भोजहा लगन ओ सामाजिक मान्यता

फागुन आइठ टो भोज सम्झबो । भोज कहटी कि लगनके बाट उठे लागठ । कोइ कहे लागठ, असौं लगन नाइ हो । कोइ कहे लागठ, लगन बा मने बरा कम डिन बा । फागुनके लग्गे बस अस्टे अस्टे बाट उठा करठ ।
पहिलेक चलन फरक रहे । फागुन अइटी कि थारु बस्ती चैनार । न लगन न सगन । हरेक अठवार भोज । अक्के चर्हना, अक्के उटर्ना । चारुओर ढोल डमैया, लौडिस बोल्ना, आवाज सुनके पह्रे नाइ जैनास् लग्ना । एक टो स्कूल जैना चलन फे कम, ढेर लर्का घरहीं खेल्ना । ओमने फे भोजहा चम्पन, बाताबरण गुन्जायमान, मन हुरुक्क हुइना, अपने घरेम् भोज हुइहस् लग्ना । अपने भोज हुइहस् स्कूल नाइ जैनास् लग्ना ।
सोम्मारके चाउर, मंगरके बराट, बुढके छाइ पठैना । थारुनके यिहे चलन रहना । थारुनके भोजके बारेम पूर्ब सांसद प्यारेलाल राना कहठैं “राना थारुनके भोज कर्ना महिना कलेक अगहन, पुस, माघ हो । मने अब्बे पुसमे भर भोज नाइ कर्ठैं । लगन कलेक हरेक हप्ताके अटवार ओ बिफे हो । अब्बे फे हमरे यिहने निरन्तरता डेले बाटी ।” कठरिया समाजके अध्यक्ष गयाप्रसाद कठरिया कहठैं, “हमार अगहन, माघमे भोज हुए, बचल कुचल फागुनमे होए । बुढके बराट जाए ओ बिफेक छाइहे पठाइट रहैं । अब्बे ओटरा ध्यान नाइ हो ।” ओस्टेक थारु संस्कृतिके बिज्ञ अशोक थारु कहठैं, “हमार भोज कर्ना महिना फागुन हो, लगन कलेक सोम्मार ओ बुढ हो ।”
अब्बे फे टमाम पुर्खा पुरनिया मनैन्से भोजके बारेम् पुछ्बो टो यिहे कहहीं । ओइं महिना फागुने सम्झहीं, लगन कहटी कि सोम्मारके चाउर पर्छे जिना, मंगरके बराट जैना, बुढके छाइहे पठैना सम्झहीं । का करे कि पुर्खाहुक्रे सब अनाज सहेरके माघमे खोजनी–बोजनी कर्ना ओ सब पक्क्याके, फछ्र्यौट करके, ठोरठोर फुर्सटहा महिनम् भोज करैंह् । उ फुर्सट्हा महिना कलेक फागुन रहे । फुर्सट्हा महिना किल नाइ फागुनमे मौसमके हिसाबसे घाम ओ जारके ठिक संयोजन फे रहठ । उहेमारे फागुनमे भोज कर्ना पुर्खनके रोजाइ रहे । मने ढढुरहेरीसे पहिले भोज निप्टैना चलन रहे । पाछेक भोज ढुरेहरी फे पुगे, टबे टो एकरात रहे डेंहैं ओ ढुरेहरी मानेक लग नैआनैह् ।
आजकाल्ह समयके हेराफेरी, जनसंख्याके चाप, बिकास ओ मनैन्के ब्यस्तताके कारन चलनमे कुछ बडलाव आ गिल बा । जौन डिन बराट जाइटंै, उहे डिन आ जाइटैं । बराटसँगे सगुनसाथ चाउर जाइटा । भन्सरिया, सुरहुवनके विदा अक्के डिन हुइटा । यिहिसे हमार चालचलन फे बचटा कलेसे समयक फे बचत हुइटा । पहिले जै डिन भोज हुए, टै डिन गाउँभरिक मनै भोजहा घर खाइट रहैं, अब टिकावन (प्रीति भोज) के डिन किल भोज खाइटैं । समयक बचतके कारन खर्चमे फे बचत हुइटा । जिहिन हमरे सकारात्मक रुपमे लेना चाही । हमरे बुझ्ना चाही कि हमार लगन कलेक फागुनके हरेक हप्तक बुढ हो । का करे कि पुर्खनके कहकुटे बा ‘बुढ बेटी, सुख खेती’ । पुर्खनके कहकुट ओ सामाजिक मान्यताके सम्मान कर्ना हो कलेसे बुढके डिन बराट जैना, दुलही अन्ना ओ पर्छना चाही । लाही, खुडीक मेर्खुन् ओ खैलरसे बिना पर्छले थारुनके भोज अढुरा रहठ । समाज उहिहे ठरुवा–मेहरुवक लाइसेन नाइ डेहठ । पर्छलेक डिन नै हमार बैबाहिक बरसगाँठके डिन, डुइ आत्मा मिलनके डिन हो ।
सिर्फ लगनके किल बात नाइ हो, भोजबियाहके टमाम चलन हमार फरक बा । पहिले पहिले फागुनमे भोज करैंह्, दुलहीहे दुल्हक घर नाइ छोरैंह्, डोलीम् फिर्टा नैआनैंह् । अगहन महिनम् अगहन करैंह् ओ पठाइंह् । बरस डिन दुलहा दुलहीक, दुल्ही दुल्हक असरा लागे पर्ना चलन रहे । भोज कर्ना ओ बरस डिन दुल्ही–दुल्हा सँगे रहे नाइ पैना असान्डर्भिक चलन हुइलेक ओरसे अगहन कर्ना चलन ओरागिल ।
मने अभिन फे हमार कुछ सामाजिक मान्यताके बाट कर्बो टो आउर जात अचम्म मन्ठैं । थारुनके भोजमे जहाँ नेउँटा बँटजाइठ टो चाहे घरमे मनै मुलेसे फे भोज नाइ रुकठ, यी पुर्खनके मान्यता हो । काजकिरिया बरु पाछे हुइसेकी, मने भोज अपन समयमे हुइठ । टबेमारे टो पुर्खन्के कहकुट बा “बाप मरी टो मरी, लगन कैसिक टरी ।” हमार भोजमे दौरा–सुरुवाल, टोपी ओ सेंडुरके ठाउँ÷मान्यता नाइ हो । जामा, पगिया ओ चुरियाके भारी मान्यता बा, महत्व बा ।
जामा पहिले राजा रजौटा लगाइँ्ह । पुर्खा पुरनियनके सल्लाह अनुसार जो थारु राजा दंगीशरणके चित्र, मूर्तिहे जामा ओ पगियासे सजा गिल बा । दुलहा–दुलही फे एक डिनके लग हुइलेसे फे राजारानी होइं कहना थारुनके सामाजिक मान्यता हो । टबेमारे दुलहाहे पगिया पहिरा जाइठ ओ दुलहा, दुलहीहे चन्डोल डोलीमे बोकजाइठ । पगिया कलेक शिरताज हो, श्रीपेच हो । टबेमारे अभिन फे कौनो भारी सभा समारोहमे सभापति वा बर्का पहुनाहे पगिया (पकटा) पेहरैठैं । यी कलेक भारी सम्मान करल हो । पंजाबिनमे टो पगियाके भारी खिस्सा जो बा ।
थारु समाजमे बराटके भारी महत्व, मान सम्मान बा । केक्रो बराट घरसे निकरजाइ कलेसे उहिन रोक्ना नाइ चाही, रोकेक लग तर्क, बितर्क कर्ना नाइ चाही । डुइ आत्माके मिलनहे आमहडताल, बन्द वा कौनो फे बहानामे रोक्ना सर्बठा गलट हो कना सामाजिक मान्यता बा ।
पुर्खाहुक्रे सब अनाज सहेरके माघमे खोजनी–बोजनी कर्ना ओ सब पक्क्याके, फछ्र्यौट करके, ठोर–ठोर फुर्सटहा महिनम् भोज करैंह् । उ फुर्सट्हा महिना कलेक फागुन रहे । फागुनमे मौसमके हिसाबसे घाम ओ जारके ठिक संयोजन फे रहठ । उहेमारे फागुनमे भोज कर्ना पुर्खनके रोजाइ रहे ।
ओस्टेके बराट जैना समय दुलहा बेराम हुइलेसे, दुलहीहे लेहेजैना अवस्था नाइ रहलेसे गँजुवा, भोजुवा ओ सैभलुवकसँगे पगिया पठाडेलेसे फे दुलही अइना चाही कना मान्यता हो । कुछ पुर्खा पुरनिया डाइ, बुडी पगियासँगे आइल फे बाटैं । डा. माधव पोख्रेल नयाँ पत्रिका दैनिकमे थारुनके भोजमे भालाहे दुलहाके प्रतिक हो कहले बाटैं, जौन सरासर गलट हो । पगिया, जौन दुलहक शिरताज हो, उ खास परस्थितिमे किल पठैठैं । भाला बर्छी टो दुलहा राजक सुरक्षाके लग जाइठ, पातापर गारजाइठ । दुलहा राजा हो, बरटिया ओकर फौजफंकर होइं कना बाट बुझे परल ।
ओस्टेके दुलही लेहे गैल बराट खाली फिर्ता नाइ आइठ कहना मान्यता बा । बराट जाइठ टो दुलहीहे जरुर आनठ । खाली नाइ आइठ कना मान्यता अनुसार नै केक्रो दुलही भाग गैलेसे सालीहे डोलीमे बैठाके आनल टमाम उदाहरण बा । कबु कबु यी सामाजिक मान्यता समस्या फे पारठ । मान्यताके बारेम् नाइ बुझल दुलही कबो कबो समस्या अन्ठैं । टबेमारे दुलहाहे नाइ मन परैना दुलही पहिलहीं बात छिंग्टैना जरुरी रहठ । बरात अइनक डिन भग्ना दुलही, डाइ बाबा ओ बहिनियनके लग जिन्गी भरिक समस्या, सम्झना बनजिठैं ।
ओस्टेके थारुनमे सेंडुरके मान्यता नाइ बिनुक चुरियाके महत्व भारी बा । अइसेपारी चुरिया लगाइंह् चाहे ना लगाइंह्, मने भोज हुइबेर दुलहक ओरसे गैल चुरिया दुलही लगाइ परठ । ओमने फे लाल चुरिया । पहिले पहिले लाखके चुरिया घालैंह्, पठाइंह् । जबसे भोज हुइठ, जन्नीनके हाँठ चुरियासे खाली नाइ रहठ । हाँठेम् चुरिया नाइ रहलेसे मनै राँर हो कहके जन्ठैं । सेंडुर लगैना हमार चलन नाइ हो । हमारमे चुरिया सुहागके (जोरी बाटी कना) प्रतिक मान जाइठ । टबे टो कोइ अभिन फे झगरा कर्हीं टो कहठैं, मिहिनसे झगरा कर्बे टो सम्हरके करिस्, मिहिनसे लर्बे टो अपन जन्नीक चुरिया फोरके आइस् । यिहिनसे फे पटा चलठ कि थारुनमे सेंडुरहे नाइ बिनुक चुरियाके भारी महत्व बा, चुरियाहे सुहागके प्रतिक मान जाइठ ।
यी छोट लेखमे भोजके सब बाट बटवाइ सेक्ना, लिखे सेक्ना सम्भव नाइ हो । भोजमे बहुट क्रियाकलाप हुइठ । भोजमे हुइना, मानजिना, करजिना, बेलस्जिना सक्कु चालचलन मजै रहठ कहना फे नाइ हो । सक्कु ठाउँमे अक्केमेर चालचलन, मान्यता बा कहना फे नाइ हो । ठाउँ अनुसार चालचलन, मान्यता फरक हुइ सेकठ । हमरे जहाँक थारु हुइलेसे फे खराब चलन, मान्यताहे सुढर्ना ओ मजा चालचलन, मान्यताहे बढावा डेना चाही कना मोर मान्यता हो । अपन चलनहे छोरेबेर, आनेक चलनहे मानेबेर हजारचो सोंच्ना चाही । हजारचो अपन चालचलनके फाइदा बेफाइदा, मजा ओ खराब पच्छहे टौलना चाही, टबकिल अपन चलनहे छोर्ना ओ आनेक चलनहे मन्ना चाही कना मान्यता हो ।
ओरौनीमेः
अटरैं कहुँ कि हरेक जातजातिनके अपन चालचलन रहठ । हरेक जातजातिनके लग अपन चालचलन खराब रहलेसे फे मजा लागठ । हिन्दू बर्ण व्यवस्था अनुसार राँर मनै भोज नाइ करे पैना, महिनावारी हुइलेसे घरभिट्टर बैठे नाइ पैना, भारी जात छोट जात रहना चलन बा । मने ओइनके टमाम मनै अभिन फे हमार चलन ठिक हो कहटी बाटैं । हमार चालचलनमे फे टमाम खराबी हुइ सेकठ । अपन चलन हुइलक ओरसे मोर लिखल, करल बात फे अपन चलनके गुनगान हुइ सेकठ । उहीहे टौलना जिम्मा अब अपनेनके हो । अपनेन लागल बात, विचार अपनेहुक्रे ढर्बी । टौलेबेर मै हमार चालचलनमे ओटरा खराबी नाइ डेख्नु ओ अपन विचार ढर्नु । मने मोर लिखल, बोलल किल ठिक हो मै नाइ कहम् । भगवान बुद्ध कहले बाटैं ‘केकरो अर्ती उपदेस हो वा धर्मग्रन्थमे लिखल बाट हो, सब ठिके रहठ कहके ना सोच्हो, सौ चो बिचार विमर्स करहो, मनहे ठिक लागी टो मानो नि टो ना मानो ।’ टबेमारे अपनेहुक्रे फे विचार कर्बी, धन्यवाद !
