थारु राष्ट्रिय दैनिक
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[ 27 Apr 2025, Sunday ]
‘ कविता ’

किसनवा !

पहुरा | १९ असार २०७८, शनिबार
किसनवा !

पुरवेसे निकरल कैँयाँकुचिल कारि रे बदरवा
हर जुवा लेले निकरल खेटुवा रे किसनवा ।।
सरसर सरसर बहटा सितरि बयाल पुरूईया
टक् टक् बाँउ बाँउ गेजारटा ओँईरा हरूहिया ।।

मचल बा चारूओर असारे खेटुवा जोटनी
बरा मिठ बा जुर मार ओ नोन मरचक चटनी ।।
जहोर हेरो चारू ओर बा चम्पन चैनार
कहुँ बैठाईटटाँ टे कहुँ उखरटि बटाँ वियार ।।

चारू ओर राहा रँगिन उल्लास बा दुनिया सारा
अस्रामे खेट खल्हियान लगैना बरे बरे ठार्हा ।।
आईगिल पच्छिउसे हुड्हुड् पट्पट् आँढि ओ पानि
रहिगैल किसनवा खेटुवै बैठल पिखाही छटरि टानि ।।

हुगिल छिनमे टवाटिक् ओरवाईल किसनवा बाँकी अँटरा
उठाईल कोदरा मिलाईल लेवा चलाईल हेँगा कट्रा हो कट्रा ।।
आईगैलि लौलि भन्सरिया डेहे नोहारि लेके सिढ्रा, रोटि ओ छबुवा जाँर
ढोईल हाँथगोर बैठल डुम्ना धानि देखके किसनवा
हुगैल उलार ।।

हुगिल झोल्पट चलल किसनवा हर बर्ढा लेले आपन घर
खाईल बेरि, सेकल गोरा सुटल हुके सोच न फिकर ।।
मुर्गा बोलल, हुईल भोर बिहान, आँख मिस्टी
उठल किसनवा
उठाईल हर, जुवा, पैना चरटि बरढा उहे रहिया
चलल किसनवा ।।
जय किसान !!!! जय जवान !!!

किर्तिपुर, काठमाडौ

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