मच्छी थारु समुदायके लाग छाक टर्नासे लेके संस्कार पुरा कैना आवश्यक

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, १९ भदौ । रात जोरले बरसल पानी विहान हुइटसम सिमसिम परटी रहे । कुलुवामे टापी डोगके थारु महिला नाइल लागल रहिट । यी दृश्य सुदूरपश्चिम प्रदेशके अस्थायी राजधानी धनगढीके हो ।
ग्रामीण क्षेत्र होए वा सहर पानी परलपाछे थारु समुदायके मनै मच्छी मर्ना खोला, लडिया ओर लामबद्ध हुइना एक ठो चलन जस्टे बनल बा । मच्छी मर्ना ओ ओकर परिकार खैना सौकिन यी समुदायके मनै जैसिनफे सिजनमेफे मच्छी मर्ना करल बटै । बर्खाके बाढसे लेके हिउँदके कठ्याङ्ग्रिन जुरारमेफे यी समुदायके मनै खोला, खोल्सा, लडियामे, तल्वामे मच्छी पारल विलगाइठ ।
“मच्छी मिले वा नमिले पानी परटीकी टापी लेके महिला खोला, लडिया ओर पुग्ठै”, धनगढी उपमहानगरपालिका–८ के प्रदेशु चौधरी कहलै,“मच्छी मर्ना ओ ओकर टिना खैना थारु समुदायके एक ठो पहिचान हो ।”
कटरासम फे बर्खा याममे बाढसे सक्कु ओर डुबान हुइलबेलाफे मच्छी मारे नैछोरठै, यी समुदायके मनै । घरमे बाढ पैठल बेला निर्धक्क आङ्गनमे मच्छी मरटी रहल दृश्यफे हेरे सेक्जाइठ ।
थारु समुदायमे मच्छी मारेक लाग महिलासे हेल्का, टापी जैसिन हतियार प्रयोग कैना करल बटै । ओस्टेक करके, पुरुषसे जाल (सेउखा), चेउँढीसे मच्छी मर्ना करल बटै । ढर्हिया, खोङ्खिया ठाप्केफे मच्छी मर्ना करल बा ।
थारु समुदायमे मच्छी महत्वपूर्ण परिकार रहल कैलारी गाउँपालिकाका–७ के कमल चौधरी बटैठै । उहाँक अनुसार छाक टर्नासे लेके कतिपय संस्कार पूरा कैना मच्छी आवश्यक हुइना करठ । मच्छीके टिना रहल दिन घरपरिवारके सक्कु सदस्यसे बहुट मिठ मानके खैना करल चौधरीके कहाई बा ।
ओस्टेक करके, विवाह, अट्वारी पर्व ओ डस्याके पिटरहुवामे मच्छी आवश्यक पर्ना करठ । “पहिले पहिले अट्वारी पर्व ओ डसियाके पिटरहुवामे सुखल मच्छी (सिद्रा) के टिना अनिवार्य रहे”, उहाँ कहलै,“सेकटसम अचकलफे मच्छीके टिना रहठ । मने, पहिलेक जस्टे अनिवार्य भर नहो ।”
ओस्टे, थारु समुदायके विवाहमे अब्बेफे मच्छी अनिवार्य बा । बराट जाईबेर दुल्हाके भातु वा अन्य नाता पर्ना व्यक्तिसे बर्छी (फलामके डण्डी) मे मच्छी टाङ्गके दुलहीके घर लैजैना चलन रहल बा । विगतमे लडियासे मारके यैसिक मच्छी लैजैना करलेसेफे अचकल पोखरीमे पालल मच्छीसेफे काम चल्न करल जनाइल बा ।
थारु समुदायमे बैशाख जेठओर घर निर्माण करलपाछे सामूहिक रुपमे मच्छी मारके खैना ओ रमैना चलन बा । यि कार्यहे झोल झराई कना करल जनाइल बा । ओस्टेक करके, भोजमे भान्से लगायतके काम करे आइल महिला, पुरुषसे छेउटाबिँरा खैना करल बा । यकर लागफे मच्छी आवश्यक पर्ना करल ओरसे सामूहिक रुपमे मच्छी मारे जैना चलन रहल बा ।
हेरैटी परम्परागत चलन
थारु समुदायमे विगतमे प्रचलनमे रहल मच्छी मर्ना परम्परागत तरिका भर अचकल हेराई लागल बा । गैल विगतमे लडियामे शैया चललपाछे गाउँभरिक मनै बहन ओ नुकाइ मारे जैना चलन रहे ।
पहिल चो वर्षा हुके लडियामे सामान्य बाढ आइल बेला रातके मच्छी मर्नाहे नुकाइ कहल कमल चौधरीके कहाई बा । ओस्टेक करके, गाउँभरिक मनै दिनमे मच्छी मर्नाहे बहन कहिजाइठ । नुकाइ ओ बहनमे महिलासे लाइनसे तरे ओर टापी ठप्न ओ पुरुषहुक्रे उप्परसे जाल खेल्टी सामूहिक रुपमे मच्छी मर्ना करल जनाइल बा । “अचकल यैसिन मच्छी कमे मात्रामे मरठै”, उहाँ कहलै ।
