थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत २८ असार २६४९, शनिच्चर ]
[ वि.सं २८ असार २०८२, शनिबार ]
[ 12 Jul 2025, Saturday ]
‘ बुढनी बट्कोहीके विमर्ष ’

बुढनी बट्कोहीसे थारु भाषा संरक्षणमे सहयोग

पहुरा | २८ असार २०८२, शनिबार
बुढनी बट्कोहीसे थारु भाषा संरक्षणमे सहयोग

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, २९ असार ।
बुढनी बट्कोहीसे थारु भाषा संरक्षणमे सहयोग पुगल एक कार्यक्रमके सहभागीहुक्रे बटैले बटै ।

लोककथामे आधारित इन्दु थारुसे थारु भाषामे लिखित बट्कोही ‘बुढनी’के शनिच्चरके रोज धनगढीमे हुइल समिक्षा (विमर्श) कार्यक्रममे सहभागीहुक्रे टिप्पणी करटी यी किताबमे हेरैटी रहल लोककथा ओ लोप हुइटी थारु भाषा, शब्दके संरक्षणमे सहयोग पुगल बटाइल रहिट ।

थारु कल्याणकारिणी सभा कञ्चनपुरके सभापति सुनिता चौधरी (सानु) बुढनी बट्कोहीमे एक ठो सघर्षशिल जन्नी मनैनके कथा जोरल बटैली । उहाँ कहली, “एक ठो डाई मनै आपन लर्कापर्का, परिवारमे कौनो विपट नाआए कना चिज समेटल बा ।” यकर संगसंगे हमार पुर्खनके बोल्ना थारु शब्द लिखल प्रयोग कैगिल बा जौन अब्बेक लौवा पिढी विस्राई लागल बटै ।

उ बुढनी बट्कोहीमे थारु समुदायसे बेल्ना रुख्वा बरिख्वा, चिरैचुरङगन, किराकाँटीनके नाउँ उल्लेखसे हमार भाषा मौलिक शब्दके संरक्षणमे सहयोग पुगल सभापति सानु बटैली ।

जानकी गाउँपालिकाके अध्यक्ष गणेश चौधरी अब्बे लोककथामे आधारित बट्कोही सुन्ना ओ सुनुइया मनैन कम हुइटी गैल बटैलै । उहाँ कहलै, “यी किताबके खोलमे उल्लेख हुइल थारु समुदायसे मनाजैना अष्टिमकी चित्र हठिया, घोरुवा, हर्ना, मञ्जोर, पाँच पण्डव, चिरैयाके चित्र, थारु नाउँ जोरल बुढनी बट्कोही थारु समुदायके पहिचान झलकल बा ।”

उहाँ कहलै, “किताव पह्रुइयाहुकनके संख्या घटटी गैल बा । मने मै यी किताव पह्रेबेर थारु समुदायसे बेल्सना मौलिक भाषा, शब्द पैनु । पहिले पहिले थारु समुदायहुक्रे ज्ञानगुनके रुपमे लेजैना बट्कोही सुनाइट, मैे यम्ने उहे इतिहासके उल्लेख हुइल पैनु ।”

ओस्टेक, करके बुढनीके समीक्षा करटी बाँधुराम हरडिउलाकुश्मी हेरैटी रहल लोककथाहे जिवान्त रख्ना सहयोग पुगल बटैलै । यी बट्कोहीसे जन्नी मनै शसक्त हुई परठ कना सन्देश डेहलफे बटैलैं ।

कार्यक्रममे बाटचित घरके जन्नी सशक्तीकरण संयोजक गीता चौधरी, रानाथारु डटकमके सम्पादक नन्दलाल राना, डा. सुमन चौधरी, सुप साहित्य समाजके सचिव गणेश नेपाली, रजनी चौधरी, पार्वती चौधरी, फुलमति महतो, थारु कलाकार राज चौधरी, थारु बुद्धिजीवी रामदास चौधरी, रेखाकुमारी चौधरीलगायत बुढनी बट्कोहीके बारेमे आपन धारणा राखल रहिट ।

लोककथामे आधारित थारु भाषामे लिखित बुढनी बट्कोही लिखुइया इन्दु थारु बुढनी बट्कोही काल्पनिक रहल मने थारु समुदायके जन्नी मनैसे भोगल परिस्थितिमे आधारित कथासे जोरल बटैली ।

उहाँ कहली, “यी कथामे थारु समुदायके बेल्सना ढेर मौलिक शब्दके प्रयोग हुइल बा । जौन अब्बे हेरैटी गैल बा । अब्बेक पिढी उ शब्दके प्रयोग नैकरल भेटल बा । बट्कोहीमे एक ठो जन्नी मनैनके सघर्षके कथासे जोरल बा ।”

किताव प्रकाशनके क्रममे ढेर जानेक सहयोग पाइल ओरसे उहाँ सक्कु जनहनहे धन्यावादफे ज्ञापन करली ।

बुढनी बट्कोहीके कुछ अंश अइन बा,

“काहे अट्रा ढेउर भाट पकइठो डाइ ?” बुढनी एक बिहान पुछल ।

“जब टोहार बाबा अइहिं, उ महाभुखाइल रहिहिँ, उ डोब्बर खइहिं,” डाइ कहलिस् ।

मने रात बिजाए ओ बिहान होजाए बाबा घुमके नै आइल । डाइ उ खाना फेन ढिकाइ । जब जब बुढनी कौरा मुँहम डारे, बुढानीक, साँेच बर्हटि जाइस् । खाइबेर हर कौरक मिठास, बाबक सोँचसे फिक्कल हुजाइस् । बाहरके डुनियाँ ओकर घरेम सुखढाम खल्भल्वा डेले रहे ।

बुढनी बाबक मैयाहे बल्गरके सवाँरल । बन्वँक इनियाँहे फेन उ मनेम ढरल । यहाँ जिन्गि बहुट फराक बा । गोबरेम बैठना किरा, पानीम पौह्ना जलजिव, लुग्गा सिए असक पटिया सिना चिरैं, आपन घर बनाइक लाग छोटमोट चिम्टा ओ बरवार जिउ रहल हाँठि, रुख्वक बिच्चेम झुल्ना टरुल, भिजल पनिहाँ माटिमसे निक्रल बाँस, लिहुरल कोच्यक साग ओ फेंचार फुलल गडौलिक फुला यि सक्कु यहाँ जिट्टि बटाँ ओ सक्कुजे आपन आपन जाट बँचैले बटाँ । कबु अउरे जन्हनहे खैना टे कबु अउरेजे ओइन खैना । जिना ओ मुँना रिट चलल बा ।

कार्यक्रमके घरगोस्या थारु बृद्धिजीवी ठाकुर प्रसाद करिया प्रधान स्वागत करल रहिट कलेसे संचालन माधव थारु करल रहिट । बुढनीके समिक्षा कार्यक्रममे थारु बुद्धिजीवि, थारु कलाकार, थारु साहित्यकार, यूवा, विद्यार्थीनके सहभागिता रहे ।

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