेरिक समस्याके निःशुल्क उपचारके कार्यक्रम कैना जरुरी बा ।

प्रस्ताव नम्बर १३२५ ओ १८२० हे लक्षित करके संविधान प्रदत्त मौलिक हक, राज्यके निर्देशक सिद्धान्त ओ नीति एवं राष्ट्रिय तथा अन्तराष्ट्रिय प्रतिवद्धता समेतहे ध्यानमे धारके दुसरा कार्ययोजना आइल बा । ३ वर्षे दुसरा कार्ययोजना ७९ कुवाँर ७ गते पारित हुइल रहे । टबमारमे द्वन्दपीडितके आवाज सुनुवाईके लाग यिहीहे कार्यान्वयन कैना आवश्यक बा ।

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