दक्षिण एसियाके आर्थिक आउर राजनीतिक किनारामे थारु किसान आउर कमैया थारु

थारु किसान दक्षिण एसिया आउर नेपाल के इतिहासमे किसान आन्दोलनके एकथो बहुत बरवार हिस्सा ओगथ्थै। थारु पहिचान आउर राजनीतिक, आर्थिक संघर्ष आठारौं शताब्दी से सुरु हुके आजतक फेन चल्ती रहल बा। नेपाल जब एकथो बरवार नेपालमे एक नइ हुइल रहे तब से, थारु अपन खेतुवा आउर अपन समाज के लग संघर्षरत करती आइल बाटै। जैसिके पहिले राजा, जिम्दरुवा, महतौं, वा गाउँक मुखिया के सेवा करती, ओइनके लग खेतुवा जोत्ति, ओइन्हे अपन उब्जनीके आधा से धेउर बालि करके रुप मे तिरके, न्यून आर्थिक स्रोत आउर भोकमरी झेल्के संघर्ष करै, उ अवस्था आज धेउर परिबर्तन हुइलेसे फेन, जोन आधारभूत संघर्ष रहे, उ आजफें थारु समाज हे आर्थिक आउर राजनीतिक किनारमे धकेल के धरले बा।
थारु किसान वर्ग जन्मजात से कमैया हुके जन्मल नइ देखा पर्जाइत, लेकिन पुजीबाद आधुनिकता आनुसार चले नइ सेक के आउर शिक्षामे पाछे परके आज फे थारु किसान आउर थारु समाज आर्थिक आउर राजनीतिक रुपसे, दलन मे रहल कमैया के भाग्य मे जिना बाध्य बा। थारु किसान हुक्रे कैसिके कमैया थारु मे परिवर्तन हुइनइ कना के उत्तर मे एक्के चिज आइथ, उ हो घुमन्ते आदिबासी जीवन शैली।
थारु किसान कभु फेन जमिन हे अपन निजि सम्पत्ति आउर उहिकिन हे अपन पहिचान, शक्ति आउर तागतके रुप मे नइ बुझनइ । दुइ चार वर्ष एक ठाउँ मे खेति करना, मन नइ परलेसे वा जिम्दरुवा वा कोइ फेन ट्याक्स (भुमि कर) उठुवैया आके बर्बर दुख देले से, ठाउँ छोर्के छल जिना। यि गतिबिधि नेपाल के नवलपुर, बुटवल, सप्तरी आउर दाङ्ग जिल्ला के थारुनके इतिहास हेरके पटा चलत। जिम्दरुवानके, राजानके आउर ओइने खताइल ब्यक्तिनके कचकच, दुख, शारीरिक आउर मानसिक तनाब सहे नइ सेक्के थारु किसान हुक्रे एक ठाउँ छोरके अउरे ठाउँ जइना कर। नेपाल के ठाउँ छोरके अंग्रेज शाषित भारत के बिहार, उत्तरपरदेश स्थित रायपुर, गोंदा, खिरि जैसिन जिल्ला मे बसाई सर जाई, आउर ई पर्क्रिया दोहोरो चले, कबु ओहोर से सटुवा पईले से नेपाल आ जिना क्रम चल्ती रहे। महेश चन्द्र रेग्मी, जिसेल क्राउस्कोप्फ,अर्जुन गुनेरात्ने, क्रिस्टियन म्याक्दोना के बहुत रिसर्चमे यि बात के ठोस सबुटके साथ प्रमाणित फेन कैगिल बा।
अपन जोटना खेतुवा के पूर्ण स्वामित्व लेहे नइ चाहना, अपन नाउ मे दर्ता कर्लेसे सर ट्याक्स अपहि तिरी परि कना दरसे, अपन जोटना खेतुवा बरु जिम्दरुवा के नाउ रहे आउर अपने खाई भर के उब्जनी हुइगिलेसे खुस रना सोचाई आउर जीवन शैली के कारण थारु किसान, किसान से कमैया थारु बन गिनइ । प्राकृतिक साधन मे बचना मन परैना, खैक लग कुलुवा, तलुवा आउर लादियक मच्छि हुइगिलेसे हुजिना, एक ठाउँ के खेतुवा के उब्जनी खाके आउरे ठाउँ बसाई सरना, अपन गाउँके मुखिया है अपन भगवान के दर्जा देना, कुल देवता संगे मुखिया है फेन पुजना चलन के कारण जमिन कबु फेन निजि हुइ परि कहिके सोचाई विकास नइ हुइल। दुख के बात, १९५१ थन्से, जब नेपाल मे बिदेशी सहयोग आइन दगर खुलल, भुमि सुधार आयोग बनल, राष्ट्रिय वन नीति लागु हुइलस, प्रकृति मे रमाके, प्रकृति है अपन मानके, प्रकृति हे जिते पर्ना, अपन निजि सम्पत्ति के रुपमे दर्ता करेक पर्ना दर्शन बोकाल थारु धीरे धीरे आर्थिक आउर राजनीतिक किनारा मे पर्टी गिनै। संगसंगे सुरुहुइल पुनर्बास करेक्रम के कारण पहाडिया समुदाय, भुटान, बर्मा आउर सिक्किम से नेपाल के तराई मे बहुत भरि मात्र मे बसाई सराइ हुइल। यि सब गतिबिधि १९५४ से अमेरिका के सहयोग मे सुरु हुइल मलेरिया उन्मुलन से सुरु हुइल घटनाक्रम रहे। United States Operations Mission (USOM) द्वारा संचालित मलारिया उन्मुलन कार्यक्रम सिर्फ मलारिया उन्मुलन कार्यक्रम नइ रहे, ई कार्यक्रम नेपाल जैसिन गरिब मुलुक है आधुनिकता वोर लैजिना एकथो बरवार प्रोजेक्ट रहे। आधुनिकता लागु करना दौरान, जमिन के फेन रजिष्ट्री सुरु हुइल। पढल लेखल पहाडिया समुदायके हिना खईना मनै जब फटुवा फटुवाके जमिन अपन नाउमे करैनामे व्यस्त रही, सोझ थारु किसान खेतुवा जोत्ति मिझनी खैति रमाई तह। ट्याक्स तिरे पर दरसे जमिन जिम्दरुवा के नाउ रही ते मज रही सोच रहल थारु, जमिन हे अपन नाउमे दर्ता करना चुक गिनै। करेक खोज्लेसे फेन सिक्षा आउर पढाई लेखाई के कमि के कारण, जटना जमिन पाइक परना हो वोतना नइ पाई सेक्नई। संग संगे सुरु हुइल वन जंगलके राष्ट्रिय करनके कारण, अधिकांस थारु किसान ओइने जोत्ति आइल जमिन आरक्ष, नेशनल पार्क आउर बन्यजन्तु आरक्ष मे कन्भर्ट हुइगिलिन। बचल कुचाल थोर चुन जमिन मे फेन, बर्वार परिवार पाले परना मजबूरी, आर्थिक कमजोरी आउर भोकमरी के अवस्था हे जिएक लग जिम्दरुवा के आगे हात फैलईना बाध्य हुके, गरिबी आउर जालसाझी के चक्र मे फस्ती गिनै।
बन जंगलके राष्ट्रियकरन आउर थारु बासस्थान के लोप
सन् १९५७ मे जब वन राष्ट्रियकरन के कानुन नेपाल मे लागु हुइलस तबसे थारु बैथ्ती आइल जल, जमिन आउर जंगल राष्ट्रके अधिन्मे आगिल। यी कानुन से थारु ओइने जोत्ति आइल खेतुवा, मच्छि मर्ति आइल कुलुवा, तलुवा आउर लड़िया, शिकार खेल्के अपन पेट पल्टी आइल बनुवा सब अपन अधिकार से गुमा धर्नै। आधुनिकता के नाम मे पश्चिमी सभ्यताके जोन अन्ध अनुसरण हुइल रहे उ थारुनके लग घाटक हुइ पुगल। थारु ओइने कबु फेन बनुवाहे नास कर्के, उहिकिन है फारके, रुखुवा बोट बिरुवा सब काटके खाइना समुदाय नइ रहत। बनुवा आउर प्रकृति ओइनेके लग अपन जिनगीके एकथो अभिन्न अंग रहिन। अपन खाना आउर जिनगी के स्रोत रहल बनुवा राज्य के अधिन मे गिल देख के थारु समुदाय दुखि ते रहे आउर संग संगे चिन्तित फे कहेकी यी कानुन सिर्फ राज्यसत्ता के केंद्रमे रहल कुछ वर्ग हुक्रन किल फाइदा पुगैना किसिम के रहे। प्रक्र्तिक स्रोत हे बचैना बहाना मे विदेश मे वन स्रोत के बेच बिखन सुरु हुइ लगल। जोन बनुवा हे थारु समुदाय बर्षौ से बचैती आइल रहे, प्राकृतिक नियम अनुसार ओकर संसाधनके उपयोग कर्ति आइल रहे आउर अपनत्व के भावनासे बनावसे व्यवहार कर्ति आइल रहे, आइसिन नीति के कारण प्रक्रित आउर थारु समुदाय के बिचमे दरार आगिल आउर प्रकृति ब्यापारी, काठ तस्करी, जडिबुटी आउर जंगली जनावर ओइने हाडछाला तस्कर ओइनके अधिन मे आगिल। जेकर पावर, आउर पैसा बा उ बनवा के ठेकेदार वन गिनै आउर थारु किसान समुदाय उहे बनुवाके सुकुम्बासी, अतिक्रमंकारी आउर गैर कानुनी तरिका से बैथल सिमान्तकृत समुदाय। अट्नई किल नइ, उहे थारुनहे बनुवा मे घाँस, काथी आउर पत्ता लेहे गिल बेला मे फे बनुवाके स्रोत तस्करी करल आरोप मे आर्मीन से पक्रोइना, पिटवा पैना, जेलम डर देन, गलत मुद्धा लगाके दुख डेना आउर गलत मुठभेड मे गोलि मार्के मुवा डेना जैसिन दुख डेना सुरु हुइल (म्याक्समिल्लियन मोर्च १०८-१३७)। जस्तेके धीरे धीरे थारु प्राकृतिक स्रोत के उप्पर से अपन अधिकार गुमैती गिनै ओस्तेके राजनीतिक रुपसे फेन शोषित हुइति गिनै। अवस्था एहाँ सम आगिल कि थारु समुदाय जमिनहिन होके बचे पर्न हुइ गिनै। जमिन के मालिक थारु पहिले फेन नइ रहै लेकिन जमिन है खुला रुपसे जोटके, ओकर उत्पादन मे बहुत स्वन्तन्त्र हुके रमाके बैथल रहेट। १९६० के दशक के बाद जब नेपाल मे आधुनिकता फैलल आउर जब आवश्यकता बढे लगल, बजार के अवधारणा आइलास, खेति किसानी के बावजुद आउर फेन काम कर्ना जरुरत परे लागल, थारु समुदाय पाछे परगिल। जिम्दरुवाक खेटवा जोटके भुमिकर नइ टिरल बानी, खेति बाहेक आधुनिक समय अनुसारके आउर आर्थिक रोजगार नइ जन्ना, सिक्षा मे बहुत पछ्गुरल हिलेक ओहोरसे धीरे धीरे आर्थिक रुपसे बहुत कम्जोर हुइति गिनै आउर जमिन रहल धेउर हस किसानफे जमिन बेचके गुजारा चलैना बाध्य हुइगिनै। पढाल लेखल पहाडिया समुदाय के आगे हात जोर्न बाध्य हुइ गिनै। घर खर्च चलाइक लग ऋण लेना, उहे ऋण तिरे नइ सेक्के जिम्दरुवाक घरे मे बेगारी करे पर्ना, ऋणके मारमे झन् पर्टी जिना, थारु समुदाय एकथो कबु नइ उम्के सेकना चक्रब्युईमे फस्ती गिनै आउर कमैया हुइना बाध्य हुइनइ ।
१७२६–१९८०, ब्रिटिश नेपाल युद्ध (१८१४–१८१६) के दौरान थारु
थारु समुदाय इतिहास से, कबु फेन जमिन ओगटके बैठ्ना समुदाय नइ रह। जमिन जतना जिम्दरुवा के रेख देख मे रना आउर अपने भर खेतुवा के उब्जनी किल खईना चलन देखा परजैथ। हुइना ते थारु मुखिया, जिम्दरुवा वा बधघर ओइने फेन खुद अपन मे ते जिम्दार नइ रही लेकिन तत्कालिन जोन पंचायती व्यवस्था रहे, उहे राजान के, राजा ओइनके बिशेष मनैनके बिशेष खाटैल रेख देख करुइया एकथो मुन्सी अथवा ठेकेदार रहई। सप्तरी जिल्लाके तत्कालिन जिम्दरुवा तेज नारायण पंजियार द्वारा जम्मा करल २० ठो कागजात मे यि बात स्पष्ट हु जाइथ। १७२६ के बाद के तत्कालिन प्रधानमन्त्री भीमसेन थापा आउर थारु मुखिया ओइनके बातचित हुइल चिठी पत्र से ई बाट स्पष्ट हुइथ (जिसेल क्राउस्कोप्फ )। अठारौं शताब्दीके शुरुवात ओहोर नेपाल के पाल्पा, गुल्मी, आउर मकवानपुर जैसिन छोटा छोटा राज्य अभिन फेन ओत्ने तागतवर् रहई। मध्ये तराईके ठाउँ जस्ते सप्तरी, नवलपुर आउर बुटवल के तराई मे यि छोटा राज्य आउर गोर्खा के राज्य मे आपसी मनमुटाव रहिन। जस्ते कि मकवानपुर के सेन राजा ओइने सप्तरी जिल्ला मे थारु मुखिया द्वारा अपन जमिन के रेखदेख करइ। उहे बेलम सन् १७२६ मे राजा महिपाल सेन, सप्तरी जिल्ला के जिम्मा रनपाल चौधरी हे देला रहई। यी बात महेश चन्द्र रेग्मी अपन किताब मे लेखले बताई जहाँ रनपाल से पाछे ओहाकर छावा आउर नाति हेम चौधरी आउर मधुराम चौधरी सप्तरी जिल्ला के ट्याक्स उठैना जिम्मा पैला रहई। यमने फेन बहुत विवाद रहे। पहाडिया समुदाय के मनै राजा आउर थारु किसानके बर्हिया सम्बन्धसे खुसि नि रहई। ओइने यी अधिकार अपने लेहे चाहई। लेकिन तब्बेक राजा थारुन पर विश्वास करलेक ओहोर से यी अधिकार थारु मुखिया ओइनहे नइ देहई। लेकिन थारु मुखियान के यी अधिकार आउर सुबिधा फेन धेउर दिन नइ टिकल यहा रहल जमिनके कर के उठाई पईना, किहिन कर उठैना ठेक्का देना कना बर्वार विवाद चालु रहे। उन्नाईसउ सताब्दी के सुरुवात ओहोरसे यि समस्या आउर बधगिल। थारु मुखिया ओइनके कर उठैना अधिकार धीरे धीरे कम्जोर हुइति गिलिन। यी राजा हुक्रे अपन द्वारा चुनल नाजिक्के मनै पठाई लग्लाई। कर उठुवईया सुबेदार, तालुकदार आउर पटवारी जैसिन पद रहल मनै थारु बस्ति मे आके ज्यादती करना, गाली गलौच करना, महंगा कर तिरैना। यी सब झेले नइ सेक के सन् १८०५ मे तो नवलपुर के ५२ थारु किसान परिवार नेपाल के भूभाग छोरके, अंग्रेज शाषित भारत बसाई सरल रहई ( क्राउस्कोप्फ , २०००)। सन् १८४२ मे आके जब सरकारी कामकाज कर्मचारीतन्त्र मे औपचारिक रुपसे प्रवेश करल, तबसे ते आउर थारु मुखिया ओइनके बचल कुचाल अधिकार फेन ओरागीलिन ( क्राउस्कोप्फ, २०००, १४१)। नेपाल आउर इंडियाके सिमाना प्रष्ट नइ हुइल ओहोरसे फे ऐसिन बसाई सराइ सम्भव रहे। थारु पुरा गाउँ नइ खाली करके भाग गिल पाछे, थारु किसानके मेहेनत मे बचल राजा रजौटा ओइनहे ते समस्या आईन आउर यी समस्या हे हटाईक लग तत्कालिन प्रधानमन्त्रि भीमसेन थापा, थारु किसान हुक्रन, नेपाल फिर्ता आइन अनुरोध कर्ति लेखल चिठी फेन सबुत के रुप मे महेश चन्द्र रेग्मी आउर तेज नारायण पंजियार प्रस्तुत् करले बाटै ( क्राउस्कोप्फ, गुनारत्ने )। उ बेलम थारु किसान ओइने अंग्रेज साशित भारत मे खेति किसानी के बर्हिया माहोल पैलेक ओहोरसे भर भर के भारत मे बसाई सर गिनई। एहोर जुन किसान मजदूर के कमि हुइलेक ओहोरसे बिहार आउर बेङ्गालसे नेपाल के राजा ओइने मजदूर झिकैना बाध्य रहई। थारुन के हस खेति फेन नइ करे जान्न आउर खेति फेन नई करना यी समुदाय पूर्वी आउर मध्ये नेपाल के तराई मे बसोबास करल जोन समुदाय आज मधेसी कहिके चिन जैथ। सन् १८१४ मे गोर्खा सेना अग्रेज़ से हारके हुइल सुगौली सन्धि मे फे पश्चिम तराई के चार जिल्ला बाँके, बर्दिया, कैलाली आउर कंचनपुर अंग्रेज ओइने लई लेले रहई। बादमे सन् १८५७ मे लखनउ मे सुरु हुईल इन्डियन म्युतिनी नामक बिद्रोह हे दबाइक लग जब नेपालके सेना अंग्रेज सेना से मिलके काम करनई आउर जित हासिल हुइल, अंग्रेज ओइने खुश हुके, पश्चिम तराईके यी चार जिल्ला नेपाल हे सहयोग करल उपहार स्वरुप देहल हो। ऐसिके फेन दोस्रे इंडिया मे रहल थारु किसान नेपाली हुइनई।
दाङ्गसे भागल थारु – बुरान पुगल थारु पुर्खा, बुरान पुगल कमैया संघर्ष
सन् १९६० के दशकसे नेपाल मे आधुनिकता के परबेश हुइल। भुमिसुधारु आयोग के पूर्वाग्रही व्यवहार आउर ओकर उप्पर से दाङ्गके जिम्दरुवान के सहे नइ सेकना किसिम के व्यवहार, आयआर्जनके स्रोत के कमि, जागिरके अवसर नइ रना ओहोरसे थारु समुदाय धेउर से धेउर संख्यामे दाङ्गसे पश्चिमी तराईके बर्दिया जिल्ला के कर्णाली लड़िया के आसपास बुरान कना ठाउँ मे वैठ गीनै। कर्णाली लड़िया के बनुवा किनारे किनारे सुकुम्बासीके रुपमे वैठ के, बनुवा फारके, पहाडिया जिम्दरुवानके घरेम काम करके गुजारा चलाई लगनई। दंगौरा थारुन के अवस्था येह फे नइ सुधरल रहे। बर्दियाके फटुवा फटुवा अपन बस्ति आउर गाउँ बसाके, जंगली जनवार आउर जिम्दरुवान से लड़के कमैया थारु इतिहास आगे बाधा तेहे। थारुनके भगना एकथो बिरोध स्वरुप देखे सेक जैथ जोन दक्षिन पूर्वी एशिया के पहाड आउर हिमाल मे बैथुइया जाति ओइनके राज्य द्वारा लादल एकीकृत नीति बिरुद्ध बिरोध करना तरिका रहे। यी बारेम जेम्स स्कोट, विलिअम भ्यान सेंदेल आउर क्राउस्कोप्फ लेख ले बाटै। क्राउस्कोप्फ येहिन हे थारु ओइने अपन गोरासे करल मतदान काले बताई। यही किन एक किसिम के नरम आउर अप्रत्यक्क्ष बिरोध कहिके कले बाटै। थारु समुदाय राजा रजौतन संग प्रत्यक्क्ष लड्न चिजसे जब फेन दुर रना खोजई।
आदिवासी जातिके यी मेरिक चलन हे गोरासे मतदान करना, राज्यकेंद्र के एकलौटी निर्णयहे बहिस्कार करना एक ठो रणनीति के रुप मे काम करथ। राज्य सत्ता से सोझे लडे आउर बिरोध करना स्थिति नइ रह पाछे, आदिवासी समुदाय ऐसिन रणनीति से अपन स्वतन्त्रता आउर स्वायत्तता जनैथई। जब नेपाल के सेन आउर गोर्खा के राजा हुक्रे थारुन हे अपन अधिन मे कर्मचारीतन्त्र मार्फत मजबूर करके नाने लगनइ आउर ओइनके स्वायत्तताहे कमजोर परना काम करे लगनइ, थारु किसान समुदाय चाहे पूर्वी नेपाल से ओहई वा दाङ्गसे, गाउँ गाउँ भरके बसाई सरके, सरकारके नीति आउर सरकारी नोकर के बिरोध जनइनइ। दाङ्गसे बर्दिया आइल थारु हुक्रणके अब येहोर ओहोर बसाई सर्न फेन धेर ठाउँ नइ रहिगिल रहे। नेपाल इंडिया के स्पष्ट बोर्देर हुइना, तराई के बहुत जैसिन जंगली एरिया राष्ट्रिय सम्पत्ति, निकुञ्ज आउर आरक्ष बन्ना जैसिन घटना करम थारुनके बसाई सराई आउर स्वायत्तताके संकुचित पारदेहल। दाङ्गसे निक्रल कमैया थारु चरण चरण के आन्दोलनके बावजुद जुलाई १७ २००० मे अन्तत्व अधिकारिक रुपसे सरकारके घोषणा बावजुद मुक्तते हुइनइ लेकिन व्यवहारिक रुपसे बहुत समय सम संघर्ष करेक परलिन। आज सम मुक्तकमैया के घोषणा पाछे फे, बहुत जैइसिन कमैया एकथो निम्न स्तर के जिन्दगी से उप्पर उठेक लग संघर्ष करती बाटै।
शिक्षा, समुदाय भित्तरके वर्ग विभाजन आउर वर्तमानमे थारु
थारु समुदाय शिक्षाके कमिसे पिछरल समुदाय हो, शिक्षा के कमि के कारण काल्हिक दिन मे कमैया बन्ना मजबूर हुइल थारु आज फे शिक्षा के कमि के कारण दुख पैटी बा। पढे लिखे नइ जान के जोन हिसाब से बिगत मे चालक जिम्दरुवा आउर सरकारी कर्मचारीन के शिकार बन्नई आझिक अवस्था फे उहिकिन से कुछ बहुत सुध्रल नइ हो। शिक्षा मे घट्दो डर थारु समुदाय के लग बहुत चिन्ता के बिषय बनल बा। परिवार बहरके रहल जमिन आउर खेतुवा मे आइल कमि, वर्तमान पुस्तासे आघेक पुस्ता अभिन फेन अशिक्षित रहल अवस्था, जागिर के कमि के कारण वर्तमान मे थारु समुदाय बहुत खतरनाक आर्थिक कमजोरी आउर बेरोजगारसे पिडित बा। गाउँ घर के स्कूलमे थारु विद्यार्थीन के कमजोर उपस्थ्ति आउर खराब शैक्षिक प्रदर्शन बहरति गिल बा। मोबाइल, इन्टरनेट, आउर सामाजिक संजाल मे पहुछ के कारण मजा बन्ना स्थिति, शिक्षा छेत्र हे झन् कमजोर करा देले बा। आधुनिक प्रविधिके फाइदा लेना ठाउँमे थारु समाज के लरका झन् झन् पढाई लेखाई पर्ति बेवास्ता करती जाई टाई। पहिले से शिक्षा के कमि के कारण पाछे परल समाज फे दोसरु शिक्षा हे बेवास्ता करल कारण पाछे हुइट। एकर साथ साथे ड्रग्स के कुलत मे फसना, कुलत मे फसके न पढे सेकना न कोनो काम करे सेकना, अब्ब के बहुत बर्वार समस्या हुइल बा। समुदाय के बहुत जैसिन लरका छोट्ते उमेरसे कुलत मे फसल बाटै। दाई बाबानमे शिक्षा के कमि, अभिवाकत्वके जानकारी के कमि आउर लरकनहे कईसिके हुर्काइत परथ कन ज्ञान आउर संस्कार के प्रष्ट कमि के कारण वर्तमान थारु लरका, शिक्षामे बेवास्ता, पढाईलेखाई मे कमजोर, लागु पदार्थ दुर्व्यसन मे फसना जईसिन एकदम गम्भीर समस्या से गुजरतई। गाउँमे खेति करना बाहेक आउर कोनो बिकल्प नइ रहल ओहोरसे, आर्थिक कमजोरी आउर बिस्वव्यापी संसार मे हुइत घटना करमसे अन्जान रहल अवस्थामे अपन अधिकार, पहिचान आउर आर्थिक सशक्तिकरण के लग लरना अवसर सिर्जना करना अवस्था मे कमि आइल बा। सामाजिक आउर आर्थिक चेतना मे कमि के कारण थारु समुदाय सिमान्तकृत वर्गसे उप्पर नइ उठे सेकल अवस्था बा।
थारु समाज अपन भित्तरके वर्ग सघर्षसे फेन जुझ्ती रहल बा। थारु समुदाय मे एक वर्ग के थन भरपुर जमिन आउर खेतुवा बाटिन कलेसे एक वर्ग यानिकी विशेष कमैया वर्गन थन अपन छोटमोट घर बाहेक अपन नाउ मे घर भरिक जमिन फे नइ हुइतिन। कमैया समुदाय आज फेन कोनो गाउँ, बजार वा बस्तिके किनारे अपन टोल, समाज वा गाउँ लेके बैथल बाटई। दिन भर लेबर मजदूरी करके अपन पेट पालना संघर्ष करती रहल बाटई। दैनिक कम करके गुजारा चलैना अवस्था रहल कमैया थारु, आज फे अपन लरकान के पढाई, ओइनहे बर्हिया पालन पोषण आउर मजा लवाई खोवाई देना मे असमर्थ बाटई, कमैयान के लग काम करना संस्था कमैयान हे सहि माएने मे अजाद करना असफल रहल देखा परजाइथ। गरिबी आउर रोजगारी के कमिसे आज फेन पुरा थारु समुदाय चरम आर्थिक संकटसे गुजरता। ओस्तेके एक ओहोर धेउर जमिन, खेतुवा रहल थारु समुदाय फे बा लेकिन उ थारु समुदाय, थारु अगुवा, थारु नेता जे हुइना खाइना थारु समुदाय से आइथई ओइने फेन एक ठो एकीकृत सोच, रणनीति, संगठन बनाइनामे असफल हुइल देखा परथ। सम्पन्न थारु आउर कमैया थारु मिलके वर्गसंघर्षके लग काम करे परना अवस्था मे थारु समुदाय अपन मे विभिन्न समूह, आपन जाति के भित्तर उपजातिमे विभाजित हुइल समुदाय हो। समाज के भित्तरे आर्थिक रुपमे कोइ अपन हे जिम्दरुवा, बड्घरके रुपमे कमैया थारु से अलग रुप मे हेरथ आउर कोइ फेन सामाजिक कार्य जस्ते भोज करना, नाता मिलैना काम आइसिन दुई किसिम के थारुन के बीच नइ हुइत्। ओस्टके कोइ थारु दहित वर्गमे परथु कहिके थरुन भित्तर रहल कुमाल थारु समुदायसे कोनो फेन पारिवारिक सम्बन्ध नइ जोरना संस्कार थारु समुदायमे आजसम चल्ति आइल देखा परथ। गैर थारु समुदायके लग, समग्रमे थारु समुदाय एक्के ठो रलेसे फेन, थारु समुदायके भित्तरभर बहुत किसिम के जात आउर उपजात मे बटल समुदायके रुप मे देखा परथ। जहाँ सम्पूर्ण थारु मिलके अपन सामाजिक आउर आर्थिक अधिकार के लग काम करे परना अवस्थामे, थारु समुदाय अपन भित्तरे बटल बा आउर जोन विभेद के बिरुद्ध मे पहिले से संघर्ष करती आइटा आज ओकरे शिकार खुद बनल बा। कुछ सम्पन्न थारु आर्थिक रुपसे बलगर हुइ, अपन लरकान बर्हिया शिक्षा देहे सेकल हुइ लेकिन अईसिन कुछ थारुनके अवस्था फे बिगरति गइल अवस्था बा।
जमिन आउर खेतुवा बाहेक आउर आर्थिक स्रोत नइरहल थारु, अपन थन रहल जमिन बेचके पक्कि घर बनैना, छाई छावनके भोज करना वा अपन लरकनके उच्च शिक्षा मे लगानी करना मजबूर बाटई। साथ साथे चालक मनैइनके छल मे फसके, धेउर लोभमे, जथाभावी अपन सम्पत्ति हे बैंक मे गिरवी धारके वा सम्पत्ति बेच बेच करल लगानी डुवल पाछे, समुदाय मे आर्थिक अवस्था भयावये बन्ति गिल अवस्था बा। शिक्षा मे करल अईसिन लगानी बाहेक आउर किसिम के लगानी परिवार आउर समुदाय हे आर्थिक रुपसे झन् कमजोर करति गिल अवस्था बा। घट्तीगिल पैतृक सम्पत्ति बहुत सम्पन्न थारुन हे आज कमैया के हालत मे पुगा देले बा। छितराके रहल थारु समुदाय आज अपन भित्तरे से विभाजित हुइल बा। राजनीतिक रुपमे फेन थारु समुदाय एकथो प्रभावकारी अगुवा के कमिसे जुझाता। २०७९ सालमे थारुन के भावनासे उभरल पार्टी आज राजनीतिक आउर नैतिक रुपसे थारु समुदाय से दुर दुर टक कोइ नाता रहल नइ देखा परथ। राजनीतिक चेतना के कमिके कारण फे थारु समुदाय एकथो सशक्त नेता आउर अगुवा पैदा करना मे असफल हुइल देखा परथ। पछिल्लो समयमे आशा के किरणके रुपमे देखा परल रेशम लाल चौधरी, थारु समुदाय हे उल्टा एकथो बहुत बरवार धोका रुपमे देखा परथ। रेशम लाल चौधरी मे जोन आशा आउर भरोशा देखइले रहई, उ भरोशा सम्पूर्ण रुपमे टुटल देखा परथ। खुद अपन समुदाय के नेतानसे पाइल धोका पाछे समुदाय मे चरम निरासा देखा परथ। समुदायके उत्थानके लग काम करना अगुवा के कमि के कारण समुदाय झन् झन् पाछे परटि गिल अवस्था बा।
वर्तमान मे थारु समुदाय आघेक डगर
देश के केंद्रिये राजनीतिक पहुचसे बहुत दुर रहल थारु समुदाय, अब्ब फेन कमजोर राजनीतिक प्रतिनिधित्व से पिडित हुइल बा। संसदमे थारु सांसद हुके फेन अपन आर्थिक आउर सामाजिक कल्याणके लग अवाज उठैना समस्या भोगती रहल बाटइ। थारु अगुवा हुक्रे जब सम अपन व्यक्तिगत स्वार्थसे उप्पर उठ्के समाज हे एक करैना, पिछडापन से आगे नन्ना, शिक्षा के लग व्यापक अभियान चलैना काम नइ करहि, थारु समुदाय सामाजिक आउर आर्थिक प्रगतिसे झन् झन् दुर हुइटि जाइ। अब्ब के अवस्था मे थारु समुदायमे प्रविधिमे आधारित शिक्षा आउर रोजगारी मुलक सिप के व्यापक जरुरि बा। जब सम आधुनिक समय अनुसारके शिक्षा मे लगानी नइ करहि, आर्थिक रुपसे बलगर हुइक लग सिप नइ सिक हि, समुदाय आगे बढ्ना चुनौती सामना करटि जाइ। अधिकांस थारु युवा अब्ब देश आउर विदेश के विभिन्न कोनुवा मे काम करे पुगल बाटै। कमजोर आर्थिक अवस्था रहल प्रायजसो देशके बहुत ठाउँ मे रोड, घर आउर अस्तहके कोइ फेन निर्माण कार्यमे मेहनत मजदूरी करटि बाटै कलसे बहुत से युवा भारतके बहुत प्रदेश जस्ते मुम्बई, पुने, दिल्ली, बैंगलोर आदि विभिन्न ठाउँ मे मेहनत मजदूरी करटि बाटै। अईसिन कामसे कुछ समय के लग फाइदा हुइले से फेन, दिगो रुपमे घाटा बेहोरेक परथिन। तिन चार महिना काम करना, फेन घरे वापस आजिनाके कारण स्थायी रुपमे एकथो काममे लागे नइ पईना, थारु युवा हुक्रण के बर्वार समस्यासे रुपमे देखा परल बा। जब सम शैक्षिक आउर आर्थिक रुपसे थारु समुदाय भित्तरसे बलगर नइ हुइ तब सम जोन जातिबाद आउर आर्थिक दमनके बिरुद्धके संघर्ष बा, उ कबु पार नइ लागि। थारु गाउँ मे गायब रहल उच्च शिक्षा प्रदान करना स्कूल, क्याम्पस, संस्थान खोल्न जरुरि बा। अब्ब थारु युवा ओइनहे पढेक लागक कोनो फेन थारु गाउँ मे उच्च शिक्षा प्रदान करना क्याम्पस नइहो। कोइ फेन थारु अगुवा शिक्षा सम्बन्धि काम हे गम्भीर रुप से लेके, एकर लग काम करल नइ देखा परथ। जब सम्म थारु समुदाय के अगुवा यी विचार धारके काम नइ करहि तब सम्म, गाउँ घर मे फैलाल आर्थिक पिछ्दापन नइ हटी। केन्द्र सरकार आउर देशी बिदेशी दाता संस्था हुक्रनसे मिलके समाजके शैक्षिक अवस्था सुधारेक लग काम करना, अब्बके तत्काल आवस्यकता देख परथ। अब्ब के आवस्यकता कना समुदाय के भित्तर एकता चाहल हो, जब सम्म आर्थिक रुपसे थोरचुन सम्पन्न थारु, गरिब आउर कमैया थारुन हे अपन मे मिलाके नइ सोचहि, तब सम समुदाय के समग्र विकाश मे बाधा उत्पन्न हुइटि रिही। जहाँ जहाँ स्थानिय थारु अगुवा ओइने नेतृत्व कर टइ, स्थानिय निकाए के सरकार चलाई टइ ओइने फेन, केवल अपन स्वार्थ नइ हेरके, सम्पूर्ण समाज के अवस्था परिवर्त के लग, काम करेक परना आझुक आवस्यकता के रुप मे देख जइठ।
थारु समुदाय के उत्थान के लग आज के समयमे भाषा, साहित्य, इतिहास मे अध्ययन अनुसन्धान के बहुत जरुरत बा। थारु इतिहास मे जतन फेन अनुसन्धान हुइल बा, बहुत से थारु समुदाय के मनइन पटा नइ रह चिज मे बिदेशी अनुसन्धान कर्ता ओइने पटा लगिले बाटै। अशिक्षा के कारण अपन समुदाय के इतिहास आउर कला, संस्कृति बचाई नइ सेकना थारु समुदाय के बरवार कमजोरी के रुप मे देखा परल बा। अपन रहल पहिचान आउर इतिहास हे शब्दके मार्फतसे जगेर्ना नइ करे सेकना आज समुदाय के लोप हुइल इतिहास के कारकके रुपमे देखा परथ। जत्तिके खास पुर्बज ओइने केकर सन्तान हुइट, खासमे कहाँसे आइनइ कना आज फेन कोनो लेख जोखा नइ रहल देख परथ। थारुन के महाभारत “बड्का नाच” मे फेन फ्रान्सेली मानवशास्त्री आउर अध्ययनकर्ता जिसेल क्राउस्कोप्फ आउर पामेला दुअल ओइने लेख ले बाटै। ओस्टके थारु मुखिया आउर राजान के बीच मे कैसिन सम्बन्ध रहे कहिके फेन क्राउस्कोप्फ आउर अर्जुन गुनेरात्नेके बहुत से अध्ययन मे जानकारी आइल बा। ओस्टके दाङ्ग के थारुन के बारेम द्रोण प्रसाद रजौरे, क्रिस्टियन म्याक्दोना लगायत के अनुसन्धान कर्ता ओइने फेन बर्हिया अध्ययन करले बाटै। थारु अध्ययन कर्ता ओइने फेन बिशेष करके दाङ्गमे तत्कालिन अवस्था मे रहल दमन, कमैया थारुनके हालत, थारु अगुवा हुक्रनके संघर्ष के बारे मे लेखले बाटै, लेकिन थारु इतिहासके बारेम खुद अब्बके थारु युवा हुक्रन चासो नइ रहल अवस्था देखा परल बा। थारु अध्ययन मे लगल बौद्धिक वर्ग जस्ते अशोक थारु, कृष्ण राज सर्बहारी, गोपाल दहित ओइने फेन अपन अध्ययन अनुसन्धानसे थारु भाषा संस्कृतिमे बिशेष योगदान पुगाइल देखा परथ। बहुत से थारु युवा हुक्रे भर अब्ब डिजिटल माध्यम जस्ते युटुब से थारु भाषा के गीत, नाच हे उत्पादन करल देखा परथ। पहिले के समय मे प्रविधि नइ रलेक ओहोरसे फेन मौखिक रुपमे गईना गीत, कथा कहानी, बत्कोही, भाषाके व्याकरण, शुद्धता, मिठासपन हे थारु समुदाय बचाई नइ सेकल। अब्ब जोन किसिम से सामाजिक संजाल के प्रयोग बा, जैसिके युटुबमे नाच आउर गीत दरना चलन बा, उहिकिन से पुरान भाषाके नाचगान हे फेन दोस्रो सिर्जना करके संसार सामु अपन हेरइटि गिल संस्कृति हे बचैना मजा अवसर प्रदान करले बा। प्रविधिके प्रयोग करके लेख, रचना हे संसार मे अध्ययन अनुसन्धान करुइयनके उपलब्ध करैना जरुरि हुइल बा। इन्टरनेट के समय मे बहुत हस लेख आउर अनुसन्धान करल सामग्री सजिलो से पहुच हुइल बा कलेसे, एकर उपयोग से कोनो फेन लेख पढे सेकना, डाउनलोड करके अपन थन राखे सेकना सम्भव फे हुइल बा। तबमारे आझुक आवस्यकता कना, थारु पहिचान के डिजीटलाइज करके संसारभर ओकर पहुँच सम्भव बनैना आउर देश दुनिया हे अपन इतिहास आउर पहिचान के बारेम अवगत करैना, थारु समुदायके बौद्धिक वर्ग, अगुवा आउर युवा ओइनके लग जरुरि हुइल बा ।
सन्दर्भ सामग्री
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(लेखक डंगौरा त्रिभुवन विश्वविद्यालयके उपप्राध्यापक हुइट ।)
