थारु राष्ट्रिय दैनिक
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थारु समुदायके घर उत्तर–डख्खिन

पहुरा | १२ माघ २०७८, बुधबार
थारु समुदायके घर उत्तर–डख्खिन

प्राचीन वास्तुशास्त्र अनुसार पूजा ओ भान्सा कोठा निर्माण

विश्वराज पछल्डङ्या
दाङ, १२ माघ ।
थारु समुदायहे शिक्षामे पाछे परल समुदायके रुपमे लेजाइठ । यी समुदायमे रहल धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व ओ विशेषता बाहेर आई नइसेक्के ओर समुदायसे बुझ्न अवसर पाइल नइहो । थारु समुदायके घरेम हिन्दु धर्मावलम्बीसे मन्ना सक्कु देवीदेवताके प्रतिक धारल रहठ । ओटरा केल नइहुके थारु समुदायहे पहिलेसे प्राचीन बास्तुशास्त्रके ज्ञान रहे कना बाट ओइनके घरेक बनावट, पूजा कैना विधि, पूजा ओ भान्सा कोठा निर्माण कैना पद्दतीसे प्रष्ट पारल बा ।

और समुदायसे घर बनाईबेर बास्तुशास्त्र पढल ओ बुझल पुरोहितके सहायता लेहे पर्ना रहठ, मने थारु समुदायके जे कोई बास्तुशास्त्र अनुसार अपन घर बनैटी आइल बटै । थारुहुकनके प्रायः सक्कुुहुनके घर पूर्व–पश्चिम मोहडा रहल उत्तर–दक्षिणके घर रहठ ।

उत्तर–दक्षिणके घर तथा पूर्व ओ पश्चिम ढोका रहल घर बनैनासे थारु समुदाय पहिलेसे बास्तुशास्त्रमे विश्वास राखे कना स्पष्ट हुइठ । घरके दक्षिणी भागमे बैठक कोठा, उत्तर–पूर्वमा देवताके कोठा, ओकर दक्षिणमे सुत्न कोठा, उत्तर–पश्चिम कोठामे भान्सा बनैना चलन थारु समुदायमे अभिनफे विद्यमान बा ।

मनैनके मृत्यु हुइलेसेफे शव पश्चिम ढोकासे केल बाहेर निकर्ना, क्रियापुत्रीसे पश्चिमी ढोकाकेल प्रयोग कैना जैसिन पौराणिक चलनफे थारु समुदायमे रहटी आइल बा । घरके दक्षिण–पूर्व कोठामे भैँसक रक्षक ‘ढम्रज्वा’ धारजाइठ । कलेसे, पूर्वके आगनमे भवानी देवीहे स्थान डेहल रहठ । ओस्टेक करके, घरेक पूर्वओर अपन कुल देवता रख्न मन्दिर (मर्वा) बनैना प्राचीन चलन रहटी आइल बा ।

थारु समुदायके पौराणिक मान्यता अनुसार घरके पश्चिम–दक्षिणओर सकभर सुत्न कोठा नइबनाजाइठ । देवताहे तला हुइल घरेम नइरख्न परम्पराफे थारु समुदायमे बा । मने, पछिल्का समय देवताके लाग तला रहल घर बनाई लागल बा । वास्तुके अर्थ आवासगृह अर्थात् घर ओ शास्त्रके अर्थ हुइठ अनुशासन ओ निर्देश । यसर्थ, ‘वास्तु शास्त्र’ कना घर वा कौनो संरचना कैसिक निर्माण कैना कना बाटके निर्देशहे बुझजाइठ । वास्तु शास्त्रहे आधुनिक समयके विज्ञान ओ आर्किटेक्चरके प्राचीन स्वरुप माने सेक्जाइठ । हिन्दु धर्म अनुसार वास्तुशास्त्रके पालन करके बनाइल घरेम बैठेबेर सुख, शान्ति एवं समृद्धि प्राप्त हुइठ कना विश्वास बा ।

थारु घरके प्रवेशद्वार पूर्व या पश्चिममे केल

थारु समुदायके घरके प्रवेशद्वार पूर्व वा पश्चिम केल बनाजाइठ । सक्कु जैसिन घर उत्तर–दक्षिणके हुइना ओरसे प्रवेशद्वारफे पूर्व वा पश्चिम बनैना चलन बा । पूर्व वा पश्चिम मुलद्वार हुइलेसेफे दुनु ओर एक–एक ठो ढोका रख्न अनिवार्य मानजाइठ । शुभ साइत पूर्वके ढोकासे करजाइठ कलेसे मृत्यू संस्कारके काम पश्चिम ढोकासे केल कैना चलन बा ।

उत्तर–पश्चिममे भान्सा कोठा

वास्तुशास्त्र अनुसार भान्साके पवित्रता तथा स्वच्छता कौनो मन्दिरसे कम नइरहठ । टबमारे भान्सा बनाईबेर बास्तुशास्त्र अनुसार बनाईबेर उत्तम रहठ । बास्तुशास्त्र अनुसार, भान्सा घर दक्षिण–पूर्वी क्षेत्रमे बनैना उत्तम मानजाइठ, मने ठाउँ नइहुइलेसेफे उत्तर–पश्चिममे निर्माण करे सेक्जाइठ ।

खाना पकैना ठाउँसे पूर्वी ओ उत्तरी भित्ताहे छुए नइपरठ । थारु समुदायके भान्साफे उत्तर– पश्चिम ओरके कोठामे रहठ । यिहीसेफे थारु समुदायके भान्साफे बास्तुशास्त्र अनुसार मिलल बा कना बुझजाइठ ।
मने, उल्टह्वा थर रहल थारुके घरके मोहडा पूर्व–पश्चिम हुइलसेफे देउता रख्न कोठा दक्षिण–पूर्व ओ भान्सा कोठा दक्षिण–पश्चिमओर रहठ । यी थर रहल थारुके बैठक कोठा उत्तरओर बनैना चलन बा ।

पूर्वी दिशामे कुल देवता ढैना मन्दिर (मर्वा)

हिन्दु धर्ममे पूजासे भारी महत्व बोकल बा ओ श्रद्धा भक्तिपूर्वक कैना यी कार्यके लाग घरमे अलगे पूजा स्थल बनैना करजाइठ । पूजास्थल बनाइबेर ढेर बाटमे ख्याल पुगाई पर्ना रहठ ।

वास्तु शास्त्रमे दिशासे भारी भूमिका खेलठ । कौन कक्ष कौन दिशा पट्टि बनाई परठ वा नइपरठ कना बाट वास्तु शास्त्रमे उल्लेख करल बा । पञ्चभूत लगायत वास्तुशास्त्रमे दिशाफे एक महत्वपूर्ण तथा आधारभूत बाट हो । घर तथा भवन अथवा कौनो निर्माण कार्य करेबेर कौन दिशामे कौन वस्तु रख्न कना बा एकदम महत्वपूर्ण हुई आइठ ।

वास्तुशास्त्रके अनुसार पूर्वी दिशाहे मजा मानजाइठ । पूर्वसे सूर्य उदाइठ, अर्थात नयाँ प्रहरके आरम्भ हुइठ । टबमारे पुरान ओ खराब बाटहे छोरके नयाँ ओ असल बाटहे पछ्याई चहना व्यक्तिहुकनके लाग पूर्व दिशा उत्तम रहठ । सम्वृद्धताके दिशा हो पूर्वदिशा ।

यी समुदायके घरके दक्षिण–पूर्व कोठामे पशुपंछीके रक्षक ‘ढम्रज्वा’ देवता रहठै । कलेसे, पूर्वके आगनमे भवानी देवी घरके पूर्वओर अपन कुल देवता रख्न मन्दिर (मर्वा) बनैना करजाइठ । यिहे मर्वामे घरके कुल देवता धारल रहठै । डसिया, डेवारी ओ टमान पर्वमे यिहे मर्वामे रहल देवताके फे पूजा करजाइठ ।

उत्तर–पूर्वमे देवताके कोठा (डिउह्रार कोन्टी)

थारु समुदायके देउथान उत्तर–पूर्व दिशामे रहठ । यिहे दिशामे बनाइल देउथानमे कुलके सक्कु देवता धारल रहठ । यी कोठाहे थारु समुदायसे ‘डिउह्रार’ कोठा कहठै  । बास्तुशास्त्रसे उत्तर–पूर्व दिशाहे भगवानके दिशा मन्ना हुइल ओरसे थारु समुदायसे पहिलेसे बास्तुशास्त्र अवलम्बन करके घर निर्माण करल प्रमाणित हुइठ ।

यिहे दिशामे कैलाश पर्वतमाला रहल ओ कैलाश पर्वतमालामे शिवपार्वतीके बास हुइना ओरसेफे थारु समुदायसे यी दिशाहे देउथानके रुपमे चयन करल ठोकुवा कैना सेक्जाईठ । उत्तर–पूर्वके कोठाके पश्चिमओर पूर्व मुख पारके डेह्री धारजाइठ । यी डेह्रीहे ‘पटाहा डेह्री’ कहठै । यिहे डेह्रीमे एक ठो झोला टङगजाइठ । उ झोलामे शिव, पावर्ती, ऋषिमुनी लगायतके देवता धारल रहठ । कलेसे, डेह्रीके तल घरके कुल देवतासंगे घर गुर्वाके घोडा राखल रहठ । यी सक्कु देवता पूर्व मुख करके धारजाइठ ।

बास्तुशास्त्रसेफे आठु दिशामन्से यी दिशाहे सबसे पवित्र मानल बा । यी दिशाके सहि सदुपयोगसे पुरुष तथा महिलाहुकनके जीवनमे सुख, शान्ति ओ सम्वृद्धि छइना वास्तुशास्त्रके मान्यता बा । टबमारे पूजा कैना कोठा यी दिशामे रख्न सबसे फलदायी मानजाइठ बा ।

पश्चिम ढोकासे केल शव निकारे पैना मान्यता

उत्तर–पूर्व दिशा देवगणहुकनके दिशा हो कलेसे ओकर ठीक उल्टा दक्षिण–पश्चिम दिशा राक्षसगणहुकनके दिशा हो । यदि तान्त्रिक शास्त्रके पाठ करे परठ कलेसे ओकर कोठाहे दक्षिण–पश्चिम दिशामे रख्न उत्तम रहठ । टबमारे थारु समुदायसे शवहे पश्चिम ढोकासे केल निकर्ना ओ दाहसंस्कारके लाग दक्षिण–पश्चिमओर लैजैना करठै ।

ओस्टेक करके बास्तुशास्त्रसे उत्तरओर शिरानी करके सुटे नइहुइना कहल बा । थारु समुदायसेफे उत्तरओर शिरानी करके कबुफे नइसुत्न करल थारु संस्कृतिके अन्वेषक अशोक चौधरी बटैलै । उहाँ थारु समुदायके घर, पूजा कोठा, भान्सा, देवता रख्न ठाउँ सक्कु बास्तुशास्त्र अनुसार रहल बटैलै । भगवानके पूजाकक्ष यी दिशामे धारेबेर शुभ नइहुइना बास्तुशास्त्रमे उल्लेख बा ।

वास्तुशास्त्र अन्धविश्वास नही, यीफे विज्ञानके एक अंश हो, जिहीसे प्राकृतिक ओ भौतिक ऊर्जाके सम्बन्धहे बुझाइठ ।

आक्रमणसे जोग्ना घरेक भित्तामे हिंस्रक जनावरके चित्र

यी समुदायसे घरके भित्तामे हिंस्रक जनावरके चित्र बनैना करठै । जंगली तथा हिंस्रक जनावरके आक्रमणसे जोग्ना घरके भित्तामे चित्र बनैना करल थारु संस्कृतिके जानकार एकराज चौधरी बटैलै । प्रकृति पुजक हुइल ओरसे थारु समुदायके अधिकांशसे अपन घरेम हिंस्रक जंगली जनावर हात्ती, बाघ, सर्प, घोडा, मयूर, हरिण लगायत जनावरके चित्र बनैना करल उहाँ बटैलै । हिंस्रक जनावरके चित्र बनैलेसे ओइने घर ओ परिवारके सदस्यके रक्षा करठै कना मान्यता बा,’उहाँ कहलै ।

मुगलके आक्रमणसे जोग्ना घर आघे सुँव्वर बध्न चलन

यी समुदायसे घरके आघे सुँव्वर बध्ना करठै । ओइने अपन देवीदेवताहे सुँव्वरके बली डेठै ।
घरके आघे सुव्वर बध्ना वैज्ञानिक कारण पत्ता नइलग्लेफे भारतमे मुगलहुक्रे हिन्दुहुकनहे रखेडे लागलपाछे ज्यान जोगैना थारु समुदाय लुम्बिनी हुइटी दाङ उपत्यकामे आके बसोबास करल अनुमान करे सेक्जाइठ ।

मुगलसे सुव्वर नइछुना हुइल ओरसे घरेक आघे सुव्वर बाँघेबेर मुगलहुक्रे घर भिटर नइपैठना हुइल ओरसे थारु समुदायसे यी उपाय निकारल अनुमान बा । ‘घरके आघे सुव्वर बाँध्न ओ खोर बनैनाके कारण यिहे कना प्रमाण टे नइहो, मने मुगलसे जोग्ना थारु समुदायसे यी उपाय अपनाइल हुइ परठ,’ पछला प्रगन्नाके देशबन्ढ्या गुर्वा लिलामणी चौधरी कहलै ।

साभारः गोचाली खबरसे

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