हरचाली सँपारल हिमालीक् जिनगी
सागर कुस्मी
कंचनपुर, १७ फागुन । हरेक मनैंनमे एक ना एक खुबी रहठ । कोइ गीत गैनामे सिपार रठैं टे कोइ हरचाली कैनामे । कोइ पढाइ लिखाइमे तेज रहठ टे कोइ ढन्ढा कैनामे । ओस्टके इ सक्कु बहु प्रतिभा रहल मनैं अभिन बटैं हमार थारु समुदायमे ।
कंचनपु्र जिल्लाके शुक्लाफाँटा नगरपािलका वडा नम्बर ७ झन्डाबोझी गाउँक् बहु प्रतिभाके धनी हुइँट् हिमाली पछलडंग्या । उहाँक्मे हर जोत्नासे लेके चित्र बनैनामे माहिर बटैं । अब्बे उहाक्ँ उमेर ६१ बरस पुग्गैलिन टब्बोपर अभिन जवान बिल्गठैं । खेटीपाटी सेक्के गोहुँ, मसरी, लाही बोइना छेंक हो । उहाँ अपन घरक् ढन्ढा ओर्वाके बाँसक् बख्खारी, छिटुवा, छिट्नी, डिलिया, स्टुल, मुढा बिन्नामे व्यस्त रठैं । उहाँ अस्टे अस्टे हरचाली कैके मजा आय आर्जन कर्टी बटैं । उहाँ अब्बे रोजाना तीन चारठो बख्खारी फेन बिनठैं ।
बाँसक् चार मेरके बख्खारी बिनल उहाँ बटैलैं । बख्खारीके मोल पाँच बोरी धान अटैना ६ सौ, आठ बोरी धान अटैना एक हजार, दस बोरी अटैना बार्ह सौ, १२ बोरी धान अटैना पन्ध्र सौ मे बेंचटी आइल बटैं ।
‘मै पर्हल ना लिखल मनैं बस इहे बख्खारी बिनबिन बेंचके घरक् खर्च चलाइटुँ’ उहाँ कहठैंं–‘घरक् मुख्य गरढुरिया होके परिवार पल्ना बहुट साँसट हो, ओहेमारे खेटीपाटी सेक्के इहे काम कैके अपन घर खर्च चलाइटुँ ।’ उहाँ बख्खारी बेंचके मासिक २० से २२ हजारसम आम्दानी करटी आइल बटैलैं । उहाँ फेन कहलैं–‘असौंक् साल बख्खारी पुगाइ नैसेक्जाइठो । अक्केली बिनठुँ मनैंनके माग अनुसार पुगाइ नैसेक्गैल हो ।’
उहाँ अपन गाउँक् नर्सरी मनसे बाँस खरिदके बख्खारी बिनठैं । अपन बनाइल बाँसक् बख्खारी, छिटुवा, छिट्नी, डिलिया, स्टुल, मुढा, दराज, टेबुल अपने गाउँक् मनैं किनके लैजैठिन । बनाइल सामान धनगढी, झलारी, महेन्द्रनगरसमके मनैं किनके लैगैल उहाँ बटैलैं ।

हिमाली पछलडंग्या एक समाजसेवी हुइँट् । अपन गाउँक् भलमन्सा ओ डेस बनढिया गुरुवा फेन हुइँट् । उहाँ अपन गाउँमे लग्टार पाँच बरससे गुरुवाके भूमिका निभैटी आइल बटैं । दुख बिमार परलमे जरिबुटी डवाइसे अपन गाउँक् मनैंनके डवाइक करटी आइल बटैं । उहाँक् मजा काम करल डेख्के गाउँक् मनैं हिमालीहे सालो बरघरिया चुनडेठिन । गाउँक् सेवा करल ओरसे घरौरासे ७ किलो धान फेन मिल्ठीन् ।
‘जबसे बरघरिया बनैलैं टबसे झन्डाबोझी गाउँमे हरेक साल सखिया, मघौटा नाच फेन हुइटी आइल बा, उहाँ कहलैं–‘अप्नही मन्द्रा बोलाके अप्नही गीत गाके फेन अपन गाउँक् ठँरिया बठिनियनहे झुमैठुँ ।’ उहाँक् थारु भासा, साहित्य, कला संस्कृति संरक्षण कैनामे गाउँबासी बहुट सक्रिय हुइल बटैं । हरेक साल डसिया, डेवारी, माघमे चम्पन बिलगैठिन उहाँक् अंगना ।
अट्रै किल नाही हिमाली पछलडंग्या एक लेखक फेन हुइँट् । उहाँ २०६१ सालमे ‘अस्टीमकीक् गीत’ कना किताब फेन प्रकाशित कैके थारु साहित्यमे अस्टीमकीक् गीतबाँस दस्तावेज कैले बटैं । जौन कन्चनपुर जिल्लाके थारु भासक् पहिल पोस्टा हो । उहाँ कहठैं–‘मोर ठन पुरान गीत बाँस बहुट बा । लगानी अभावके हुइलक् ओरसे किताब निकारे नैसेक्गैल हो । यदि कोइ लगानी करी कलेसे लोककथा, लोकगीत के बहुट पोस्टा निकारे सेक्जाइ ।’
अपन हाँठम् सीप बा कलेसे डुर जाइ नैपरठ । अब्बेक् युवा पुस्टनहे इहे पाठ सिखैना चहठैं हिमाली पछलडंग्या । अपने घरम् बैठ्के अपनठन रहल सीप जाँगरहे बेल्से जन्लेसे अप्नही स्वरोजगार हुइ सेक्जाइठ उहाँक् कहाइ बा ।
हमार गाउँ घरमे अभिन फेन सयौं युवा वेरोजगार बटैं । हम्रे अपनठन रहल ज्ञान ओ साीपहे समयमे बेल्से सेकब कलेसे अप्नही स्वरोजगार बने सेकब । सफलता करक् लाग हिमाली पछलडंग्याके करल काम उदाहरणके लाग काफी बा । ‘अउरेक गुलामी करलसे टे अपन घरही हरचाली करो मालामाल रबो, उहाँ कहठैं ।’ मेहनत लगाके अपन घरहिम् खुटुरपुटुर ढन्ढाहे व्यावसायीक रुपसे कैके फेन ढेरसे ढेर कमाइ सेक्जाइक कना उहाँक् सिख्खा सिख्ना जरुरी बा ।


