‘छुवाछूत ओ विभेद विरुद्धके कानून कार्यान्वयन नइहुइल’

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, १० चैत । सुदूरपश्चिम प्रदेशके सभामुख अर्जुनबहादुर थापा जातीय छुवाछुत ओ विभेद विरुद्धके ऐन, कानून बनैलेसे फेन यकर कार्यान्वयन तथा व्यवहारमे लागू नैहुइल बटैले बटैं ।
दलित सेवा संघ सुदूरपश्चिम प्रदेशसे सोम्मारके रोज धनगढीके आयोजना करल प्रदेश स्तरीय दलित संवाद कार्यक्रममे सभामुख थापा पहिले दलित आन्दोलन ऐन कानून बनाइक लाग रहे, मने आबके दलित आन्दोलन उ ऐन, कानूनहे व्यवहारमे उतारेक लाग करेपरना बटैलैं । उहाँ जातीय छुवाछुतके संकीर्ण सोचके अन्त्यके लाग दलित सशक्तिकरणहे अभियानके रुपमे लैजाइपरना बटैलै ।
‘सामाजिक रुपान्तरण हुइल बा, मने छलफलमे नानके कानूनहे उपलब्धीमूलक बनैना बा,’ सभामुख थापा कहलैं, ‘जातीय छुवाछुतके विरुद्धके सुदूरपश्चिम प्रदेश सरकार दलित सशक्तिकरण विद्येयक नन्ना तयारीमे लागल बा ।’ यी विद्येयकमे दलित अधिकारके सुनिश्चितताके लाग जातीय विभेद तथा छुवाछुत कमिटी ओ दलित सशक्तिकरण कमिटी रहल उहाँ बटैलैं । सभामुख थापा कहलै, कमिटी जातीय विभेद कहाँ हुइटा ओकर खोजी ओ विभेदमे परलहे न्यायके लाग पहल करी ।
सामाजिक विकास समितिके सभापति कुन्ती जोशी दलित अधिकार सुनिश्चितताके लाग कानून एक हतियार हो, आब यी कानूनहे व्यवहारमे नानके कार्यान्वयन करनामे जोड डेली । उहाँ जातीय विभेदहे एक वर्गीय रुपमे व्याख्य करली ।
प्रदेश सांसद टेकबहादुर रैका दलित आन्दोलनहे और सशक्त ओ परिमार्जिक कैके आघे बह्राइपरनामे जोड डेलैं । उहाँ छुवाछुत विरुद्धके आन्दोलनहे अपने ठाउँ, स्थानीयस्तरके समाजहे रुपान्तरण करेपरना बटैलैं । जातीय विभेदके अन्त्यके लाग औरेक अस्रा नैकरके अपनही सशक्तहुके लागे परनामे समेट उहाँ जोर डेहल रहिट । प्रदेश सांसद पूर्णा जोशी जातीय विभेदके अन्त्यके लाग शिक्षाके सशक्तिकरण करेपरनामे जोड डेली । उहाँ विभेदके चिन्तनके अन्त्य अपन घर परिवारसे हुइपरना बटैली । प्रदेश सरकारसे ढेर कानून बनाइल बटैटी कानून बनैनासेफे कार्यान्वयनमे उहाँ जोर डेहल रहिट ।
प्रदेश सांसद उमादेवी वादी जातीय विभेदके कारण आम दलित किल नाइ सांसदहुक्रे फेन समस्यामे परल बटैली । उहाँ जातीय विभेदसे समाज अभिन बाहेर निक्रे नैसेकलमे दुःख व्यक्त करली ।
सुदूरपश्चिम प्रदेशके मुख्यन्यायधिवक्ता कुलानन्द उपाध्याय अब्बे प्रथा काम करटी रहल बटैलै । ‘कानूनसेफे प्रथा बल्गर हुइल बा,’ उहाँ कहलै, ‘कानून काम करेलेसे केल हानिकरक प्रथाके अन्त्य हुई ।’
दलित सशक्तीकरण ऐन हानिकरक प्रथाहे निषेध कैना मेरिक बनाई पर्ना उहाँ जोर डेलै ।
सविधानसभा सदस्य हरि श्रीपाइल सुदूरपश्चिम प्रदेशसे नन्टी रहल दलित विद्येयक शसक्ता रुपमे आइ पर्ना बटैले रहिट । छुवाछुट विरुद्धके कानून बन्लेसेफे कार्यान्वन नइहुके दलित समुदायहुक्रे लोकतन्त्रके अनुभूति करे नइपाइल बटैलै ।
त्रकार्यक्रममे दलित अगुवा तथा शिक्षक गणेश नेपाली दलित शसक्तीकरणमे जोर डेहल रहिट ।
५६ औं अन्तर्राष्टिय विभेद उन्मुलन दिवसके अवसरमे दलित तथा महिलाके समान अधिकारके लाग स्थानीय लोकतन्त्र सवलीकरण परियोजना अन्तर्गत हुइल कार्यक्रम दलित सेवा संघके अध्यक्ष ईश्वरीप्रसाद विश्वकर्माके अध्यक्षतामे हुइल रहे ।
परम्परागत पेशा अपनाइलके आधारमे जातीय छुवाछूत
कञ्चनपुर सहित सुदूरपश्चिम प्रदेशमे दलित समुदायउपर परम्परागत पेशा अपनाइलके आधारमे छुवाछूत हुइना करल बा ।
धर्म संस्कृति, पेशा ओ रीतिरिवाजके नाउँमे दलित समुदाय छुवाछूत खेप्टी आइल बाटै । संविधानसभा सदस्य हरि श्रीपाइली देशमे लोकतान्त्रिक गणतन्त्र आइलमे फेन सार्वजनिक स्थानमे हुइना छुवाछूत हटे नैसेकलमे चिन्ता व्यक्त करलै ।
‘विद्यालय, धार्मिकस्थल, पानीके धारा, चिया पसलमे दलित समुदाय जातीय आधारमे अपमानित हुइटी आइल बा,’ उहाँ कहलै, ‘दलित समुदायउपर हुइना थिचोमिचो ओ जातीय छुवाछूत राज्यके मुद्दा बने परल ।’
छुवाछूत मुक्त राष्ट्र घोषणासे किल जातीय विभेद अन्त्य नैहुइ उहीहे कार्यान्वयन करे पर्ना खाँचो बा । सबसे मजा व्यवस्था लोकतन्त्र ओ गणतन्त्र रलेसे फेन ओ दलित समुदायसे कानूनीरूपमे अधिकार पैलेसे फेन व्यवहारमे कार्यान्वयन नैहोके थिचोमिचो सहे परल उहाँके कहाइ बा । ‘समाज रूपान्तरण नैहुइटसम दलित समुदायउपरके विभेद हटे नैसेकी,’ उहाँ कहलै, ‘जातीय विभेदके आन्दोलनहे व्यक्ति लक्षित नैहोके नीति, कानून कार्यान्वयनके लडाइँ बनाइ परल ।’
दलित समुदायके हक अधिकार स्थापित करक लाग हरेक क्षेत्रमे समानुपातिक सहभागिता, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगारमे पहुँचसंगे राजनीतिक क्षेत्रमे अर्थपूर्ण सहभागिता करे पर्ना दलित अगुवाके कहाइ रहल बा । सुदूरपश्चिम प्रदेशसभा सदस्य टेकबहादुर रैका प्रदेशसभाके नीति बनाइबर समानुपातिक शब्दहे दलितके पक्षमे लिखे खोजेबर हटाइल बटैलै ।
‘प्रदेशके नीति तथा कानून बनाइबर हुइना छलफल ओ गृहकार्यके क्रममे दलितके अधिकारमे पहुँच अभिवृद्धि करे खोजेबर हुइ नैडेलै,’ उहाँ कहलै, ‘दलित समुदायउपर हरेक क्षेत्रमे अंकुश लगाइ खोजल बा, कागजमे जातीयरूपमे विभेद करुइयाहे दण्डीत कैना प्रावधान फेन राखल बा ।’
व्यावहारिकरूपमे कार्यान्वयन कैना चासो डेहल नैहो । सरकारी पक्षसे जातीय छुवाछूतहे प्रश्रय डेहल बा । विभेदकारी कार्यउपर अंकुश लगैना कार्य राज्यके हो । उ मौन बैठल बा । दलित समुदायके कौनो व्यक्ति, सङ्घ संस्था पार्टीसँगके लडाइँ नैरहल दलित अगुवा ईश्वर सुनार बटैलै ।
‘समाजमे रहल संस्कार, व्यवहार, आचरणके कुचक्रसे दलित समुदाय कानूनतः पाइल अधिकार पाइ सेकल नैहुइट,’ उहाँ कहलै, ‘संविधानप्रदत्त अधिकार प्राप्त करक लाग एकजुट होके कार्यान्वयनके आन्दोलन कैनाके विकल्प नैहो । नतिजामुखी आन्दोलनहे उत्कर्षमे नैपुगाइटसम अधिकार पैना अवस्था नैहो । ओकर लाग एकचो दलित समुदाय ले उठे पर्ना बेला आइल बा ।’
जातीय भेदभाव तथा छुवाछूत (कसुर ओ सजाय) ऐन, २०६८ मे प्रष्टरूपमे कौनो फेन व्यक्तिहे प्रथा, परम्परा, धर्म, संस्कृति, रीतिरिवाज, जात, जाति वंश, समुदाय वा पेशाके आधारमे विभेद करे नैपैना बात उल्लेख करल बा । ओइसीन कार्य करलमे लग्गेक प्रहरी कार्यालयमे उजुरी करे सेक्ना प्रावधान समेत बा मने प्रहरीमे पुग्ना अधिकांश जातीय विभेदके मुद्दा मिलापत्रमे टुंग्याइना करजाइठ् ।
‘मिलापत्रमे जातीय विभेदके मुद्दा टुंगइबर पीडकके मनोबल बह्र्रठ्,’ मुक्तहलिया आन्दोलनके अभियानकर्मी शिवी लुहार कहलै, ‘न्यायिक निकायसे जातीय विभेद करुइयाहे कानूनी कारवाहीके दायरामे नैलानटसम दलित समुदाय उपरके विभेद घट्नुके साटो बह्रटी जाइ लागल पाइल बा । इ चिन्ताके विषय बनल बा ।’
उहाँ जातीय भेदभाव तथा छुवाछूत (कसुर ओ सजाय) ऐन, २०६८ अनुसार जातीयरूपमे छुवाछूत करुइयाहे तीन महिनासे तीन बरससम कैद ओ रु एक हजारसे २५ हजारसम जरिवानाके प्रावधान राखल बा । कानून कार्यान्वयनके पक्ष फितलो होके जातीय विभेद करुइयाहे हालसम कानूनी दायरामे आइ नैसेकल उहाँके कहाइ बा ।
लम्मा समयसे दलित समुदायके क्षेत्रमे अधिकारके लाग संघर्ष करटी आइल राजुराम भुल दलित समुदायउपरके जातीय छुवाछूत हटाइक लाग शिक्षा, रोजगारीसंगे व्यवस्थित बसोवासके व्यवस्था मिलाइ पर्ना बटैले । उहाँ कहलै, ‘जबसम दलित समुदायके अन्य समुदायहस शिक्षा ओ रोजगारमे पहुँच अभिवृद्धि नैहुइ तबसम जातीय विभेदके खटहा भँठ्ना सम्भव नैहो ।’
राज्यके हरेक क्षेत्रमा दलित समुदायके प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नैकराइटसम दलित समुदाय अधिकार पैना आश कैना व्यर्थ हुइना ओहकान कहाइ बा । भूमि अधिकारके क्षेत्रमे कार्य करटी आइल रामबहादुर चुनारा संविधानमे स्पष्टसे दलित समुदायहे जग्गा ओ आवासके व्यवस्था कैना बात उल्लेख करल रलेसे फेन आभिनसम पाइ नैसेकल हुइट ।
‘संविधान जारी हुइल आधा दशक बिटे लागलमे समेत राजनीतिक खिचातानीके कारण दलित समुदायहे प्रदान करल अधिकार पाइ सेकल नैहुइट,’ उहाँ कहलै, ‘दलित समुदायसे स्वामित्वके जग्गा ओ आवास नैहुइटसम असुरक्षितरूपमे लडिया तटीय क्षेत्र, सामुदायिक वन क्षेत्र, सडक पेटीमे झोपडी बनाके बैठ्ना बाध्य रहल बाटै । बैठ्ना व्यवस्था नैहोके बालबालिकाहे विद्यालयसम पुगाइ सेकल नैहुइ । यम्ने राज्यके ध्यान आभिन नै पुगल हो ।’
जुनसुके व्यवस्था अइलेसे फेन दलित समुदायके उत्थान हुइ नैसेकके निराशा छाइल उहाँके कहाइ बा । दलित समुदाय अपने अपनाइल परम्परागत सीपमे आधारित व्यवसायहे आधुनिकीकरण नैकैके युवा भारत ओर पलायन हुइटी गैल बाटै । रोजगारीके खोजीमे भारत ओर जैना अधिकांश युवा चौकीदारसे जोखिमयुक्त क्षेत्रमे काम कैटी आइल बाटै ।
