थारु राष्ट्रिय दैनिक
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[ वि.सं १ भाद्र २०८२, आईतवार ]
[ 17 Aug 2025, Sunday ]

थारु समुदायमे अस्टिम्की मनैटी

पहुरा | ३१ श्रावण २०८२, शनिबार
थारु समुदायमे अस्टिम्की मनैटी

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, ३० सावन ।
पश्चिमा थारु समुदाय हर्षोल्लासपूर्वक आज शनिच्चरके रोज अस्टिम्की (श्रीकृष्णजन्माष्टमी) टिहुवार मनैटी रहल बटै । इ समुदाय पृथक शैलीमे अस्टिम्की मनैटी आइल बटै । थारु समुदायके घरमे भगवान श्रीकृष्णसहित मानव जातीके जन्मसे मृत्युसमके क्रियाकललाप दर्शैना चित्र बनाके पूजा कैना मनैना करजाइठ् । उ अवसरमे घर–घरमे पुजा करक लाग परापूर्वकालसे चित्र बनैना चलन चल्टी आइल बा ।

थारु समुदायके घर–घरमे रहल बहरीके भिटा अथवा डेहरीमे अस्टिम्कीके अवसरमे मानव जातीके जन्मसे मृत्युसम कैना क्रियाकलापके चित्रके माध्यमसे डेखैना करल थारु वुद्धिजिवी दिलबहादुर चौधरी बटलै । महिला पुरुष डुनु जाने अस्टिम्कीके अवसरमे चित्र बनैना करठै । विशेष कैके यी दिन व्रतालु महिला चित्र बनैनामे बेफुर्सदिला बनल रहठै । “ब्रम्ह मूहर्तमे दर खाइलपाछे घरमे रहल बहरी (बैठक) कोठामे व्रतालु थारु महिला अपने हाठसे कान्हा अर्थात भगवान श्रीकृष्णके चित्रसहित अन्य लोक चित्र बनैना करठै” उहाँ कहलै, “महिलाहुक्रे बनाइ नैजानल ठाउँमे पुरुष जाके चित्र बनैना करठै ।”

चित्र बनाइबर पश्छिउ ओर चन्द्रमा, पुरुबओर सूर्य, मच्छी, लठ्ठी, गेगटा, सँप्वा, कुकरा, रुखमे बैठल बन्दरा, केच्ना, खेचुहीया, हठिया, घोरुवा, गोरु, उँट, मुर्गी, मजोर, विच्छी, वासुकि नागलगायतके जलचर ओ थलचर प्राणीके चित्र बनैना करजाइठ् । चित्र बनैना बीच भागमे दुलही पठाइबर दुलहीहे लैजुइया डोली बोकुइया सहितके डोलीके समेत चित्रके माध्यमसे डेखैना करजाइठ् ।

डेहरी ओ भिटामे इ चित्र बनैना करल उहाँ बटैलै । “पहिले महिला किल अस्टिम्कीके बेला चित्र बनैना करिँट” उहाँ कहलै, “हाल पुरुष समेत चित्र बनैना करल बाटै ।” सिलौटामे पिसल चाउर, भिटा अथवा डेहरीमे पोटलपाछे परम्परागत तरिकासे बाँसके सिँकामे कपास लगाके रंगमे डुबाके चित्र बनैना करल रलेसे फेन हाल बजारमे पैना रंग प्रयोग कैके चित्र बनैना करल उहाँके कहाइ रहल बा ।

सृष्टीके रचनासे मानव जातीहे बाँचक लाग आवश्यकपर्ना वस्तुबारे चित्रके माध्यमसे व्यक्त कैना हुइल ओरसे थारु समुदायके लोक चित्रकलाके महत्व रहल बा । थारु समुदाय प्रकृति पुजारीके रुपमे रहल ओरसे पाँच हजार बरस आघेसे चित्र बनैना कलाके सुरुवात हुइल बटाइल बा । पहिले थारु समुदाय अष्टिम्कीके बेला बनैना चित्रके लाग सिमके पटियासे हरियर, खयरसे कत्थइ, पुँइक बियासे लाल, सुखाइल लौका आगीमे जराके करिया रङ बनैना करिट । अष्टिम्कीमे चित्रमे लगैना रङगके समेत आ–अपने महत्व रहल बा ।

करिया रंग शून्यताके प्रतिक, लाल रंग जीवनके उमङ्गता, हरियर रङग धैर्यताके प्रतिक, पियर रंग बुद्धिमताके प्रतिक, खैयर रङग शरीरके संवेगात्मक अवस्थाके प्रतिक ओ निला रङगहे परम्परा ओ मूल्य मान्यताके प्रतिकके रुपमे लेना करजाइठ् । थारु संस्कृतिके जानकारके अनुसार अष्टिमकीके चित्रमे अत्यधिक मात्रामे ज्यामितीय स्वरुपके प्रयोग करजाइठ् । थारु लोक चित्रकार शिर ओ रोदनके लाग अण्डाकार शरीरके लाग घनाकार वा त्रिभुजाकार हाठ ओ गोराके लाग शङ्कु आकारके प्रयोग करठै । इ चित्र सरल तरिकासे आकर्षक रुपमे बनैना करजाइठ् ।

अष्टिम्कीके चित्र बनैना ओ पूजा सामग्री तयार कैना कार्य ओराइलपाछे महिला निरहार बैठके भुख्ले पेट परम्परागत आभूषण ओ पहिरनमे सजके चाउर, फलफूल, दिया, धानक अथवा मकैक बोट, कागतीके हाँगा ओ जोडा फल लेके पूजा कैना करठै ।

अष्टिम्कीके रातभर जाग्राम बैठके घरके सक्कु जाने कान्हा (श्रीकृष्ण) के परम्परागत लोक भाखामे गीत गैना करठै । अष्टिम्कीके डुसरा दिन सक्करही पूजा कैके पूजा करल सामग्रीसहित चाउर सहितके दिया बारके लडिया अथवा टल्वामे असराके स्नान कैके सक्कु जाने घर अइठै । घरमे बनाइल पकवानके कुछ भाग भगवानहे अर्पण कैके व्रतालु महिला भोजन ग्रहण कैना करठै ।

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