रानाथारु वैशाष कि चराई काहे मनात

द्वापर युग से कलियुगमें खकडेहरा पर्व के बाद चैत कि चराई मानत आए है पर चैत कि–चराई मनायक अगले वैशाष कि चराई काहे मनात है ?
परापूर्व काल घेन कि बात है जगत भुईंहार एक नामी सिद्धी प्राप्त भर्रा रहय (भुईंहार–भर्रा) एकय बात है आजकल हम जाधा भर्रा शब्द प्रयोग करत है ।
जगत भुईहार (भरी) बडो लौका में पानी और हर गोइ लेके अपने खेत हरइयों डारके जोततपेति सात बहना दुर्गा, कालिका, ज्वाला होलिका सितला, गुंगा अंगारमति, घूमत फिरत जब पानी पियास लगी त खेतमे हरवहिया धिना लोका धरो देखलैे लोकामें जरूर पानी होवयगो हरबहियासे पानी माग्ते आपन पियास मिटाय लेहै जगत भूईंहार हरवंडिया हरईयाँ डारके खेत जोतत रहे सातौ बहना हरईयाँ नाघके अबइय त सातौ बहनासे जा कहिकि तुममिर हरड्याँ नाघके मत आवौ घुमके आयक पानी पि लेबौ सातों बहना घुमके हरवहिया थिना पुगोत जगत भुईंहार भर्रा सिद्धी प्राप्त करे रहै जेत भवानीहै चिन्हलै बह लौकामे घरो पानी पिनदयी तब उनसे विन्ती करि तुम सातौ बहना हमरे भवानी हो और हमरे गाउँ समाज मे पुज्य मान हौ में गाउमे पधनासे सल्लहा करके तुमहरे नामसे भण्डारा करबयहे मेरे भईंहार, खेरो÷सीमाना) भीतर अन्न बाली में रोग दोख गाउँमे हारि वेमारी और भूतप्रेतसे रक्षा करियों तुम जा जगत के रक्षक हो हर गाउँमें तुम हमरे पुज्यमान हो तुमसे मय बिन्ती करत हौ चराई भण्डारामें तुमहरो प्रसाद ग्रहण करन आगमन होबय । तव पधनासे सल्लाह करके बैशाषमें तिथि अनुुुसार पहिल सोमवार या बृहष्पतबार चराईक दिन धरत है ।
ध्यान देनकि बात का है वैशाष कि चराई मे माहक महिना मे व्याह भै नयिदुलहिन मैकै मैं निनहारी या
दुसरेजघा गयी होये, चराईमें ससुराल कर लागके आनयपडत है और वैशाखक चराई, मनात ढिहा में जानय पडत है बस संस्कार अनुसार वैशाष कि चाई मनायि जात है ।
लेखक रानाथारु धनगढी उपमहानगरपालिका–१०, जुगडा निवासी हुइट ।
