थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १५ बैशाख २६४९, सोम्मार ]
[ वि.सं १५ बैशाख २०८२, सोमबार ]
[ 28 Apr 2025, Monday ]
‘ कविता ’

डाडु का बा विडेसमे ?

पहुरा | २४ माघ २०७७, शनिबार
डाडु का बा विडेसमे ?

डाडु,
टु यहाँसे गैलेपर
डाइ जहिया फेन
चिन्टा लेटि रठि
टोहार उ हटारमे
लेलक निर्नयले
फुरे हम्रहिन
अक्को मजा लागल नै हो
हमेर टुहिन रोक्ना
लाख कोसिक कैलि
मने खै टुँ का करे
विडेस पलायन हुइना
सोंच बनैलो
डाडु, का टुँ उहाँ
चैनसे बैठे पैले बटो ?
बिल्कुल नै हुइबो ।

डिन राट मेसिनहस
कामेम किल खटठुइबो
मै टे कठुँ आउर जनहनके
भूमिमे पस्ना चुहाके का अर्ठ ?
बेन जहाँ इच्छा उहाँ उपाय
कहेहस इहे स्वडेसमे
छोटमोट कुछ व्यवसाय
या आढुनिक खेटि कैके
अपने डेसमे पस्ना
चुहैलेसे नैहुइ ?
डाडु, एकचो फेन
सोच्के हेरो टे ?
विडेसमे का बा ?
कुछ नै हो
मने यहाँ सब ठोक बा
उहमारे टुँ उहाँ
एक मिनेट कुल जिन रुको
आझ इ डेसहे
टोहार हस युवनके खाँचो बा
हालि आउ
अपने नेपालि भुमिमे
टब पो डेस प्रगटिके
डगरमे सोझ्रि कि ?

हालः कीर्तिपुर–५, भत्केपाटी, काठमाडौं

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