थारु राष्ट्रिय दैनिक
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[ वि.सं २७ आश्विन २०८१, आईतवार ]
[ 13 Oct 2024, Sunday ]

थारु समुदायमे होली (फगुवा) पर्व

पहुरा | ११ चैत्र २०८०, आईतवार
थारु समुदायमे होली (फगुवा) पर्व

समय गतिवान बा हरपल हर क्षण विटट जाइत बा । समयके साथ साथे हर चीजमे परिवर्तन होइत चली आइत बा । एक दिन दुई दिन करते करते समयके चक्र साथ साथे होली (फगुवा) तिउहार भी हम्मनके घर अंगनामे आगइल बा । थारु समुदायमे तमाम तिउहार आइते बा जइतेबा हर तिउहारके आपन आपन महत्व आउर मूल्य मान्यता रहल बा । उहे किसिम हम्मन सबके घर घरमे हर्ष उल्लासके साथ होली पर्व भी आगइल बा । ई तिउहार आपन आपन जात जातीमे आपन आपन मूल्य मान्यता बा आउर अपने अपने रङ ढङसे मनाएलन । हम्मन थारु समुदायमे भी पूर्वसे लइके पश्चिम तक हेरलजाई ते फरक फरक तरिकासे मनाएलन । प्रसंग होलीके बा होली रंगके त्योहार हो । यी दिन कुल जने रंगके माध्यमसे होली खेलेलन । अपन भित्तरके उल्लासके अभिब्यक्त करलन । खुशी मनालन औ मनके मैलके दूरे हटालन । यी दिन उँच–नीच, जात–पातके कौनो भेदभाव नाइ देखलन । कुल एक समान देखलन, यिहे खर्तिन यी समरसताके पर्व भी हो । होली अपन भित्तरके उल्लासके प्रकट कयना पर्व हो ।

यी दिन मनइ नाचालन–गीत गालन, मिठाइ–पकवान खाके त्योहारके खुशी मनालन । यी दिन बच्चनके लिए विशेष महत्व रक्खत, काहेसे कि यी दिन वोकहनके खेलेक लिए रंग, पिचकारी आदि दइ जात औ रंग खेलेक वोकहन पूरा छूट मिलत । कपिलवस्तु जिल्लाके थारु समुदाय भी फगुवा आपने तौर तरिकासे मनाएलन । होलीसे एक दिन पहिले सन्झक होलिका दहन मनाइल जात । हिन्दु पंचाङके अनुसार– संवत्सरके अन्तिम महिना ‘फागुन’ मासके पुर्णिमाक होलिका दहन कइ जात औ वोकर दुसर दिन होली खेल जात । यी एक मेरके संवत्सरके वोरइलेक खुशीमे भी मना जात, ताकि होलिका दहनके साथे मनइ अपन विकारके शमन करे औ अच्छा भावके साथ नवसंवत्सरके तैयारीमे जुटे । होलिका दहनके ‘नवान्नेष्टि यज्ञ पर्व’ भी कहलन, काहेसे कि यी दिन खेतवामे पाकके आइल नया अन्नके होलिका दहनके अग्निम हवन कइके प्रसाद लेहेक परम्परा भी बा । यी अन्नके होला कहलन । यिहेसे यी पर्वके नाम ‘होलीकोत्सव’ पडल बा ।

सबसे पहिले सम्मद भदारेलन, सम्मद भदारके सम्मद जरएना दिन पचघोइती मांगेलन पचघोइतीमे भेली, चाउर उठाएलन, कन्डा, कर्सी भी उठाएलन, उठाके होलिकाके दहन जेकर दाई बाबा बीत गैल बाटन वा नाइ बाटन ओकर हाथेसे सम्मदके जराएलन । सम्मदके दहन करेक बेर तील, जौ, गोंहुक लाठी लहरमे कराएलन । लइकनके पहिरल कपडा, भी सेकाई करेलन जेकेसे लइकनके रोग दोख दूर होइजाइ कहिके मूल्य मान्यता रहल बा । ओकर विहान उठ जरल कन्डा, कर्सीके राखी लैजाके कोटियामे, देवीथानमे जाके राखी चढएना पूजा कयना चलन बा । सब घरेक देवी देवता चन्चाइन माई, दनुवा देवता, मुडहा देवता, घरेक देवी देवता, पित्तरलोगनकेहे राखी लगाके पूजा पाठ कयना चलन रहल बा । सब रोग दोख दूर होए कष्ट दूर होए घर घरमे खुशियाली छाए कहिके पूजा पाठ कयना चलन रहल बा आउर मनोकामना पूरा होइत कहिके जनमानसमे विश्वास रहल बा । घरके सब जने एक आपसमे बडी प्रेम भावसे सातो रङसे होली खेलके मेल मिलाप कयना, आपन मनमे रहल कलमष कषायके हटाके एक आपसमे हर्षोल्लासके साथ बडा प्रेमसे होली तिउहार मनाएना प्रचलन रहल बा ।

पौणाणिक कथनः

एकर एैतिहासिक आउर पौणाणिक हिसाबसे एकर बारेम हेरलजाइ ते अइसन रहलबा । होलीक पर्व हम्मन देशमे प्राचीनकालसे मनात आत बाटन । यिहे कारण समयानुसार तमान पौराणिक आख्यान एकेसे जुडते चल गइल । सबसे प्रमुख आख्यान भक्त प्रहलाद, वोकर बाबा हिरण्यकश्यपु या फुवा होलिकासे सम्बन्धित बा । हिरण्यकश्यपु राक्षस लोगनके राजा रहे । उ अहंकारवश स्वयम अपनेक ईश्वर माने लागल औ उ भगवान विष्णुसे मनमे बैर या प्रतिस्पर्धा राखे लागल । उ अपन राज्यमे यी घोषणा कइ देहल कि कुल जने वोकर पूजा करन, केउ भी भगवानके पूजा न करन औ न वोनके नाम लेवन । बकिन वोकरे पुत्र प्रहलाद जन्मेसे भगवान विष्णुके परम भक्त रहे औ हरदम वोनके ध्यान, स्मरण करे ।

यी बात हिरण्यकश्यपुके सहन नाइ होइल । उ भक्त प्रहलादके किसिम– किसिमके यातना देहल औ वोके मार देहेक तमाने प्रयास कइल, बकिन भक्त प्रहलाद हर बेर वोकेसे ऐसे बचत चल जाए, जइसे कि वोकर कुछ नाइ होइल हो । हिरण्यकश्यपुके बहिनिया होलिका आगीसे नाइ जरेक वरदान पइले रहे । उ रोज आगीमे नहाए वकिन नाइ जरे । यिहेक खर्तिन हिरण्यकश्यपु अपन बहिनिया होलिका केहे यी आदेश देहल कि उ प्रहलादके लइके आगीमेहे नहाए अर्थात आगीमे लइके बइठे । बकिन ऐसे कइलेपर भी प्रहलाद बच गइल, जबकि होलिका आगीमे भस्म होइ गइल । पूहलादके प्रभुक नाम बढियासे बचा लेहल औ वरदान पाइल होलिका तब्बो नष्ट होइ गइल । यी प्रसिद्ध पौराण्कि आख्यानके आधार पर तबसे हरेक साल होलिका दहन मनाये लगलन । होलिका हम्मन मनके बैरभावरुपी विकारके प्रतिक हो औ प्रहलाद भक्ति, प्रेमरुपी सद्भावके प्रतिक हो । होलिका दहनमे हम्मन भित्तरके बैरभावरुपी विकारके दहन हो औ भित्तरके सद्भावमे निखार या उभार आए, यिहे भावसे हरेक बर्ष होलिका दहन मना जात ।

थारु समुदायमे होलीके महत्वः

हर तिउहार चाड पर्वके आपन आपन महत्व रहत उहेमेरके थारु समुदायमे होलीके ज्यादा महत्व रहलबा । ई अइसन तिउहार हो जौन कि एक आपसमे रहल तिक्ताके मिटाके सात रङसे रङके एक आपसमे प्रेभ भावके विस्तार कयना, घर घरमे खुशियाली छएना एक बहुत बडा अवसर हो । सकारात्मक सोंचके साथ कौनो भी चीज कइलसे ओकर परिणाम भी सकभर बढिया आइत । उहेमेरके ई तिउहार भी अइसही बा जौनकि हमरे सकारात्मक भावसे, प्रेमभावसे हमरे सब जने मनाईलजाइ ते अवश्य एकर सकारात्मक परिणाम निकरी आउर हम्मन युवा पुस्तामे भी एकर बढियाँ हस्तान्तरण होई ।

होली पर्व मनएना चलनमे परिवर्तन आउर स्वास्थ्यमे एकर असरः

समयके परिवर्तन साथ साथे होली फगुवा मनएना चलनमे भी बहुत परिवर्तन होगइल बा । कुछ परिवर्तन सकारात्मक पक्ष बा ते कुछ नकारात्मक पक्ष भी रहल बा । होलिका दहनके दुसर दिन होली (फगुवा) खेलेक परम्परा बा, जेहमे तमान रंगके गुलाल, अबीर आदिके प्रयोग कइ जात । मनइ दुसरेक माथेम वा गालेम अबीर, गुलाल लगाके वोकहनसे मिललन, खुशी मनालन । यी रंगोत्सवके उद्देश्य अंतरमनमे आइल सद्भावके, उभारके उल्लासके रुपमे मनालन, बकिन समयके साथे यिहे क्रममे कनिकेतना विकृतियो भी समावेश होइ गइला, जइसे बजारमे बेचनहवा रंगमे मेर–मेरके कृतिम रंग प्रयोग होत बा, जेहमे हानिकारक रसायन होत, जउन कि चेहराके नोक्सान पहुचात । यदि रंग आँखिम चल जाइते एकेसे आँख लाल होइ जात, आँख पिराए लागत । बजारमे बेचेवाला कुछ रंग अइसन होत, जउन आसानीसे नाइ छुटत औ एके छोडाएक बेर ढेर साबुन पानी ब्यर्थ, बरबाद होइ जात ।

कृतिम रंगके प्रभावसे मुडीक छाला भी प्रभावित होत औ बार भी झरे लागत । येहीसे होली खेलेक दाँइ मनइनके यी मेर प्रेरित कइल जाए कि उ प्राकृतिक रंगके भर प्रयोग करन । हरियर रंगके मेहदी, पीयर रंगके हर्दी–वेसन, लाल– नारंगी रंगके लिए कत्था–हर्दीके मिश्रण या लाल चन्दन पाउडर, नीला रंगके लिए नील पेडवक फाराके पाउडर, जकरन्द वा नीलगुडहलके फूलाके पीसके धूरबनाके सुखुवाके भी नीला पाउडर बना सकल जाइ सबसे बढिया ते टेँसके फूला उपयोग कइ सकल जाइ, जेहमे नैसर्गिक रुपसे कुल प्रमुख रंगके मिश्रण प्राकृतिक तौरसे विद्यमान बा । यी मेर हम्मनके प्रकृति जउन तमान रंगसे सुशोभित बा, वोकेसे मेर–मेरके रंग तइयार कइ जा सकता औ खुश्बुदार– रंगीन होलीक आनन्द उठाये जा सकता ।

होली पर्वमे हम्मन ध्यान देहेक पर्ना पक्षः

होलीक हुडदंगमे मनइनके कपडा फारेक, वोकहन हिल्ला–किच्चामे गिरएना या नहुवैना—एक अशोभनिये ब्यवहार लेखा होत, जेके केउ नाइ मन परात, बकिन फिर भी मनइ ऐसन करलन औ ‘बुरा न मानो होली है’ कहिके वोके बढावा देहलन । होलीक हुडदंगके फायदा उठाके समाजमे अमानवीय विकृति मुडी उठात औ खुलेआम असहनिय या शरमनाक घटना होत । यी कुल कृत्य होलीक त्योहार पर लागल दाग हो जउन कब्बो नाइ छुटत औ एके बेरंग बना देहत । बहुतसे मनइ होलीक पर्वपर यिहे कारण अपन घरसे नाइ निकरलन औ अपन सामुहिक सहभागिता नाइ निभालन ।

होलीक त्योहारमे हम्मन सबके यी दायित्व हो कि होलीक रंगके बदरंग न कइल जाये । अइसन होली, खेली जेकेसे हम्मन समाज तमान रंगसे सुशोभित होइ जाए । होली खेललेसे हम्मनके कुल चिन्ता हम्मन तनावसे दूर होइ जाए । जउन मेर खेल खेललेसे मन प्रसन्न होए, उहे मेर होली खेललेसे मनमे प्रफुल्लता आए, जीवनमे उत्साह– उमङ बिखरे औ होलीक पर्व हम्मन मनमे उल्लासके नाइ मेटनहा छाप छोडे । यी दिन हसी मजाक ते कइल जाए, बकिन केकहियो मजाक न बनाइल जाए । केकरो दिलके न दुखाइल जाए । केकरो कउनो मेरके क्षति न पहुचाइल जाए, बल्कि क्षतिपुर्तिक भरपाइ कइल जाए ।
यदि अइसन नाइ होए सेकिते– हम, हमार आस्था– मान्यताके प्रतिक यी महत्वपूर्ण पर्वके मर्यादा बनाएकमे सफल होइ सकब नइते आए वाला पीढी एके एक हुडदंगके रुपमे समझी औ एकर पाछे नुकाइल उद्देश्यके भुला बइठी ।

विश्लेषणः

थारु समुदायमे होली पर्व बहुत परापूर्व कालसे मनाइत चली आइत बाटन । पहिले पहिले होली मनाएना चलन फरक रहल रहे । थारु होली गीत गाइत रहन,महिला तथा पुरुष फाग खेले जाइत रहन । ढोल मजिरा लइके होली गीत गाके बडी धूम धामसे फगुवा पर्व मनाइत रहन । बकिन समयके साथ साथे आजकल ज्यादा परिर्वत होरहलबा । बढियाँ संस्कारके साथ साथे नकारात्मक पक्ष भी ज्यादा हावी हो रहलबा ।

पुरान गीत बास लोप होइत बा, ढोल मजिरा लइके फाग पढना हेराइतबा । जेकर पास जौन ज्ञान गुण रहे सब लोप होइत जा रहलबा उहेक नाते आइल जाय आपन संस्कृति मनायना क्रममे आपन कुसंस्कार आउर कुसंस्कृति हटाके एक बढियाँ संस्कारके स्थापना कइलजाय । आउर सभ्य राष्ट्र समाज,सभ्य समुदाय आउर सम्मुन्नत राष्ट्रके निमार्ण कइलजाय । सब जने आपन आपन जगहीसे कन्धासे कन्धा मिलाके आगे बढलेसे अवश्य सम्भव होई ।

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