थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १३ बैशाख २६४८, बिफे ]
[ वि.सं १३ बैशाख २०८१, बिहीबार ]
[ 25 Apr 2024, Thursday ]

का थारु अशुद्ध उच्चारण करना जात हो ?

पहुरा | २१ आश्विन २०७७, बुधबार
का थारु अशुद्ध उच्चारण करना जात हो ?

कथ्य थारु भाषा लेख्य रुपमे आइ लागल ढेर हुइल नैहो । हजारौँ थारु श्लोक मुखाग्र गइना लोकगायकसे अपने जानल लोककाव्य अभिन फेन अप्नही नैलिख्जाइठ । लोकभाषाप्रति पहिल अन्याय यहैंसे शुरु हुइठ । ओइनके उच्चारण करल वर्णविन्यासहे हम्रे औपचारिक शिक्षा पह्रल थारुहुक्रे नैबुझ्ठी । टबे टे नेपाली वर्णविन्यासमे लिखेपरठ ।

पुर्खाहुक्रे हम्रीहिनहे प्राकृत उच्चारणयुक्त थारु भाषा सिखाइले बाटै । हम्रे फेन उहे रुपमे अइना पुस्ताहे सुम्पेपरना हो । थारु भाषामे लिख्ना कहिके तत्सम शब्दके कुह्रियाके किल थारु भाषा नैबनी । कथ्य भाषाहे आधार बनाके झर्रो लेखाइमे कुछ थारु भाषाके लेखकहुक्रे लागल बाटै ।

झर्रो भाषाके बहस थारु भाषामे किल हुइल नाइहो । २०१३ सालमे डा.तारानाथ शर्मा, कोशराज रेग्मी, चुडामणि रेग्मी, गणेश भण्डारी, बल्लभमणि दाहाल, बालकृष्ण पोखरेल झर्रोवादी आन्दोलन शुरु करलैं । उ आन्दोलन कुछहे बाकस लग्लेसे फेन प्रतिष्ठित हुइल । यी आन्दोलनके सकारात्मक प्रभाव ओ भाषा फेन सिखेपरठ ।

जस्टे जिभ ओस्टे भाषा

भाषाक् प्रकृति नैबुझके बोल्बो, लिख्बो या पह्रबो टे अनर्थ हुइठ । थारु लोकके जिभ ‘ट’ वर्गके मूर्धन्य वर्णके किल उच्चारण करठ । ‘त’ वर्गके दन्त्य वर्ण उच्चारण नैकरठ । थारुहुकनमे  नेपाली भाषाके प्रभावमे परके दन्त्य वर्णके उच्चारण ओ प्रयोग अत्यधिक ओ अस्वाभाविक रुपमे बह्रल बा ।

थारु अभिभावक अपन छावाछाइसँग नेपालीमे बाट करना अभ्याससे थारु भाषामे राह (डढेलो) लागल बा । थारु बोलेबेर फेन बीचबीचमे मिलाइल नेपाली शब्दसे भाषा कुरुप बनल बा । टबे थारु पहिचान जोगाइक लाग ठेट भाषाके प्रयोग करहीपरठ ।

यी पङ्तिकार अपन शिक्षण अवधिमे उप्पर कक्षाके थारु छात्र/छात्राहुकनसे टमान विषयके उत्तरमे थारु लोकजिभके स्वभाव अनुसार शब्द लिखल भेटैले बा । ओइने कथिनाइ (कठिनाइ), धिलाइ (ढिलाइ), बोतबिरुवा (बोटबिरुवा), दम्फु (डम्फु), नातक (नाटक), क्रेटा (क्रेता), असिमिट (असिमित), निर्नय (निणर्य), ढरती (धरती) लिखल भेट्लमे मन छटपटाए । मने, हम्रे भाषाशास्त्रके आधारमे यकर अध्ययन करब कलेसे किल यथार्थ बुझे सेकजाइ ।

टरे बुन्डा (थोप्ला) ढरना वर्ण ‘ड’ ओ ‘ढ’ र उच्चारण थारु भाषामे ‘र’ हुइठ । नेपाली भाषामे अभ्यस्त हुइल ओ रमाइल किल ‘ड’ ओ ‘ढ’ उच्चारण करठै । थारु ओ नेपाली भाषाबीच अइसिन ढेर फरक बा ।

मै भेटाइल उ विद्यार्थीके लेखाइसे ठीक विपरित अचेल थारु भाषाके पत्रपत्रिका, पुस्तक, सञ्चारमाध्यम ओ बोलचालमे दन्त्य वर्णके प्रयोग बह्रल बा । ‘तर’ ‘र’ ‘अनि’ जैसिन नेपाली शब्दके प्रयोग फेन बह्रल बा । यिहेकारण ठेट भाषा बिग्रटी गिल बा ।

भाषा शुद्ध, सरल तथा बुझ्ना हुइपरठ । तसर्थ कथ्य भाषामे सुन्ना वर्ण ओ ठेट शब्दके प्रयोग करलेसे बालमस्तिष्कहे सहजिल हुइ । भाषाके शब्द सामथ्र्य फेन बह्रठ । अन्य भाषामे फेन आगन्तुक शब्दहे बिगारके प्रयोग करल बा । जस्टे अंग्रेजीके बोटल नेपालीमे बोतल हुइठ । अंग्रेजीके क्याप्टेन नेपालीमे कप्तान, अंग्रेजीके टोबाको नेपालीमे तम्बाकु हुइल बा । संस्कृतमे दन्त्य रहल हिज्जे ‘खात’, ‘स्थूल’ ओ ‘तहलनम्’ नेपालीमे मूर्धन्य वर्णके ‘खाल्टो’, ‘ठूलो’ ओ ‘टहल्नु’ हुइल ।

यी शब्द ध्वनिके परिवर्तनके प्रश्नमे किल नैहुके अब्बे झर्रोवादी ओ आधुनिकतावादी थारुबीच हुइल मूर्धन्य ‘ट’ ओ दन्त्य ‘त’ मे हुइल परिवर्तनके उदाहरण फेन हो । अंग्रेजीके ‘ट’ ओ ‘ड’ दन्त्य ‘त’ ओ ‘द’ मे ओ संस्कृतके ‘त’ नेपालीमे ‘ट’ मे किन परिवर्तित हुइल ? झर्रोवादी ओ आधुनिकतावादी थारुबीचके भाषा विवादके उत्तर यम्हे बा ।  

प्रत्येक भाषामे अपन अपन ढंगके ध्वनि, वर्ण ओ व्याकरण रहठ । ‘नेपाली सरल व्याकरण’हे आघे राखके ‘थारु लिरौसी व्याकरण’ लिखके थारु व्याकरण सरल नैबनी । प्रत्येक मातृभाषी दोसर भाषासे सापटी लेकल शब्दके हिज्जे अपन भाषाके व्याकरण (जिब्रो) अनुरुप करल पाजाइठ । कौनो फेन भाषा दोसर भाषाके ध्वनिसे प्रभावित नैरहठ ।

भाषाविदहुकनके लाग साहित्यिक भाषासे ग्रामीण बोली महत्व राखठ । थारुसे बोल्ना ‘पिट्टर’, ग्रीकमे बोल्ना ‘पाटर’ ओ संस्कृतमे बोल्ना ‘पितृ’के उच्चारणमे भिन्नता बा ।

दक्षिणी अप्रभंश भाषामे ‘ष’ के उच्चारण ‘ख’ या ‘क्ख’ हुइठ । ऋषिहे थारु भाषामे रिखि कहल कारण उहे हो । पूर्वी अप्रभंश भाषामे ‘य’ के उच्चारण ‘ज’ तथा ‘क्ष’ के उच्चारण ‘ख’ या ‘क्ख’ हुइठ । ‘यक्षिणी’हे थारु भाषामे ‘जाख्नी’ ओ ‘योगी’हे ‘जोग्या’ कहल कारण फेन यिहे हो ।

टरे बुन्डा (थोप्ला) ढरना वर्ण ‘ड’ ओ ‘ढ’ र उच्चारण थारु भाषामे ‘र’ हुइठ । नेपाली भाषामे अभ्यस्त हुइल ओ रमाइल किल ‘ड’ ओ ‘ढ’ उच्चारण करठै । थारु ओ नेपाली भाषाबीच अइसिन ढेर फरक बा । संस्कृत ओ नेपाली भाषाके युधिष्ठिरहे थारु भाषामे जुढिष्ठिल, कुन्तीहे कोटारिन माइ, दूर्योधनहे जिरिजोढन काहे कहिगिल ? यहाँ कौनन भाषिक सिद्धान्तसे यी परिवर्तन नानल ? अइसिन विवाद समाधानके लाग थारुहुकनबीच टमान चोट औपचारिक गोष्ठी हुइल हो ।

२०५५ सालमे ‘गुर्बाबा थारु शब्दकोश’ निर्माण करेबेर काठमाडौंमे ओ मंसिर २०५९ मे दाङसे लेके कञ्चनपुरसम ६ जिल्लाके थारुहुक्रे भेला हुइल रहिट । जेम्ने नेपाली ओ हिन्दी सिखेक लाग थारु भाषामे ‘त’ वर्ण समावेश करेपरना तर्क आइल रहे । अन्य भाषा सिख्ना थारु भाषाके वर्ण, व्याकरण ओ हिज्जे विगर्ना तर्क कौनो हालतमे स्वीकार्य हुइ नैसेकी । थारुहुक्रे अपन भाषा बोलेबेर नेपाली वर्ण ओ शब्द मिलाके खिचरी बनैना उपयुक्त नैहुइ ।

टमान परिवारमे अपन सन्तानहे मातृभाषा सिखैनाके साट्टा नेपाली भाषा सिखैना बह्रल प्रवृत्तिसे मातृभाषा लोप हुइल डा. माधवप्रसाद पोखरेल उल्लेख करले बाटै । पुर्खा थारुके जिभके कथ्य भाषाहे लेख्य रुप डेहेपरना उहाँक् कहाइ बा । मने, नेपालीमे जस्टे नैकरनाचाही उहाँ बटैठै ।

२०६५ सालमे थारु लोकवार्ता तथा लोकजीवनबारे एक बरसक् अनुसन्धान करेबेर डंगौरा थारु बोलीमे २९ ठो व्यञ्जन ओ आठ ठो वर्ण प्रयोगमे आइल मिलल रहे । मने, अन्य वर्ण नैअइनाके कारण शिक्षित थारुहुक्रे अन्तर्वार्तामे थारु बोलेबेर नेपाली शब्द ओ नेपाली बोलेबेर थारु शब्द मिलैना हो । अइसिन बानीहे भाषाशास्त्रमे ‘कोड स्विचिङ’ ओ ‘कोड मिक्सिङ’ कहिजाइठ ।

माधवप्रसाद पोखरेलके अनुसार कौनो फेन भाषाके वर्ण सीमित रहठ । थारु ओ नेवारी भाषीके लाग ‘ट्’ वर्गके वर्ण हो कलेसे ‘त्’ वर्गके संवर्ण रहठ । भाषाके वक्ताहुक्रे वर्णके फरक थाहा पैठै मने, संवर्णके फरक थाहा नैपैठै । वर्ण वर्णमालामे लिखजाइठ, संवर्ण नैलिखजाइठ ।

जस्टे, नेपालीके ‘क्’ ओ ‘ख्’ अंग्रेजी भाषी समान सुन्ठै । नेपाली भाषाके ‘अ’ अंग्रेजी भाषी औरे सुन्ठै । भाषाके वक्ताहुक्रे अपन भाषा लिखेबेर ओ बोलेबेर अपन भाषाके वर्णके आलेखनमे गल्ती नैकरठै, संवर्णके या अपन भाषाके संवर्णमे फेन नैरहल ध्वनिके आलेखनमे गल्ती करठै । थारुहुक्रे करटीरहल यिहे हो ।

टमान परिवारमे अपन सन्तानहे मातृभाषा सिखैनाके साट्टा नेपाली भाषा सिखैना बह्रल प्रवृत्तिसे मातृभाषा लोप हुइल डा. माधवप्रसाद पोखरेल उल्लेख करले बाटै । पुर्खा थारुके जिभके कथ्य भाषाहे लेख्य रुप डेहेपरना उहाँक् कहाइ बा । मने, नेपालीमे जस्टे नैकरनाचाही उहाँ बटैठै ।

नेपाल राष्ट्रिय प्रज्ञा प्रतिष्ठानके नेपाली भाषा अधिगोष्ठी–०३३ के प्रतिवेदनमे डा. हर्क गुरुङ (०३३:१०) लिख्ठै, ‘कौनो जातिके इतिहास बुझेक लाग जातीय, स्थानीय भाषामे बोल्ना शब्द बर लाभदायक रहठ । अतः आमजनता किनार पुगके भाषाके प्रयोग करेपरठ ।’ यी उद्गार अनुसार जनबोलीमे इतिहास रहल ओरसे कथ्य भाषाहे लेख्य रुप डेहेपरठ ।  

प्रज्ञा प्रतिष्ठानके तत्कालिन कुलपति सूर्यविक्रम, तत्कालिन उपरुकुलपति लैनसिंह वाङदेल लगायत फेन भाषाके इतिहास लिख्ना पुर्खाके जिभसे बोल्ना शब्द ओ उच्चारणहे स्वीकारे परना बटैठै । उहेकारण थारु शब्दमे विकृति नानके भाषिक इतिहास मासे ओ औरेक नक्कल नैकरेपरल ।

जमानामे अशोक सम्राट फेन जनभाषाहे राजकीय भाषा बनाके जनबोलीके सम्मान करले रहिट । सन्त कबीर दास ओ विद्यापति भारतमे लोकभाषाके वकालत करटी उच्च स्तरीय लोक साहित्य रचले रहिट । बुद्धिसागरके कर्नाली ब्लुजभित्तर ‘छुट्टिदैथेँ, आको हुम् (पृ.८) फोटा, बा, आइमाई, बाज्या, डाक्दर, मरिगया सप्पै, कालिकोटाँ, हेलिकप्टराँ सिट पाइन्या छ कि ? (पृ.१०), गाथिस् (पृ.१५) जैसिन अनगिन्ती शब्द बाटै । कर्नाली ब्लुजहे अस्टेहे शब्दसे फेन उचाइमे पुगाइल हो ।

भाषा कैसिक मरठ ?

बहुसंख्यकसे बोल्ना भाषाके कारण मातृभाषा कैसिक लोप हुइठ कना नजिर विश्वके अन्य देशमे फेन पाजाइठ । अस्टे«लियाके उत्तरी तटीय क्षेत्रके प्याट्रिक नदुजुलु आदिवासीमध्ये तीन जहनमे एक जाने किल स्थानीय ‘माटिके’ भाषा बोल्ठै । अंग्रेजी लगायत मुख्य भाषाके कारण सब देशमे यी समस्या डेखाइल बा । मूल भाषा फेन शुद्ध बोले नैसेक्ना स्थिति कयौँ देशमे बा ।

वास्तवमे अंग्रेजी टमान भाषाके अस्तित्व मेटैले बा । मने अंग्रेजी अप्नही अपनमे पहिचान खोजटी बा । ल्याटिन फ्रेन्च ओ जर्मनीलगायत भाषाके ढेर संमिश्रणसे ठेट अंग्रेजी अनौठा लागठ । लेखक मार्क एब्लीके शब्दमे अइसिन अभ्याससे मौलिकता गुमठ ।

एक दशक आघे एब्लीसे भाषा कैसिक शब्द–शब्द कैके गुमठ कना बारे अध्ययन सुरु करलैं । उहाँ क्यानाडाके क्युबेकस्थित एक बूह्राइल जनियासे अध्ययन शुरु करलै । उ महिला स्थानीय अमेरिकीहुकनहे अबेन्की भाषा सिखाइबेर उहाँक् भाषामे अर्थ बुझाइ परल ओरसे अपन मातृभाषा बिस्राइल एब्लीके टिप्पणी बा (कान्तिपुर, ८ माघ०६१) ।

१८ औँ शताब्दिओर दक्षिण अफ्रिकासे आइल मोरिससके हब्सीहुकनमे राज्यके प्रमुख भाषा सिख्ना होडबाजी  चलल । परिणामतः ओइनके मातृभाषा लोप हुइल ओ नयाँ विकृत ‘फ्रेञ्च क्रिओल’ भाषा विकसित हुइल । अभिनसम फेन ओइनके सम्पर्क भाषा क्रिओल हुइल बा ।   

दाङके नवलपुरके प्रेमबहादुर कुसुन्डा १०/१२ बर्षके उमेरमे वन छोरलैं । मगर्नीसँग भोज करलैं । अपन मातृभाषा बोल्ना मनै नैपाके नेपालीमे बाट करे लग्लैं । २०५३ सालमे उहाँ ३६ प्रतिशत कुसुन्डा भाषा बिस्राइल पागिल ।

नरेशप्रसाद भोक्ताके अनुसार भारतमे हिन्दीके प्रभाव सन् १८५० पाछे डेखाइल, जोन कारक तत्व अंग्रेज शासन रहे । बिहारके मिथिला क्षेत्रमे मगही, भोजपुरी, अवधी ओ ब्रज भाषा लिख्ना कैथी ओ तिरहुती लिपिके साथसाथे देवनागरी लिपिके प्रयोग होए । राजस्व सदर बोर्डसे सन् १८५२ मे सरकारी प्रशासक, पटवारीहुकनहे प्रपत्र कैथी लिपिमे नैलिखके देवनागरी लिपिमे लिख्ना कडा निर्देशन डेलैं ।

सन् १८६० मे सरकारसे पाठ्यपुस्तक लगायत सक्कु सरकारी अभिलेख देवनागरीमे लिख्ना अनिवार्य करगिल । उपाछे मैथिली, मगही, भोजपुरी, अवधी, बघेली, छत्तिसगढी, ब्रज, कन्नौजी, बुन्देली भाषी अपन भाषिक अस्मिता बिस्राके लोकभाषाके सट्टामे शिष्ट भाषा स्वीकार करल (‘दायित्वबोध’से नेपालीमे अनुवाद) ।

माधवप्रसाद पोखरेलके अनुसार जातिगत भाषिक तत्वहे महत्व नैडेके शक्तिशाली भाषाके प्रभावमे परल कमजोर भाषाभाषी अपन नैसर्गिक प्रवृति बिस्राइ लागल बाटै । ढिरेसे ओइनके मातृभाषा लोप हुइटा ।

दाङके नवलपुरके प्रेमबहादुर कुसुन्डा १०/१२ बर्षके उमेरमे वन छोरलैं । मगर्नीसँग भोज करलैं । अपन मातृभाषा बोल्ना मनै नैपाके नेपालीमे बाट करे लग्लैं । २०५३ सालमे उहाँ ३६ प्रतिशत कुसुन्डा भाषा बिस्राइल पागिल । चार वर्षपाछे पुनः भेटल बेला कुसुन्डा भाषाके शब्द पुछ्लेसे (बाँकी ३ पेजमे) उहाँ बरघचिक समझे परल पोखरेल उल्लेख करले बाटै (२८ वैशाख २०६१, कान्तिपुर) । हेटौडाके ३० प्रतिशतल चेपाङहुक्रे किल मातृभाषा बोल्ठै ।

यी उदाहरणसे थारुहुकनहे ‘नदुजुलु’ बनके अपन भाषाहे ‘माटिके’ ओ ‘अबेन्की’ मे रुपान्तरण नैकरना ओ थारु शब्दक् अस्मिता नैबिस्रैना संकेत करठ । कुछ थारुहुक्रे आधुनिकताके दौडमे ‘बुह्राइल मरे, भाषा सरे’ जैसिन उखान अर्थके अनर्थ लगाके थारु भाषाहे अन्य भाषाके आडमे टिकल प्रमाणित करे लागल बाटै । यिहेकारण डा. रामविक्रम सिजापती लिख्ठै, ‘थारुहुकनके अपन भाषा रलेसे फेन ठाउँ अनुसारके भाषाके प्रभावमे परके अइनके अपन भाषामे विकृति आइल बा ।’ (भाषा प्रतिवेदन, ने.रा.प्र.प्र.)

अइसिक विकृति आइल उदाहरण टमान बा । रामभरोस कापडी भ्रमर फागुन २०६१ के गरिमा मासिकमे लिख्ठै, ‘संग्रहमे आइल थारु लोकगीतमे अधिकांश मैथिली लोकगीत डेखाइठ । मिथिलाञ्चलके थारुहुकनके कौनो छुट्टे भाषा हुइ कनामे विद्वानलोग एक मत नैहुइट । पश्चिम नेपालके थारुहुकनके भाषा बुझ्ना ठोरभे कर्रा बा ।’

स्वतन्त्र भारतके प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद अपन पुस्तक ‘चम्पारन मेँ महात्मा गान्धी’ मे फेन थारुहुक्रे भोजपुरीजस्टे बोलल उल्लेख करले बाटै । घन बस्ती रहल चम्पारनके थारुहुकनके भाषा भोजपुरी नैरलेसे फेन ओस्टे सुनजिना उहाँ लिख्ले बाटै ।

झर्रोवादी संघ¥याहुक्रे युनेस्कोसे हरेक समुदायके ‘भाषा सहितके मौखिक परम्परा’हे ‘अमूर्त सांस्कृतिक सम्पदा’ परिभाषित करल बा । नेपाल यी महासन्धिके पक्ष राष्ट्र बनके राष्ट्रिय संस्कृति नीति–२०६७’ जारी करले बा । आईएलओ–१६९ भाषासहितके मौखिक परम्पराहे स्वपहिचानके पहिल तत्व मानले रहे । टबेमारे अपन जिभहे मातृभाषामे अभ्यस्त करी । अपन सन्तानसँग मातृभाषामे बाट करी । थारु भाषा बोलेबेर अन्य भाषाके शब्द घुसाके ‘कुरुप’ नाबोली । अइसिके भाषा पुस्तान्तर करना सघाइठ ।

    साभारः हिमालखबर डटकम

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