थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत २२ असार २६४९, अत्वार ]
[ वि.सं २२ असार २०८२, आईतवार ]
[ 06 Jul 2025, Sunday ]

सुदूरपश्चिममे वल्के पर्व मनैटी

पहुरा | १ भाद्र २०७८, मंगलवार
सुदूरपश्चिममे वल्के पर्व मनैटी

डोटी, १ भदौ । डोटीसहित समग्र सुदूरपश्चिम प्रदेशमे हर्षोल्लासपूर्वक आज मंगरके सकारेसे वल्के पर्व मनाई लागल बा । यी प्रदेशमे वैशाख महिनामे मनैना बिशु पर्व मरौला कहिके खैना ओ भदौ महिनामे मनैना वल्के पर्व बोचे कहिके खैना पर्वके रूपमे मनैना चलन रहल बा ।

सावन मसान्त ओ भदौ संक्रान्ति दुई दिन मनैना यी पर्वके पहिल दिन काल्ह प्रत्येक घरेम मिठोमसिनो खानाके स्थानीय परिकार बनाके मनाइल रहे कलेसे आज दुसर दिन घुइयाके कलिलो पटिया, दूध ओ दही सगुनके रूपमे अपनसे भारीहे ओ छिमेकीहे बाँटके प्रदेशके नौ जिल्लामे ‘वल्के चाड’ हर्षोल्लासपूर्वक मनैना करल दिपायल पिपल्लाके स्थानीयवासी हर्कबहादुर बोहरा बटैलै ।
उहाँ कहलै, ‘हमार प्रदेशमे वल्के पर्वके बहुट महत्व बा, आजके दिन अपनसे भारीहे सगुन डेलेसे धर्म कमाइजाइठ कना मान्यतासे सक्कुजे अपन घरेम फरल साग, तरकारी तथा पाकल मिठोमसिनो खैनाचिज डेना चलन बा ।’ रोजगारी तथा काम विशेषसे घर तथा जिल्ला बाहेर गैल यहाँके नागरिकफे वल्के चाड मनाई अब्बे आ–अपन घर लौटल कारण यहाँके बजार तथा गाउँमे बहुट चहलपहल बढल बा ।

वल्के पर्व यहाँके बजार क्षेत्रसेफे गाउँघरमे ढेर मनैना चलन रहल केआइसिंह गाउँपालिका–५ के स्थानीयवासी सानु जोशी बटैली । उहाँ कहली, ‘वल्के पर्व गाउँमे ढेर मनाजाइठ, यी वर्ष गाउँघरमे कोरोना जोखिमके त्रास कम हुइल कारणफे गाउँमे वल्के पर्वके रौनक तथा चहलपहल ढेर बा ।’
अपन मान्यजन, इष्टमित्र, छरछिमेकीहे सगुनके रूपमे पिँडालुके ‘गाभा’ अर्थात् कलिलो पटिया, हरियो साग, दूध, दही डेहे सम्मान कैना ओ आशीर्वाद साटासाट कैना विशिष्ट खालके मौलिक परम्परा यी क्षेत्रमे शताब्दीयौँसे रहटी आइल दिपायल सिलगढी नगरपालिका–२ के स्थानीयवासी तथा कांग्रेस नेता घनश्याम पाठक बटैलै ।

उहाँक अनुसार वल्के चाडके दिन भोज हुइल छाईहे लैहर घर आमन्त्रण करके यहाँके स्थानीय परिकार लाउन (पुरी), बावर (सेल), चाउरके पिठासे बनल माणा, निसौसे, गतानी, डुब्कालगायतके स्थानीय खानाके मिठा परिकार पकाके खवैना ओ खैना प्रचलन बा । यैसिक चेली छाईनहे खवैलेसे पुण्य प्राप्त हुइठ कना मान्यतासे यहाँ आजके दिन सक्कुजे आ–अपन भोज हुइल छाइनहे लैहार बोलैना चलन रहल बा ।

वल्के चाडमे एक महिना पहिले भँगेरी प्रजातिके फूलके बोटके पटिया टुरके सिलौटामे पिसके बनाइल लेदो हत्केला ओ गोरक अंगरीमे लगाके रङ्यइना चलन बा । यैसिक रङयइलेसे शरीरमे रोगव्याधी नइलग्ना कना मान्यता रहल शिखर नगरपालिका मुढभाराके स्थानीयवासी तथा पण्डित गोविन्दराज जोशी बटैलै ।

उहाँक अनुसार वर्षातके मौसममे खेतबारीमे काम करेबेर हात ओ गोरामे विल्गैना छालासम्बन्धी रोगके संक्रमणसे बचे सेक्ना जनविश्वास रहल बा । रोगके संक्रमणसे बँच्न हातहोर रङ्यइना ओरसे यी चाडहे शरीरसे ‘लुतो फेक्ना’ चाडके रूपमे समेत लेना चलन बा ।

अटरा केल नइहुके युवा पुस्तासे पुराना पर्व ओ संस्कृतिबारे चासो नइडेके सुदूरपश्चिममे मौलिक संस्कृतिके वल्केजैसिन टमान चाडपर्वके मौलिकता हेराइ लागलमे डोटेली समुदायमे चिन्ता व्यक्त करे लागल बटै ।

पश्चिमे संस्कृतिके बढ्टी प्रभावके फलस्वरुप नेपाली समाजमे वर्षौसे मनैटी आइल कतिपय पुराना कला, संस्कृति तथा चाडपर्व विस्तारे हेराई लागल कहटी डोटेली संस्कृतिप्रेमी अपन ऐतिहासिक सभ्यता ओ संस्कृतिके पहिचान बोकल यैसिन चाडपर्वके संरक्षणके लाग सरोकारवालासे जागे पर्ना समय आइल डोटेली कलाकार केशवराज फुलारा बटैलै । रासस

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