थारु राष्ट्रिय दैनिक
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मोर अष्टिम्की कला यात्राः अनुभव ओ अनुभूति

पहुरा | १४ भाद्र २०७८, सोमबार
मोर अष्टिम्की कला यात्राः अनुभव ओ अनुभूति

२०१५ मार्च ८, अन्तर्राष्ट्रिय नारी दिवसमे दाङसे सहभागिता हुइ पाटनके कृष्ण मन्दिर परिसरमे बिहन्ने आपुग्नु । नेपालके टमान जिल्लासे टमान जाति, धर्म, संस्कृति किल नैहुके कलाके टमान विधाके हम्रे सहत्तरी जाने व्यक्तिहुक्रे एक ठाउँमे भेला रहल यी मोर पहिल अवसर रहे । मै उहाँ थारु लोकसांस्कृतिक कलाके सजिव प्रस्तुति करेपरना कना जानकारी रलेसे फेन विविध थारु लोककलामध्येमे कौन कलाके प्रस्तुति लोकसंस्कृतिविद् अशोक थारुसे डेहल निर्देशनमे संघके अध्यक्ष एवं थारु गरगहना, भेषभूषा, श्रृंग्रार प्रसाधनके यथेष्ट सामग्रीके तयारी साथ गैल रहुँ । नयाँ ठाउँ, नयाँ परिवेश, अन्तर्राष्ट्रिय नारी दिवस, पहिलचो अत्रा भारी कार्यक्रममे सहभागी हुइलमे भित्रेभित्रे हतोत्साहित रहुँ । संम्वतः जीनके प्रभाव यिहिनहे कठै काहुँन ।

कार्यक्रमके प्रारम्भ हुइल । महिनहे फेञ्ज कार्टिज, कलर, व्रश डेके अपन थारु लोकचित्रकला बनैना कहिगिल । किशोरावस्थासे घरे अभिभावकहुकनसँग अष्टिम्की बनैनाके साथे २०७१ सालमे दाङ हस्तकला संघके आयोजित सात दिवसीय लोकचित्रकला प्रशिक्षण कार्यशालामे फेन सहभागी हुसेकल ओरसे अष्टिम्की बनैना ओत्र कर्रा नैपरल । दुई दिन कृष्ण मन्दिर परिसरमे अष्टिम्की बनाके बिटल ।

कार्यक्रमके तेसर दिन नेपाल ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानके प्राङ्गणमे निर्मित विशाल टेन्ट हाउसमे उहाँ टे राष्ट्रिय कला प्रदर्शनीके उट्घाटन कार्यक्रम रहे । जहाँ नेपालके विविध जिल्लासे विविध विधाके टमान कलाकारहुकनके उपस्थिति रहे । गाउँमे मनैन्के भीडमे टे टमान चो सहभागी हुइल रहुँ, मने अत्र विशाल ओ स्तरीय कार्यक्रममे मोर पहिल उपस्थिति रहे । साँस्कृतिक लोकचित्रकला अपन आँखीसे डेखटहुँ । अपन नाम फेन उद्घोषण हुइल सुन्के मुटुके धड्कन बह्रके आइल । निधारमे पसना छुटे जस्टे लागल । जीउ थरर काँपे जस्टे लागल । अपनहे नियन्त्रण करना प्रयास करटि मञ्चमे चह्रनु । सम्माननीय प्रधानमन्त्री सुशील कोइरालाके उपस्थितमे कूलपति रागिनी उपाध्याय ओ उपकूलपति शारदा चित्रकारके बाहुलीसे पुरस्कृत सम्मानित हुइलके क्षण अविस्मरणीय रहल बा ।

पुरस्कार लेहल बाद नेपाल ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानके भवनके तेसर तलाके प्रदर्शनी कक्षमे चह्रनु टे खुसी ओ आनन्दके सीमा नैरहल । मैसे सिर्जित अष्टिम्की चित्रकला टे फ्रेममे सुशोभित हुके भित्तामे झुलके महिने हेरे जस्टे लागल । भाग्यमानीके कामके फल पैठै कना सुनले रहुँ मने भाग्यवादी किल नैकि कर्मवादी पो कर्म अनुसारके फल चिखे पैठैं कना सिद्धान्त अपनमे चरितार्थ हुइल अनुभूति करटहुँ । यकर मतलब भाग्यवादके कौनो अस्तित्व नैहो कना नैहो । आध्यात्मवादसे भाग्यवादी सिद्धान्तके जर गार डेले बा । संम्भवतः टबेमारे हुइँ, मोर सिर्जित उ अष्टिम्की एघार दिन किल थारु लोकसांस्कृतिक कलाके अस्तित्व प्रदर्र्शन करे पाइल ।

उ वर्षके महाभूकम्पके शिकार मोर जीवनके अविष्मरणीय अष्टिम्की फेन हुइल । प्राकृतिक शक्ति कहुँ कि दैवीय शक्ति सामु भौतिक विकासके कुछ नैचलठ कना बाट सिद्ध हुडेहल । यहाँ महिन मै पह्रल जनसंख्याके सिद्धान्तके सम्झना आइल । मनै जनसंख्या व्यवस्थापनके जिम्मेवारी अप्नही लेहे परठ, हुँ । यदि मनै अपन यी जिम्मेवारी पुरा नैकरहि कलेसे प्रकृति जनसंख्या व्यवस्थापन करना डगर खोजठ जोन बडा भयानक रहठ, हुँ । उ सिद्धान्त अक्षरसः सिद्ध हुइल बा । यी महाभूकम्पसे हुइल हृदयविदारक क्षति सुनके ओ टीभीमे देख्के मन रोइल । दाङ हस्तकला संघके अध्यक्ष सामु अपन पीडा पोख्नु मानवताके आधारमे भूकम्प पीडितहुकनके लाग हम्रे थारु चित्रकारहुकनसे का हुइ सेकि ?

कुछ दिन पाछे उहाँसे फोन आइल टोहान भावनाहे साकार पर्ना अष्टिम्की चित्रकलाके प्रदर्शनी करना ओ अष्टिम्की कलासे विक्री हुइल मनसे संकलित रकम भूकम्प पीडितहुकनके सहयोगार्थ दान डेना ।

एकडम भावविह्वल हुइनु । मोर सामान्य विचारहे अत्रा महान स्वरुप डेना सिर्जना करटिरहल योजना ओ योजनाकारप्रति नतमस्तक हुइनु । एक सामान्य सोच ठाउँमे पुगलेसे कत्रा विशाल सोच बनठ । का मै अपन हातसे कौनो पीडितके घाउमे पीडामे मलहम लगाइ पाइ ? मलहम लगाइ पाइल दिन कैसिन रहि ? अस्टे अस्टे कल्पनालोकमे उरटुँ, मै ।

कुछ समयपश्चात दाङ हस्तकला संघसे पुनः सात दिवसीय लोकचित्रकला सम्बन्धी एड्भान्स प्रशिक्षण सञ्चालन हुइना हुइल ओरसे सहभागिताके लाग फोन आइल । उट्घाटन सत्रमे यी प्रशिक्षण कार्यक्रमके उद्देश्यबारे संघके अध्यक्षसे सुन्के भावविह्वल हुइनु । वर्षके एकचो किल सिर्जना करना गाउँमे सीमित रहल अष्टिम्की लोकचित्रकलामे का आब नयाँ आयाम थपना हुइल टे ? गाउँक परिधिहे नाघके का यी आब राजधानीके शोभा बनी ? राजधानीके माध्यमसे का यी सात समुद्र पार फेन पुगी ? बजारीकरणके माध्यमसे का यी सच्मे हम्रे मोफसलके लोकचित्रकारके लाग आंशिक रुपमे हुइलेसे फेन जीवीकोपार्जनके स्रोत बने सेकि ?

कल्पानामे डुब्टि उत्रटि यी बेर आइक्रालिक पेन्टके माध्यमसे क्यानभासमे अष्टिम्कीके टमान आयाम सिर्जना करटि । गैल कार्यशालामे वाटर कलरसे नेपाली कागजमे सिर्जना करल अष्टिम्कीके गुणस्तर, प्रविधिसे यी बेरके सिर्जनामे थप गुणस्तर कायम हुइल अनुभूति हुइलमे अन्तस्करणसे सन्तुष्टि आनन्दके अनुभूति हुइल । हम्रे थारुहुक्रे किल नैहुके प्रशिक्षणमे मगर, खस ओ यादव समुदायसे समेतके सहभागिता रहे, जिहिनसे सामाजिक सद्भावके सन्देश थपल रहे ।

परम्परागत रुपमे अपन घरके डेहरीमे यी क्यानभासमे स्वतन्त्र पारासे करटि आइल अभ्याससे ठोरचे फरक रुपमे लोकपरम्परागत पात्रके आकृतिहे थप कलात्मक रुप डेना सर्वप्रथम अपनमे कलात्मक सोचके विकास करेपरठ कना मूल मन्त्र सिकाइ अवसर रहल यी कार्यशाला । अशोक थारु सोचके विकास करैना सोच्न शक्ति प्रस्फूटन कराडेना, कबु नैसुल नैडेखल सन्दर्भ सामग्री बिटोरके नान डिइट, जोन स्रोत अष्टिम्कीहे सिर्जनशील बनैना आधार बने ।

अइसिक एक मेरिक प्याटर्नमे बन्ना करल अष्टिम्की आब टमान प्याटर्नमे सिर्जना करना सोचके विकास हुइल संवेग एकचो मनमे नैआइठ । बाल्यकालसे किशोरीकालसम अपन घरेक डेहरीमे परम्परा धन्ना शैलीमे अष्टिम्की टे चित्रण करे, मने लकिरके फकिर किल हुइल, कुवक् मेघिहस बचल विगतके जिन्दगी कत्रा निरस ओ निरर्थक रहे कना बाट बल्ल अनुभूति हुइटा ।

अपन साँस्कृतिक जिन्दगीहे सारपूर्ण बनैना टे कुवाके परिधिसे बाहेर निक्रे परना रहठ कना बाट अभिनसम मै काहे बुझे नैसेकल रहुँ । क्याम्पस जीवनमे फेन मोरमे अइसिन सोच काहे जागृत नैहुइल ? अइसिन हुइनामे उत्तरदायी के ? मोर घर परिवार, समाज, शैक्षिक संस्था मोरमे अइसिन सोचके विजारोपण करे नैसेकल वा मै डगर बिस्रैले रहुँ । का मोर परिवेश अत्रा अनुर्वर रहे कि मोरमे अपन साँस्कृतिक अस्तित्व, पहिचानप्रति कौनो सोच पलाइ नैसेकल ।

अइसिन हुइनामे पानी उप्परके आभानो टे निश्चय हुइ नैसेकम, मने सक्कु दोष मोर किल नैहो कना लागठ । सक्कु दोष मोर किल रहठ कलेसे अब्बे यी सोच फेन नैआइट । हिन्दीमे एक उखान सुनले बटु, ‘देर आए, दुरुस्त आए ।’ देखेपरना बेलामे नैदेखल डगर बल्ल डेखल हस लागल बा । पाँच सात वर्ष पहिले आइपरना बुद्धि बंगारा बल्ल आइल जस्टे लागल बा ।

आब आके अपन भूमिकाबारे मस्तिष्कमे बबण्डर उठल बा । मोर भूमिका का ? मोर जीवनके सार्थकता कामे बा ? आम महिलाजस्टे घाँस, दाउरा, मेला पात, जुठ्यान रछ्यान सेफहा लर्का किल स्याहर्ना कि भीडसे अलग हुके अपन पहिचान ओ अस्तित्व कायम करना । भीडमे हेराइल जिन्दगीके का अर्थ ? स्वपहिचानके परिभाषा का ? कौन कौन कर्मसे स्वपहिचान कायम हुइ सेकठ ? स्वपहिचानमे किल सीमित रना कि सामाजिक, साँस्कृतिक, राष्ट्रिय पहिचान कायम करना डगरमे अग्रसर हुइना ?

(चली गोचाली मासिकसे)

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