थारु राष्ट्रिय दैनिक
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[ वि.सं २२ बैशाख २०८१, शनिबार ]
[ 04 May 2024, Saturday ]

थारू समुदायमे बालपर्व ‘गुरही’

पहुरा | २९ श्रावण २०७८, शुक्रबार
थारू समुदायमे बालपर्व ‘गुरही’

संस्कृति हरेक समुदायके आपन मौलिक पहिचान हो । कौनो फेन जातिके जातीय पहिचान कला, संस्स्कृति ओ भाषासे जोडल रहठ् । थारु समुदायमे फेन अस्टे ढिउर संस्कृति रहल बावै । जौन अब्बे प्रायः लोप हुइना अवस्थामे बावै । कुछ रुपमे हुइलेसे फेन उ संस्कृति बाह्य संस्कृतिके प्रभावमे मौलिकता उपर फेन प्रश्न उठ्टी रहल बा । अस्टे ढिउर थारु समुदायके द्विविधा रहीके आ–अपने मेरके तर्क वितर्कसे समाज भित्रे अन्यौलके स्थिति सिर्जना हुइल यथार्थ फेन हमारसंग बा । उ मध्ये थारु समुदायके एक महत्वपूर्ण चाड ‘गुरही’ ।

का हो गुरही ?

‘गुरही’ थारु समुदायके एक बाल पर्व हो ओ यिहीहे ढिउरजाने लुटो फेक्ना पर्वके रुपमे फेन लेठै । यी पर्व सावन महिनाके शुक्ल पक्षके पञ्चमीके दिन परठ् । यिहे दिन हिन्दूहुक्रनके नामपञ्चमी परठ् ओ अवधी समुदायके गुडिया पर्व फेन परठ् । उहे कारणसे ‘गुरही’ ओ नाग पञ्चमी अक्के हो कना ढिउरके बुझाई रहल बा । मने यी संयोग किल हो वास्तविकता भर नाइहो । थारु समुदायके ‘गुरही’ पर्वके अपने सामाजिक मूल्य ओ मान्यता बा कलेसे नागपञ्चमीके अपने बा । नागपञ्चमीमे साप ओ बिषालु किराके पूजा करजाइठ् मने गुरहीमे न सापनके पूजा हुइठ् न टे बिषालु बिच्छी, गोजरके । यी दुनु पर्वके मूल्य मान्यता ओ लोक बुझाई फेन अलग अलग रहल ओरसे यी भिन्न भिन्नै पर्व हो कना बात बुझ्न जरुरी रहल बा ।

थारु समुदाय प्रकृति पुजक अथवा प्राकृत धर्म समूह भित्तरके एक जाति हो । प्रकृति प्रतिविश्वास कैना समुदाय रहल ओरसे प्राकृत धर्म नै थारु जाति हो प्राचीन धर्म हो कना बात ढिउर इतिहासकार उल्लेख करले बाटै । मने पाछेक समयमे हिन्दू धर्मके प्रभावसे अपनेहुक्रे हिन्दू हुइल दावी करुइयनके संख्या फेन बा । ओकर कारण कतिपय हिन्दू धर्मके पौराणिक मान्यता फेन अनुसरण स्वभाविक लागठ् । मिश्रित बसाईके कारण फन एक औरेक धर्म, आस्था ओ संस्कृतिप्रति सद्भाव तथा समान व्यवहारके कारण अन्य समुदायके सांस्कृतिक प्रभावसे कतिपय संस्कृतिहरु थारु समुदायके लाग फेन मौलिक होसेकल बा ।

‘गुरही’ पर्व एक गुरही (गाइने किरा) से जोडल बा । गुरही एक उड्ना किरा हो । यी मच्छर, भुस्ना लगायत शुक्ष्म किराहे खैना करठै । यिनीके संरक्षणसे मच्छर (लामखुट्टे) ओ भुस्ना लगायत किराके कमी हुइना रोगव्याधी कम लाग्न बैज्ञानिक धारणा बा । ओ यिहे किराके पूजासे तमान मेकरे रोग व्याधी कम हुइना जनविश्वास फेन थारु समुदायमे रहल बा ।

लोकमान्यता

गुरही पर्वसे सम्बन्धि एक लोककथा फेन बा । तबक जवानामे नरकमे तमान मेरके किरानके संख्या बह्रल ओ रोग फेन फैलल् । रोगके कारण मनैनके अकालमे मृत्यु हुइ लागल । स्वर्गलोकके देउताहुक्रे फेन आश्चार्य चकित परलै ओ सक्कु बात बुझक लाग एक बालिकाहे पृथ्वीलोकमे पठैलै । ओ, उहाँ एक साधारण परिवार जन्म लेली । ओहकान बाल्यकाल बहुट रमाइलोसे बिटल । परिवारमे सक्कुजाने मजा मानिट । मने, ओहकान भौजी भर डेखके सहे नाइ सेकी, बहुट दुःख डिइन् । उ भर सहके बैठी ।

उहाँ छोटछोट बालबालिकाहुक्रनसंग खुब खेल्न मन पराइट ओ खेलिट । उ ढिउर माया फेन करिट । उहाँहे बालबालिकाहुक्रे फेन ढिउर माया करिट । उहाँ कपडाके ‘गुरही’ खुब मन पराइट । मने, उहाँहे डेखके सहे नाइ सेक्ना ओहकान भौजी हरदम गुरही कबु नुकाडेना कबु फेकडेना करिन् । अइसीक करेबर उहाँ ढिउर दुःखी हुइट ओ कुछ कहे नाइ सेकिन् । भौजीक डरसे कबु डेहरी (धान राख्ने भकारी) भित्तर नुकाइट, कबु घरक कोनुवामे । अइसीक नुकैलेसे फेन हरदम भौजी फेकडेना करलपाछे एक दिन आपन जस्टे किराके उत्पत्ति करली । गुरही जस्टे सुन्दर सुन्दर किरा हावामे उडे लागलमे उ ढिउर खुशी हुइट । छिमेकी बालबच्चाहुक्रे फेन रमाइ लग्लै । यहोर गुरही मच्छर, भुस्ना लगायत शुक्ष्म किराहे खैना ओ मारे लग्लै । जिहीसे मच्छर, भुस्नाके प्रकोप फेन कम हुइल हो ओ रोगव्याधी फेन कम हुइल ।

यहोर मनैनके फेन अकालमे मृत्यु रोकगैल । ओ, उहाँ फेनसे स्वर्गलोक जाइ पर्ना हुइल । ओहकानसंगके उठ बससे ओहकान बालसखाहुक्रे अत्रा मोहित होसेकल रहिट कि उकहीनहे कौनो हालतमे नाइ छोड्ना हुइलै । जाइ नाइ डेना जिद्दी करे लग्लै । मने, उहाँ जैही पर्ना हुइल ओरसे कोइ फेन रोके नाइ सेकल ओ जैना बेलामे गाउँके सक्कु बालबालिकाहुक्रे उपहार स्वरुप गुरहीके प्रतीक गुडिया ओ डगरामे भुख लग्लेसे खाइक लाग चना लगायतके खैना चीज डेके बाजा सहित बिदाई करलै । घर छोडके जाइबर उहाँहे आपन गुरही सम्झठी ओ डाइहे डेहरीटरे राखल बाटु उ मजासे राखडेहो, स्याहार डेहो कहिके यी यी गीत मार्फत सन्देश फेन पठैली जौन अइसीन बा:

‘दाङ बोले टिम्की, महदेवा बोले ढोल
डेहरिक गोरटिर मोर गुरही… ।

ओत्र किल नाइहोके, स्वर्गलोक जाँइबर उहाँ ढिउर ठाउँ बिश्राम करटी जैठी । इमलीके रुखुवाटरे बैठ्के आपन गुरहीहे बिश्राम करैटी:

‘दाङ बोले टिम्की, महदेवा बोले ढोल
आमलिक रुखवाटिर.. गुरही ।

अइसीक भोक, प्यास, दुख कष्ट झेल्टी उहाँ स्वर्गलोकमे हाजिर हुइली ।

कैसिक मनाजाइठ् गुरही ?

शुक्लपक्ष चौथीके चौकीदार गाउँमे हाँक परठै । ‘घुघरी भिजाउ रे घुघरी भिजाऊ’ । गाउँके सक्कुजे साझा चनाके घुघरी (कोहरी, चानक एक विशेष प्रकारके परिकार) भिजैठै । औरे दिन पञ्चमीके दिन साँझ चना पकैठै । ओ गाउँके सक्कु घरके छोटछोट बालिकाहुक्रे कपडाके टुक्राके गुरहीके प्रतीकके रुपमे गुडिया, चनाके घुघरी (चनाके एक बिशेष परिकार) चना नाइ रलेसे केराउ अथवा दलहन बालीके कोंहरी (घुघरी) ओ लवण्डाभर सोँटा (कोंर्रा) लेके तयार हुइठै । सोँटा काँसके एक झप्पे अथवा दुई झुप्पे रहठ् । बालबािलकाहुक्रनहे लौव लौव कपडासे पुतली जस्टे सजाजाइठ् ।

साँझके गाउँके चौकिदार हाँक लगैठै । ‘अरे ’ गुरही अस्राइ चलो रे, गुरही अस्राइ’ तब गाउँके बालबालिका घर–घरसे नुइया, टठियामे गुरही ओ घुघरी लेके निक्रठै । यहोर गुरही अस्राइ (विसर्जन, सेलाउन) निक्रठै ओ गाउँके घरमुली भन्सरिया टठिया ओ सुप्पा ठटैटी ‘खाँज खुजली सक्कु लैजा, रोग बिरोख सक्कु लैजा’ (लूतो सक्कु लैजा, रोगव्याधी सक्कु लैजा) कहटी घर भित्तरसे निक्रठै ओ डगरासम गुरहीसंगे रोगव्याधी पठाइ अइठै । ओस्टके पृथ्वीलोक छोडके स्वर्गलोक जाँइबर उ चेलीसे पोखल विरहके भावहे गीत मार्फत अइसीक गैठै ।

‘दाङ बोले टिम्की महदेवा बोले ढोल,
आमलिक रुखवातिर.. गुरही ।

जाब गौर्ही (गाउँभरके गाइ–गोरु जम्मा हुइना ठाउँमे) गाउँ भरिक बालबालिका ओ कन्या जम्मा हुइठै । तब गाउँके पन्हेरवा एकठो निशाना गाडठ् । ओकर एक पाँजर सक्कु लवण्डाहुक्रे पंक्तिपद्ध कैके ठ¥याइठै । यहोर लवण्डीहुक्रनहे नुइया, टठियामे लानल गुरही वहाँ फेक्ठै ओ लवण्डाहुक्रे गुरही सोंटासे ठटैटी ‘दे घुघरी, दे घुघरी’ कहठै । ओकरपाछे घुघरी मागे लग्ठै । छोटछोटा बाबुहुक्रे आपन डाई, दिदीहुक्रनके सहयोगमे सक्भर ढिउरजनहनहे पुग्ना मेरके घुघरी बाँट्र्ठ ओ बाट्टी गाउँके भुइह्यारथान (गाउँभरके देउथान) मे जैठै वहाँँ गाउँके ग्राम देउताहुक्रनहे प्रसाद चह्राके मर्वाके छाप्राउपर छिटके घर अइठै । ओ घर आके फेन आपन घरउपर, अनाज राख्न धनसार ओ बारीमे लगाइल टिनाटावनमे छिट्ना करठै । अइसीक करलेसे घरमे भूतप्रेत नाइ अइना, रोगव्याधी ओ लुतो नाइ लग्ना, भकारी धानमे बृद्धि हुइना । बारीके तरकारी फर्ना जैसिन जनविश्वास रहल बा ।

ओस्टके लवण्डाहुक्रनसे ठटाइल लैगिल सोंटा कोइ फेन नाइ डेख्ना मेरके नुकाके लानजाइठ् । उ फेन तरकारी बारीमे बाँधजाइठ् । अइसीक करलेसे किरा फट्यांग्र्रा नाइ लग्ना ओ फल फेन मजा लग्ना बात थारु समुदायमे सामाजिक धारणा रहल बा । ओस्टके उहे सोंटाहे धूप लगाके घोटके घाउ, खटिरामे सञ्चो हुइना, पेट दुखाई ओ जुरी आइलमे फेन यिहीसे औषधीके काम कैना जानकारहुक्रे बटैठै । अइसीक गुरही पर्व विधिवत् ओराजाइठ् । यी बिशेष कैके बालबालिकाहुक्रनके एक पृथक पर्व हो । जौन पर्व लुतो फेक्नासे लेके बालीनाली सप्रना मान्यताके साथ मनाजाइठ् ।

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