थारु राष्ट्रिय दैनिक
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गौरा पर्व सुरु

पहुरा | ८ भाद्र २०८१, शनिबार
गौरा पर्व सुरु

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, ८ भदौ ।
सुदूरपश्चिमके मौलिक पर्व गौरा शनिच्चरसे विधिवत् रूपमे सुरु हुइल बा । गौरा पर्वके पहिल दिन बिरुडा पञ्चमी पर्व मनागिल बा । पुत्रदा एकादशीके व्रत बैठल विवाहित महिला गौराके पूजा कैना योग्य मानजैठै ।

पञ्चमीसे विधिवत् रूपमे सुरु हुइल गौरा पर्वके पहिल दिन तामाके भाँरामे गैयाके गोबर, दुब्बा, अक्षताले शृङगारके ओकरभिटर बिरुडाके रूपमे मास, कलौँ, गहत, गोहुँ ओ गुरुस करके पाँच मेरके अन्न भिजाके रख्ना करजाइठ । पञ्च बिरुडाहे गौरादेवीके प्रसादके रूपमे लेजाइठ । गौरादेवीके पूजाआजामेफे बिरुडा प्रयोग करजाइठ ।

यैसिक भिजाइल बिरुडाहे षष्ठीके दिन धोइना प्रचलन रहल बा । सप्तमीके दिन साउँ घाँसके प्रयोग करके गौराके प्रतिमूर्ति बनाके गौरा घर वा मन्दिरमे लैजाके गौरा महेश्वरके पूजा करजाइठ कलेसे उहे क्रममे महिलासे लगैना यज्ञोपवीत दुब्बधागा ओ नयाँ लुगा कपडामे अभिशेष करजाइठ । यी वर्ष तिथिमे रहल घटबढसे अँटवार सप्तमी परल ओरसे अँटवार साँझ गौरा महेश्वरके पूजा कैना ज्योतिष पण्डित यज्ञराज पन्त जानकारी डेलै ।

अष्टमीके दिन गौराहे गौरा घर वा मन्दिरके आँगनमे ल्यानके गौरा महेश्वरके वर्णन कैना अठेवाली गीत, सगुन आदि गाके गौरा खेलैना करजाइठ । उहे बेला व्रतालु महिलाहुक्रे परिवारजन ओ आफन्तजनहे दुब्बा ओ बिरुडाके प्रसाद लगाडेना चलन रहल बा । अष्टमीके दिनसे ठाउँ ठाउँमे देउडा खेल समेत खेल्न करजाइठ ।

प्राचीन कालसे पार्वतीहे गौरा देवीके रूपमे पूजा अर्चना कैना करजाइठ । यी पर्व अगस्ति ताराके उदयके आधारमे कबु भाद्र कृष्ण पक्षमे टे कबु भाद्र शुक्ल पक्षमे पर्ना करठ । भाद्र कृष्ण पक्षमे परल गौराहे ‘अन्यारी गौरा’कहठै कलेसे भाद्र शुक्ल पक्षमे परल गौराहे ‘उज्याली गौरा’ कहिजाइठ ।

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