थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत ०७ सावन २६४९, मंगर ]
[ वि.सं ६ श्रावण २०८२, मंगलवार ]
[ 22 Jul 2025, Tuesday ]

सावनके डोलामे रमैटी कठरियाथारु समुदायके महिला

पहुरा | ६ श्रावण २०८२, मंगलवार
सावनके डोलामे रमैटी कठरियाथारु समुदायके महिला

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, ६ सावन ।
कैलाली जिल्लाके कठरियाथारु समुदायके महिलाहुक्रे सावनके डोलामे रमैटी रहल बटै ।

आदिवासी जनजाती कठरियाथारु समुदायके पहिल टिहुवार पचैया (गुरीया) के अवसरमे डारल सावनके बन्ना डोलामे साँझ विहान रमैटी रहल बटै । पचैया (गुरीया) के अवसरमे कठरियाथारु बसोबास रहल गाउँमे सावनके बन्ना डोला डारल बा ।
बन्ना डोलामे कठरियाथारु समुदायके छोट लवरियासे बुह्राइल महिलाहुक्रे आपन परम्परागत पहिरन लेंङगा, घंघरिया, चोलियालगायतमे सजके सावननके डोलामे झुलेबेर गैना गीत गैटी रमैना करल भजनी नगारपालिका–७ चर्रा गाउँक भल्मन्सा जंगबहादुर कठरिया बटैलै ।

भल्मन्सा जंगबहादुर कहलै, हमार गाउँमे चर्रा गाउँ समाजके आयोजनामे बन्ना डोला डारल बा । यम्ने छोट लवरियासे लेके (बल्हा) डोला झुले सेक्ना वृद्धा महिलाहुक्रे डोला झुल्टी रमैना करठै ।

कठरियाथारु समुदायके बुद्धिजिवी समाजसेवी रामकुमार महतों गुरही पर्व मनैनासे पहिले सावनके डोला पंचमीके दिनसे बनाके महिलाहुक्रे रहरङगी कैना ओ गुरहीक दिन डोला बनाइक लाग प्रयोग करल डोरीके मुरी ओ पुच्छी काटके गुरही संगे अस्रैना चलन रहल बटैठै ।

उहाँ कहलै, हमार पुर्खा पहिले निरन्तर डोला डोल्टी आइल रहिट । विचमे बन्द हुइल । हम्रहिनफे यकर महत्वबारे खासे पत्ता नइहुुइल । यी चलन निरन्तर चल्टी आइट कलेसे सक्कु जनहनहे पत्ता हुइट । सावनके डोला कठरिया थारु समुदायके चिनारी पहिचानके रुपमे रहल ओरसे संरक्षण कैना आवश्यक रहल बटैठै ।

हमार पुर्खानके सिखाइल चालचलन हम्रे विस्रैटी जाइटी उहाँ कहलै, ‘अपन संस्कृति छोरटी, विस्रैटी गैलेसे हमार पहिचानके अस्तित्व हेरैटी जाई । सावनके डोला संस्कृति ओ मनोरन्जनके रुपमे लेनाफे जरुरी बा ।

पवेरा गाउँक बुद्धिजिवी समाजसेवी परसराम चौधरी भगवान कृष्ण १६ सय ग्वालिनसंग सावन महिनामे झुलल डोलामे आधारित रहल बटैठै । उहाँ कहलै, ‘सावनके डोला झुल्ना ओ संगे गीतफे गैना करजाइठ । अब्बेक पिढीहे पहिले यी चलन रहे कना बाट पत्ता नइरहे । पहिले पुर्खा निरन्तर सावनके डोला डोल्टी आइल रहिट । विचमे निरन्तरता पाई नइसेकल । फेरसे सुरुवाट कठरियाथारु बैठल गाउँमे हुइटी बा । अबसे निरन्तरता डेना जरुरी बा ।’

रानाथारु समुदायमेफे सावनके डोला झुल्ना चलन

रानाथारु समुदायमेफे रानाथारु समुदायमेफे सावनके डोला झुल्ना चलन रहल बा ।

तिज पर्व असार महिनाके पुर्णिमक दुसर दिनसे सुरुवाट हुइठ, जेम्ने गाउँटोलमे सावनके डोला (बहला) बनाके रात–रातके झुल्टी रहरङगी कैना प्रचलन बा । डोला (बहला) औसिक टिसरा दिनसम अर्थात १८ दिनटक झुलके रमाइलो कैइजाई । जौन सावन महिनामे परठ ओठहेसे ओजरिया सुरु हुके टिसरा दिन पानी समेट नइपिके तिजके निर्जल ब्रत बैठजाइठ ।

सावन महिनाके सुरुमे रानाथारु समुदायसे गाउँके बीच भागमे दिदीबहिनीयाके लाग डोला (पिङ) रख्ठै । रानाथारु समुदायके परम्परागत चलन हो । राना थारु बसोबास कैना गाउँमे सावन महिनामे सार्वजनिक स्थानमे पिङ रख्ना करजाइठ् । परम्परागत पहिरनमे सजल रानाथारु महिला अपने पारामे गीत गैटी पिङमे मचमचके आनन्द लेना करठै । पिङ भर महिला नैरख्ठै ।
सामूहिक भेला हुइना सार्वजनिक ठाउँमे दादुभैया दिदीबहिनीयनके लाग पिङ रख्नना चलन पुरान रहल बा । ‘इ चलन परम्परागत रुपमे चल्टी आइल बा,’ धनबहादुर राना कहलै–‘दिदीबहिनीया पिङमे रमाइलो कैटी मांगलिक गीत गैना करठै । पिङहे रानाथारु भाषमे डोला कहठै । चारठो कठ्वक खम्बामे डोरीमे कठ्वक फलिया बाँधके पिङके रुपमे प्रयोग करजाइठ् ।’
पिङ खेलुइया दिदीबहिनीयाके उत्साह थपक लाग जोरसे दादुभैया गीत गैना चलन इ समुदायमे रहल बा ।

इहीसे दिदीबहिनीया ओ दादुभैयाबीच आत्मीयता बह्रना हुइल ओरसे इहीहे ढिउर महत्व डेना करल रानाथारु अगुवा नवलसिंह राना बटैलै । दिदीबहिनीया पानीसमेत नैपिके निरहार बैठके दादुभैयाके दीर्घायुके कामना कैके इ अवसरमे तिज मनैना करठै । निरहार बैठके दिदीबहिनीया प्रसादके रुपमे परम्परागत पकवान सिमही, पपरा, पुरी, गुलगुला बनैना करठै ।

गडरौँदा जातके घाँसमे विवाहिता सात गाँठ ओ अविविहीत पाँच गाँठ पारके चाँदीके गहनासे काटके लडियाके बीच भागमे पुगके बत्तीसँगे विर्सजन कैना चलन रहल बा । विर्सजन कैना बेला दिदीबहिनीया दाजुभैयाहे धन सम्पत्ति, उन्नति ओ लडियाके धारजस्टे दादुभैयाके आयु बढे कहिके बरदान मग्ना करठै । जत्रा डुर घाँस पुहके जाइठ् ओत्रे ढिउर नै दादुभैयाके आयु बह्रना विश्वास इ सामुदायमे रहल बा ।

‘विर्सजन करे जैना बेला गाँउके युवा दिदीबहिनीयाहे डगरामे लम्मा डोरीमे बेरके घेर्र्ना प्रयत्न कैके हस्यौली ठट्यौली ओ मनोरञ्जन लेना करठै,’ राना कहलै, ‘जिहीहे राना थारु भाषामे झुडकी छिरैना कहिजाइठ् ।’ लहेरमे जाके आपन नाटपाट नैभेटे पाइल दिदीबहिनीया इ अवसरके सदुपयोग कैटी भेटघाट करे अइना हुइल ओरसे इहीसे बरसभरके सुखदुःख साटासाट कैना अवसरके रुपमे लेना करजाइठ् । इ अवसरमे घरघरमे बनाइल परम्परागत पकवान सिमही, पपरा, पुरी, गुलगुला बनाके नाटपाटनहे बँट्टी घरक सक्कु जाने बैठके सँगे खैना चलन इ समुदायमे रहल बा ।

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